नई दिल्ली : लोक सभा में उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति से जुड़े संशोधन विधेयक पर चर्चा की गई. चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद थरूर ने उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयुसीमा बढ़ाने की मांग की. उन्होंने न्यायपालिका से जुड़े अन्य मुद्दों के समाधान के लिये सरकार से कदम उठाने को कहा. वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सदस्य पी पी चौधरी ने अखिल भारतीय न्यायिक सेवा शुरू किये जाने की मांग की.
'उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शर्त) संशोधन विधेयक, 2021' पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के शशि थरूर ने कहा कि सरकार को इस विधेयक के जरिये न्यायपालिका से जुड़े कछ दूसरे मुद्दों का समाधान करना चाहिए था. उन्होंने कहा कि सरकार को उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयुसीमा बढ़ाने और अदालतों में लंबित मामलों का निपटारा करने के उपायों पर ध्यान देना चाहिए था.
बीजू जनता दल (बीजद) के पिनाकी मिश्रा ने इस विधेयक के कुछ प्रावधानों पर सवाल खड़े किए और कहा कि सरकार को इस बारे में पुनर्विचार करना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक लाना चाहिए. बसपा के श्याम सिंह यादव ने कहा कि प्रयास किया जाना चाहिए कि न्यायपालिका पर अंगुली नहीं उठे. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मोहम्मद फैजल ने कहा कि सरकार को लंबित मामलों में त्वरित निस्तारण के लिए जरूरी कदम उठाना चाहिए.
संसद के प्रति जवाबदेह हों न्यायाधीश
तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ने अदालतों, विशेषकर उच्च न्यायपालिका में लंबित मामलों का मुद्दा उठाया और कहा कि इस पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि कॉलेजियम से सर्वसम्मति से आगे बढ़ाए गए नामों के संदर्भ में सरकार को तीन-चार सप्ताह के भीतर ही नियुक्ति की प्रक्रिया को पूरा करना चाहिए. बनर्जी ने कहा कि न्यायाधीशों को संसद के प्रति जवाबदेह होना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर कॉलेजियम अपना काम नहीं करती है जो उसकी क्या जवाबदेही होती है? क्या यह न्याय का मजाक नहीं है?
शिवसेना के अरविंद सावंत ने कहा कि सीबीआई और ईडी जैसी संस्थाओं का दुरुपयोग किया जा रहा है, इसे लेकर क्या कार्रवाई की जा रही है. उन्होंने कहा कि प्रतिशोध की भावना से की जाने वाली कार्रवाई के कारण ही न्यायिक व्यवस्था से विश्वास उठता है और जब न्यायपालिका से विश्वास उठता है तो लोकतंत्र को चोट पहुंचती है.
कॉलेजियम की व्यवस्था पर सवाल
वाईएसआर कांग्रेस पार्टी की वांगा गीता विश्वनाथन ने कहा कि कॉलेजियम की व्यवस्था को हटाकर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग जैसी संस्था बननी चाहिए ताकि नियुक्ति की प्रक्रिया में ज्यादा पारदर्शिता आ सके. जनता दल (यूनाइटेड) ने कॉलेजियम की व्यवस्था पर सवाल किया और कहा कि इसे बदला जाना चाहिए.
जजों के पद खाली, कैसे मिलेगा न्याय ?
थरूर ने सवाल किया क्या सरकार उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयुसीमा को 62 से बढ़ाकर 65 साल करना चाहती है जैसा कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए तय है ? उन्होंने कहा कि सरकार को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयुसीमा में एकरुपता होनी चाहिए.
न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति पर हो विचार
उन्होंने ऊपरी अदालतों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों का मुद्दा भी उठाया और कहा कि अगर ये पद रिक्त होंगे तो फिर लोगों को त्वरित न्याय कैसे मिलेगा. थरूर ने कहा कि 4.4 करोड़ से अधिक मामले अदालतों में लंबित हैं, सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने कहा कि डेनमार्क, ऑस्ट्रेलिया और कुछ देशों में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयुसीमा 70 साल है.
नियुक्ति में कानून मंत्री की कोई भूमिका नहीं
चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के पी पी चौधरी ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में सभी मंत्रियों की जवाबदेही होती है लेकिन उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की बात करे तब कानून मंत्री के संदर्भ में ऐसी कोई बात नहीं होती, नियुक्ति को लेकर उनकी (कानून मंत्री) की कोई भूमिका नहीं होती. उन्होंने कहा कि देश में 1952 से लेकर 1993 तक राष्ट्रपति द्वारा प्रधान न्यायाधीश की सिफारिश से उच्चतम न्यायालय में और राज्यों के राज्यपालों की सिफारिश से उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की व्यवस्था थी.
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चौधरी ने कहा कि 1993 से पहले नियुक्त न्यायाधीशों ने अनेक महत्वपूर्ण फैसले दिये और उनमें प्रतिभा की कमी नहीं थी . इसके बाद कालेजियम की व्यवस्था आई जिसमें कई मुद्दे आते हैं. उन्होंने कहा कि अमेरिका समेत अनेक देशों में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार द्वारा या उसकी सिफारिश से होती है, लेकिन भारत में इस बाबत पूरी तरह 'चैक एंड बेलैंस' की व्यवस्था है.
संसद 'कंसल्टेशन' शब्द को परिभाषित करे
चौधरी ने कहा कि देश में 'अखिल भारतीय न्यायिक सेवा' शुरू किये जाने की मांग की ताकि न्यायपालिका में संघीय व्यवस्था लाई जा सके. भाजपा सांसद पीपी चौधरी ने कहा कि अगर संसद 'कंसल्टेशन' शब्द को परिभाषित करे तो न्यायपालिका और विधायिका के बीच अधिकारों के विभाजन को लेकर समस्या का समाधान हो जाएगा.
रिटायरमेंट के बाद सरकारी पद न मिले
चर्चा में भाग लेते हुए द्रमुक नेता दयानिधि मारन ने कहा कि ऊपरी अदालतों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और दूसरे वंचित तबकों से न्यायाधीशों की संख्या बहुत कम है, इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के तत्काल बाद किसी सरकारी पद पर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए.
(इनपुट- पीटीआई-भाषा)