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नाथों के नाथ प्रभु जगन्नाथ 16 अगस्त से भक्तों को देंगे दर्शन, इन नियमों का रखना होगा ध्यान

श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) के एक अधिकारी ने कहा कि ओडिशा के पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर 16 अगस्त से भक्तों के लिए फिर से खोल दिया जाएगा, जिसमें कोविड-19 प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करवाया जाएगा.

Shree Jagannath Temple Administration, Jagannath Temple
प्रभु जगन्नाथ
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Published : Aug 5, 2021, 2:39 AM IST

नई दिल्ली: नाथों के नाथ प्रभु जगन्नाथ का धाम (Jagannath Temple) 16 अगस्त से भक्तों के दर्शन पूजन के लिए खुल जाएगा. हालांकि इस दौरान कोविड प्रोटोकॉल (Covid Protocol) का ध्यान रखते हुए विशेष सावधानी बरती जाएगी. श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) ने सोमवार को मंदिर को 16 अगस्त से श्रद्धालुओं के लिए फिर से खोलने का फैसला किया. प्रशासन ने कहा कि भक्तों को कोरोना का टीका लगवाना होगा या 96 घंटे पहले की आरटी-पीसीआर (RTPCR) रिपोर्ट पेश करनी होगी.

पुराणों में जगन्नाथ धाम की अपार महिमा है, इसे धरती का बैकुंठ भी कहा गया है. जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है. मंदिर में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा दाईं तरफ स्थित है. बीच में उनकी बहन सुभद्रा की प्रतिमा है और बIईं तरफ उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम) विराजते हैं. महाप्रभु जगन्नाथ (श्री कृष्ण) को कलयुग का भगवान भी कहा जाता है.

मान्यता है कि मंदिर में मौजूद प्रतिमा के अंदर ब्रह्माजी का वास है. जब भगवान श्रीकृष्ण ने धर्म स्थापना के लिए धरती पर अवतार लिया तब उनके पास अलौकिक शक्तियां थीं, लेकिन शरीर मानव का था. जब धरती पर उनका समय पूरा हो गया तो वे शरीर त्यागकर अपने धाम चले गए. इसके बाद पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया, लेकिन शरीर के ब्रह्मलीन होने के बाद भी उनका हृदय जलता ही रहा. पांडवों ने इसे जल में प्रवाहित कर दिया. जल में हृदय ने लट्ठे का रूप धारण कर लिया और ओडिशा के समुद्र तट पर पहुंच गया. यही लठ्ठा राजा इंद्रदुयम्न को मिल गया. मालवा नरेश इंद्रद्युम्न, जो भगवान विष्णु के भक्त थे.

पढ़ें: पुरी में भगवान जगन्नाथ की बहुदा जात्रा से पहले लगाया कर्फ्यू, जानिए क्यों

उन्हें स्वयं श्री हरि ने सपने में दर्शन दिए और कहा कि पुरी के समुद्र तट पर तुम्हें एक दारु (लकड़ी) का लठ्ठा मिलेगा, उससे मूर्ति का निर्माण कराओ. राजा जब तट पर पंहुचे तो उन्हें लकड़ी का लट्ठा मिल गया. अब उनके सामने यह प्रश्न था कि मूर्ति किससे बनवाएं. कहा जाता है कि भगवान विष्णु और स्वयं श्री विश्वकर्मा के साथ एक वृद्ध मूर्तिकार के रुप में प्रकट हुए. वृद्ध मूर्तिकार ने कहा कि वे एक महीने के अंदर मूर्तियों का निर्माण कर देंगें, लेकिन इस काम को एक बंद कमरे में अंजाम देंगे.

एक महीने तक कोई भी इसमें प्रवेश नहीं करेगा और न कोई तांक-झांक करेगा, चाहे वह राजा ही क्यों न हों. महीने का आखिरी दिन था, कमरे से भी कई दिन से कोई आवाज नहीं आ रही थी. कोतूहलवश राजा से रहा न गया और वे अंदर झांककर देखने लगे लेकिन तभी वृद्ध मूर्तिकार दरवाजा खोलकर बाहर आ गए और राजा को बताया कि मूर्तियां अभी अधूरी हैं, उनके हाथ और पैर नहीं बने हैं.

राजा को अपने कृत्य पर बहुत पश्चाताप हुआ और उन्होंने वृद्ध से माफी भी मांगी लेकिन उन्होंने कहा कि यह सब दैव वश हुआ है और यह मूर्तियां ऐसे ही स्थापित होकर पूजी जाएंगीं. तब वही तीनों जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां मंदिर में स्थापित की गईं. आज भी भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्तियां उसी अवस्था में हैं.

नई दिल्ली: नाथों के नाथ प्रभु जगन्नाथ का धाम (Jagannath Temple) 16 अगस्त से भक्तों के दर्शन पूजन के लिए खुल जाएगा. हालांकि इस दौरान कोविड प्रोटोकॉल (Covid Protocol) का ध्यान रखते हुए विशेष सावधानी बरती जाएगी. श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) ने सोमवार को मंदिर को 16 अगस्त से श्रद्धालुओं के लिए फिर से खोलने का फैसला किया. प्रशासन ने कहा कि भक्तों को कोरोना का टीका लगवाना होगा या 96 घंटे पहले की आरटी-पीसीआर (RTPCR) रिपोर्ट पेश करनी होगी.

पुराणों में जगन्नाथ धाम की अपार महिमा है, इसे धरती का बैकुंठ भी कहा गया है. जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है. मंदिर में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा दाईं तरफ स्थित है. बीच में उनकी बहन सुभद्रा की प्रतिमा है और बIईं तरफ उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम) विराजते हैं. महाप्रभु जगन्नाथ (श्री कृष्ण) को कलयुग का भगवान भी कहा जाता है.

मान्यता है कि मंदिर में मौजूद प्रतिमा के अंदर ब्रह्माजी का वास है. जब भगवान श्रीकृष्ण ने धर्म स्थापना के लिए धरती पर अवतार लिया तब उनके पास अलौकिक शक्तियां थीं, लेकिन शरीर मानव का था. जब धरती पर उनका समय पूरा हो गया तो वे शरीर त्यागकर अपने धाम चले गए. इसके बाद पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया, लेकिन शरीर के ब्रह्मलीन होने के बाद भी उनका हृदय जलता ही रहा. पांडवों ने इसे जल में प्रवाहित कर दिया. जल में हृदय ने लट्ठे का रूप धारण कर लिया और ओडिशा के समुद्र तट पर पहुंच गया. यही लठ्ठा राजा इंद्रदुयम्न को मिल गया. मालवा नरेश इंद्रद्युम्न, जो भगवान विष्णु के भक्त थे.

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उन्हें स्वयं श्री हरि ने सपने में दर्शन दिए और कहा कि पुरी के समुद्र तट पर तुम्हें एक दारु (लकड़ी) का लठ्ठा मिलेगा, उससे मूर्ति का निर्माण कराओ. राजा जब तट पर पंहुचे तो उन्हें लकड़ी का लट्ठा मिल गया. अब उनके सामने यह प्रश्न था कि मूर्ति किससे बनवाएं. कहा जाता है कि भगवान विष्णु और स्वयं श्री विश्वकर्मा के साथ एक वृद्ध मूर्तिकार के रुप में प्रकट हुए. वृद्ध मूर्तिकार ने कहा कि वे एक महीने के अंदर मूर्तियों का निर्माण कर देंगें, लेकिन इस काम को एक बंद कमरे में अंजाम देंगे.

एक महीने तक कोई भी इसमें प्रवेश नहीं करेगा और न कोई तांक-झांक करेगा, चाहे वह राजा ही क्यों न हों. महीने का आखिरी दिन था, कमरे से भी कई दिन से कोई आवाज नहीं आ रही थी. कोतूहलवश राजा से रहा न गया और वे अंदर झांककर देखने लगे लेकिन तभी वृद्ध मूर्तिकार दरवाजा खोलकर बाहर आ गए और राजा को बताया कि मूर्तियां अभी अधूरी हैं, उनके हाथ और पैर नहीं बने हैं.

राजा को अपने कृत्य पर बहुत पश्चाताप हुआ और उन्होंने वृद्ध से माफी भी मांगी लेकिन उन्होंने कहा कि यह सब दैव वश हुआ है और यह मूर्तियां ऐसे ही स्थापित होकर पूजी जाएंगीं. तब वही तीनों जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां मंदिर में स्थापित की गईं. आज भी भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्तियां उसी अवस्था में हैं.

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