हैदराबाद : 24 अप्रैल को हर साल महिला राजनीतिक सशक्तिकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है. राजनीति में महिला प्रतिनिधित्व की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से यह दिन घोषित किया गया. आज राजनीति में महिला नेतृत्व बहुत कम हैं, अधिकांश पुरुष ही राजनीति का हिस्सा हैं.
1993 में घोषित 73वें और 74वें संविधान संशोधन दो कारणों से एक मील का पत्थर हैं, पहला- स्थानीय सशक्तिकरण और दूसरा- महिला सशक्तिकरण. 1993 तक, पंचायतों और नगर पालिकाओं ने लगभग राज्य सरकारों के अधीनस्थ कार्यालयों के रूप में कार्य किया जो वरिष्ठ नियुक्तियों, वित्त, नियोजन और कार्यक्रमों को नियंत्रित करते थे.
महिला राजनीतिक सशक्तिकरण का इतिहास
ज्यादातर महिला आबादी वाले देशों में, खासकर ग्रामीण इलाकों में, महिलाओं को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जानकारी नहीं होती है. वित्तीय निर्भरता और हीन सामाजिक स्थिति ने महिलाओं को राजनीतिक प्रक्रियाओं से बाहर छोड़ दिया है. भारत की ग्रामीण भूमि में शासन की पंचायत प्रणाली पारंपरिक रूप से पुरुषों द्वारा नियंत्रित की जाती है. लेकिन 1993 में यह बदल गया. न केवल भारत सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं को संविधान का हिस्सा बनाया, बल्कि महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया. जमीनी स्तर पर देश के शासन में महिलाओं को शामिल करने की दिशा में यह भारत का पहला कदम था, 73वें संविधान संशोधन ने महिलाओं के लिए कम से कम एक तिहाई सीटों का आरक्षण सुनिश्चित किया. इस अवसर को चिह्नित करने के लिए 24 अप्रैल, 1993 को पहला महिला राजनीतिक सशक्तीकरण दिवस मनाया गया.
उद्देश्य
- 1994 से हर साल महिला राजनीतिक सशक्तिकरण दिवस मनाया जाता रहा है.
- इसका उद्देश्य महिला नेताओं के राजनीतिक अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में जागरूकता पैदा करना है.
- महिलाएं केवल 22 देशों में राष्ट्राध्यक्ष या सरकार के रूप में कार्य करती हैं और 119 देशों में कभी कोई महिला नेता नहीं रही है.
- वर्तमान दर पर, सत्ता के सर्वोच्च पदों पर लैंगिक समानता अगले 130 वर्षों तक नहीं पहुंच पाएगी.
- केवल 21 फीसदी मंत्री महिलाएं हैं, केवल 14 ऐसे देश हैं, जहां 50 प्रतिशत या इससे अधिक महिलाएं मंत्री हैं.
महिला राजनीतिक सशक्तीकरण का महत्व
देश के शासन में महिलाओं को कम आंकना हमेशा से एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है, खासकर जब महिलाओं से जुड़े मुद्दों की बात हो. प्रभावी महिला नेतृत्व के बिना, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और प्रजनन अधिकारों जैसे मुद्दों को संबोधित नहीं किया जा सकता. बदलावों ने भारतीय राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं को जमीनी स्तर पर प्रवेश करने में मदद की है. महिलाओं की समस्याओं से संबंधित मुद्दों को समुदाय और राष्ट्रीय स्तर पर लाया गया है. महिलाओं की भागीदारी ने स्वयं सहायता समूहों, सहकारी समितियों और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के जरिए आजीविका विकल्पों को बनाने, विकसित करने और बढ़ावा देने में मदद की है. महिला नेताओं ने अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में लिंग असमानता, घरेलू शोषण, प्रजनन कल्याण और शिक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके शासन में क्रांति ला दी है.
भारतीय राजनीति में सबसे शक्तिशाली महिलाएं
इंदिरा गांधी : 19 नवंबर 1917 को जन्मी इंदिरा गांधी पहली और आज तक भारत की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री थीं. वह अपने पिता जवाहरलाल नेहरू के बाद दूसरी सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाली प्रधानमंत्री रहीं. भारतीय राजनीति में इनका गहरा प्रभाव रहा. पाकिस्तान के साथ युद्ध का आह्वान करने को लेकर मजबूत नेता के रूप में उनकी छवि बनीं. वहीं, 1975 में आपातकाल लगाने का उनका निर्णय भी विवादास्पद रहा.
सोनिया गांधी : कांग्रेस पार्टी की अंतिरम अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक अनिच्छुक राजनीतिज्ञ कहा जा सकता है. उन्होंने अपने पति राजीव गांधी की हत्या के बाद 1997 में राजनीति में कदम रखा. लोक सभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की जीत हुई, बावजूद सोनिया ने कोई भी सरकारी पद नहीं लिया. हालांकि, वह मंच के पीछे से ही राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाती रही हैं. सोनिया को व्यापक रूप से देश के सबसे शक्तिशाली राजनेताओं में से एक के रूप में देखा जाता है. उन्हें अक्सर दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिलाओं के बीच सूचीबद्ध किया जाता है.
सुषमा स्वराज : भाजपा के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक सुषमा स्वराज थीं. स्वराज को सात बार संसद सदस्य के रूप में चुना गया. वह सबसे कम उम्र की केंद्रीय कैबिनेट मंत्री बनी थीं. वे दिल्ली की मुख्यमंत्री भी थीं. वह भारतीय संसद की पहली और एकमात्र महिला सांसद थीं, जिन्हें उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. विदेश मंत्री के रूप में स्वराज ने संकट में लोगों की मदद करके लाखों दिल जीते.
निर्मला सीतारमण : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 2008 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुईं. 2014 में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने से पहले, सीतारमण को भाजपा की शानदार प्रवक्ता के रूप में जाना जाता था. अपने राजनीतिक जीवन के कुछ ही समय में, सीतारमण सरकार के शीर्ष मंत्रियों में से एक बनने में सफल रही हैं.
ममता बनर्जी : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तृणमूल कांग्रेस पार्टी की संस्थापक हैं और 1997 में इसकी नींव रखने के बाद से पार्टी की अध्यक्ष हैं. 2011 में उन्होंने अपनी पार्टी का नेतृत्व 34 वर्ष पुराने सीपीएम शासन को हराने के लिए किया. बनर्जी एक बार फिर 2016 में सत्ता में आईं और तब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरीं.
जे जयललिता : जयललिता ने एक अभिनेत्री के रूप में अपना करियर शुरू किया और तमिलनाडु की सबसे शक्तिशाली नेता बनीं. वह 1991 से 2016 के बीच चौदह वर्षों तक पांच बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री चुनी गईं. हालांकि, जयललिता की राजनीतिक प्रमुखता एक राज्य तक ही सीमित रही, लेकिन अन्य पार्टियों और राज्यों के राजनेता उनके नेतृत्व को लेकर उनकी प्रशंसा करते थे.
शीला दीक्षित : दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने 1998 से 2013 तक 15 वर्षों तक राष्ट्रीय राजधानी की मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. वह 11 मार्च 2014 को केरल की राज्यपाल बनीं, हालांकि, उन्होंने 25 अगस्त 2014 को इस्तीफा दे दिया.
वसुंधरा राजे : राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री, वसुंधरा राजे सिंधिया, राज्य की सबसे शक्तिशाली राजनेताओं में से एक हैं. उनकी मां विजयाराजे सिंधिया ने उन्हें राजनीति में कदम रखने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद 1985 में वसुंधरा राजस्थान विधानसभा के लिए चुनी गईं. उन्हें दो बार मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया. वह राजस्थान में यह पद संभालने वाली पहली महिला थीं. वह वर्तमान में भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं.
मायावती : मायावती बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो हैं. एक मजबूत दलित नेता के रूप में, उन्होंने चार कार्यकालों तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया है. वह उत्तर प्रदेश की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री बनीं और भारत की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री कहलाईं.
हरसिमरत कौर बादल : पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने 2009 में राजनीति में प्रवेश किया. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी रणइंदर सिंह के खिलाफ लोक सभा चुनाव सफलतापूर्वक लड़ा. 2014 में वह बठिंडा से सांसद के रूप में चुनी गईं. हरसिमरत कौर पंजाब में एक मुखर राजनीतिज्ञ के रूप में उभरी हैं.
महबूबा मुफ्ती : असम की सैयदा अनवारा तैमूर के बाद महबूबा मुफ्ती भारत में दूसरी मुस्लिम महिला मुख्यमंत्री हैं. वह 4 अप्रैल 2016 से 19 जून 2018 तक जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री रहीं. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की वर्तमान अध्यक्ष मुफ्ती 2004 और 2014 में अनंतनाग सीट से लोक सभा के लिए चुनी गईं थीं. 2016 में अपने पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद महबूब आगे आईं और अपने पिता का पद संभाला. वह कश्मीर की उन कुछ महिला राजनेताओं में से एक हैं जिन्हें पूरे भारत में पहचाना जाता है.
सुप्रिया सुले : नेशनल कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की नेता और बारामती की सांसद सुप्रिया सुले एनसीपी प्रमुख शरद पवार की बेटी हैं. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार, सुले ने 1,181 प्रश्न पूछे, 22 निजी सदस्यों के बिलों को स्थानांतरित किया, 152 बहस की और 96 प्रतिशत उपस्थिति के साथ लोक सभा की सर्वश्रेष्ठ सांसदों के बीच जगह बनाई. महिलाओं से संबंधित मुद्दे उठाती रही हैं. 2011 में उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ एक राज्यव्यापी अभियान चलाया.
प्रियंका गांधी वाड्रा : कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी वाड्रा हाल ही में सक्रिय राजनीति में शामिल हुई हैं. हालांकि, वह मां सोनिया और भाई राहुल के लिए राजनीतिक अभियान को रणनीतिक बनाने में सक्रिय भूमिका निभाती रही हैं. प्रियंका गांधी, जो अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह दिखती हैं, हमेशा लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच ही लेती हैं.