नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) का मुखिया, कर्ता, संपत्ति को गिरवी रख सकता है, भले ही इसमें नाबालिग का अविभाजित हित हो. परिवार के मुखिया को उसके लिए सभी सदस्यों की सहमति लेना अनिवार्य नहीं है.
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता एनएस बालाजी का दावा है कि विचाराधीन संपत्ति एक संयुक्त परिवार/हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की संपत्ति थी, जिसे गारंटर याचिकाकर्ता के पिता ने इनमें से एक के रूप में गिरवी रखा था. याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि उसके पिता एचयूएफ के कर्ता थे.
पीठ ने 3 अक्टूबर को पारित अपने आदेश में कहा, 'एचयूएफ संपत्ति की तुलना में कर्ता के अधिकारों पर स्थिति अच्छी तरह से तय है. श्री नारायण बल बनाम श्रीधर सुतार (1996) में इस अदालत ने माना है कि कर्ता को एचयूएफ संपत्ति को बेचने/निपटाने/अलग करने का अधिकार है, भले ही परिवार के किसी नाबालिग के पास अविभाजित हित हो.'
पीठ ने कहा कि इसका कारण यह है कि एक एचयूएफ अपने कर्ता या परिवार के किसी वयस्क सदस्य के माध्यम से एचयूएफ संपत्ति के प्रबंधन में कार्य करने में सक्षम है. कोर्ट ने कहा कि 'इस प्रकार, यहां याचिकाकर्ता के पिता, एचयूएफ के कर्ता के रूप में एचयूएफ संपत्ति को गिरवी रखने के हकदार थे. एचयूएफ के बेटे या अन्य सदस्यों को बंधक के लिए सहमति देने वाले पक्ष होने की आवश्यकता नहीं है.'
पीठ ने कहा कि अलगाव के बाद, एक सहदायिक कर्ता के कार्य को चुनौती दे सकता है, यदि अलगाव कानूनी आवश्यकता के लिए या संपत्ति की बेहतरी के लिए नहीं है, जो कि वर्तमान मामले में स्थापित दावा नहीं है. सहदायिक हिंदू अविभाजित परिवार की पैतृक संपत्ति का शेयरधारक होता है.
अदालत ने मद्रास उच्च न्यायालय के 31 जुलाई, 2023 के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और एन एस बालाजी द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी. बेंच ने कहा कि 'हम विवादित फैसले में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं और इसलिए, विशेष अनुमति याचिकाएं खारिज की जाती हैं. लंबित आवेदन (आवेदनों), यदि कोई हो का निपटारा कर दिया जाएगा.'