नई दिल्ली: कश्मीर, नोएडा और अन्य इलाकों में शनिवार सुबह भूकंप के झटके महसूस किए गए. जम्मू-कश्मीर के कश्मीर घाटी और जम्मू संभाग में भूंकप के तेज झटके महसूस किए गए है. भूकंप के झटके महसूस होने के बाद लोग अपने घरों से बाहर आ गए. लोगों के मुताबिक जमीन काफी तेज हिली थी जिस वजह से सभी डर गए.
बताया जा रहा है कि रिक्टर स्केल पर 5.7 की तीव्रता वाला भूकंप आज सुबह 9:45 बजे अफगानिस्तान-ताजिकिस्तान सीमा क्षेत्र में आया. भूकंप से अभी किसी तरह के जान माल के खतरे की खबर सामने नहीं आई है.
इससे पहले 14 जनवरी को जम्मू-कश्मीर में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे. रिक्टर स्केल पर भूकंप के झटके की तीव्रता 5.3 रही थी. भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान ताजिकिस्तान बॉर्डर पर बताया जा रहा था. वहीं, चंड़ीगढ़ में भी झटके महसूस किए गए.
अब सवाल ये है कि क्या आप जानते हैं कि भूकंप क्यों आता है और कैसे पता चलता है कि भूकंप की तीव्रता कितनी है.
बता दें कि धरती के भीतर कई प्लेटें होती हैं, जो समय-समय पर इधर-उधर होती रहती हैं. प्लेटों के इस विस्थापन को भूकंप कहते हैं. आइए जानते हैं इसके बारे में...
क्यों आता है भूकंप
धरती मुख्य तौर पर चार परतों से बनी हुई है. इनर कोर, आउटर कोर, मैनटल और क्रस्ट. क्रस्ट और ऊपरी मैन्टल कोर को लिथोस्फेयर कहते हैं. ये 50 किलोमीटर की मोटी परत कई वर्गों में बंटी हुई है, जिसे टैकटोनिक प्लेट्स कहा जाता है. ये टैकटोनिक प्लेट्स अपनी जगह पर हिलती रहती हैं. जब ये प्लेट बहुत ज्यादा हिल जाती हैं, तो भूकंप महसूस होता है. इस दौरान एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे आ जाती है.
भूकंप की तीव्रता का अंदाजा केंद्र (एपीसेंटर) से निकलने वाली ऊर्जा की तरंगों से लगाया जाता है. इन तरंगों से सैंकड़ो किलोमीटर तक कंपन होता है और धरती में दरारें तक पड़ जाती है. अगर भूकंप की गहराई उथली हो तो इससे बाहर निकलने वाली ऊर्जा सतह के काफी करीब होती है, जिससे भयानक तबाही होती है, लेकिन जो भूकंप धरती की गहराई में आते हैं, उनसे सतह पर ज्यादा नुकसान नहीं होता. समुद्र में भूकंप आने पर ऊंची और तेज लहरें उठती हैं, जिसे सुनामी भी कहते हैं.
कैसे मापी जाती है भूकंप की तीव्रता
भूकंप की तीव्रता को मापने के लिए रिक्टर स्केल का पैमाना इस्तेमाल किया जाता है. इसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल कहा जाता है. रिक्टर स्केल पर भूकंप को 1 से 9 तक के आधार पर मापा जाता है. भूकंप को इसके केंद्र यानी एपीसेंटर से मापा जाता है.
प्रभाव
भूकंप से जान-माल की हानि, मूलभूत आवश्यकताओं की कमी, रोग आदि होता है. इमारतों व बांध, पुल, नाभिकीय ऊर्जा केंद्र को नुकसान पहुंचता है. भूस्खलन व हिम स्खलन होता है, जो पहाड़ी व पर्वतीय इलाकों में क्षति का कारण हो सकता है. विद्युत लाइन के टूट जाने से आग लग सकती है. समुद्र के भीतर भूकंप से सुनामी आ सकता है. भूकंप से क्षतिग्रस्त बांध के कारण बाढ़ आ सकती है.
क्या वैज्ञानिक भूकंप की भविष्यवाणी कर सकते हैं?
नहीं, और शायद ही कभी ऐसा संभव हो कि वे इसकी भविष्यवाणी कर सकें. वैज्ञानिकों ने भूकंप की भविष्यवाणी करने के तमाम तरीके अपनाने की कोशिश की, लेकिन कोई भी कारगर साबित नहीं हुआ. किसी निर्धारित फॉल्ट को लेकर तो वैज्ञानिक यह बता सकते हैं कि भविष्य में भूकंप आएगा, लेकिन कब आएगा, बताने का कोई तरीका नहीं है.
भूकंप आने पर क्या करें और क्या न करें?
भूकंप के झटके महसूस होने पर बिल्कुल भी घबराएं नहीं. सबसे पहले अगर आप किसी बिल्डिंग में मौजूद हैं तो फिर बाहर निकलकर खुले में आ जाएं. बिल्डिंग से नीचे उतरते हुए लिफ्ट से बिल्कुल नहीं जाएं. यह आपके लिए भूकंप के वक्त खतरनाक हो सकता है. वहीं, अगर बिल्डिंग से नीचे उतरना संभव नहीं हो तो फिर पास की किसी मेज, ऊंची चौकी या बेड के नीचे छिप जाएं.
चार अलग-अलग जोन में बांटा गया है देश को
दरअसल, भूकंप को लेकर देस को चार अलग-अलग जोन में बांटा गया है. मैक्रो सेस्मिक जोनिंग मैपिंग के अनुसार इसमें जोन-5 से जोन-2 तक शामिल है. जोन 5 को सबसे ज्यादा संवेदनशील माना गया है और इसी तरह जोन दो सबसे कम संवेदनशील माना जाता है.