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संग्रहालय में काजी नजरुल इस्लाम के पद्म भूषण और जगततारिणी की प्रतिकृतियां! फिर मूल अवॉर्ड कहां हैं?

कवि काजी नजरुल इस्लाम के पद्म भूषण और जगततारिणी पदक को लेकर असमंजस की स्थिति है. चर्चा है कि संग्रहालय में इनकी प्रतिकृति हैं, ऐसे में मूल पदक कहां हैं इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं. परिवार के सदस्य भी एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. Kazi Nazrul Islam, Padma Bhusan and Jagattarini, medals replicas in museum.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 2, 2023, 4:55 PM IST

Padma Bhusan and Jagattarini
पद्म भूषण और जगततारिणी

चुरुलिया (पश्चिम बर्दवान): 'करार ओई लौह कपाट' विवाद के बाद काजी नजरुल इस्लाम का पद्म भूषण चर्चा के केंद्र में है. लगता है शायर काजी नजरुल इस्लाम का पद्म भूषण खो गया है! खबर सामने आते ही सोशल मीडिया से लेकर नजरुल प्रेमियों के बीच इसे लेकर चिंता है.

इस मुद्दे पर पहले से ही परिवार के सदस्य एक-दूसरे से झगड़ने लगे हैं. लेकिन इस पर कोई प्रकाश नहीं डाल सका कि कवि को प्राप्त मूल पद्म भूषण और जगतारिणी पदक वर्तमान में कहां हैं.

1960 में काज़ी नज़रुल इस्लाम को भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. 1945 में उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय का सर्वोच्च पुरस्कार जगततारिणी मिला. नजरुल प्रेमियों को पता था कि पद्म भूषण और जगततारिणी पुरस्कार पश्चिम बर्दवान के जमुरिया के चुरुलिया में नजरुल अकादमी के संग्रहालय में रखे गए हैं.

लेकिन हाल ही में सोशल मीडिया पर दावा किया गया है कि चुरुलिया के म्यूजियम में रखे दोनों मेडल असली नहीं, बल्कि प्रतिकृतियां हैं. ऐसे में सवाल ये है कि दो मूल पदक कहां गए? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है. और जब इस बात पर सवाल उठा तो कवि के परिवार के बीच कलह हो गई. लेकिन मेडल कहां हैं, इसकी जानकारी किसी को नहीं है.

आसनसोल के प्रमुख संगीतकार और अभिनेता संजीवन बनर्जी ने कहा, 'मैं इसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाला पहला व्यक्ति हूं. हाल ही में मुझे एक नज़रुल शोधकर्ता से पता चला कि ये दोनों पदक वास्तव में प्रतिकृतियां हैं. और मैं इस बारे में पूरी तरह आश्वस्त हूं. जो दो पदक नजरुल संग्रहालय में हैं, वे असली पदक नहीं हैं. हमें डर है कि पदक कहीं बेचे तो नहीं गए, या उनकी तस्करी तो नहीं की गई.'

वर्तमान में नज़रूल अकादमी का संग्रह काज़ी नज़रूल विश्वविद्यालय के अंतर्गत आता है. लेकिन अब तक संग्रहालय की देखरेख करने वाले चुरुलिया में कवि के परिवार के सदस्य हैं. नज़रुल अकादमी के पूर्व संपादक और कवि के भतीजे रेज़ाउल करीम ने कहा कि 'बात सच है. जब मैं इस नजरुल अकादमी का सचिव था, तब दो पदक बरकरार थे. लेकिन मेरे भाई काजी मोज़हर हुसैन नज़रुल अकादमी के सचिव बने. इसके बाद कवि की बहू कल्याणी काजी और उनके बेटे अनिर्बान ने यहां से ये दोनों पदक ले लिए और उनकी प्रतिकृतियां रख दीं.'

रेजाउल करीम की बेटी सोनाली काजी ने भी इस मामले पर यही कहा. उन्होंने कहा कि 'मैंने अपनी आंखों से देखा कि कल्याणी काज़ी और उनके बेटे अनिर्बान ने यहां से यह पदक लिया. हमें यह कहते हुए शर्म आती है कि यह एक नकली पदक है. हालांकि, सभी ने इस पदक को वापस करने की मांग की. ताकि आने वाले दिनों में काजी नजरूल विश्वविद्यालय के छात्र इस पदक पर शोध कर सकें.'

हालांकि ईटीवी भारत के प्रतिनिधि से फोन पर मामला सुनने के बाद शायर काजी नजरुल इस्लाम के पोते काजी अनिर्बान नाराज हो गए. उन्होंने कहा कि 'मेरी मां के निधन के बाद इतना विवाद क्यों है? मेरे पास कोई पदक नहीं है और मुझे नहीं पता कि पदक कहां हैं.'

चुरुलिया में काजी के परिवार का दावा है कि मेडल काजी अनिर्बान के पास है. काजी अनिर्बान का दावा है कि उनके पास कोई मेडल नहीं है. तो सवाल यह है कि पदक कहां गए? बहरहाल, नोबेल पुरस्कार की तरह काजी नजरुल इस्लाम का पद्म भूषण और जगततारिणी पुरस्कार भी गायब हो गया?

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इस मुद्दे पर पहले से ही परिवार के सदस्य एक-दूसरे से झगड़ने लगे हैं. लेकिन इस पर कोई प्रकाश नहीं डाल सका कि कवि को प्राप्त मूल पद्म भूषण और जगतारिणी पदक वर्तमान में कहां हैं.

1960 में काज़ी नज़रुल इस्लाम को भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. 1945 में उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय का सर्वोच्च पुरस्कार जगततारिणी मिला. नजरुल प्रेमियों को पता था कि पद्म भूषण और जगततारिणी पुरस्कार पश्चिम बर्दवान के जमुरिया के चुरुलिया में नजरुल अकादमी के संग्रहालय में रखे गए हैं.

लेकिन हाल ही में सोशल मीडिया पर दावा किया गया है कि चुरुलिया के म्यूजियम में रखे दोनों मेडल असली नहीं, बल्कि प्रतिकृतियां हैं. ऐसे में सवाल ये है कि दो मूल पदक कहां गए? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है. और जब इस बात पर सवाल उठा तो कवि के परिवार के बीच कलह हो गई. लेकिन मेडल कहां हैं, इसकी जानकारी किसी को नहीं है.

आसनसोल के प्रमुख संगीतकार और अभिनेता संजीवन बनर्जी ने कहा, 'मैं इसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाला पहला व्यक्ति हूं. हाल ही में मुझे एक नज़रुल शोधकर्ता से पता चला कि ये दोनों पदक वास्तव में प्रतिकृतियां हैं. और मैं इस बारे में पूरी तरह आश्वस्त हूं. जो दो पदक नजरुल संग्रहालय में हैं, वे असली पदक नहीं हैं. हमें डर है कि पदक कहीं बेचे तो नहीं गए, या उनकी तस्करी तो नहीं की गई.'

वर्तमान में नज़रूल अकादमी का संग्रह काज़ी नज़रूल विश्वविद्यालय के अंतर्गत आता है. लेकिन अब तक संग्रहालय की देखरेख करने वाले चुरुलिया में कवि के परिवार के सदस्य हैं. नज़रुल अकादमी के पूर्व संपादक और कवि के भतीजे रेज़ाउल करीम ने कहा कि 'बात सच है. जब मैं इस नजरुल अकादमी का सचिव था, तब दो पदक बरकरार थे. लेकिन मेरे भाई काजी मोज़हर हुसैन नज़रुल अकादमी के सचिव बने. इसके बाद कवि की बहू कल्याणी काजी और उनके बेटे अनिर्बान ने यहां से ये दोनों पदक ले लिए और उनकी प्रतिकृतियां रख दीं.'

रेजाउल करीम की बेटी सोनाली काजी ने भी इस मामले पर यही कहा. उन्होंने कहा कि 'मैंने अपनी आंखों से देखा कि कल्याणी काज़ी और उनके बेटे अनिर्बान ने यहां से यह पदक लिया. हमें यह कहते हुए शर्म आती है कि यह एक नकली पदक है. हालांकि, सभी ने इस पदक को वापस करने की मांग की. ताकि आने वाले दिनों में काजी नजरूल विश्वविद्यालय के छात्र इस पदक पर शोध कर सकें.'

हालांकि ईटीवी भारत के प्रतिनिधि से फोन पर मामला सुनने के बाद शायर काजी नजरुल इस्लाम के पोते काजी अनिर्बान नाराज हो गए. उन्होंने कहा कि 'मेरी मां के निधन के बाद इतना विवाद क्यों है? मेरे पास कोई पदक नहीं है और मुझे नहीं पता कि पदक कहां हैं.'

चुरुलिया में काजी के परिवार का दावा है कि मेडल काजी अनिर्बान के पास है. काजी अनिर्बान का दावा है कि उनके पास कोई मेडल नहीं है. तो सवाल यह है कि पदक कहां गए? बहरहाल, नोबेल पुरस्कार की तरह काजी नजरुल इस्लाम का पद्म भूषण और जगततारिणी पुरस्कार भी गायब हो गया?

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