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पत्रकारों की नजर में ऐसे थे मुलायम सिंह यादव, पढ़िए 'धरतीपुत्र' की कहानी..पत्रकारों की जुबानी

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Published : Oct 10, 2022, 1:45 PM IST

पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन से लोग मर्माहत हैं और उनकी खास बातों को याद कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के कई वरिष्ठ पत्रकारों ने उनको इस तरह से याद किया है..

Journalists Reaction on Mulayam Singh Yadav
पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव

नई दिल्ली : समाजवादी पार्टी के संस्थापक और भारतीय राजनीति के दिग्गज मुलायम सिंह ने पहलवानी, शिक्षक से लेकर सियासत की लंबी पारी खेली. उन्हें देश व प्रदेश की राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता रहा है. देश के असाधारण राजनेता के रूप में अपनी छवि बनाने वाले मुलायम सिंह यादव ने जमीनी राजनीति से शीर्ष तक अपना एक बड़ा मुकाम बनाया. पहलवान और शिक्षक रहे मुलायम ने अपने कुछ खास गुणों के कारण लंबी सियासी पारी खेली. तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री और देश के रक्षामंत्री के रुप में इनके काम को कई पत्रकारों ने अलग अलग नजरिए से देखा और उनके कई गुणों को तारीफ के काबिल बताया है.

22 नवंबर 1939 को सैफई में जन्मे मुलायम सिंह यादव की पढ़ाई-लिखाई इटावा, फतेहाबाद और आगरा जैसी जगहों से हुई. मुलायम सिंह ने कुछ दिन तक मैनपुरी के करहल में जैन इंटर कॉलेज में प्राध्यापक के रुप में काम किया लेकिन अपनी सियासी पारी शुरू करने के बाद वह एक बड़े मुकाम तक पहुंचे. आज इनके निधन से लोग मर्माहत हैं और उनकी खास बातों को याद कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के कई वरिष्ठ पत्रकारों ने उनको इस तरह से याद किया है......

Mulayam Singh Yadav
पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (डिजाइन फोटो)

इसीलिए धरतीपुत्र मुलायम कहे जाते थे
वरिष्ठ पत्रकार और हिंदुस्तान के पूर्व संपादक राजकुमार सिंह का कहना था कि मुलायम सिंह यादव गरीबों की फिक्र करने वाले नेता थे. इसीलिए वह उन्हें उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जमीन से जुड़ा नेता कहते हैं. मुलायम सिंह को धरतीपुत्र इसीलिए कहा गया था कि वह गांव के गरीब, किसान, मजदूरों के साथ साथ समाज के निचले स्तर पर सेवा देने वाले लोगों के बारे में संजीदगी के साथ सोचा करते थे. समाजवादी पार्टी की ही सरकार ने उत्तर प्रदेश में सबसे पहले बेरोजगारी, भत्ता कन्या विद्याधन, गरीब महिलाओं को साड़ी बांटने की योजना जैसी बातें सोची थी. इसके अलावा उनकी सबसे बड़ी खास बात यह थी कि वह संगठन में सबको साथ लेकर चलने वाले राजनेता थे. अपनी पार्टी के गठन से लेकर अपनी पूरी राजनीतिक जीवन में उन्होंने कभी किसी जाति और किसी धर्म के बारे में कभी कोई गलत टिप्पणी नहीं की. इसीलिए उनकी पार्टी में केवल पिछड़े वर्ग के ही नहीं, बल्कि अन्य जातियों के नेता भी हमेशा उनके साथ जुड़े रहे. मुलायम सिंह को जमीन से जुड़े रहने के कारण ही उन्हें धरतीपुत्र कहा जाता था.

Mulayam Singh Yadav
पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (डिजाइन फोटो)

काफी सेंसेटिव राजनेता
मुलायम सिंह के बारे में टिप्पणी करते हुए आईएएनस की न्यूज़ कंसलटेंट और एशियन एज की पूर्व विशेष संवाददाता अमिता वर्मा का कहना है कि वह पत्रकारों के प्रति काफी सेंसेटिव राजनेता थे और कभी भी अपनी नाराजगी जाहिर नहीं करते थे. ना ही किसी के प्रति मन में कोई विद्वेष रखते थे. जब कभी भी वह किसी जरूरतमंद से मिलते थे तो तत्काल उसकी मदद करने के लिए प्रेरित हो जाते थे. उन्हें जैसे ही यह बात पता चलती थी कि कोई भी पत्रकार बीमार है, या उसके घर में किसी भी चीज की जरूरत है. या वह आर्थिक संकट से जूझ रहा है.. तो वह छोटे से छोटे पत्रकार की भी मदद के लिए आगे बढ़ जाया करते थे. अपने मुख्यमंत्री कोष से न जाने कितने पत्रकारों की मदद की होगी. इतना ही नहीं वह तीज त्योहारों में व्यक्तिगत रूप से पत्रकारों को फोन करते थे. कई वरिष्ठ पत्रकार ऐसे थे जिनके घर मुलायम सिंह यादव खुद भी पहुंच जाते थे. आज के समय में ऐसे राजनेता का होना काफी मुश्किल है, जिसके मन में पत्रकारों के प्रति इस तरह का स्नेह हो.

Mulayam Singh Yadav
पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव

मुलायम सिंह सबके लिए सुलभ
वरिष्ठ पत्रकार भास्कर दुबे का कहना है कि मुलायम सिंह सबके लिए सुलभ थे. वह जिसको जानते थे या जिसको नहीं भी जानते थे, उनसे मिलने पर उसे एक समान व्यवहार करते थे. मुलायम सिंह ने हमेशा अपने राजनीतिक जीवन में पत्रकारों का ध्यान रखा. वह जब सरकार में थे तो पत्रकारों के लिए कई सराहनीय काम किया और जब वह सत्ता में नहीं थे तो उन्होंने जमीन से जुड़कर काफी संघर्ष किया. दोनों समय उन्होंने पत्रकारों और मीडिया जगत से अपना संपर्क बनाए रखा. इसीलिए वह आज के समाजवादी पार्टी के नेताओं से ही काफी अलग दिखते हैं. इसीलिए पत्रकारों से भी जो सम्मान और स्नेह उन्होंने हासिल कर लिया वह बहुत मुश्किल से अन्य नेताओं को मिल पाता है.

इसे भी पढ़ें : उत्तराखंड के हितैषी रहे मुलायम सिंह यादव, राजनीतिक दलों ने बनाया 'विलेन'

फ्रेंड्स ऑफ फ्रेंड्स और खबरों का खजाना
हिंदुस्तान टाइम्स की संपादक सुनीता ऐरॉन का कहना है कि मुलायम सिंह यादव को वह फ्रेंड्स ऑफ फ्रेंड्स कहती हैं. उनकी सर्व सुलभता ही उनकी पहचान है. वह कभी भी अपने पद और कद को इसमें आड़े आने नहीं दिया. मुलायम सिंह यादव खबरों के खजाना थे, जब भी कोई पत्रकार उनसे मिलता था तो एक नहीं कई खबरें लेकर आता था. जिस जमाने में मुलायम सिंह यादव अपने शिखर पर पहुंचे थे, उस समय राम मंदिर आन्दोलन और आरक्षण जैसे मामलों पर बहुत सारा वाद विवाद होता था. इसके बावजूद भी वह मीडिया से दूरी बनाए रखने के बजाय सबसे आसानी से मिलाजुला करते थे. उन्होंने अपनी पूरी पोलिटिकल लाइफ में कभी भी पत्रकारों से दूरी नहीं बनायी. मुलायम सिंह यादव पत्रकारों की खास तौर पर इज्जत किया करते थे. अपने से जुड़ी एक घटना का जिक्र करते हुए सुनीता ने कहा कि मुलायम सिंह के अंग्रेजी हटाओ की बात पर जब वह अपने सवाल को लेकर गयीं तो मुलायम सिंह यादव ने पहले उनती पूरी बात सुनी और अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि उन्होंने अंग्रेजी का विरोध नहीं किया है, बल्कि अंग्रेजी वाली मानसिकता का विरोध किया था. इतना ही नहीं बातचीत के बाद वह उन्हें गाड़ी तक छोड़ने के लिए भी आए थे. एक बड़े राजनेता में ऐसा गुण कम ही देखने को मिलता है, जो अपने विरोधी का भी उतना ही सम्मान करें, जितना समर्थक का करता है.

इसे भी पढ़ें : इस बात से दुखी थे मुलायम, बनारस की जेल में पड़ी थी समाजवादी पार्टी की नींव

खुद को कहते थे पत्रकारों का कर्जदार
वरिष्ठ पत्रकार हिसाम सिद्धिकी का कहना है कि मुलायम सिंह यादव पत्रकारों के हमदर्द और पत्रकारिता का सम्मान करने वाले राजनेता के रूप में गिने जाएंगे. वह पत्रकारों से न सिर्फ कई मुद्दों पर सलाह लिया करते थे, बल्कि प्रेस वार्ता के दौरान पत्रकारों से काफी घुलमिल कर बातें किया करते थे. वह किसी भी सवाल पर ना तो आवश्यकता से ज्यादा उत्तेजित होते थे और ना ही उसका गलत तरीके से जवाब देते थे. मुलायम सिंह यादव और नारायण दत्त तिवारी की ऐसी ही कार्यशैली उत्तर प्रदेश के पत्रकारों को उनका मुरीद बनाती थी. मुलायम सिंह यादव ने अपने कार्यकाल के दौरान एक बार राज्य के बड़े अखबार के द्वारा उनके खिलाफ लिखी जा रही खबरों पर आपत्ति जताते हुए हल्ला बोल की अपील की थी तो उनके कई चहेते पत्रकारों ने भी उनके खिलाफ संपादकीय लिखा, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने इस बात का बुरा नहीं माना. बल्कि पत्रकारों की सलाह को मानते हुए इस तरह के हल्ला बोल अभियान को ना चलाने की बात कही. इसीलिए माना जाता है कि मुलायम सिंह यादव पत्रकारों की कद्र किया करते थे. आज ऐसे राजनेताओं का राजनीति में अभाव दिखता है, जो तीखी और स्पष्ट टिप्पणियों और बातों को सकारात्मक तरीके से लेते हैं. मुलायम सिंह यादव इमरजेंसी के दौरान तेजी से उभरे हुए राजनेता थे और उनका यह मानना था कि स्थानीय स्तर के पत्रकारों ने उनका साथ दिया था. इसलिए उनके मन में हमेशा पत्रकारों के प्रति सम्मान रहा. वह अपनी राजनीतिक पहचान को पत्रकारों का एहसान मानते थे और कहते थे कि उनको शिखर तक पहुंचाना में पत्रकारिता का बड़ा योगदान है, इसीलिए वह लीक से हटकर भी पत्रकारों की मदद करने के लिए खड़े रहते हैं. उनके ही कार्यकाल में पत्रकारों के लिए बहुत सारी योजनाओं पर कार्य किया गया था.

इसे भी पढ़ें : मुलायम के गठबंधन वाले रास्ते पर चलकर भी फेल हो गए थे अखिलेश, आखिर क्यों..?

राजनीति में किसी को स्थायी शत्रु नहीं मानते थे मुलायम
वरिष्ठ पत्रकार व मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे योगेश मिश्रा का कहना है कि मुलायम सिंह यादव समाजवाद को जमीन पर उतारने वाले राजनेता थे. उन्होंने राम मनोहर लोहिया व जय प्रकाश नारायण के समाजवाद को जमीन पर अपने काबिलियत व संघर्ष से उतारते हुए समाजवाद को लंबी उम्र दी और आजतक बरकरार रखने की कोशिश की. मुलायम सिंह यादव न सिर्फ रिश्ते बनाने बल्कि रिश्ते निभाने वाले राजनेता थे. जिससे मुलायम सिंह यादव की नजदीकी थी, वह इस बात का गवाह होगा कि कैसे उसकी जरूरत के समय मुलायम सिंह बिना बुलाये पहुंच जाते थे या चुपचाप मदद कर दिया करते थे. वह गरीबों और जनता के हित के बारे में सरकार के गलत फैसलों को तत्काल पलट दिया करते थे. वह कभी भी किसी की गलती से खुश होकर लाभ लेने की कोशिश नहीं की. लालजी टंडन के द्वारा साड़ी बांटने वाली घटना के बाद वह उनके घर जाकर मिले थे. वह राजनीति में किसी को शत्रु नहीं मानते थे और अपनी आलोचना भी सुनकर हंसकर टाल दिया करते थे. राजनीति में वह कल्याण सिंह व मायावती जैसे अपने धुर राजनीतिक विरोधी के साथ भी मंच साझा कर चुके हैं. तमाम ऐसी बाते हैं जो मुलायम सिंह यादव को उन तमाम राजनेताओं से अलग करती हैं, जो अपने आपको जमीन से जुड़ा होने का दावा करते हैं.

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नई दिल्ली : समाजवादी पार्टी के संस्थापक और भारतीय राजनीति के दिग्गज मुलायम सिंह ने पहलवानी, शिक्षक से लेकर सियासत की लंबी पारी खेली. उन्हें देश व प्रदेश की राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता रहा है. देश के असाधारण राजनेता के रूप में अपनी छवि बनाने वाले मुलायम सिंह यादव ने जमीनी राजनीति से शीर्ष तक अपना एक बड़ा मुकाम बनाया. पहलवान और शिक्षक रहे मुलायम ने अपने कुछ खास गुणों के कारण लंबी सियासी पारी खेली. तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री और देश के रक्षामंत्री के रुप में इनके काम को कई पत्रकारों ने अलग अलग नजरिए से देखा और उनके कई गुणों को तारीफ के काबिल बताया है.

22 नवंबर 1939 को सैफई में जन्मे मुलायम सिंह यादव की पढ़ाई-लिखाई इटावा, फतेहाबाद और आगरा जैसी जगहों से हुई. मुलायम सिंह ने कुछ दिन तक मैनपुरी के करहल में जैन इंटर कॉलेज में प्राध्यापक के रुप में काम किया लेकिन अपनी सियासी पारी शुरू करने के बाद वह एक बड़े मुकाम तक पहुंचे. आज इनके निधन से लोग मर्माहत हैं और उनकी खास बातों को याद कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के कई वरिष्ठ पत्रकारों ने उनको इस तरह से याद किया है......

Mulayam Singh Yadav
पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (डिजाइन फोटो)

इसीलिए धरतीपुत्र मुलायम कहे जाते थे
वरिष्ठ पत्रकार और हिंदुस्तान के पूर्व संपादक राजकुमार सिंह का कहना था कि मुलायम सिंह यादव गरीबों की फिक्र करने वाले नेता थे. इसीलिए वह उन्हें उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जमीन से जुड़ा नेता कहते हैं. मुलायम सिंह को धरतीपुत्र इसीलिए कहा गया था कि वह गांव के गरीब, किसान, मजदूरों के साथ साथ समाज के निचले स्तर पर सेवा देने वाले लोगों के बारे में संजीदगी के साथ सोचा करते थे. समाजवादी पार्टी की ही सरकार ने उत्तर प्रदेश में सबसे पहले बेरोजगारी, भत्ता कन्या विद्याधन, गरीब महिलाओं को साड़ी बांटने की योजना जैसी बातें सोची थी. इसके अलावा उनकी सबसे बड़ी खास बात यह थी कि वह संगठन में सबको साथ लेकर चलने वाले राजनेता थे. अपनी पार्टी के गठन से लेकर अपनी पूरी राजनीतिक जीवन में उन्होंने कभी किसी जाति और किसी धर्म के बारे में कभी कोई गलत टिप्पणी नहीं की. इसीलिए उनकी पार्टी में केवल पिछड़े वर्ग के ही नहीं, बल्कि अन्य जातियों के नेता भी हमेशा उनके साथ जुड़े रहे. मुलायम सिंह को जमीन से जुड़े रहने के कारण ही उन्हें धरतीपुत्र कहा जाता था.

Mulayam Singh Yadav
पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (डिजाइन फोटो)

काफी सेंसेटिव राजनेता
मुलायम सिंह के बारे में टिप्पणी करते हुए आईएएनस की न्यूज़ कंसलटेंट और एशियन एज की पूर्व विशेष संवाददाता अमिता वर्मा का कहना है कि वह पत्रकारों के प्रति काफी सेंसेटिव राजनेता थे और कभी भी अपनी नाराजगी जाहिर नहीं करते थे. ना ही किसी के प्रति मन में कोई विद्वेष रखते थे. जब कभी भी वह किसी जरूरतमंद से मिलते थे तो तत्काल उसकी मदद करने के लिए प्रेरित हो जाते थे. उन्हें जैसे ही यह बात पता चलती थी कि कोई भी पत्रकार बीमार है, या उसके घर में किसी भी चीज की जरूरत है. या वह आर्थिक संकट से जूझ रहा है.. तो वह छोटे से छोटे पत्रकार की भी मदद के लिए आगे बढ़ जाया करते थे. अपने मुख्यमंत्री कोष से न जाने कितने पत्रकारों की मदद की होगी. इतना ही नहीं वह तीज त्योहारों में व्यक्तिगत रूप से पत्रकारों को फोन करते थे. कई वरिष्ठ पत्रकार ऐसे थे जिनके घर मुलायम सिंह यादव खुद भी पहुंच जाते थे. आज के समय में ऐसे राजनेता का होना काफी मुश्किल है, जिसके मन में पत्रकारों के प्रति इस तरह का स्नेह हो.

Mulayam Singh Yadav
पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव

मुलायम सिंह सबके लिए सुलभ
वरिष्ठ पत्रकार भास्कर दुबे का कहना है कि मुलायम सिंह सबके लिए सुलभ थे. वह जिसको जानते थे या जिसको नहीं भी जानते थे, उनसे मिलने पर उसे एक समान व्यवहार करते थे. मुलायम सिंह ने हमेशा अपने राजनीतिक जीवन में पत्रकारों का ध्यान रखा. वह जब सरकार में थे तो पत्रकारों के लिए कई सराहनीय काम किया और जब वह सत्ता में नहीं थे तो उन्होंने जमीन से जुड़कर काफी संघर्ष किया. दोनों समय उन्होंने पत्रकारों और मीडिया जगत से अपना संपर्क बनाए रखा. इसीलिए वह आज के समाजवादी पार्टी के नेताओं से ही काफी अलग दिखते हैं. इसीलिए पत्रकारों से भी जो सम्मान और स्नेह उन्होंने हासिल कर लिया वह बहुत मुश्किल से अन्य नेताओं को मिल पाता है.

इसे भी पढ़ें : उत्तराखंड के हितैषी रहे मुलायम सिंह यादव, राजनीतिक दलों ने बनाया 'विलेन'

फ्रेंड्स ऑफ फ्रेंड्स और खबरों का खजाना
हिंदुस्तान टाइम्स की संपादक सुनीता ऐरॉन का कहना है कि मुलायम सिंह यादव को वह फ्रेंड्स ऑफ फ्रेंड्स कहती हैं. उनकी सर्व सुलभता ही उनकी पहचान है. वह कभी भी अपने पद और कद को इसमें आड़े आने नहीं दिया. मुलायम सिंह यादव खबरों के खजाना थे, जब भी कोई पत्रकार उनसे मिलता था तो एक नहीं कई खबरें लेकर आता था. जिस जमाने में मुलायम सिंह यादव अपने शिखर पर पहुंचे थे, उस समय राम मंदिर आन्दोलन और आरक्षण जैसे मामलों पर बहुत सारा वाद विवाद होता था. इसके बावजूद भी वह मीडिया से दूरी बनाए रखने के बजाय सबसे आसानी से मिलाजुला करते थे. उन्होंने अपनी पूरी पोलिटिकल लाइफ में कभी भी पत्रकारों से दूरी नहीं बनायी. मुलायम सिंह यादव पत्रकारों की खास तौर पर इज्जत किया करते थे. अपने से जुड़ी एक घटना का जिक्र करते हुए सुनीता ने कहा कि मुलायम सिंह के अंग्रेजी हटाओ की बात पर जब वह अपने सवाल को लेकर गयीं तो मुलायम सिंह यादव ने पहले उनती पूरी बात सुनी और अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि उन्होंने अंग्रेजी का विरोध नहीं किया है, बल्कि अंग्रेजी वाली मानसिकता का विरोध किया था. इतना ही नहीं बातचीत के बाद वह उन्हें गाड़ी तक छोड़ने के लिए भी आए थे. एक बड़े राजनेता में ऐसा गुण कम ही देखने को मिलता है, जो अपने विरोधी का भी उतना ही सम्मान करें, जितना समर्थक का करता है.

इसे भी पढ़ें : इस बात से दुखी थे मुलायम, बनारस की जेल में पड़ी थी समाजवादी पार्टी की नींव

खुद को कहते थे पत्रकारों का कर्जदार
वरिष्ठ पत्रकार हिसाम सिद्धिकी का कहना है कि मुलायम सिंह यादव पत्रकारों के हमदर्द और पत्रकारिता का सम्मान करने वाले राजनेता के रूप में गिने जाएंगे. वह पत्रकारों से न सिर्फ कई मुद्दों पर सलाह लिया करते थे, बल्कि प्रेस वार्ता के दौरान पत्रकारों से काफी घुलमिल कर बातें किया करते थे. वह किसी भी सवाल पर ना तो आवश्यकता से ज्यादा उत्तेजित होते थे और ना ही उसका गलत तरीके से जवाब देते थे. मुलायम सिंह यादव और नारायण दत्त तिवारी की ऐसी ही कार्यशैली उत्तर प्रदेश के पत्रकारों को उनका मुरीद बनाती थी. मुलायम सिंह यादव ने अपने कार्यकाल के दौरान एक बार राज्य के बड़े अखबार के द्वारा उनके खिलाफ लिखी जा रही खबरों पर आपत्ति जताते हुए हल्ला बोल की अपील की थी तो उनके कई चहेते पत्रकारों ने भी उनके खिलाफ संपादकीय लिखा, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने इस बात का बुरा नहीं माना. बल्कि पत्रकारों की सलाह को मानते हुए इस तरह के हल्ला बोल अभियान को ना चलाने की बात कही. इसीलिए माना जाता है कि मुलायम सिंह यादव पत्रकारों की कद्र किया करते थे. आज ऐसे राजनेताओं का राजनीति में अभाव दिखता है, जो तीखी और स्पष्ट टिप्पणियों और बातों को सकारात्मक तरीके से लेते हैं. मुलायम सिंह यादव इमरजेंसी के दौरान तेजी से उभरे हुए राजनेता थे और उनका यह मानना था कि स्थानीय स्तर के पत्रकारों ने उनका साथ दिया था. इसलिए उनके मन में हमेशा पत्रकारों के प्रति सम्मान रहा. वह अपनी राजनीतिक पहचान को पत्रकारों का एहसान मानते थे और कहते थे कि उनको शिखर तक पहुंचाना में पत्रकारिता का बड़ा योगदान है, इसीलिए वह लीक से हटकर भी पत्रकारों की मदद करने के लिए खड़े रहते हैं. उनके ही कार्यकाल में पत्रकारों के लिए बहुत सारी योजनाओं पर कार्य किया गया था.

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राजनीति में किसी को स्थायी शत्रु नहीं मानते थे मुलायम
वरिष्ठ पत्रकार व मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे योगेश मिश्रा का कहना है कि मुलायम सिंह यादव समाजवाद को जमीन पर उतारने वाले राजनेता थे. उन्होंने राम मनोहर लोहिया व जय प्रकाश नारायण के समाजवाद को जमीन पर अपने काबिलियत व संघर्ष से उतारते हुए समाजवाद को लंबी उम्र दी और आजतक बरकरार रखने की कोशिश की. मुलायम सिंह यादव न सिर्फ रिश्ते बनाने बल्कि रिश्ते निभाने वाले राजनेता थे. जिससे मुलायम सिंह यादव की नजदीकी थी, वह इस बात का गवाह होगा कि कैसे उसकी जरूरत के समय मुलायम सिंह बिना बुलाये पहुंच जाते थे या चुपचाप मदद कर दिया करते थे. वह गरीबों और जनता के हित के बारे में सरकार के गलत फैसलों को तत्काल पलट दिया करते थे. वह कभी भी किसी की गलती से खुश होकर लाभ लेने की कोशिश नहीं की. लालजी टंडन के द्वारा साड़ी बांटने वाली घटना के बाद वह उनके घर जाकर मिले थे. वह राजनीति में किसी को शत्रु नहीं मानते थे और अपनी आलोचना भी सुनकर हंसकर टाल दिया करते थे. राजनीति में वह कल्याण सिंह व मायावती जैसे अपने धुर राजनीतिक विरोधी के साथ भी मंच साझा कर चुके हैं. तमाम ऐसी बाते हैं जो मुलायम सिंह यादव को उन तमाम राजनेताओं से अलग करती हैं, जो अपने आपको जमीन से जुड़ा होने का दावा करते हैं.

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