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केरल के राज्यपाल ने लोकायुक्त अधिनियम में संशोधन को दी मंजूरी

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Published : Feb 7, 2022, 2:32 PM IST

Updated : Feb 7, 2022, 7:32 PM IST

दरअसल, मंत्रिमंडल ने एक बैठक में केरल के राज्यपाल को केरल लोकायुक्त अधिनियम, 1999 में संशोधन करने के लिए अध्यादेश जारी करने की सिफारिश की थी, ताकि सरकार को अपना पक्ष रखने के बाद लोकायुक्त के फैसले को स्वीकार या अस्वीकार करने की शक्ति प्रदान की जा सके.

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान

तिरुवनंतपुरम : केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने लोकायुक्त की शक्तियों पर अंकुश लगाने के लिए राज्य में वाम सरकार के अध्यादेश को सोमवार को अपनी मंजूरी दे दी. राज्यपाल के फैसले की विपक्षी दल कांग्रेस ने आलोचना की और उसने आरोप लगाया गया था कि सत्तारूढ़ वाम सरकार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच एक सौदा हो गया है और वे कानूनी रूप से इसके खिलाफ लड़ेंगे. सत्तारूढ़ वाम दलों की सहयोगी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने भी इस कदम पर नाखुशी जाहिर की.

मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने लोकायुक्त के मुद्दे को लेकर रविवार को राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से मुलाकात की थी और उन्हें उन परिस्थितियों के बारे में बताया था जिसके कारण लोकायुक्त कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश लाना पड़ा. सूत्रों ने बताया कि राज्यपाल के कार्यालय ने खान के अध्यादेश पर हस्ताक्षर करने की पुष्टि की है. विपक्षी दल कांग्रेस राज्यपाल से अध्यादेश पर हस्ताक्षर नहीं करने का आग्रह करती रही है. उसका कहना है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेतृत्व वाली सरकार ऐसे समय में इसे लागू करने की कोशिश कर रही है, जब सरकार की कई अनियमितताओं की शिकायतें लंबित हैं.

भाकपा की राज्य इकाई के सचिव कनम राजेंद्रन ने संवाददाताओं से कहा, हमने एक अलग रूख नहीं अपनाया है, लेकिन एक सवाल उठाया है कि ऐसी क्या आपात स्थिति थी जिस वजह से सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा. हमें उम्मीद है कि जब विधानसभा में विधेयक पेश किया जाएगा तो सरकार एक बयान जारी करेगी कि क्यों एक अध्यादेश तत्काल लाया गया.

इस बीच, विधानसभा में विपक्ष के नेता वी. डी. सतीशन ने कहा, किसी भी अदालत ने कभी यह नहीं कहा कि वर्तमान अधिनियम अवैध था लेकिन सरकार अब 22 साल बाद इसमें संशोधन कर रही है. कानून में संशोधन का फैसला तब आया जब मुख्यमंत्री के खिलाफ मामला सामने आया. हम वही सवाल उठाना चाहेंगे जो सत्ताधारी वाम की सहयोगी भाकपा ने उठाया है. जब अगले सप्ताह विधानसभा का सत्र होने वाला है तो अध्यादेश इतनी जल्दी क्यों पारित किया गया.

कांग्रेस ने आरोप लगाया कि अध्यादेश उस सौदे का हिस्सा है जिस पर माकपा और वामपंथी सहमत हुए थे. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक नेता को राज्यपाल के निजी सहायक के रूप में नियुक्त करने के लिए मुख्यमंत्री के पास एक फाइल लंबित थी और इस अध्यादेश पर राज्यपाल द्वारा हस्ताक्षर किए गए ताकि पार्टी के नेता को राजभवन में नियुक्त किया जा सके.

यह भी पढ़ें- लोकायुक्त विवाद : मुख्यमंत्री विजयन ने राज्यपाल से मुलाकात की

सतीशन ने कहा, राज्यपाल और मुख्यमंत्री विधानसभा का अपमान कर रहे हैं. हम अधिनियम के संशोधन के खिलाफ उठाए गए संवैधानिक पहलुओं के साथ खड़े हैं. हम कानूनी रूप से आगे बढ़ेंगे. वहीं, केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा कि अध्यादेश लाना एक स्वार्थी और शर्मनाक कदम है और विजयन और राज्य मंत्रिमंडल के मंत्रियों को बचाने का प्रयास है. उन्होंने ट्वीट किया, अध्यादेश लोकतंत्र पर धब्बा है.

तिरुवनंतपुरम : केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने लोकायुक्त की शक्तियों पर अंकुश लगाने के लिए राज्य में वाम सरकार के अध्यादेश को सोमवार को अपनी मंजूरी दे दी. राज्यपाल के फैसले की विपक्षी दल कांग्रेस ने आलोचना की और उसने आरोप लगाया गया था कि सत्तारूढ़ वाम सरकार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच एक सौदा हो गया है और वे कानूनी रूप से इसके खिलाफ लड़ेंगे. सत्तारूढ़ वाम दलों की सहयोगी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने भी इस कदम पर नाखुशी जाहिर की.

मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने लोकायुक्त के मुद्दे को लेकर रविवार को राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से मुलाकात की थी और उन्हें उन परिस्थितियों के बारे में बताया था जिसके कारण लोकायुक्त कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश लाना पड़ा. सूत्रों ने बताया कि राज्यपाल के कार्यालय ने खान के अध्यादेश पर हस्ताक्षर करने की पुष्टि की है. विपक्षी दल कांग्रेस राज्यपाल से अध्यादेश पर हस्ताक्षर नहीं करने का आग्रह करती रही है. उसका कहना है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेतृत्व वाली सरकार ऐसे समय में इसे लागू करने की कोशिश कर रही है, जब सरकार की कई अनियमितताओं की शिकायतें लंबित हैं.

भाकपा की राज्य इकाई के सचिव कनम राजेंद्रन ने संवाददाताओं से कहा, हमने एक अलग रूख नहीं अपनाया है, लेकिन एक सवाल उठाया है कि ऐसी क्या आपात स्थिति थी जिस वजह से सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा. हमें उम्मीद है कि जब विधानसभा में विधेयक पेश किया जाएगा तो सरकार एक बयान जारी करेगी कि क्यों एक अध्यादेश तत्काल लाया गया.

इस बीच, विधानसभा में विपक्ष के नेता वी. डी. सतीशन ने कहा, किसी भी अदालत ने कभी यह नहीं कहा कि वर्तमान अधिनियम अवैध था लेकिन सरकार अब 22 साल बाद इसमें संशोधन कर रही है. कानून में संशोधन का फैसला तब आया जब मुख्यमंत्री के खिलाफ मामला सामने आया. हम वही सवाल उठाना चाहेंगे जो सत्ताधारी वाम की सहयोगी भाकपा ने उठाया है. जब अगले सप्ताह विधानसभा का सत्र होने वाला है तो अध्यादेश इतनी जल्दी क्यों पारित किया गया.

कांग्रेस ने आरोप लगाया कि अध्यादेश उस सौदे का हिस्सा है जिस पर माकपा और वामपंथी सहमत हुए थे. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक नेता को राज्यपाल के निजी सहायक के रूप में नियुक्त करने के लिए मुख्यमंत्री के पास एक फाइल लंबित थी और इस अध्यादेश पर राज्यपाल द्वारा हस्ताक्षर किए गए ताकि पार्टी के नेता को राजभवन में नियुक्त किया जा सके.

यह भी पढ़ें- लोकायुक्त विवाद : मुख्यमंत्री विजयन ने राज्यपाल से मुलाकात की

सतीशन ने कहा, राज्यपाल और मुख्यमंत्री विधानसभा का अपमान कर रहे हैं. हम अधिनियम के संशोधन के खिलाफ उठाए गए संवैधानिक पहलुओं के साथ खड़े हैं. हम कानूनी रूप से आगे बढ़ेंगे. वहीं, केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा कि अध्यादेश लाना एक स्वार्थी और शर्मनाक कदम है और विजयन और राज्य मंत्रिमंडल के मंत्रियों को बचाने का प्रयास है. उन्होंने ट्वीट किया, अध्यादेश लोकतंत्र पर धब्बा है.

Last Updated : Feb 7, 2022, 7:32 PM IST
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