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India issued notice to Pakistan: भारत ने पाकिस्तान को क्यों भेजा नोटिस, जानें असली वजह

भारत ने सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) को लेकर पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है (India issued notice to Pakistan). भारत दो हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स का निर्माण कर रहा है जिन पर पाकिस्तान को आपत्ति है. आइये सिंधु जल संधि और दोनों प्रोजेक्ट के बारे में विस्तार से जानते हैं.

India issued notice to Pakistan
सिंधु जल संधि
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Published : Jan 27, 2023, 7:51 PM IST

Updated : Jan 27, 2023, 8:35 PM IST

नई दिल्ली : भारत ने 25 जनवरी को पाकिस्तान को सिंधु नदी समझौते पर बदलाव के लिए नोटिस जारी किया है (India issued notice to Pakistan). दरअसल भारत दो हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स का निर्माण कर रहा है. दोनों प्रोजेक्ट केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में हैं. एक है किशनगंगा प्रोजेक्ट और दूसरा है रतले प्रोजेक्ट. किशनगंगा झेलम की सहायक नदी है, जबकि रतले प्रोजेक्ट चेनाब नदी पर बन रहा है. पाकिस्तान को इन दोनों प्रोजेक्टस पर आपत्ति है.

2015 में पाकिस्तान ने किसी न्यूट्रल एक्सपर्ट से इन दोनों प्रोजेक्ट्स का तकनीकी आकलन कराने का अनुरोध किया था. हालांकि पाकिस्तान ने 2016 में अपने इस अनुरोध को वापस ले लिया था. इसकी जगह पर पाकिस्तान ने कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के गठन की मांग कर दी. सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान की यह मांग तकनीकी रूप से सही नहीं है. यह एक तरीके से सिंधु जल समझौते का उल्लंघन है. इस संधि में विवाद के निपटारे के तरीकों के बारे में भी लिखा हुआ है. उसे ग्रेडेड सिस्टम से कैसे निपटाया जा सकता है, इसके बारे में संधि में उल्लिखित है. पाकिस्तान के इस रुख के बाद भारत ने अपनी ओर से इस मैटर को न्यूट्रल एक्सपर्ट के पास भेजे जाने का अनुरोध किया है.

विशेषज्ञों का कहना है कि एक ही मामले पर दो संबंधित पक्षों के अलग-अलग रुख ने विवाद को और अधिक गंभीर और कानूनी रूप से पेचीदा बना दिया है. यह किसी भी रूप से तर्कसंगत नहीं दिखता है. इस उलझन ने इस संधि पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं.

विश्व बैंक ने 2016 में यह स्वीकार किया कि उसने दोनों ही देशों से समानान्तर रूप से पहल चलाने पर विराम लगाने का अनुरोध किया था. भारत और विश्व बैंक के अनुरोध के बावजूद पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है. पाकिस्तान अपने अड़ियल रवैए पर कायम है. इस मामले को लेकर 2017-22 के बीच पांच मौके आए, जब दोनों ही देशों के बीच सिंधु आयोग के तहत बातचीत तो हुई, लेकिन इस विवाद पर पाकिस्तान ने चर्चा ही नहीं की.

पाकिस्तान की इसी बचकानी हरकत की वजह से विश्व बैंक ने अपनी ओर से न्यूट्रल एक्सपर्ट और कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के गठन की प्रक्रियाओं को लेकर आगे बढ़ने का निर्णय लिया. लेकिन यहां पर विरोधाभास यह है कि सिंधु जल समझौते में इस तरह के समांतर समाधान प्रक्रिया का उल्लेख ही नहीं है.

पिछले साल अक्टूबर में विश्वबैंक ने माइकल लिनो को न्यूट्रल एक्सपर्ट घोषित किया था. प्रो. सीएन मर्फी को कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के चेयरमैन की जिम्मेदारी दे दी. विश्व बैंक ने 17 अक्टूबर 2022 में अपने बयान में कहा था कि दोनों ही प्रक्रियाएं समानान्तर तौर पर चलती रहेंगी. वे दोनों एक दूसरे में हस्तक्षेप नहीं करेंगे. लेकिन सूत्रों की मानें तो पाकिस्तान की कार्रवाइयों ने सिंधु जल संधि के प्रावधानों एवं इसे लागू करने पर प्रतिकूल प्रभाव डाला, जो कि संधि के अनुच्छेद 9 का उल्लंघन है. यही वजह है कि भारत ने पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है.

क्या है सिंधु जल संधि? : भारत और पाकिस्तान के बीच नौ साल की विश्व बैंक की मध्यस्थता वाली बातचीत के बाद कराची में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान ने 19 सितंबर, 1960 को हस्ताक्षर किए थे. संधि सिंधु बेसिन की छह नदियों के लिए जल-बंटवारे की व्यवस्था को परिभाषित करती है जो भारत और पाकिस्तान दोनों से होकर बहती हैं. संधि के अनुसार भारत 'पूर्वी नदियों' - सतलुज, ब्यास और रावी के पानी का 'अप्रतिबंधित उपयोग' कर सकता है, जबकि पाकिस्तान को 'पश्चिमी नदियों' सिंधु, झेलम और चिनाब से पानी मिलेगा.

संधि के अनुच्छेद II (1) में कहा गया है, 'पूर्वी नदियों का सारा पानी भारत के अप्रतिबंधित उपयोग के लिए उपलब्ध होगा.' जबकि अनुच्छेद III (1) में पश्चिमी नदियों से संबंधित प्रावधान हैं. इसके तहत 'पाकिस्तान पश्चिमी नदियों के उन सभी जलों को अप्रतिबंधित उपयोग के लिए प्राप्त करेगा, जो भारत अनुच्छेद (2) के प्रावधानों के तहत बहने देने के लिए बाध्य है.' दरअसल भारत और पाकिस्तान 1610 किलोमीटर लंबी सीमा और छह नदियों से पानी साझा करते हैं. दोनों देश सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, सतलुज और ब्यास नदी से जुड़े हुए हैं.

किशनगंगा जलविद्युत परियोजना क्या है? : किशनगंगा परियोजना केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के बांदीपोरा जिले में किशनगंगा नदी पर क्रालपोरा गांव में स्थित है. परियोजना स्थल श्रीनगर से लगभग 70 किमी और जम्मू से 370 किमी दूर है. इस परियोजना का उद्घाटन मई 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. परियोजना में 37 मीटर ऊंचाई का 'घोड़े की नाल/वृत्ताकार आकार', 'कंक्रीट फेस रॉक-फिल बांध' है. यह एक रन-ऑफ-द-रिवर योजना है जिसमें प्रत्येक 110MW की तीन उत्पादन इकाइयां हैं, जिनकी कुल क्षमता 330 MW है. प्रति वर्ष 1,713 मिलियन यूनिट बिजली उत्पन्न करने के लिए नदी के पानी को 23.25 किलोमीटर लंबी हेड रेस टनल के माध्यम से भूमिगत बिजलीघर की ओर मोड़ा जाना है.

2018 में जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार इस परियोजना से जम्मू-कश्मीर के अलावा छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश राज्यों को भी लाभ होगा. बयान में कहा गया है, 'किशनगना एचई परियोजना राज्य (पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर) को 13 प्रतिशत की मुफ्त बिजली प्रदान करेगी, जो लगभग 133 करोड़ रुपये प्रति वर्ष होगी.'

रतले जलविद्युत परियोजना? : यह परियोजना जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में चिनाब नदी पर उधमपुर से लगभग 140 किलोमीटर और जम्मू से 201 किलोमीटर दूर प्रस्तावित है. यह एक रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना है, जिसमें 133 मीटर ऊंचा कंक्रीट बांध है. 850 मेगावाट की क्षमता वाली इस परियोजना में पांच उत्पादन इकाइयां होंगी. इनमें 205 मेगावाट की चार इकाइयां और एक 30 मेगावाट की इकाई होगी. एक बार पूरी तरह चालू होने के बाद यह परियोजना सालाना 3,136.76 मिलियन यूनिट ऊर्जा पैदा कर सकती है. परियोजना की लागत 5,281.94 करोड़ रुपये (नवंबर 2018 की कीमत) आंकी गई है.

पढ़ें- Indus Waters Treaty: सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए भारत ने पाक को नोटिस जारी किया

नई दिल्ली : भारत ने 25 जनवरी को पाकिस्तान को सिंधु नदी समझौते पर बदलाव के लिए नोटिस जारी किया है (India issued notice to Pakistan). दरअसल भारत दो हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स का निर्माण कर रहा है. दोनों प्रोजेक्ट केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में हैं. एक है किशनगंगा प्रोजेक्ट और दूसरा है रतले प्रोजेक्ट. किशनगंगा झेलम की सहायक नदी है, जबकि रतले प्रोजेक्ट चेनाब नदी पर बन रहा है. पाकिस्तान को इन दोनों प्रोजेक्टस पर आपत्ति है.

2015 में पाकिस्तान ने किसी न्यूट्रल एक्सपर्ट से इन दोनों प्रोजेक्ट्स का तकनीकी आकलन कराने का अनुरोध किया था. हालांकि पाकिस्तान ने 2016 में अपने इस अनुरोध को वापस ले लिया था. इसकी जगह पर पाकिस्तान ने कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के गठन की मांग कर दी. सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान की यह मांग तकनीकी रूप से सही नहीं है. यह एक तरीके से सिंधु जल समझौते का उल्लंघन है. इस संधि में विवाद के निपटारे के तरीकों के बारे में भी लिखा हुआ है. उसे ग्रेडेड सिस्टम से कैसे निपटाया जा सकता है, इसके बारे में संधि में उल्लिखित है. पाकिस्तान के इस रुख के बाद भारत ने अपनी ओर से इस मैटर को न्यूट्रल एक्सपर्ट के पास भेजे जाने का अनुरोध किया है.

विशेषज्ञों का कहना है कि एक ही मामले पर दो संबंधित पक्षों के अलग-अलग रुख ने विवाद को और अधिक गंभीर और कानूनी रूप से पेचीदा बना दिया है. यह किसी भी रूप से तर्कसंगत नहीं दिखता है. इस उलझन ने इस संधि पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं.

विश्व बैंक ने 2016 में यह स्वीकार किया कि उसने दोनों ही देशों से समानान्तर रूप से पहल चलाने पर विराम लगाने का अनुरोध किया था. भारत और विश्व बैंक के अनुरोध के बावजूद पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है. पाकिस्तान अपने अड़ियल रवैए पर कायम है. इस मामले को लेकर 2017-22 के बीच पांच मौके आए, जब दोनों ही देशों के बीच सिंधु आयोग के तहत बातचीत तो हुई, लेकिन इस विवाद पर पाकिस्तान ने चर्चा ही नहीं की.

पाकिस्तान की इसी बचकानी हरकत की वजह से विश्व बैंक ने अपनी ओर से न्यूट्रल एक्सपर्ट और कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के गठन की प्रक्रियाओं को लेकर आगे बढ़ने का निर्णय लिया. लेकिन यहां पर विरोधाभास यह है कि सिंधु जल समझौते में इस तरह के समांतर समाधान प्रक्रिया का उल्लेख ही नहीं है.

पिछले साल अक्टूबर में विश्वबैंक ने माइकल लिनो को न्यूट्रल एक्सपर्ट घोषित किया था. प्रो. सीएन मर्फी को कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के चेयरमैन की जिम्मेदारी दे दी. विश्व बैंक ने 17 अक्टूबर 2022 में अपने बयान में कहा था कि दोनों ही प्रक्रियाएं समानान्तर तौर पर चलती रहेंगी. वे दोनों एक दूसरे में हस्तक्षेप नहीं करेंगे. लेकिन सूत्रों की मानें तो पाकिस्तान की कार्रवाइयों ने सिंधु जल संधि के प्रावधानों एवं इसे लागू करने पर प्रतिकूल प्रभाव डाला, जो कि संधि के अनुच्छेद 9 का उल्लंघन है. यही वजह है कि भारत ने पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है.

क्या है सिंधु जल संधि? : भारत और पाकिस्तान के बीच नौ साल की विश्व बैंक की मध्यस्थता वाली बातचीत के बाद कराची में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान ने 19 सितंबर, 1960 को हस्ताक्षर किए थे. संधि सिंधु बेसिन की छह नदियों के लिए जल-बंटवारे की व्यवस्था को परिभाषित करती है जो भारत और पाकिस्तान दोनों से होकर बहती हैं. संधि के अनुसार भारत 'पूर्वी नदियों' - सतलुज, ब्यास और रावी के पानी का 'अप्रतिबंधित उपयोग' कर सकता है, जबकि पाकिस्तान को 'पश्चिमी नदियों' सिंधु, झेलम और चिनाब से पानी मिलेगा.

संधि के अनुच्छेद II (1) में कहा गया है, 'पूर्वी नदियों का सारा पानी भारत के अप्रतिबंधित उपयोग के लिए उपलब्ध होगा.' जबकि अनुच्छेद III (1) में पश्चिमी नदियों से संबंधित प्रावधान हैं. इसके तहत 'पाकिस्तान पश्चिमी नदियों के उन सभी जलों को अप्रतिबंधित उपयोग के लिए प्राप्त करेगा, जो भारत अनुच्छेद (2) के प्रावधानों के तहत बहने देने के लिए बाध्य है.' दरअसल भारत और पाकिस्तान 1610 किलोमीटर लंबी सीमा और छह नदियों से पानी साझा करते हैं. दोनों देश सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, सतलुज और ब्यास नदी से जुड़े हुए हैं.

किशनगंगा जलविद्युत परियोजना क्या है? : किशनगंगा परियोजना केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के बांदीपोरा जिले में किशनगंगा नदी पर क्रालपोरा गांव में स्थित है. परियोजना स्थल श्रीनगर से लगभग 70 किमी और जम्मू से 370 किमी दूर है. इस परियोजना का उद्घाटन मई 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. परियोजना में 37 मीटर ऊंचाई का 'घोड़े की नाल/वृत्ताकार आकार', 'कंक्रीट फेस रॉक-फिल बांध' है. यह एक रन-ऑफ-द-रिवर योजना है जिसमें प्रत्येक 110MW की तीन उत्पादन इकाइयां हैं, जिनकी कुल क्षमता 330 MW है. प्रति वर्ष 1,713 मिलियन यूनिट बिजली उत्पन्न करने के लिए नदी के पानी को 23.25 किलोमीटर लंबी हेड रेस टनल के माध्यम से भूमिगत बिजलीघर की ओर मोड़ा जाना है.

2018 में जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार इस परियोजना से जम्मू-कश्मीर के अलावा छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश राज्यों को भी लाभ होगा. बयान में कहा गया है, 'किशनगना एचई परियोजना राज्य (पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर) को 13 प्रतिशत की मुफ्त बिजली प्रदान करेगी, जो लगभग 133 करोड़ रुपये प्रति वर्ष होगी.'

रतले जलविद्युत परियोजना? : यह परियोजना जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में चिनाब नदी पर उधमपुर से लगभग 140 किलोमीटर और जम्मू से 201 किलोमीटर दूर प्रस्तावित है. यह एक रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना है, जिसमें 133 मीटर ऊंचा कंक्रीट बांध है. 850 मेगावाट की क्षमता वाली इस परियोजना में पांच उत्पादन इकाइयां होंगी. इनमें 205 मेगावाट की चार इकाइयां और एक 30 मेगावाट की इकाई होगी. एक बार पूरी तरह चालू होने के बाद यह परियोजना सालाना 3,136.76 मिलियन यूनिट ऊर्जा पैदा कर सकती है. परियोजना की लागत 5,281.94 करोड़ रुपये (नवंबर 2018 की कीमत) आंकी गई है.

पढ़ें- Indus Waters Treaty: सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए भारत ने पाक को नोटिस जारी किया

Last Updated : Jan 27, 2023, 8:35 PM IST
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