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राजस्थान में आदिवासियों की आय बढ़ाने के लिए KVIC की अनूठी परियोजना 'बोल्ड'

राजस्थान में जनजातियों की आय और बांस आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने अनोखी परियोजना 'बोल्ड' (Bamboo Oasis on Lands in Drought) शुरू की है. परियोजना के बारे में खास रिपोर्ट.

आदिवासियों की आय बढ़ाएगा बांस
आदिवासियों की आय बढ़ाएगा बांस
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Published : Jul 8, 2021, 4:57 PM IST

हैदराबाद : राजस्थान में जनजातियों की आय (Tribals Income) और बांस आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने अनोखी परियोजना 'सूखे भू-क्षेत्र पर बांस मरु-उद्यान' (बोल्ड) शुरू की है.

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने मरुस्थलीकरण को कम करने और आजीविका प्रदान करने के लिए यह बहुउद्देश्यीय ग्रामीण उद्योग सहायता शुरू की है. 'सूखे भू-क्षेत्र पर बांस मरु-उद्यान' (Bamboo Oasis on Lands in Drought) नाम की अनूठी परियोजना राजस्थान के उदयपुर जिले के निकलमांडावा के आदिवासी गांव में शुरू की जाने वाली देश में अपनी तरह की पहली परियोजना है.

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) क्या है?

यह खादी और ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम, 1956 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है. यह ग्रामीण क्षेत्रों में खादी और अन्य ग्रामोद्योगों के विकास के लिए कार्यक्रमों के नियोजन, प्रचार, संगठन और कार्यान्वयन के लिए बनाया गया है. यह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के अधीन कार्य करता है.

परियोजना के प्रमुख बिंदु

  • परियोजना के तहत विशेष रूप से असम से लाए गए बांस की विशेष प्रजातियों- बंबुसा टुल्डा और बंबुसा पॉलीमोर्फा के 5,000 पौधों को ग्राम पंचायत की 25 बीघा (लगभग 16 एकड़) खाली शुष्क भूमि पर लगाया गया है. इस तरह केवीआईसी ने एक ही स्थान पर एक ही दिन में सर्वाधिक संख्या में बांस के पौधे लगाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया है.
  • यह भारत में अपनी तरह का पहला अभ्यास है. प्रोजेक्ट बोल्ड जो शुष्क और अर्ध-शुष्क भूमि क्षेत्रों में बांस आधारित हरे पैच बनाने का प्रयास करता है, भूमि क्षरण को कम करने और मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के साथ जुड़ा हुआ है.
  • यह खादी ग्रामोद्योग आयोग द्वारा देश के 75वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित खादी बांस महोत्सव (आजादी का अमृत महोत्सव) का हिस्सा है.

तेजी से बढ़ता है बांस इसलिए चुना

केवीआईसी ने हरित पट्टियां विकसित करने के लिए विवेकपूर्ण तरीके से बांस को चुना है. बांस बहुत तेजी से बढ़ते हैं और लगभग तीन साल की अवधि में उन्हें काटा जा सकता है. बांस को पानी के संरक्षण और भूमि की सतह से पानी के वाष्पीकरण को कम करने के लिए भी जाना जाता है, जो शुष्क और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण विशेषता है. खादी ग्रामोद्योग प्राधिकरण इस साल अगस्त तक गुजरात के अहमदाबाद जिले के धोलेरा गांव और लेह-लद्दाख में भी इसी तरह की परियोजना शुरू करने वाला है. 21 अगस्त से पहले कुल 15,000 बांस के पौधे लगाए जाएंगे.

क्या होगा फायदा

यह मरुस्थलीकरण को कम करेगा और आजीविका और बहु-विषयक ग्रामीण उद्योग सहायता प्रदान करेगा. दूसरे शब्दों में कहें तो बांस उगाने से देश की भूमि क्षरण दर को कम करने में मदद मिलेगी, साथ ही सतत विकास और खाद्य सुरक्षा भी मिलेगी. यही वजह है कि सरकार बांस की खेती को बढ़ावा दे रही है. बांस की लगभग 136 प्रजातियां हैं. भारत में 13.96 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में बांस लगाया जाता है. बांस अन्य पौधों की तुलना में पर्यावरण की अधिक रक्षा करता है. भारत बांस के उत्पादन में बहुत आगे है, लेकिन इसके व्यापार के लिए अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.

भूमि क्षरण दर कम करने में मिलेगी मदद : सक्सेना

खादी ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना ने कहा, 'इन तीन स्थानों पर बांस उगाने से देश की भूमि क्षरण दर को कम करने में मदद मिलेगी, साथ ही सतत विकास और खाद्य सुरक्षा भी मिलेगी.

पढ़ें- अमरावती में खाया जाता है बांस कांदा, जानिए कैसे और कब तक

वहीं सांसद अर्जुन लाल मीणा ने कहा कि उदयपुर में बांस पौधारोपण कार्यक्रम से इस क्षेत्र में स्वरोजगार को बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने कहा कि इस तरह की परियोजनाओं से क्षेत्र में बड़ी संख्या में महिलाओं और बेरोजगार युवाओं को कौशल विकास कार्यक्रमों से जोड़कर लाभ होगा.

हैदराबाद : राजस्थान में जनजातियों की आय (Tribals Income) और बांस आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने अनोखी परियोजना 'सूखे भू-क्षेत्र पर बांस मरु-उद्यान' (बोल्ड) शुरू की है.

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने मरुस्थलीकरण को कम करने और आजीविका प्रदान करने के लिए यह बहुउद्देश्यीय ग्रामीण उद्योग सहायता शुरू की है. 'सूखे भू-क्षेत्र पर बांस मरु-उद्यान' (Bamboo Oasis on Lands in Drought) नाम की अनूठी परियोजना राजस्थान के उदयपुर जिले के निकलमांडावा के आदिवासी गांव में शुरू की जाने वाली देश में अपनी तरह की पहली परियोजना है.

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) क्या है?

यह खादी और ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम, 1956 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है. यह ग्रामीण क्षेत्रों में खादी और अन्य ग्रामोद्योगों के विकास के लिए कार्यक्रमों के नियोजन, प्रचार, संगठन और कार्यान्वयन के लिए बनाया गया है. यह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के अधीन कार्य करता है.

परियोजना के प्रमुख बिंदु

  • परियोजना के तहत विशेष रूप से असम से लाए गए बांस की विशेष प्रजातियों- बंबुसा टुल्डा और बंबुसा पॉलीमोर्फा के 5,000 पौधों को ग्राम पंचायत की 25 बीघा (लगभग 16 एकड़) खाली शुष्क भूमि पर लगाया गया है. इस तरह केवीआईसी ने एक ही स्थान पर एक ही दिन में सर्वाधिक संख्या में बांस के पौधे लगाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया है.
  • यह भारत में अपनी तरह का पहला अभ्यास है. प्रोजेक्ट बोल्ड जो शुष्क और अर्ध-शुष्क भूमि क्षेत्रों में बांस आधारित हरे पैच बनाने का प्रयास करता है, भूमि क्षरण को कम करने और मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के साथ जुड़ा हुआ है.
  • यह खादी ग्रामोद्योग आयोग द्वारा देश के 75वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित खादी बांस महोत्सव (आजादी का अमृत महोत्सव) का हिस्सा है.

तेजी से बढ़ता है बांस इसलिए चुना

केवीआईसी ने हरित पट्टियां विकसित करने के लिए विवेकपूर्ण तरीके से बांस को चुना है. बांस बहुत तेजी से बढ़ते हैं और लगभग तीन साल की अवधि में उन्हें काटा जा सकता है. बांस को पानी के संरक्षण और भूमि की सतह से पानी के वाष्पीकरण को कम करने के लिए भी जाना जाता है, जो शुष्क और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण विशेषता है. खादी ग्रामोद्योग प्राधिकरण इस साल अगस्त तक गुजरात के अहमदाबाद जिले के धोलेरा गांव और लेह-लद्दाख में भी इसी तरह की परियोजना शुरू करने वाला है. 21 अगस्त से पहले कुल 15,000 बांस के पौधे लगाए जाएंगे.

क्या होगा फायदा

यह मरुस्थलीकरण को कम करेगा और आजीविका और बहु-विषयक ग्रामीण उद्योग सहायता प्रदान करेगा. दूसरे शब्दों में कहें तो बांस उगाने से देश की भूमि क्षरण दर को कम करने में मदद मिलेगी, साथ ही सतत विकास और खाद्य सुरक्षा भी मिलेगी. यही वजह है कि सरकार बांस की खेती को बढ़ावा दे रही है. बांस की लगभग 136 प्रजातियां हैं. भारत में 13.96 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में बांस लगाया जाता है. बांस अन्य पौधों की तुलना में पर्यावरण की अधिक रक्षा करता है. भारत बांस के उत्पादन में बहुत आगे है, लेकिन इसके व्यापार के लिए अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.

भूमि क्षरण दर कम करने में मिलेगी मदद : सक्सेना

खादी ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना ने कहा, 'इन तीन स्थानों पर बांस उगाने से देश की भूमि क्षरण दर को कम करने में मदद मिलेगी, साथ ही सतत विकास और खाद्य सुरक्षा भी मिलेगी.

पढ़ें- अमरावती में खाया जाता है बांस कांदा, जानिए कैसे और कब तक

वहीं सांसद अर्जुन लाल मीणा ने कहा कि उदयपुर में बांस पौधारोपण कार्यक्रम से इस क्षेत्र में स्वरोजगार को बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने कहा कि इस तरह की परियोजनाओं से क्षेत्र में बड़ी संख्या में महिलाओं और बेरोजगार युवाओं को कौशल विकास कार्यक्रमों से जोड़कर लाभ होगा.

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