जबलपुर। जिले में हुए चुनाव के ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी ने आदिवासियों के नाम पर कुछ ज्यादा बड़ी घोषणाएं की हैं. इनमें जबलपुर में 100 करोड़ की लागत से रानी दुर्गावती के स्मारक की घोषणा की गई है. वहीं, सागर में एक पूरा अभयारण्य ही रानी दुर्गावती के नाम पर रख दिया है. हालांकि, भारतीय जनता पार्टी का कहना- "यह कोई राजनीतिक घोषणा नहीं है. यह आदिवासियों के सम्मान के लिए किया गया है. कांग्रेस के और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के इस मुद्दे पर कुछ और ही बयान है. आदिवासियों के नाम पर हो रही इन घोषणाओं का क्या राजनीतिक समीकरण है, यह समझना होगा."
गोंड जनजाति: मध्य प्रदेश की आबादी का लगभग 8% गोंड जनजाति के लोग हैं. मध्य प्रदेश में गोंड जनजाति की संख्या लगभग 50 लाख है. यह लोग मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा , बैतूल, नर्मदापुरम, नरसिंहपुर, सिवनी, जबलपुर, मंडला, बालाघाट, डिंडोरी, उमरिया और शहडोल जिलों में फैले हुए हैं. मध्य प्रदेश की 84 विधानसभा सीट गोंड जनजाति के वोटर प्रभावित करते हैं. मध्य प्रदेश की सभी राजनीतिक पार्टियों की इस वोट बैंक पर नजर है.
गोंड जनजाति का इतिहास: गोंडवाना साम्राज्य 15वीं और 16वीं शताब्दी में भारत के एक बड़े भूभाग में फैला हुआ था. इस साम्राज्य के सीमाएं उत्तर प्रदेश मालवा विदर्भ और छत्तीसगढ़ तक थी. इस बड़े भूभाग में पहले गोंडवाना साम्राज्य की रानी दुर्गावती ने राज किया. वे लंबे समय तक इस इलाके की रानी रही. उन्होंने जबलपुर को अपनी राजधानी बनाया था लेकिन अकबर की सेना ने रानी दुर्गावती के राज्य पर हमला कर उसे अपने कब्जे में ले लिया था. उसके बाद गोंडवाना साम्राज्य धीरे-धीरे खत्म हो गया. गोंडवाना साम्राज्य के खत्म होने के बाद गोड समाज की आर्थिक स्थिति भी खराब हुई और वह आसपास के जंगलों की ओर चले गए, जहां सदियों से वह रह रहे हैं. सरकार ने गोड समाज को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया हुआ है.
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रानी दुर्गावती का स्मारक: अनुसूचित जाति के दर्जे की वजह से गौंड समाज को आरक्षण का लाभ मिलता है. इस पूरे इलाके से गौंड सांसद विधायक चुने जाते हैं. सरकार के कई बड़े औहदो पर भी गौंड समाज के लोग अधिकारी बनकर पहुंचे. गोंड समाज की ओर से अभी भी यह मांग उठती रहती है कि रानी दुर्गावती को इतिहास में जो जगह मिलनी थी, वह जगह नहीं मिली. गौंड जनजाति की इसी मांग को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूरा किया है. उन्होंने 100 करोड़ की लागत से मदन महल की पहाड़ियों पर रानी दुर्गावती की एक स्मारक बनाने की घोषणा की है.
चुनाव और घोषणा: रानी दुर्गावती का सम्मान होना चाहिए, इसमें कोई दो राय नहीं है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जिस समय यह घोषणा की है, उससे सम्मान से ज्यादा राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. ठीक विधानसभा चुनाव के पहले रानी दुर्गावती के स्मारक को 100 करोड़ देने की घोषणा राजनीति से प्रेरित है. जबलपुर के सांसद राकेश सिंह का कहना है कि अगले साल 5 अक्टूबर को रानी दुर्गावती के जन्म के 500 साल पूरे हो रहे हैं. इसलिए यह घोषणा अभी की गई है. इसमें कोई राजनीति नहीं है. यह तो आदिवासी महापुरुषों का सम्मान है जिसे पिछली कांग्रेस सरकारों ने नहीं सोचा.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीते दिनों शंकर शाह रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस के मौके पर कहा कि उन्होंने आदिवासियों के सम्मान को बढ़ाने के लिए भोपाल की स्टेशन का नाम भी हबीबगंज से बदलकर रानी कमलापति किया. रानी दुर्गावती के नाम पर एक अभयारण्य भी खोला जा रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने रानी दुर्गावती के नाम पर कुछ नहीं किया. जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया था. जबलपुर में रानी दुर्गावती के नाम पर एक संग्रहालय भी है.
आदिवासियों के अपमान का आरोप: कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला 2 दिन पहले ही जबलपुर आए थे. उन्होंने आरोप लगाया था कि भारतीय जनता पार्टी आदिवासियों का कितना सम्मान करती है. यह मध्य प्रदेश की जनता जान रही है. उन्होंने आदिवासी युवकों के साथ भाजपा नेताओं के बुरे सलूक के उदाहरण दिए थे.
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के आरोप: गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अमन सिंह पोर्ते ने आरोप लगाया है कि भारतीय जनता पार्टी आदिवासियों के सम्मान का दिखावा करती है. सीधी में जिस तरह से एक आदिवासी युवक के ऊपर पेशाब की गई, उसे यह बात स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी कहती कुछ है और करती कुछ है. गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का कहना है कि वह कांग्रेस की नीतियों से भी खुश कभी नहीं रहे. यदि, मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ने की बात आएगी तो भी बहुजन समाज पार्टी से समझौता कर सकते हैं लेकिन कांग्रेस से नहीं.
ठीक चुनाव के पहले रानी दुर्गावती के स्मारक के नाम पर 100 करोड़ की राशि की घोषणा करना राजनीतिक घोषणा है या नहीं है. यह तो आम जनता तय करे, लेकिन गोंडवाना इलाके में आदिवासी पानी जमीन स्वास्थ्य पढ़ाई और रोजगार जैसे मुद्दों पर संघर्ष कर रहा है. उसको सम्मान के साथ-साथ इन सब चीजों की भी जरूरत है, जिनके नाम पर आम जनता की गाड़ी कमाई का पैसा खर्च तो किया जा रहा है, लेकिन उसे आदिवासी को लाभ नहीं हो रहा दोनों ही पार्टियों को इस पर भी विचार करना चाहिए.