नई दिल्ली : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने बुधवार को देश के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान (Gaganyaan programme) के लिए क्रायोजेनिक इंजन का सफल परीक्षण किया. बता दें कि गगनयान मिशन का उद्देश्य पांच से सात वर्षों के लिए अंतरिक्ष में तीन सदस्यों का एक दल भेजना है. इसरो वैज्ञानिक और क्रायोजेनिक इंजन टेक्नोलॉजी के प्रोजेक्ट हेड एन. के. गुप्ता और उनकी टीम ने भारत में क्रायोजेनिक इंजन की तकनीक को विकसित किया है.
इससे पहले दिसंबर, 2021 में गगनयान मिशन के विशिष्ट कर्मीदल का प्रशिक्षण शुरू हो गया था. इसरो ने बताया था कि प्रशिक्षण के दौरान, वर्चुअल रिएलिटी सिमुलेटर (Virtual reality simulators), स्थैतिक मॉक-अप सिमुलेटर (Static Mock-up simulators) तथा स्वास्थ्य को मॉनिटर करने वाले उपकरण (health monitoring equipment), जैसी आधुनिक प्रशिक्षण पद्धतियों का उपयोग किया जाएगा.
इसरो के मुताबिक गगनयान मिशन प्रशिक्षण कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों में कर्मीदल सुरक्षा (Crew Safety in Gaganyaan mission) अहम है. बता दें कि प्रशिक्षण कार्यक्रम को इसरो और भारतीय वायुसेना के शीर्ष अधिकारियों की समिति ने मंजूरी दी है. समिति में विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) राकेश शर्मा तथा एयर कमोडोर (सेवानिवृत्त) रवीश मल्होत्रा जैसे दिग्गज शामिल हैं.
गौरतलब है कि गगनयान के संबंध में अगस्त, 2018 में अंतरिक्ष विभाग ने बताया था कि प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन के दौरान 'गगनयान-भारत का पहला मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम' की घोषणा की थी. उन्होंने घोषणा की थी कि 2022 (भारतीय स्वतंत्रता के 75 साल) तक या उससे पहले भारत की धरती से भारतीय यान द्वारा भारत की कोई एक लड़की या लड़का अंतरिक्ष में भेजा जाएगा.
अंतरिक्ष विभाग के बयान के मुताबिक गगनयान को लॉन्च करने के लिए जीएसएलवी एमके-3 लॉन्च व्हिकल (GSLV Mk-III launch vehicle) का उपयोग किया जाएगा जो इस मिशन के लिए आवश्यक पेलोड क्षमता से लैस है. योजना के मुताबिक अंतरिक्ष में मानव भेजने से पहले दो मानव रहित गगनयान मिशन किए जाएंगे.
दुनिया में गिनती के देशों के पास ही क्रायोजेनिक इंजन तकनीक (cryogenic engine technology) है. एन. के. गुप्ता का कहना है कि एक दौर था जब क्रायोजेनिक इंजन की तकनीक रूस देने वाला था, लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण उसने यह तकनीक भारत को नहीं दी.
गगनयान में प्रयुक्त इंजन कितना अहम है ? इस सवाल पर प्रोजेक्ट हेड एन. के. गुप्ता ने ईटीवी भारत को बताया था कि रॉकेट में तीन प्रकार के ईंधन होते हैं, सॉलिड (ठोस), लिक्विड (तरल) और क्रायोजेनिक. क्रायोजेनिक ईंधन की क्षमता सबसे अधिक है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इसका उपयोग बड़े रॉकेट और अंतरिक्ष यान में किया जाता है. क्रायोजेनिक इंजन बहुत जटिल होते हैं. इन्हें डेवलप करने के लिए काफी मेहनत लगती है और केवल चार या पांच देशों में ही यह क्रायोजेनिक टेक्नोलोजी है.
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एन. के. गुप्ता ने बताया था कि जब भारत क्रायोजेनिक इंजन का निर्माण कर रहे थे, हमने रूस से संपर्क किया. किसी कारण से उन्होंने हमें तकनीक देने से इनकार कर दिया. फिर हमने अपना क्रायोजेनिक इंजन बनाने के बारे में सोचा. इस प्रोजेक्ट में, मैं प्रोजेक्ट हेड था. क्रायोजेनिक इंजन ईंधन के रूप में लिक्विड (तरल) हाइड्रोजन और तरल ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं. यह दोनों बहुत कम तापमान पर रहते हैं. हाइड्रोजन माइनस 253 सेंटीग्रेड और लिक्विड ऑक्सीजन माइनस 183 सेन्टीग्रेड पर है. हम माइनस 253 में काम कर रहे हैं. हम कम तापमान से 20 डिग्री से ऊपर काम कर रहे हैं. ये बहुत जटिल हैं. हाइड्रोजन का घनत्व बहुत कम है. जिसे स्टोर करने के लिए एक बड़ा टैंक लगता है. संक्षेप में, क्रायोजेनिक इंजन एक बहुत ही जटिल प्रणाली है जिसे हमने विकसित किया है.
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मिशन का उद्देश्य
गगनयान मिशन का उद्देश्य पांच से सात वर्षों के लिए अंतरिक्ष में तीन सदस्यों का एक दल भेजना है. इस अंतरिक्ष यान को 300-400 किलोमीटर की निम्न पृथ्वी कक्षा में रखा जाएगा. कुल कार्यक्रम की लागत 10,000 करोड़ रुपये से कम होगी. इसरो प्रमुख के सिवन के मुताबिक गगनयान में एक चालक दल मॉड्यूल, सेवा मॉड्यूल और कक्षीय मॉड्यूल शामिल होगा. इसका वजन लगभग 7 टन होगा और इसे रॉकेट की मदद से भेजा जाएगा. चालक दल मॉड्यूल का आकार 3.7 मीटर x 7 मीटर होगा.