नई दिल्ली/जम्मू : कश्मीर घाटी से 31 वर्ष पहले कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के खिलाफ मंगलवार को समुदाय के लोगों ने यहां संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह (यूएनएमओजी) के कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया.
विस्थापित कश्मीरी पंडितों ने घाटी में वापसी, पुनर्वास और घाटी में बसने के लिए एक स्थान देने की अपनी मांगों के समर्थन में यह प्रदर्शन किया. उन्होंने यह भी मांग की कि 1990 में उन लोगों को घाटी से बाहर करने के पीछे जिम्मेदार लोगों को दंडित करने के लिए एक 'नरसंहार आयोग' का गठन किया जाए.
'होलोकास्ट डे' पर जम्मू शहर के विभिन्न हिस्सों में विस्थापित समुदाय के लोगों ने इस प्रदर्शन समेत अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया. गांधीनगर में यूएनएमओजी कार्यालय के बाहर बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित एकत्रित हुए, धरने पर बैठे तथा न्याय की मांग को लेकर नारेबाजी की.
यूथ ऑल इंडिया कश्मीरी समाज के अध्यक्ष आरके भट्ट ने कहा, 'हम यहां इसलिए एकत्रित हुए क्योंकि विश्व बिरादरी ने हमें आज तक निराश ही किया है...हम अपने घरों में सम्मान के साथ वापसी चाहते हैं और वैश्विक निकाय इस नरसंहार को जाने और हमारे बुनियादी अधिकारों को बहाल करे.'
इस 31वें 'विस्थापन दिवस' पर भट्ट ने मुठी स्थित प्रवासियों के शिविर से संरा के कार्यालय तक रैली की अगुवाई की और राजनीतिक नेतृत्व के प्रति नाराजगी जताते हुए कहा, 'वे चुनाव के समय तो बड़े बड़े वादे करते हैं लेकिन उसके पूरा हो जाने के बाद वे हमें भूल जाते हैं.'
पुनर्वास के लिए अलग बजट निर्धारित करे सरकार
सेव शारदा समिति के संस्थापक रविंद्र पंडित ने ईटीवी भारत से कहा, '31 साल हो गए हैं, किसी भी सरकार ने कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए गंभीरता नहीं दिखाई है. हम चाहते हैं कि सरकार कुछ मजबूत नीतियां बनाए.'
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रवींद्र पंडिता ने कहा, जम्मू-कश्मीर कश्मीरी पंडितों के बिना अधूरा है. सरकार को कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधियों को बुलाना चाहिए. सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक सशक्तीकरण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए शीर्ष समिति का गठन करना चाहिए. उन्होंने कहा, 'हमारी पुनर्वास योजना के लिए सरकार 2 से 2.5 प्रतिशत का अलग बजट निर्धारित करे, ताकि पिछले 31 वर्षों से हम जो भी समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनका समाधान किया जा सके.