पश्चिम चंपारण : बिहार में एक ऐसी मां हैं, जिसके करीब 11 हजार बच्चे हैं. ये मां अपने बच्चों का एक जैसा ख्याल रखती है. इनके लिए सारे बेटे एक समान हैं. इस मां की कहानी पूरे जिले में चर्चा का विषय है. हम बात कर रहे हैं पश्चिम चंपारण जिले के लौरिया प्रखंड में रहने वाली 90 वर्षीया ललिता देवी की, जो अपने 11 हजार पौधों को बच्चों के समान पाल-पोश रही हैं. ललिता देवी की पौधों के प्रति लगाव को देखते हुए गांव वालों ने उन्हें पौधों की मां का नाम भी दे दिया है.
ललिता देवी पौधों की मां : ललिता देवी ने अपने गांव में लगभग 11 हजार पौधों को लगाया है. वह बचपन से ही पौधे लगाती रही हैं और आज तक उनका देखभाल करती आई हैं. इस वजह से ललिता देवी को पौधों की मां (Lalita Devi mother of plants) कहते हैं. ललिता देवी को जहां जगह मिली, वहीं पर पौधा लगा दिया और आज वह पौधे बड़े हो चुके हैं. जिसे देखकर ललिता देवी बहुत खुश हैं. अपने इन्हीं बच्चों को देखकर वह कहती हैं कि मैं जब उनकी छांव में बैठती हूं तो मुझे बड़ा सुकून महसूस होता है. ललिता देवी ने बताया कि वह बचपन से ही पौधा लगाते आई हैं. उनका मायका भितिहारवा श्रीपुर गांव हैं. जहां उन्होंने पहली बार पौधा लगाना शुरू किया और पूरी कोशिश की कि और पौधे लगाए और उनकी देखभाल करे.
ललिता देवी की पौधे लगाने की मुहिम : ललिता देवी एक संपन्न परिवार से आती हैं. उनके दादा हरिलाल यादव भितिहारवा श्रीनगर गांव के रहने वाले थे. जो एक शिक्षक थे. उनके पिता रामाश्रय यादव भी शिक्षक थे. एक अच्छे परिवार के होने के नाते ललिता देवी की शादी भी शिक्षक से हुई थी. जिनका नाम स्वर्गीय जगदेव प्रसाद यादव है. ललिता देवी बताती हैं कि उन्होंने पौधा लगाने की ये मुहिम कभी खत्म नहीं की है. वह अब तक 11 हजार पौधे लगा चुकी हैं. उनकी देखरेख भी खुद करती हैं. पौधों की जड़ के पास खुदाई करना, पानी व खाद डालना, मवेशियों से बचाना यह काम खुद करती हैं. जो पौधे लगाए हैं उनमें आम, सागवान, नीम, जामुन, शीशम, पॉपुलर, लीची, महोगनी समेत कई प्रकार पौधे हैं.
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ललिता देवी ने बताया कि पांच साल पहले उनके दो बेटों की मौत भी बीमारी से हो गई थी. शोकाकुल ललिता देवी ने हिम्मत की और बेटों की याद में एक महीने के अंदर 500 से अधिक पौधे लगा दिए. वह इन्हीं पौधों को अपने बेटे मानती है. हालांकि, वह अब तक 11,000 पौधे (Planted 11 Thousand Plants in West Champaran) लगा चुकी हैं. उनका अभियान अभी भी जारी है. जब भी मौका मिलता है, तो वह पौधा लगाती है. ललिता देवी बताती हैं कि वह सुबह-सुबह उस बागवान में जाती हैं और उन पौधों को हाथ जोड़कर पूजा करती हैं. ललिता देवी गांव की महिलाओं को पौधरोपण के लिए प्रेरित करती है. मात्र सातवीं कक्षा तक पढ़ने वाली ललिता देवी कहती हैं कि पौधे लगाने का सिलसिला जब तक मैं जीवित रहूंगी तब तक रहेगा.
90 साल की उम्र में कमाल का जज्बा: ललिता देवी नाम व पहचान की मोहताज नहीं है, लेकिन उन्हें सरकार की नजर नहीं देख पा रही है, उनका यह मलाल है. ललिता देवी गांव के लोगों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन चुकी हैं. 90 साल की उम्र में ऐसा जज्बा रखने वाली ललिता देवी को ईटीवी भारत भी सलाम करता है. उनका यह जज्बा वाकई काबिल-ए-तारीफ है, लेकिन ललिता देवी की तरफ एक बार जिला प्रशासन को देखना जरूर चाहिए, उन्हें सम्मानित करना चाहिए, ताकि ललिता देवी की सम्मान की कहानी पूरे देश में प्रसिद्ध हो. इन्हें देखकर लोग ललिता देवी से प्रेरणा लें और कुछ कर गुजरने का हिम्मत जुटा सकें.