कोझिकोड (केरल): केरल के राजकीय युवा उत्सव के 'फूड पवेलियन' में हर दिन हजारों लोगों के लिए व्यंजन तैयार करने और परोसने वाले प्रख्यात 'पाक' विशेषज्ञ पझायिदम मोहनन नंबूदरी ने रविवार को कहा कि वह आने वाले वर्षों में इस समारोह में हिस्सा नहीं लेंगे. युवा उत्सव के लिए शाकाहारी और मांसाहारी व्यंजन परोसने से जुड़ा विवाद राज्य के सामान्य शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी द्वारा आश्वासन दिए जाने के बाद शांत हो गया था कि सरकार अगले युवा उत्सव से दोनों प्रकार के भोजन परोसने की कोशिश करेगी.
नंबूदरी ने आज समाचार चैनलों से कहा कि मांसाहारी व्यंजन नहीं परोसने के अनावश्यक विवाद ने उन्हें बहुत आहत किया. नंबूदरी ने टीवी चैनलों को बताया, 'इस बार इस विवाद के बाद हमने किसी को भी अपनी रसोई में प्रवेश नहीं करने दिया. आमतौर पर ऐसी स्थिति नहीं होती है. मैं इस बार काफी चिंतित था. प्रवृत्ति बदल गई है और मैं इसके बारे में चिंतित हूं और ऐसे युवा उत्सवों में भाग नहीं लेने का फैसला किया है.'
उन्होंने कहा कि यह सरकार थी, जिसने छात्रों को शाकाहारी व्यंजन परोसने का फैसला किया था और इसे सांप्रदायिक बनाने की कोई आवश्यकता नहीं थी. नंबूदरी ने कहा, 'सरकार आसानी से मांसाहारी व्यंजन परोसने का निर्णय ले सकती थी, लेकिन इसके बजाय कुछ लोगों ने मेरी छवि को धूमिल करने का फैसला किया. कुछ लोगों ने जाति और धर्म बीच में लाने की कोशिश की.'
उन्होंने कहा, 'अगर परोसे गए भोजन के संबंध में कोई शिकायत है, तो हम समझ सकते हैं, लेकिन यह निराशाजनक था कि चर्चा को कुछ अन्य अनावश्यक विषयों पर मोड़ दिया गया.' उन्होंने कहा कि मांसाहारी व्यंजन तभी परोसे जा सकते हैं जब यह आश्वासन हो कि भोजन करने के लिए केवल एक निश्चित संख्या में लोग होंगे. राजकीय स्कूल युवा उत्सव हर दिन 30,000 से 40,000 तक की विशाल भागीदारी के लिए जाना जाता है.'
एक फेसबुक उपयोगकर्ता ने आरोप लगाया कि त्योहार में केवल शाकाहारी मेन्यू शाकाहारी कट्टरवाद और जाति व्यवस्था में विश्वास का प्रतिबिंब था. एक अन्य व्यक्ति ने अपने फेसबुक पोस्ट में, कला उत्सवों की रसोई में ब्राह्मणों की उपस्थिति को ब्राह्मणवाद के चरणों में पुनर्जागरण और लोकतांत्रिक मूल्यों को समर्पित करने का स्मरणोत्सव बताया.
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हालांकि, सरकारी सूत्रों और खुद नंबूदरी ने पहले स्पष्ट किया था कि ऐसे आयोजनों के लिए इतनी बड़ी मात्रा में मांसाहारी व्यंजन तैयार करने में कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां थीं, जहां पहले से उपस्थित लोगों की संख्या का पता नहीं लगाया जा सकता था.
(पीटीआई-भाषा)