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Himachal: 400 साल बाद कांगड़ा किले में होगा राजतिलक, राम नवमी के दिन महाभारत काल से भी पुराने राजवंश की कहानी में जुड़ेगी नई कड़ी

देश के सबसे पुराने किलों में शामिल कांगड़ा दुर्ग में 400 साल बाद राज्यभिषेक होने जा रहा है. राम नवमी के दिन 30 मार्च को कटोच वंश के 489वें राजा के तौर पर एश्वर्य चंद कटोच का राजतिलक होगा. पढ़ें पूरी खबर... (Coronation will be held in Kangra Fort)

Coronation will be held in Kangra Fort
400 साल बाद कांगड़ा किले में होगा राजतिलक
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Published : Mar 28, 2023, 10:12 PM IST

Updated : Mar 28, 2023, 10:36 PM IST

कांगड़ा: हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े जिले कांगड़ा का ऐतिहासिक किला एक बार फिर से राजसी ठाठ-बाट का गवाह बनने वाला है. दरअसल आगामी 30 मार्च को कांगड़ा किले में कटोच राजवंश के नए उत्तराधिकारी का राज्याभिषेक होना है. ये उस साम्राज्य की सबसे नई पीढ़ी का राज्याभिषेक है, जिसे इतिहास में रुचि रखने वाले कई लोग सबसे पुराना राजपरिवार भी कहते हैं. इस राजपरिवार की जड़ें महाभारत काल तक जाती हैं. राम नवमी के दिन ऐतिहासिक किले के अंदर ही विशेष समारोह का आयोजन होगा. इस आयोजन में ऐश्वर्य चंद कटोच का राज्याभिषेक किया जाएगा. इस ऐतिहासिक पल को यादगार बनाने के लिए किले में कार्यक्रम से जुड़े तमाम बंदोबस्त किए जा रहे हैं. ऐश्वर्य चंद कटोच पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रेश कुमारी कटोच के बेटे हैं. ऐसे में इस राज्याभिषेक में कई वीवीआईपी गेस्ट के पहुंचने की उम्मीद है.

Katoch dynasty of Kangra
ऐश्वर्य चंद कटोच.

चंद्रेश कुमारी कटोच का सियासी कद- ऐश्वर्य चंद कटोच का राज्याभिषेक किले में मौजूद राजवंश की कुलदेवी अंबिका देवी मंदिर में होगा. 52 साल के ऐश्वर्य चंद राजवंश के 489वें राजा होंगे. उनकी मां चंद्रेश कुमारी कांगड़ा जिले की धर्मशाला सीट से विधायक और फिर हिमाचल सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं. चंद्रेश कुमारी जोधपुर के महाराज हनवंत सिंह की बेटी हैं और उनकी शादी कांगड़ा के राजा आदित्य देव चंद कटोच से हुई थी. चंद्रेश कुमारी हिमाचल की कांगड़ा और राजस्थान की जोधपुर सीट से सांसद रही हैं. हिमाचल में कांग्रेस का एक प्रमुख चेहरा रहीं चंद्रेश कुमारी राज्यसभा सदस्य से लेकर महिला कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल चुकी हैं. साल 2021 में उनके पति आदित्य देव चंद का निधन हो गया था, जिसके बाद उनके बेटे का राज्याभिषेक होने वाला है. चंद्रेश कुमारी के राजपरिवार से रिश्ते और सियासी कद को देखते हुए इस कार्यक्रम में कई बड़े चेहरों के पहुंचने की उम्मीद है.

Coronation will be held in Kangra Fort
चंद्रेश कुमारी का परिवार.

कई राज घरानों को दिया गया है न्योता- कांगड़ा की कला और साहित्य को बढ़ावा देने में जुटे राघव गुलेरिया के मुताबिक राम नवमी के दिन कांगड़ा किले में होने वाले राज्याभिषेक समारोह में हिमाचल से लेकर राजस्थान के राजघरानों से जुड़े लोग शिरकत करेंगे. इसके अलावा बड़े सियासतदान भी इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ा सकते हैं. ये कार्यक्रम इसलिये भी खास है क्योंकि सैकड़ों सालों के बाद कोई राज्याभिषेक इस कांगड़ा किले में होगा.

Coronation will be held in Kangra Fort
कांगड़ा का किला दुनिया के सबसे पुराने किलों में से एक है.

400 साल बाद किले में राज्याभिषेक- लेखक और कवि नवनीत शर्मा कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश में राजघरानों का एक लंबा इतिहास रहा है. यह ठीक है युग बदलने के साथ शासन पद्धति बदल गई और राजतंत्र का स्थान लोकतंत्र और गणतंत्र ने ले लिया किंतु अपनी जड़ों के प्रति अब भी आस्था शेष है. इसी की अभिव्यक्ति कांगड़ा के किले में कटोच वंश करेगा, जब 30 मार्च को ऐश्वर्य चंद कटोच का राज्याभिषेक होगा.

इससे पहले रामपुर बुशहर में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह का वारिस के तौर पर अभिषेक हुआ था. कांगड़ा किले में यह अभिषेक 400 वर्षों के बाद हो रहा है. इस बीच भी अभिषेक हुए किंतु किले में नहीं हुए. अंतिम राज्याभिषेक हरिचंद -1 का हुआ था जिनके साथ हरिपुर गुलेर रियासत का उद्भव जुड़ा है. ऐश्वर्य चंद कटोच जोधपुर घराने की बेटी और कांगड़ा के लंबागांव रियासत की वधु चंद्रेश कुमारी के पुत्र हैं. कांगड़ा किले में कटोच वंश की देवी अंबिका का मंदिर है, जिससे उनकी आस्था जुड़ी है. मोटे तौर पर यह शक्ति या राजा होने के भाव का प्रदर्शन नहीं, अपने अतीत को स्मरण करने और संस्कृति को याद करने का एक अवसर होगा.

Coronation will be held in Kangra Fort
आकार के हिसाब से ये भारत का 8वां सबसे बड़ा किला है.

कांगड़ा का किला- इतिहास के शोधार्थी आर्यन राठौर के मुताबिक कांगड़ा का किला दुनिया के सबसे पुराने किलों में से एक है. जबकि ये भारत का सबसे पुराना किला है. आकार के हिसाब से ये भारत का 8वां सबसे बड़ा किला है. इस किले का सबसे पहला उल्लेख 1000 ईसवीं के शुरुआती दशकों में मिलता है जब मोहम्मद गजनवी ने आक्रमण किए थे. बाद में मोहम्मद तुगलक 1337 और उसके उत्तराधिकारी फिरोजशाह तुगलक ने 1351 में किले पर अपना कब्जा जमाया था. करीब 500 राजाओं की वंशावली देख चुका कांगड़ा का ये किला कभी धन संपत्ति के भंडार के लिए प्रसिद्ध था. यही वजह थी कि मोहम्मद गजनवी ने भारत में अपने चौथे अभियान के दौरान पंजाब को हराकर सीधे कांगड़ा पहुंचा था.

Coronation will be held in Kangra Fort
कांगड़ा का ये किला कभी धन संपत्ति के भंडार के लिए प्रसिद्ध था.

1905 के विनाशकारी भूकंप के बाद बना खंडहर- बाण गंगा और मांझी नदी के संगम पर एक तीखी पहाड़ी पर ये विशाल किला बनाया गया था. कई दुश्मनों के वार झेल चुका ये किला साल 1905 में आए विनाशकारी भूकंप के बाद खंडहर में तब्दील हो गया. 4 अप्रैल 1905 को कांगड़ा में 7.8 तीव्रता का भूकंप आया, जिसमें करीब 20 हजार लोगों की मौत हो गई. इस भूकंप में कांगड़ा के किले को भी काफी नुकसान हुआ. मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक के वार झेल चुके इस किले का एक हिस्सा आज भी अटल है और सैकड़ों साल पुराने अपने अस्तित्व की कहानी बयां करता है.

त्रिगर्त सम्राज्य- भारतीय, सिख और राजपरिवारों के इतिहास के अध्ययन में गहरी रुचि रखने वाले अवतार सिंह कहलूरिया बताते हैं कि ऐश्वर्य चंद कटोच उस त्रिगर्त साम्राज्य की सबसे नई पीढ़ी हैं जिसका उल्लेख महाभारत में भी है. इस त्रिगर्त साम्राज्य की राजधानी प्रस्थला यानी मौजूदा समय के जालंधर से लेकर मुल्तान और कांगड़ा रही. महाभारत के मुताबिक आज का कांगड़ा उत्तर त्रिगर्त साम्राज्य के पुराने शहरों में से एक है, जो पश्चिम दिशा में पंजाब की ओर फैला हुआ था. ये साम्राज्य सतलुज, ब्यास और रावी नदियों के आस-पास था, जिसकी राजधानी उस दौरान पाकिस्तान का शहर मुल्तान था. कहलूरिया के अनुसार मुल्तान का मूल नाम मूलस्थान था.

Coronation will be held in Kangra Fort
अप्रैल 1905 में एक भीषण भूकंप ने इसकी मजबूत नींव को हिला दिया था.

अवतार सिंह कहलूरिया के मुताबिक महाभारत के सभा पर्व के मुताबिक महाराज सुशर्मन चंद ने इस साम्राज्य की स्थापना की थी. ये दुर्योधन के सहयोगी थे और उन्होंने कौरवों की ओर से युद्ध लड़ा था. महाराज सुशर्मन चंद का अर्जुन से युद्ध हुआ था. राजा सुशर्मन के नाम पर ही कांगड़ा को कभी सुशर्मापुर कहा जाता था. सुशर्मन चंद के पुत्र ने ही कांगड़ा के ऐतिहासिक किले का निर्माण करवाया था.

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कांगड़ा: हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े जिले कांगड़ा का ऐतिहासिक किला एक बार फिर से राजसी ठाठ-बाट का गवाह बनने वाला है. दरअसल आगामी 30 मार्च को कांगड़ा किले में कटोच राजवंश के नए उत्तराधिकारी का राज्याभिषेक होना है. ये उस साम्राज्य की सबसे नई पीढ़ी का राज्याभिषेक है, जिसे इतिहास में रुचि रखने वाले कई लोग सबसे पुराना राजपरिवार भी कहते हैं. इस राजपरिवार की जड़ें महाभारत काल तक जाती हैं. राम नवमी के दिन ऐतिहासिक किले के अंदर ही विशेष समारोह का आयोजन होगा. इस आयोजन में ऐश्वर्य चंद कटोच का राज्याभिषेक किया जाएगा. इस ऐतिहासिक पल को यादगार बनाने के लिए किले में कार्यक्रम से जुड़े तमाम बंदोबस्त किए जा रहे हैं. ऐश्वर्य चंद कटोच पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रेश कुमारी कटोच के बेटे हैं. ऐसे में इस राज्याभिषेक में कई वीवीआईपी गेस्ट के पहुंचने की उम्मीद है.

Katoch dynasty of Kangra
ऐश्वर्य चंद कटोच.

चंद्रेश कुमारी कटोच का सियासी कद- ऐश्वर्य चंद कटोच का राज्याभिषेक किले में मौजूद राजवंश की कुलदेवी अंबिका देवी मंदिर में होगा. 52 साल के ऐश्वर्य चंद राजवंश के 489वें राजा होंगे. उनकी मां चंद्रेश कुमारी कांगड़ा जिले की धर्मशाला सीट से विधायक और फिर हिमाचल सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं. चंद्रेश कुमारी जोधपुर के महाराज हनवंत सिंह की बेटी हैं और उनकी शादी कांगड़ा के राजा आदित्य देव चंद कटोच से हुई थी. चंद्रेश कुमारी हिमाचल की कांगड़ा और राजस्थान की जोधपुर सीट से सांसद रही हैं. हिमाचल में कांग्रेस का एक प्रमुख चेहरा रहीं चंद्रेश कुमारी राज्यसभा सदस्य से लेकर महिला कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल चुकी हैं. साल 2021 में उनके पति आदित्य देव चंद का निधन हो गया था, जिसके बाद उनके बेटे का राज्याभिषेक होने वाला है. चंद्रेश कुमारी के राजपरिवार से रिश्ते और सियासी कद को देखते हुए इस कार्यक्रम में कई बड़े चेहरों के पहुंचने की उम्मीद है.

Coronation will be held in Kangra Fort
चंद्रेश कुमारी का परिवार.

कई राज घरानों को दिया गया है न्योता- कांगड़ा की कला और साहित्य को बढ़ावा देने में जुटे राघव गुलेरिया के मुताबिक राम नवमी के दिन कांगड़ा किले में होने वाले राज्याभिषेक समारोह में हिमाचल से लेकर राजस्थान के राजघरानों से जुड़े लोग शिरकत करेंगे. इसके अलावा बड़े सियासतदान भी इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ा सकते हैं. ये कार्यक्रम इसलिये भी खास है क्योंकि सैकड़ों सालों के बाद कोई राज्याभिषेक इस कांगड़ा किले में होगा.

Coronation will be held in Kangra Fort
कांगड़ा का किला दुनिया के सबसे पुराने किलों में से एक है.

400 साल बाद किले में राज्याभिषेक- लेखक और कवि नवनीत शर्मा कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश में राजघरानों का एक लंबा इतिहास रहा है. यह ठीक है युग बदलने के साथ शासन पद्धति बदल गई और राजतंत्र का स्थान लोकतंत्र और गणतंत्र ने ले लिया किंतु अपनी जड़ों के प्रति अब भी आस्था शेष है. इसी की अभिव्यक्ति कांगड़ा के किले में कटोच वंश करेगा, जब 30 मार्च को ऐश्वर्य चंद कटोच का राज्याभिषेक होगा.

इससे पहले रामपुर बुशहर में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह का वारिस के तौर पर अभिषेक हुआ था. कांगड़ा किले में यह अभिषेक 400 वर्षों के बाद हो रहा है. इस बीच भी अभिषेक हुए किंतु किले में नहीं हुए. अंतिम राज्याभिषेक हरिचंद -1 का हुआ था जिनके साथ हरिपुर गुलेर रियासत का उद्भव जुड़ा है. ऐश्वर्य चंद कटोच जोधपुर घराने की बेटी और कांगड़ा के लंबागांव रियासत की वधु चंद्रेश कुमारी के पुत्र हैं. कांगड़ा किले में कटोच वंश की देवी अंबिका का मंदिर है, जिससे उनकी आस्था जुड़ी है. मोटे तौर पर यह शक्ति या राजा होने के भाव का प्रदर्शन नहीं, अपने अतीत को स्मरण करने और संस्कृति को याद करने का एक अवसर होगा.

Coronation will be held in Kangra Fort
आकार के हिसाब से ये भारत का 8वां सबसे बड़ा किला है.

कांगड़ा का किला- इतिहास के शोधार्थी आर्यन राठौर के मुताबिक कांगड़ा का किला दुनिया के सबसे पुराने किलों में से एक है. जबकि ये भारत का सबसे पुराना किला है. आकार के हिसाब से ये भारत का 8वां सबसे बड़ा किला है. इस किले का सबसे पहला उल्लेख 1000 ईसवीं के शुरुआती दशकों में मिलता है जब मोहम्मद गजनवी ने आक्रमण किए थे. बाद में मोहम्मद तुगलक 1337 और उसके उत्तराधिकारी फिरोजशाह तुगलक ने 1351 में किले पर अपना कब्जा जमाया था. करीब 500 राजाओं की वंशावली देख चुका कांगड़ा का ये किला कभी धन संपत्ति के भंडार के लिए प्रसिद्ध था. यही वजह थी कि मोहम्मद गजनवी ने भारत में अपने चौथे अभियान के दौरान पंजाब को हराकर सीधे कांगड़ा पहुंचा था.

Coronation will be held in Kangra Fort
कांगड़ा का ये किला कभी धन संपत्ति के भंडार के लिए प्रसिद्ध था.

1905 के विनाशकारी भूकंप के बाद बना खंडहर- बाण गंगा और मांझी नदी के संगम पर एक तीखी पहाड़ी पर ये विशाल किला बनाया गया था. कई दुश्मनों के वार झेल चुका ये किला साल 1905 में आए विनाशकारी भूकंप के बाद खंडहर में तब्दील हो गया. 4 अप्रैल 1905 को कांगड़ा में 7.8 तीव्रता का भूकंप आया, जिसमें करीब 20 हजार लोगों की मौत हो गई. इस भूकंप में कांगड़ा के किले को भी काफी नुकसान हुआ. मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक के वार झेल चुके इस किले का एक हिस्सा आज भी अटल है और सैकड़ों साल पुराने अपने अस्तित्व की कहानी बयां करता है.

त्रिगर्त सम्राज्य- भारतीय, सिख और राजपरिवारों के इतिहास के अध्ययन में गहरी रुचि रखने वाले अवतार सिंह कहलूरिया बताते हैं कि ऐश्वर्य चंद कटोच उस त्रिगर्त साम्राज्य की सबसे नई पीढ़ी हैं जिसका उल्लेख महाभारत में भी है. इस त्रिगर्त साम्राज्य की राजधानी प्रस्थला यानी मौजूदा समय के जालंधर से लेकर मुल्तान और कांगड़ा रही. महाभारत के मुताबिक आज का कांगड़ा उत्तर त्रिगर्त साम्राज्य के पुराने शहरों में से एक है, जो पश्चिम दिशा में पंजाब की ओर फैला हुआ था. ये साम्राज्य सतलुज, ब्यास और रावी नदियों के आस-पास था, जिसकी राजधानी उस दौरान पाकिस्तान का शहर मुल्तान था. कहलूरिया के अनुसार मुल्तान का मूल नाम मूलस्थान था.

Coronation will be held in Kangra Fort
अप्रैल 1905 में एक भीषण भूकंप ने इसकी मजबूत नींव को हिला दिया था.

अवतार सिंह कहलूरिया के मुताबिक महाभारत के सभा पर्व के मुताबिक महाराज सुशर्मन चंद ने इस साम्राज्य की स्थापना की थी. ये दुर्योधन के सहयोगी थे और उन्होंने कौरवों की ओर से युद्ध लड़ा था. महाराज सुशर्मन चंद का अर्जुन से युद्ध हुआ था. राजा सुशर्मन के नाम पर ही कांगड़ा को कभी सुशर्मापुर कहा जाता था. सुशर्मन चंद के पुत्र ने ही कांगड़ा के ऐतिहासिक किले का निर्माण करवाया था.

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Last Updated : Mar 28, 2023, 10:36 PM IST
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