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झारखंड की स्मिता ने अपने चट्टानी इरादों से बदली Maid और Mad की पहचान

कहते हैं मन के हारे हार है, मन के जीते जीत. यह साबित किया है लातेहार की दिव्यांग स्मिता ने. कभी मेड और मैड नाम से पहचानी जाने वाली स्मिता, आज पैरा पावर लिफ्टर स्मिता के नाम से जानी और पहचानी जाती हैं. स्पेशल पैरालंपिक में पावर लिफ्टिंग कर स्मिता ने तीन कांस्य पदक जीते और देश में अपनी अलग पहचान बनाई है. ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट में जानिए, स्मिता के बुलंद हौसले की बुलंद कहानी.

झारखंड
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Published : Apr 25, 2022, 7:03 PM IST

लातेहार : कहा जाता है कि प्रतिभा और बुलंद हौसला हो तो किसी भी इंसान को मंजिल पाने से कोई रोक नहीं सकता है. इस कहावत को चरितार्थ किया है लातेहार की स्मिता ने. झारखंड की स्मिता ने अपने बुलंद हौसलों की बदौलत घरेलू नौकरानी और मंदबुद्धि यानी कि Maid और Mad की पहचान को बदलते हुए आज देश की पहचान बन गई है. अबूधाबी में आयोजित स्पेशल पैरालंपिक में पावर लिफ्टिंग कर स्मिता ने तीन कांस्य पदक जीते और समाज को यह सबक सिखाया कि किसी भी इंसान की कमियों को देख उसको कमतर न आंके, पता नहीं उसमें कौन सी खूबी हो जिसकी आप चाहकर भी बराबरी न कर पाएं.

लातेहार निवासी दिव्यांग स्मिता की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. अत्यंत गरीब परिवार में जन्मी स्मिता का बचपन काफी मुश्किलों और तनाव में गुजरा. स्मिता का मानसिक विकास आम बच्चों के अपेक्षा काफी कम थी. ऐसे में स्मिता को पालना उसके गरीब मां-बाप के लिए मुसीबत बन गयी. इसी बीच वर्ष 2013 में स्मिता के पिता कालेश्वर लोहरा ने स्मिता को गांव के ही कुछ लोगों के साथ घरेलू नौकरानी के रूप में कार्य करने के लिए दिल्ली भेज दिया. स्मिता को एक घर में नौकरानी के रूप में काम पर भी लगा दिया गया.

चट्टानी इरादों से स्मिता ने बदली Maid और Mad की पहचान

अचानक जिंदगी ने ली करवट : एक दिन स्मिता सब्जी लेने के लिए बाजार गई थी, जहां वो खो गई. स्मिता की मानसिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह अपने घर और पता की जानकारी किसी दूसरे को दे सके. ऐसे में स्थानीय प्रशासन की मदद से स्मिता को आशा किरण नामक संस्था को सौंप दिया गया. स्मिता की मानसिक स्थिति को देखते हुए संस्था के द्वारा उसका इलाज भी करवाया गया. इसी बीच संस्था के लोगों ने नोटिस किया कि स्मिता भारी वजन को भी आसानी से उठा लेती है.

दिव्यांग स्मित को डीसी ने किया सम्मानित
दिव्यांग स्मित को डीसी ने किया सम्मानित

इसके बाद संस्था द्वारा स्मिता के हुनर को निखारने का कार्य आरंभ किया गया और उसे पावर लिफ्टिंग की ट्रेनिंग आरंभ करवाई गयी. लगभग छह वर्षों की कड़ी मेहनत और सही प्रशिक्षण के कारण स्मिता का चयन अबूधाबी में आयोजित स्पेशल पैरालंपिक के लिए हुआ. वर्ष 2019 में स्मिता देश का प्रतिनिधित्व करते हुए अबूधाबी गईं और वहां पावर लिफ्टिंग प्रतियोगिता में तीन कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया.

पहचान मिली तो पता भी मिला : स्मिता की इस सफलता के बाद उसके घर और परिवार का पता लगाने का कार्य तेज कर दिया गया. इसी बीच स्मिता की दिमागी हालत भी काफी सुधर गई थी और वह अपने घर के बारे में कुछ कुछ बताने लगी. स्मिता के द्वारा बालूमाथ का नाम लिया जाता था. जानकारी मिलने के बाद मिनिस्ट्री ऑफ सोशल वेलफेयर ने लातेहार डीसी अबु इमरान से संपर्क कर स्मिता के माता पिता की जानकारी ली. छानबीन में पता चला कि स्मिता लातेहार के बालूमाथ प्रखंड के एक छोटे से गांव हेमपुर की रहने वाली है. इसके बाद स्मिता के माता-पिता को दिल्ली भेजकर उसके माता-पिता को सौंपा गया.

मेडल और प्रमाण पत्र के साथ पैरा पावर लिफ्टर स्मिता
मेडल और प्रमाण पत्र के साथ पैरा पावर लिफ्टर स्मिता

पहचान बदलकर लौटी गांव : जिस स्मिता को लगभग 10 साल पहले गांव के लोग मंदबुद्धि कहते थे, वही स्मिता 10 साल बाद अपनी पहचान बदलकर गांव वापस लौटी है. स्मिता को लातेहार जिला प्रशासन के द्वारा सभी प्रकार की सुविधा मुहैया कराने की बात कही गई है. उपायुक्त ने स्मिता और उसके परिजनों को अपने कार्यालय कक्ष में बुलाकर बातचीत की और उन्हें सम्मानित भी किया. डीसी ने कहा कि स्मिता को आगे बढ़ने के लिए पूरा माहौल उपलब्ध कराया जाएगा. जिला खेल पदाधिकारी शिवेंद कुमार सिंह ने कहा कि स्मिता ने लातेहार के साथ-साथ देश का नाम रोशन किया है. स्मिता को आगे बढ़ाने के लिए स्टेट पावर लिफ्टिंग एसोसिएशन (State Power Lifting Association) से बात की जा रही है.

परिजनों में खुशी की लहर : 10 साल पहले परिजनों से खो गई स्मिता के वापस लौटने और उसकी उपलब्धि से परिजन भी काफी खुश हैं. स्मिता के चाचा ने बताया कि प्रशासन की पहल पर वो लोग दिल्ली जाकर स्मिता को घर ले आए हैं. प्रशासनिक अधिकारी आश्वस्त किए हैं कि स्मिता को आगे बढ़ाने में पूरी मदद करेंगे. स्मिता की कहानी और उसकी सफलता लोगों के लिए प्रेरणा है. घरेलू नौकरानी और मानसिक बीमार लड़की के रूप में पहचाने जाने वाली स्मिता अपनी मेहनत से एक सफल खिलाड़ी बन कर गांव लौटी है. स्मिता की जीवनी यह बताती है कि जीवन में कभी हार नहीं मानना चाहिए. परिस्थितियां जैसी भी हो सफलता के लिए रास्ता मिल ही जाता है.

लातेहार : कहा जाता है कि प्रतिभा और बुलंद हौसला हो तो किसी भी इंसान को मंजिल पाने से कोई रोक नहीं सकता है. इस कहावत को चरितार्थ किया है लातेहार की स्मिता ने. झारखंड की स्मिता ने अपने बुलंद हौसलों की बदौलत घरेलू नौकरानी और मंदबुद्धि यानी कि Maid और Mad की पहचान को बदलते हुए आज देश की पहचान बन गई है. अबूधाबी में आयोजित स्पेशल पैरालंपिक में पावर लिफ्टिंग कर स्मिता ने तीन कांस्य पदक जीते और समाज को यह सबक सिखाया कि किसी भी इंसान की कमियों को देख उसको कमतर न आंके, पता नहीं उसमें कौन सी खूबी हो जिसकी आप चाहकर भी बराबरी न कर पाएं.

लातेहार निवासी दिव्यांग स्मिता की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. अत्यंत गरीब परिवार में जन्मी स्मिता का बचपन काफी मुश्किलों और तनाव में गुजरा. स्मिता का मानसिक विकास आम बच्चों के अपेक्षा काफी कम थी. ऐसे में स्मिता को पालना उसके गरीब मां-बाप के लिए मुसीबत बन गयी. इसी बीच वर्ष 2013 में स्मिता के पिता कालेश्वर लोहरा ने स्मिता को गांव के ही कुछ लोगों के साथ घरेलू नौकरानी के रूप में कार्य करने के लिए दिल्ली भेज दिया. स्मिता को एक घर में नौकरानी के रूप में काम पर भी लगा दिया गया.

चट्टानी इरादों से स्मिता ने बदली Maid और Mad की पहचान

अचानक जिंदगी ने ली करवट : एक दिन स्मिता सब्जी लेने के लिए बाजार गई थी, जहां वो खो गई. स्मिता की मानसिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह अपने घर और पता की जानकारी किसी दूसरे को दे सके. ऐसे में स्थानीय प्रशासन की मदद से स्मिता को आशा किरण नामक संस्था को सौंप दिया गया. स्मिता की मानसिक स्थिति को देखते हुए संस्था के द्वारा उसका इलाज भी करवाया गया. इसी बीच संस्था के लोगों ने नोटिस किया कि स्मिता भारी वजन को भी आसानी से उठा लेती है.

दिव्यांग स्मित को डीसी ने किया सम्मानित
दिव्यांग स्मित को डीसी ने किया सम्मानित

इसके बाद संस्था द्वारा स्मिता के हुनर को निखारने का कार्य आरंभ किया गया और उसे पावर लिफ्टिंग की ट्रेनिंग आरंभ करवाई गयी. लगभग छह वर्षों की कड़ी मेहनत और सही प्रशिक्षण के कारण स्मिता का चयन अबूधाबी में आयोजित स्पेशल पैरालंपिक के लिए हुआ. वर्ष 2019 में स्मिता देश का प्रतिनिधित्व करते हुए अबूधाबी गईं और वहां पावर लिफ्टिंग प्रतियोगिता में तीन कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया.

पहचान मिली तो पता भी मिला : स्मिता की इस सफलता के बाद उसके घर और परिवार का पता लगाने का कार्य तेज कर दिया गया. इसी बीच स्मिता की दिमागी हालत भी काफी सुधर गई थी और वह अपने घर के बारे में कुछ कुछ बताने लगी. स्मिता के द्वारा बालूमाथ का नाम लिया जाता था. जानकारी मिलने के बाद मिनिस्ट्री ऑफ सोशल वेलफेयर ने लातेहार डीसी अबु इमरान से संपर्क कर स्मिता के माता पिता की जानकारी ली. छानबीन में पता चला कि स्मिता लातेहार के बालूमाथ प्रखंड के एक छोटे से गांव हेमपुर की रहने वाली है. इसके बाद स्मिता के माता-पिता को दिल्ली भेजकर उसके माता-पिता को सौंपा गया.

मेडल और प्रमाण पत्र के साथ पैरा पावर लिफ्टर स्मिता
मेडल और प्रमाण पत्र के साथ पैरा पावर लिफ्टर स्मिता

पहचान बदलकर लौटी गांव : जिस स्मिता को लगभग 10 साल पहले गांव के लोग मंदबुद्धि कहते थे, वही स्मिता 10 साल बाद अपनी पहचान बदलकर गांव वापस लौटी है. स्मिता को लातेहार जिला प्रशासन के द्वारा सभी प्रकार की सुविधा मुहैया कराने की बात कही गई है. उपायुक्त ने स्मिता और उसके परिजनों को अपने कार्यालय कक्ष में बुलाकर बातचीत की और उन्हें सम्मानित भी किया. डीसी ने कहा कि स्मिता को आगे बढ़ने के लिए पूरा माहौल उपलब्ध कराया जाएगा. जिला खेल पदाधिकारी शिवेंद कुमार सिंह ने कहा कि स्मिता ने लातेहार के साथ-साथ देश का नाम रोशन किया है. स्मिता को आगे बढ़ाने के लिए स्टेट पावर लिफ्टिंग एसोसिएशन (State Power Lifting Association) से बात की जा रही है.

परिजनों में खुशी की लहर : 10 साल पहले परिजनों से खो गई स्मिता के वापस लौटने और उसकी उपलब्धि से परिजन भी काफी खुश हैं. स्मिता के चाचा ने बताया कि प्रशासन की पहल पर वो लोग दिल्ली जाकर स्मिता को घर ले आए हैं. प्रशासनिक अधिकारी आश्वस्त किए हैं कि स्मिता को आगे बढ़ाने में पूरी मदद करेंगे. स्मिता की कहानी और उसकी सफलता लोगों के लिए प्रेरणा है. घरेलू नौकरानी और मानसिक बीमार लड़की के रूप में पहचाने जाने वाली स्मिता अपनी मेहनत से एक सफल खिलाड़ी बन कर गांव लौटी है. स्मिता की जीवनी यह बताती है कि जीवन में कभी हार नहीं मानना चाहिए. परिस्थितियां जैसी भी हो सफलता के लिए रास्ता मिल ही जाता है.

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