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Dy Sp lynching case: जम्मू कश्मीर एंड लद्दाख HC ने आरोपी की प्रिवेंटिव डिटेंशन को बरकरार रखा - निवारक हिरासत

2017 में श्रीनगर के नौहट्टा क्षेत्र में डिप्टी एसपी की हत्या के मामले में मुख्य आरोपी की प्रिवेंटिव डिटेंशन (preventive detention) को जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने बरकरार रखा है. साथ ही इस संबंध में दायर याचिका को भी खारिज कर दिया.

High Court of Jammu Kashmir and Ladakh
जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट
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Published : Aug 2, 2023, 6:19 PM IST

श्रीनगर : जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने 2017 में श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में हुई पुलिस उपाधीक्षक की हत्या के मामले में मुख्य आरोपी की निवारक हिरासत (preventive detention) को बरकरार रखते हुए याचिका को खारिज कर दिया. आरोपी की हिरासत के आदेश को कई आधारों पर चुनौती दी गई थी. इस संबंध में जस्टिस एमए चौधरी के कोर्ट ने बुघवार को याचिकाकर्ता और उत्तरदाताओं की दलीलें सुनने के बाद याचिका खारिज करते हुए कहा कि इसे किसी भी योग्यता से रहित पाया गया है. जस्टिस एम ए चौधरी ने उनकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर फैसला करते हुए कहा कि किसी गंभीर अपराध के लिए पहले से ही हिरासत में मौजूद व्यक्ति की निवारक हिरासत के संबंध में कानूनी स्थिति अच्छी तरह से तय है.

कोर्ट ने कहा कि आम तौर पर ऐसे व्यक्तियों की निवारक हिरासत का आदेश नहीं दिया जाता है, लेकिन ऐसा तब किया जा सकता है जब यह मानने के ठोस कारण हों कि व्यक्ति को जमानत पर रिहा किया जा सकता है या बरी होने या मूल अपराध में आरोप मुक्त होने के कारण रिहा किया जा सकता है. अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि निवारक हिरासत दंडात्मक नहीं है, बल्कि प्रकृति में केवल निवारक है, जिसका उद्देश्य समाज की रक्षा करना है और आगे कहा कि हिरासत के आधार और हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की संतुष्टि डीएसपी लिंचिंग मामले में वानी की भागीदारी का संकेत देने वाली सामग्री पर आधारित थी.

बता दें कि यह घटना 22 और 23 जून, 2017 की मध्यरात्रि की है जब श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में जामिया मस्जिद के बाहर भीड़ ने जम्मू-कश्मीर पुलिस की सुरक्षा शाखा के एक पुलिस उपाधीक्षक (डीवाईएसपी) मोहम्मद अयूब पंडित की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी. अधिकारी को शब-ए-कद्र की पूर्व संध्या पर एक बड़ी सभा के दौरान सुरक्षा कर्मियों की निगरानी के लिए मस्जिद में तैनात किया गया था. इस दौरान भीड़ ने अधिकारी पर न केवल हमला किया था बल्कि उसकी सर्विस पिस्तौल छीन ली थी और उसे तब तक बेरहमी से पीटा जब तक उसने दम नहीं तोड़ दिया.

इसके बाद इमरान नबी वानी को किसी भी अन्य अवैध गतिविधियों में शामिल होने से रोकने के लिए जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम 1978 के तहत हिरासत में लिया गया. हालांकि, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसे लिंचिंग मामले में जमानत दी गई थी, जिस पर हिरासत में लेने वाला प्राधिकारी विचार करने में विफल रहा. हालांकि, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि उसे लिंचिंग मामले में जमानत दी गई थी. याचिकाकर्ता ने आगे आरोप लगाया कि हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी ने केवल पुलिस डोजियर पर भरोसा किया और स्वतंत्र रूप से हिरासत के आधार तैयार नहीं किए.

इस बीच, अदालत ने बताया कि किसी गंभीर अपराध के लिए पहले से ही जेल में बंद व्यक्ति की निवारक हिरासत कानून में अच्छी तरह से स्थापित है. ऐसे व्यक्तियों की निवारक हिरासत अक्सर अनिवार्य नहीं होती है, लेकिन अगर इस बात के पुख्ता संकेत हैं कि मुख्य अपराध के लिए दोषमुक्ति या दोषसिद्धि के बाद व्यक्ति को बांड पर रिहा कर दिया जाएगा तो यह स्वीकार्य है. अदालत ने यह भी कहा कि हिरासत का औचित्य और हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की संतुष्टि डीएसपी लिंचिंग मामले में वानी की संलिप्तता दिखाने वाले सबूतों पर आधारित थी. अदालत ने इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि निवारक हिरासत दंडात्मक नहीं है, बल्कि प्रकृति में केवल निवारक है, जिसका उद्देश्य समाज की सुरक्षा करना है.

ये भी पढ़ें - Article 370 पर सुनवाई, सिब्बल बोले- जम्मू-कश्मीर का भारत में एकीकरण निर्विवाद था...है और हमेशा रहेगा

श्रीनगर : जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने 2017 में श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में हुई पुलिस उपाधीक्षक की हत्या के मामले में मुख्य आरोपी की निवारक हिरासत (preventive detention) को बरकरार रखते हुए याचिका को खारिज कर दिया. आरोपी की हिरासत के आदेश को कई आधारों पर चुनौती दी गई थी. इस संबंध में जस्टिस एमए चौधरी के कोर्ट ने बुघवार को याचिकाकर्ता और उत्तरदाताओं की दलीलें सुनने के बाद याचिका खारिज करते हुए कहा कि इसे किसी भी योग्यता से रहित पाया गया है. जस्टिस एम ए चौधरी ने उनकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर फैसला करते हुए कहा कि किसी गंभीर अपराध के लिए पहले से ही हिरासत में मौजूद व्यक्ति की निवारक हिरासत के संबंध में कानूनी स्थिति अच्छी तरह से तय है.

कोर्ट ने कहा कि आम तौर पर ऐसे व्यक्तियों की निवारक हिरासत का आदेश नहीं दिया जाता है, लेकिन ऐसा तब किया जा सकता है जब यह मानने के ठोस कारण हों कि व्यक्ति को जमानत पर रिहा किया जा सकता है या बरी होने या मूल अपराध में आरोप मुक्त होने के कारण रिहा किया जा सकता है. अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि निवारक हिरासत दंडात्मक नहीं है, बल्कि प्रकृति में केवल निवारक है, जिसका उद्देश्य समाज की रक्षा करना है और आगे कहा कि हिरासत के आधार और हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की संतुष्टि डीएसपी लिंचिंग मामले में वानी की भागीदारी का संकेत देने वाली सामग्री पर आधारित थी.

बता दें कि यह घटना 22 और 23 जून, 2017 की मध्यरात्रि की है जब श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में जामिया मस्जिद के बाहर भीड़ ने जम्मू-कश्मीर पुलिस की सुरक्षा शाखा के एक पुलिस उपाधीक्षक (डीवाईएसपी) मोहम्मद अयूब पंडित की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी. अधिकारी को शब-ए-कद्र की पूर्व संध्या पर एक बड़ी सभा के दौरान सुरक्षा कर्मियों की निगरानी के लिए मस्जिद में तैनात किया गया था. इस दौरान भीड़ ने अधिकारी पर न केवल हमला किया था बल्कि उसकी सर्विस पिस्तौल छीन ली थी और उसे तब तक बेरहमी से पीटा जब तक उसने दम नहीं तोड़ दिया.

इसके बाद इमरान नबी वानी को किसी भी अन्य अवैध गतिविधियों में शामिल होने से रोकने के लिए जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम 1978 के तहत हिरासत में लिया गया. हालांकि, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसे लिंचिंग मामले में जमानत दी गई थी, जिस पर हिरासत में लेने वाला प्राधिकारी विचार करने में विफल रहा. हालांकि, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि उसे लिंचिंग मामले में जमानत दी गई थी. याचिकाकर्ता ने आगे आरोप लगाया कि हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी ने केवल पुलिस डोजियर पर भरोसा किया और स्वतंत्र रूप से हिरासत के आधार तैयार नहीं किए.

इस बीच, अदालत ने बताया कि किसी गंभीर अपराध के लिए पहले से ही जेल में बंद व्यक्ति की निवारक हिरासत कानून में अच्छी तरह से स्थापित है. ऐसे व्यक्तियों की निवारक हिरासत अक्सर अनिवार्य नहीं होती है, लेकिन अगर इस बात के पुख्ता संकेत हैं कि मुख्य अपराध के लिए दोषमुक्ति या दोषसिद्धि के बाद व्यक्ति को बांड पर रिहा कर दिया जाएगा तो यह स्वीकार्य है. अदालत ने यह भी कहा कि हिरासत का औचित्य और हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की संतुष्टि डीएसपी लिंचिंग मामले में वानी की संलिप्तता दिखाने वाले सबूतों पर आधारित थी. अदालत ने इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि निवारक हिरासत दंडात्मक नहीं है, बल्कि प्रकृति में केवल निवारक है, जिसका उद्देश्य समाज की सुरक्षा करना है.

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