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International Women Day 2023 "साइकिल इसलिए चलाती हूं ताकि मेरे बच्चे शुद्ध हवा में सांस ले सके"

Women Day 2023 पर्यावरण संरक्षण को लेकर बड़े बड़े लेक्चर और आयोजन होते हैं लेकिन जमीनी स्तर पर बहुत कम ही ऐसे लोग होते हैं जो इसे सार्थक कर पाते हैं. राजधानी रायपुर की अनुपमा तिवारी पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में पिछले 6 सालों से काम कर रही हैं. इसमें वे अपनी सहभागिता साइकलिंग के जरिए दे रही हैं. इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ETV भारत विभिन्न क्षेत्रों में कुछ अलग काम कर समाज को नई दिशा दे रही महिलाओं से बातचीत कर रहा है. जिसमें वे अपने अनुभव और अपनी सोच बांट रही हैं. cycling for environmental protection

international women day 2023
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
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Published : Mar 5, 2023, 1:12 PM IST

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर रायपुर की अनुपमा तिवारी से बातचीत

रायपुर: गाड़ियों के ईंधन से होने वाले प्रदूषण को रोकने और पर्यावरण को बचाने के लिए अनुपमा तिवारी ने अपने जीवन में साइकिलिंग को अपना लिया है. बाजार हो या दफ्तर या घर का कोई काम ट्रांसपोर्टेशन के लिए अनुपमा साइकिल का इस्तेमाल करती हैं. अनुपमा तिवारी शासकीय कर्मचारी है और साइकलिंग कर वे खुद को तो फिट रखती ही है पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक भी कर रही है. महिला दिवस पर ETV भारत ने अनुपमा तिवारी से खास बातचीत की.


सवाल- साइकिलिंग की शुरुआत आपने कब से की ?

जवाब- साइकिलिंग की शुरुआत एक छोटे इवेंट से हुई. उस समय साइकिल से 12 किलोमीटर राइड करनी थी. अवंती विहार से राजकुमार कॉलेज तक और वहां से वापस, जब मैं राजकुमार कॉलेज तक साइकिल से पहुंची. उसके बाद हिम्मत बढ़ी और वहीं से मैंने सोच लिया कि अब मैं साइकिलिंग ही करुंगी.

सवाल- पर्यावरण संरक्षण को लेकर आइडिया कैसे आया और अब आप दफ्तर और बाजार भी साइकिल से ही जाते हैं?

जवाब- मेरे पिता जी कहां करते थे कोई भी काम करो तो उसका कुछ उद्देश्य होना चाहिए. जब तक आप को मंजिल पता नहीं हो तब तक रास्ते में चलने का कोई मतलब नहीं है. अगर मैं साइकिल चला रही हूं तो इसके पीछे का कारण है. सड़क दुर्घटना के बाद मेरे घुटनों में दर्द होता था. साइकिल चलाने के बाद मुझे दर्द से राहत मिलने लगी. आज के समय में पेट्रोल के दाम भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं. इसके साथ ही गाड़ियों के ईंधन से प्रदूषण हो रहा है उसे भी कम करना था. मेरे दो बच्चे हैं और मैं यह सोचती हूं कि अपने बच्चों के लिए कम से कम पर्यावरण में स्वच्छ जगह बना लूं. ताकि मेरे बच्चे स्वस्थ हवा में सांस ले पाएं. हर एक व्यक्ति को मैं इस बात को सोचने पर मजबूर कर दूं कि हर इंसान अपने बच्चों के लिए यह बात सोचे कि क्या हमने अपने बच्चों के लिए शुद्ध पर्यावरण छोड़ा है.

सवाल- आप रोजाना कितने किलोमीटर साइकलिंग करती हैं?

जवाब- मैं रोजाना 35 किलोमीटर साइकिलिंग करती हूं और यह मेरा टारगेट है. हम फील्ड में जाकर भी काम करते हैं. कभी 9 किलोमीटर तो कभी 10 किलोमीटर जाना होता है. हमारा ऑफिस अलग-अलग जगहों पर है. 1 दिन में अगर मुझे सारे ऑफिस कवर करने होते हैं तो उनकी दूरी 50 किलोमीटर होती है. कई बार घर से भी हम काम करते हैं ऐसे में रोजाना मैं अपने फिजिकल एक्टिविटी के लिए 35 किलोमीटर सुबह साइकिलिंग करती हूं. बाकी प्रदूषण कम करने के लिए मैं ऑफिस और बाजार के साथ सारे काम साइकिल से ही करती हूं.

सवाल- इन सारी चीजों को आप कैसे मैनेज कर पाती हैं?

जवाब- सुबह के समय मैं मार्केट चले जाती हूं. सुबह के समय ताजा सब्जी तो मिलती है इसके साथ ही स्वच्छ ऑक्सीजन मिलता है. इसके अलावा बाजार में भी मैं प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करती हूं. सुबह खरीदारी हो जाती, ऑक्सीजन मिल जाती है और साइकलिंग भी हो जाती है.

सवाल- आपकी उम्र क्या है?

जवाब- लोग अक्सर अपनी उम्र बताने से कतराते हैं. लेकिन मैं लोगों को जागरूक करना चाहती हूं. उम्र सिर्फ एक नंबर है. मेरी उम्र 55 साल है. आज भी मैं रोजाना साइकिलिंग कर रही हूं. आज भी मुझे किसी प्रकार से तकलीफ नहीं है. पूरे दिन एनर्जी रहती है.

सवाल-पर्यावरण को बचाने के लिए आप और क्या काम कर रही हैं?

जवाब- गर्मियों के दिनों में मैं पानी बचाने के लिए अपने बैग में नल की टोटी रखती हूं.इसके साथ ही पशु पक्षियों के लिए सकोरा रखती हूं. जहां भी बिना नल की टोटी होती है और पानी बहता रहता है वहां मैं नल की टोटी लगा देती हूं. वही ऐसा स्थान जहां पर माली पानी दे सके, पेड़ की छांव हो वहां पशु पक्षियों के लिए सकोरा रखती हूं जहां नियमित रूप से सकोरे में पानी डाला जा सके.

बरसात के दिनों में मैं पेड़ लगाने का काम करती हूं. मेरे पसंदीदा पेड़ बरगद, पीपल और नीम है. क्योंकि यह सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देते हैं. यह हमारे पूज्यनीय पौधे हैं. ज्यादातर बरगद और पीपल के पेड़ नालियों के आसपास उग आते हैं. उन्हें वहां से निकालकर सही स्थान पर लगाती हूं.

सवाल- महिला दिवस के मौके पर क्या संदेश देंगी?

जवाब- महिलाओं का हमेशा कहना होता है कि उनके पास समय नहीं रहता. बहुत सारी समस्याएं भी होती हैं. मुझे भी कई तरह की समस्याएं हुई हैं. कई ऑपरेशन हुए है. मैं इसके लिए दो लाइन कहना चाहती हूं" ना हमसफ़र किसी हमनशी से निकलेगा, हमारे पांव का कांटा है हम ही से निकलेगा". महिलाओं को खुद को पहल करनी होगी. अपना स्वास्थ्य खुद का ख्याल रखना होगा. चार कंधों का इंतजार ना करें. मैंने अपना शरीर दान कर दिया है. मेरा सोचना है कि स्वस्थ शरीर किसी के काम आ सके. छत्तीसगढ़ में भी अंगदान का प्रोसेस शुरू हो गया है. इसलिए मैंने अपने शरीर का दान किया है ताकि मेरे अंग भी किसी जरूरतमंद के काम आ जाए और मेरा शरीर मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट के लिए प्रैक्टिस के काम आ जाए.


अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर रायपुर की अनुपमा तिवारी से बातचीत

रायपुर: गाड़ियों के ईंधन से होने वाले प्रदूषण को रोकने और पर्यावरण को बचाने के लिए अनुपमा तिवारी ने अपने जीवन में साइकिलिंग को अपना लिया है. बाजार हो या दफ्तर या घर का कोई काम ट्रांसपोर्टेशन के लिए अनुपमा साइकिल का इस्तेमाल करती हैं. अनुपमा तिवारी शासकीय कर्मचारी है और साइकलिंग कर वे खुद को तो फिट रखती ही है पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक भी कर रही है. महिला दिवस पर ETV भारत ने अनुपमा तिवारी से खास बातचीत की.


सवाल- साइकिलिंग की शुरुआत आपने कब से की ?

जवाब- साइकिलिंग की शुरुआत एक छोटे इवेंट से हुई. उस समय साइकिल से 12 किलोमीटर राइड करनी थी. अवंती विहार से राजकुमार कॉलेज तक और वहां से वापस, जब मैं राजकुमार कॉलेज तक साइकिल से पहुंची. उसके बाद हिम्मत बढ़ी और वहीं से मैंने सोच लिया कि अब मैं साइकिलिंग ही करुंगी.

सवाल- पर्यावरण संरक्षण को लेकर आइडिया कैसे आया और अब आप दफ्तर और बाजार भी साइकिल से ही जाते हैं?

जवाब- मेरे पिता जी कहां करते थे कोई भी काम करो तो उसका कुछ उद्देश्य होना चाहिए. जब तक आप को मंजिल पता नहीं हो तब तक रास्ते में चलने का कोई मतलब नहीं है. अगर मैं साइकिल चला रही हूं तो इसके पीछे का कारण है. सड़क दुर्घटना के बाद मेरे घुटनों में दर्द होता था. साइकिल चलाने के बाद मुझे दर्द से राहत मिलने लगी. आज के समय में पेट्रोल के दाम भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं. इसके साथ ही गाड़ियों के ईंधन से प्रदूषण हो रहा है उसे भी कम करना था. मेरे दो बच्चे हैं और मैं यह सोचती हूं कि अपने बच्चों के लिए कम से कम पर्यावरण में स्वच्छ जगह बना लूं. ताकि मेरे बच्चे स्वस्थ हवा में सांस ले पाएं. हर एक व्यक्ति को मैं इस बात को सोचने पर मजबूर कर दूं कि हर इंसान अपने बच्चों के लिए यह बात सोचे कि क्या हमने अपने बच्चों के लिए शुद्ध पर्यावरण छोड़ा है.

सवाल- आप रोजाना कितने किलोमीटर साइकलिंग करती हैं?

जवाब- मैं रोजाना 35 किलोमीटर साइकिलिंग करती हूं और यह मेरा टारगेट है. हम फील्ड में जाकर भी काम करते हैं. कभी 9 किलोमीटर तो कभी 10 किलोमीटर जाना होता है. हमारा ऑफिस अलग-अलग जगहों पर है. 1 दिन में अगर मुझे सारे ऑफिस कवर करने होते हैं तो उनकी दूरी 50 किलोमीटर होती है. कई बार घर से भी हम काम करते हैं ऐसे में रोजाना मैं अपने फिजिकल एक्टिविटी के लिए 35 किलोमीटर सुबह साइकिलिंग करती हूं. बाकी प्रदूषण कम करने के लिए मैं ऑफिस और बाजार के साथ सारे काम साइकिल से ही करती हूं.

सवाल- इन सारी चीजों को आप कैसे मैनेज कर पाती हैं?

जवाब- सुबह के समय मैं मार्केट चले जाती हूं. सुबह के समय ताजा सब्जी तो मिलती है इसके साथ ही स्वच्छ ऑक्सीजन मिलता है. इसके अलावा बाजार में भी मैं प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करती हूं. सुबह खरीदारी हो जाती, ऑक्सीजन मिल जाती है और साइकलिंग भी हो जाती है.

सवाल- आपकी उम्र क्या है?

जवाब- लोग अक्सर अपनी उम्र बताने से कतराते हैं. लेकिन मैं लोगों को जागरूक करना चाहती हूं. उम्र सिर्फ एक नंबर है. मेरी उम्र 55 साल है. आज भी मैं रोजाना साइकिलिंग कर रही हूं. आज भी मुझे किसी प्रकार से तकलीफ नहीं है. पूरे दिन एनर्जी रहती है.

सवाल-पर्यावरण को बचाने के लिए आप और क्या काम कर रही हैं?

जवाब- गर्मियों के दिनों में मैं पानी बचाने के लिए अपने बैग में नल की टोटी रखती हूं.इसके साथ ही पशु पक्षियों के लिए सकोरा रखती हूं. जहां भी बिना नल की टोटी होती है और पानी बहता रहता है वहां मैं नल की टोटी लगा देती हूं. वही ऐसा स्थान जहां पर माली पानी दे सके, पेड़ की छांव हो वहां पशु पक्षियों के लिए सकोरा रखती हूं जहां नियमित रूप से सकोरे में पानी डाला जा सके.

बरसात के दिनों में मैं पेड़ लगाने का काम करती हूं. मेरे पसंदीदा पेड़ बरगद, पीपल और नीम है. क्योंकि यह सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देते हैं. यह हमारे पूज्यनीय पौधे हैं. ज्यादातर बरगद और पीपल के पेड़ नालियों के आसपास उग आते हैं. उन्हें वहां से निकालकर सही स्थान पर लगाती हूं.

सवाल- महिला दिवस के मौके पर क्या संदेश देंगी?

जवाब- महिलाओं का हमेशा कहना होता है कि उनके पास समय नहीं रहता. बहुत सारी समस्याएं भी होती हैं. मुझे भी कई तरह की समस्याएं हुई हैं. कई ऑपरेशन हुए है. मैं इसके लिए दो लाइन कहना चाहती हूं" ना हमसफ़र किसी हमनशी से निकलेगा, हमारे पांव का कांटा है हम ही से निकलेगा". महिलाओं को खुद को पहल करनी होगी. अपना स्वास्थ्य खुद का ख्याल रखना होगा. चार कंधों का इंतजार ना करें. मैंने अपना शरीर दान कर दिया है. मेरा सोचना है कि स्वस्थ शरीर किसी के काम आ सके. छत्तीसगढ़ में भी अंगदान का प्रोसेस शुरू हो गया है. इसलिए मैंने अपने शरीर का दान किया है ताकि मेरे अंग भी किसी जरूरतमंद के काम आ जाए और मेरा शरीर मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट के लिए प्रैक्टिस के काम आ जाए.


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