नई दिल्ली : अपने आधिकारिक भवन से भी राष्ट्रपति जब भी अपने अंगरक्षकों (PBG) के साथ निकलते हैं, तो उनका काफिला जयपुर स्तंभ से ही चलता है. राष्ट्रपति भवन के सामने खड़े जयपुर स्तंभ की भी दिलचस्प कहानी है. कभी यह अंग्रेजों और जयपुर की रियासत की मैत्री का प्रतीक था. जब भारत की राजधानी तत्कालीन कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट की गई तो जयपुर के महाराजा माधो सिंह ने इसे बनाने के लिए धन मुहैया कराया. सर एडविन लुटियंस ने इसे डिजाइन किया. इसके शिखर पर लगाया गया कमल के फूल पर सितारा जयपुर के महाराजा ने खास तौर पर भेजा था.
जयपुर स्तंभ बलुआ पत्थर से बना है. इसका मुख्य ढांचा 640 फुट × 540 (लगभग 195 × 165 मीटर) का है. इसके ऊपर एक कांस्य कमल है, जिस पर छह कोनों वाला शीशे का एक सितारा लगा हुआ है. स्टार को वर्ष 1930 में स्थापित किया गया था. स्तंभ के अंदर एक स्टील ट्यूब चलती है, जो कमल और तारे को नींव में एक ब्लॉक से बांधती है.
स्तंभ की नींव किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी ने 15 दिसंबर, 1911 को रखी थी. जयपुर स्तंभ में उत्तर और दक्षिण की ओर स्थित बेस रिलीफ हैं. पहले इसके नीचे में लॉर्ड हार्डिंग की एक मूर्ति लगाई गई थी. बाद में इसे हटा दिया गया. स्वतंत्रता के बाद इसे 1911 के राज्याभिषेक दरबार की साइट किंग्सवे कैंप में शिफ्ट कर दिया गया. अब प्रत्येक शनिवार को फोरकोर्ट में जयपुर स्तंभ के सामने चेंज ऑफ गार्ड समारोह होता है. 30 मिनट के इस सैन्य अभ्यास के तहत राष्ट्रपति की सुरक्षा में तैनात पुराना गार्ड ड्यूटी बदलता है और नया गार्ड उनकी जगह लेता है.
हर हफ्ते एक नई टुकड़ी को गार्ड की ड्यूटी सौंपी जाती है. राष्ट्रपति का अंगरक्षक (पीबीजी) तलवारों और लांसरों के साथ परेड करते हैं, जो देखने लायक होती है. राष्ट्रपति भवन में चेंज ऑफ गार्ड समारोह पहली बार 2007 में जनता के लिए खोला गया. तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पद संभालने के बाद समारोह को और दर्शनीय बनाने के लिए इसे जनता के लिए खोल दिया था .