हैदराबाद : भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के निमंत्रण पर क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद की तीसरी बैठक हुई, जिसो दिल्ली डायलॉग का नाम दिया गया. इस मीटिंग में रूस, ईरान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाखिस्तान, किर्गीजस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भारत में जुटे. इन देशों के प्रतिनिधियों ने अफगानिस्तान की स्थिति पर चर्चा की. न्योते के बावजूद पाकिस्तान इसमें शामिल नहीं हुआ. चीन ने भी बहाना बनाकर दिल्ली डायलॉग से दूरी बना ली. हालांकि ठीक एक दिन बाद पाकिस्तान में हुई ट्रोइका प्लस की मीटिंग में वह शामिल हुआ. ट्रोइका प्लस की मीटिंग में चीन और पाकिस्तान के अलावा रुस और अमेरिका के प्रतिनिधि भी शामिल हुए.
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अजीत डोभाल ने दिल्ली में मीटिंग क्यों बुलाई ?
तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान में पाकिस्तान का हस्तक्षेप बढ़ गया. जाहिर है पाकिस्तान और चीन अफगानिस्तान में भारत के हितों को बेदखल करना चाहते हैं. मध्य एशिया के देशों तक आसान पहुंच के लिए अफगानिस्तान भारत के लिए जरूरी है. इसके अलावा भारत यह भी नहीं चाहता कि तालिबान आईएसआई और पाकिस्तान सेना की कठपुतली बन जाए. अगर पाकिस्तान अपनी मकसद में कामयाब रहता है तो यह भारत के लिए ' जोर का झटका' साबित होगा. अफगानिस्तान को पाकिस्तान की बुरी मंशा से बचाने के लिए जरूरी है कि उसके पड़ोसी देश तालिबान के मसले पर एकमत हों. दिल्ली डायलॉग में जुटे सात देशों के सुरक्षा सलाहकारों ने अफगानिस्तान में भारत की अहमियत और भूमिका पर मुहर भी लगाई.
पाकिस्तान की चाल को नाकाम करने की कोशिश
रीजनल सिक्युरिटी डायलॉग की पहले भी दो मीटिंग हुई थी, मगर तब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन नहीं था. 2018 की बैठक में भारत, अफगानिस्तान, ईरान, रूस और चीन शामिल हुए थे. दिसंबर 2019 में हुई दूसरी मीटिंग में ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान ने भी हिस्सा लिया था. पाकिस्तान ने पहले भी दोनों बैठक में शामिल होने से मना कर दिया था. दरअसल पाकिस्तान हर हालत में भारत को अफगानिस्तान मसले से दूर रखना चाहता है. वह क्षेत्रीय जरूरतों को दरकिनार कर हर ऐसे मंच से दूर जाता है, जहां भारत और अफगानिस्तान के संबंधों पर चर्चा होती हो. तालिबान के अफगानिस्तान पर काबिज होने के बाद उसने भारत को किनारे रखने के लिए 'ट्रोइका' क्लब का गठन किया. ट्रोइका के जरिये पाकिस्तान और चीन ने तालिबान को कूटनीतिक मान्यता देने की मुहिम छेड़ी है. पाकिस्तान की इस चाल के जवाब में जब अजीत डोभाल ने NSA लेवल की मीटिंग बुलाई तो पाकिस्तान ने चीन के साथ 'ट्रोइका प्लस' की मीटिंग बुला ली.
अफगानिस्तान में भारत की भूमिका पर लगी मुहर
कैरियर डिप्लोमेट और पूर्व राजदूत जितेंद्र त्रिपाठी दिल्ली डायलॉग को भारत के हित में मानते हैं. उनका कहना है कि भले ही चीन और पाकिस्तान इसमें नहीं शामिल हुआ, मगर अफगानिस्तान से जुड़े सभी देशों ने भारत की भूमिका को स्वीकार किया.
सभी देश इस पर राजी हुए कि अफगान की सरजमीं पर आतंकवाद का पालन पोषण नहीं होगा और किसी देश के खिलाफ इसका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. अफगानिस्तान की सीमा रुस के अलावा मध्य एशिया के पांच देश ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाखिस्तान, किर्गीजस्तान और उज्बेकिस्तान से लगती है. रुस रूस नहीं चाहता है कि कि आतंकवाद इन 5 देशों के पास पहुंचे और उसके सामने चेचन्या जैसी मुसीबत खड़ी हो जाए.
रुस, अमेरिका समेत सभी देशों ने तालिबान को मान्यता देने संबंधित भारत के विचार से सहमति जाहिर की. जितेंद्र मानते हैं कि भारत को इसका फायदा तभी मिलेगा, जब मीटिंग में शामिल देश लंबे समय तक अपने विचार न बदले.
भारत ने मानवीय सहायता के तौर पर अफगानिस्तान को 50 हजार टन खाद्य सामग्री देने की पेशकश की है, मगर पाकिस्तान इसमें अड़ंगा लगा रहा है. वह अफगानिस्तान तक मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए रास्ता देने को तैयार नहीं है. एनएसए स्तर की बैठक में भारत ने पाकिस्तान की इस हरकत से भी दुनिया को अवगत कराया. इसमें शामिल अन्य देश पाकिस्तान पर दबाव बना सकते हैं.
ईरान से संबंधों को मजबूत किया : पूर्व राजनयिक जितेंद्र के अनुसार, इस बैठक के बहाने भारत ने अमेरिका को दोबारा ईरान के साथ बैठा दिया. ईरान और अमेरिका के बीच काफी लंबे समय से विवाद चल रहा है. भारत ईरान से क्रूड ऑयल खरीदता रहा है, मगर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण पिछले करीब एक साल से भारत ईरान से तेल नहीं खरीद रहा है. माना जा रहा है कि इन दो देशों को एक मंच पर लाने के असर भविष्य में दिख सकता है. संभव है कि ईरान के प्रति अमेरिका के रूख में नरमी आए और भारत दोबारा ईरान से तेल खरीद सके. ईरान ही ऐसा देश है, जहां से भारत डॉलर के बजाय रुपये से क्रूड ऑयल खरीदता था.