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E-FIRs : विधि आयोग ने चरणबद्ध तरीके से ई-एफआईआर के पंजीकरण को शुरू करने की सिफारिश की - Law panel recommends rolling out

विधि आयोग ने सिफारिश की है कि उन सभी संज्ञेय अपराधों के लिए ई-एफआईआर के पंजीकरण की अनुमति दी जानी चाहिए जिनमें अपराधी के बारे में कोई जानकारी नहीं है. रिपोर्ट में ई-एफआईआर के पंजीकरण की सुविधा के लिए एक केंद्रीकृत राष्ट्रीय पोर्टल स्थापित करने का भी प्रस्ताव दिया गया है.

Law Commission
विधि आयोग
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By PTI

Published : Sep 29, 2023, 9:38 PM IST

नई दिल्ली : विधि आयोग ने सिफारिश की है कि उन सभी संज्ञेय अपराधों के लिए ई-एफआईआर के पंजीकरण की अनुमति दी जानी चाहिए जहां आरोपी अज्ञात है और ऐसे सभी संज्ञेय अपराधों के लिए इसका दायरा बढ़ाया जाना चाहिए जिनमें नामजद आरोपी की स्थिति में तीन साल तक की जेल की सजा हो सकती है. बुधवार को सरकार को सौंपी गई और शुक्रवार को सार्वजनिक की गई रिपोर्ट में आयोग ने कहा कि प्रारंभिक चरण में ई-एफआईआर योजना का सीमित दायरा यह सुनिश्चित करेगा कि गंभीर अपराधों को दर्ज किये जाने और जांच के लिए अपनाई गई प्रक्रिया के संबंध में कोई व्यवधान नहीं है.

ई-शिकायत या ई-एफआईआर दर्ज कराने वाले व्यक्ति द्वारा ई-सत्यापन और अनिवार्य रूप से घोषणा करने का सुझाव देने के अलावा, आयोग ने अतिरिक्त सुरक्षा बरते जाने का भी प्रस्ताव दिया. इसमें कहा गया है कि ई-शिकायतों या ई-एफआईआर के गलत पंजीकरण के लिए कारावास और जुर्माने की न्यूनतम सजा दी जानी चाहिए, जिसके लिए भारतीय दंड संहिता की प्रासंगिक धाराओं में संशोधन किया जा सकता है.

इसने ई-एफआईआर के पंजीकरण की सुविधा के लिए एक केंद्रीकृत राष्ट्रीय पोर्टल स्थापित करने का प्रस्ताव दिया. इसमें कहा गया है कि ई-एफआईआर से प्राथमिकी के पंजीकरण में देरी की लंबे समय से चली आ रही समस्या से निपटा जा सकेगा और नागरिक वास्तविक समय में अपराध की सूचना दे सकेंगे. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लिखे अपने पत्र में विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी ने कहा, 'प्रौद्योगिकी के विकास के कारण संचार के साधनों में बहुत प्रगति हुई है. ऐसी स्थिति में, प्राथमिकी दर्ज करने की पुरानी प्रणाली पर ही टिके रहना आपराधिक सुधारों के लिए अच्छा संकेत नहीं है.'

रिपोर्ट में कहा गया है कि ई-एफआईआर पंजीकरण की योजना की सभी मामलों में अनुमति नहीं दी जा सकती है और इसमें उच्चतम न्यायालय के फैसले का हवाला दिया गया है जिसने प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की अनुमति दी है. आयोग ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 155 के अनुसार सभी गैर-संज्ञेय अपराधों के लिए ई-शिकायत के पंजीकरण की अनुमति दी जानी चाहिए, जैसा कि वर्तमान में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किया जा रहा है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ई-शिकायतों या ई-एफआईआर के गलत पंजीकरण से बचने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि शिकायतकर्ता या मुखबिर का सत्यापन ई-प्रमाणीकरण तकनीकों का इस्तेमाल करके किया जाए. गोपनीयता की रक्षा की मांग करते हुए, इसने कहा कि ऑनलाइन एफआईआर दर्ज करते समय प्रदान किए गए डेटा के साथ समझौता नहीं किया गया है और इसमें शामिल पक्षों की गोपनीयता का कोई उल्लंघन नहीं है. इसमें कहा गया है कि सूचना देने वाले या शिकायतकर्ता और केंद्रीकृत राष्ट्रीय पोर्टल पर संदिग्ध के रूप में नामित व्यक्ति की गोपनीयता तब तक सुरक्षित रखी जाएगी जब तक कि ई-एफआईआर पर सूचना देने वाले या शिकायतकर्ता द्वारा हस्ताक्षर नहीं किए जाते हैं.

ये भी पढ़ें - One Nation One Election : एक साथ चुनाव पर रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए कोई समयसीमा नहीं : विधि आयोग के अध्यक्ष

नई दिल्ली : विधि आयोग ने सिफारिश की है कि उन सभी संज्ञेय अपराधों के लिए ई-एफआईआर के पंजीकरण की अनुमति दी जानी चाहिए जहां आरोपी अज्ञात है और ऐसे सभी संज्ञेय अपराधों के लिए इसका दायरा बढ़ाया जाना चाहिए जिनमें नामजद आरोपी की स्थिति में तीन साल तक की जेल की सजा हो सकती है. बुधवार को सरकार को सौंपी गई और शुक्रवार को सार्वजनिक की गई रिपोर्ट में आयोग ने कहा कि प्रारंभिक चरण में ई-एफआईआर योजना का सीमित दायरा यह सुनिश्चित करेगा कि गंभीर अपराधों को दर्ज किये जाने और जांच के लिए अपनाई गई प्रक्रिया के संबंध में कोई व्यवधान नहीं है.

ई-शिकायत या ई-एफआईआर दर्ज कराने वाले व्यक्ति द्वारा ई-सत्यापन और अनिवार्य रूप से घोषणा करने का सुझाव देने के अलावा, आयोग ने अतिरिक्त सुरक्षा बरते जाने का भी प्रस्ताव दिया. इसमें कहा गया है कि ई-शिकायतों या ई-एफआईआर के गलत पंजीकरण के लिए कारावास और जुर्माने की न्यूनतम सजा दी जानी चाहिए, जिसके लिए भारतीय दंड संहिता की प्रासंगिक धाराओं में संशोधन किया जा सकता है.

इसने ई-एफआईआर के पंजीकरण की सुविधा के लिए एक केंद्रीकृत राष्ट्रीय पोर्टल स्थापित करने का प्रस्ताव दिया. इसमें कहा गया है कि ई-एफआईआर से प्राथमिकी के पंजीकरण में देरी की लंबे समय से चली आ रही समस्या से निपटा जा सकेगा और नागरिक वास्तविक समय में अपराध की सूचना दे सकेंगे. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लिखे अपने पत्र में विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी ने कहा, 'प्रौद्योगिकी के विकास के कारण संचार के साधनों में बहुत प्रगति हुई है. ऐसी स्थिति में, प्राथमिकी दर्ज करने की पुरानी प्रणाली पर ही टिके रहना आपराधिक सुधारों के लिए अच्छा संकेत नहीं है.'

रिपोर्ट में कहा गया है कि ई-एफआईआर पंजीकरण की योजना की सभी मामलों में अनुमति नहीं दी जा सकती है और इसमें उच्चतम न्यायालय के फैसले का हवाला दिया गया है जिसने प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की अनुमति दी है. आयोग ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 155 के अनुसार सभी गैर-संज्ञेय अपराधों के लिए ई-शिकायत के पंजीकरण की अनुमति दी जानी चाहिए, जैसा कि वर्तमान में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किया जा रहा है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ई-शिकायतों या ई-एफआईआर के गलत पंजीकरण से बचने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि शिकायतकर्ता या मुखबिर का सत्यापन ई-प्रमाणीकरण तकनीकों का इस्तेमाल करके किया जाए. गोपनीयता की रक्षा की मांग करते हुए, इसने कहा कि ऑनलाइन एफआईआर दर्ज करते समय प्रदान किए गए डेटा के साथ समझौता नहीं किया गया है और इसमें शामिल पक्षों की गोपनीयता का कोई उल्लंघन नहीं है. इसमें कहा गया है कि सूचना देने वाले या शिकायतकर्ता और केंद्रीकृत राष्ट्रीय पोर्टल पर संदिग्ध के रूप में नामित व्यक्ति की गोपनीयता तब तक सुरक्षित रखी जाएगी जब तक कि ई-एफआईआर पर सूचना देने वाले या शिकायतकर्ता द्वारा हस्ताक्षर नहीं किए जाते हैं.

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