नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी पद के लिए प्रत्याशी इससे संबंधित मामले में जनहित याचिका दायर नहीं कर सकता है. इस टिप्पणी के साथ ही शीर्ष अदालत ने राज्य सूचना आयुक्तों की पेंशन से संबंधित मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी.
शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता, जिसने राज्य के जनवरी 2013 के कार्यालय ज्ञापन को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, वह खुद पद का प्रत्याशी था. ज्ञापन में राज्य के सूचना आयुक्तों को मुख्य सचिव की पेंशन के बराबर पेंशन देने का प्रावधान किया गया था.
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी की पीठ ने कहा, 'क्योंकि याचिकाकर्ता भी राज्य सूचना आयुक्त पद का प्रत्याशी है और रोजगार की मांग के लिए उसने एक आवेदन किया था, जिसका जिक्र उच्च न्यायालय के फैसले में है. हमें लगता है कि उसकी ओर से कथित तौर पर जनहित के नाम दायर याचिका पर उच्च न्यायालय ने सुनवाई से इनकार कर सही फैसला किया है.'
पीठ ने एक अक्टूबर को दिए अपने आदेश में कहा कि यह एकदम सही है कि किसी पद का प्रत्याशी व्यक्ति उस संबंध में जनहित याचिका दायर नहीं कर सकता. शीर्ष अदालत उच्च न्यायालय द्वारा जुलाई में सुनाए एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. जुलाई में उच्च न्यायालय ने उसकी याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था.
याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में दलील थी कि सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत राज्य सूचना आयुक्तों को पेंशन लाभ देने का कोई प्रावधान नहीं है. केवल अगर कोई व्यक्ति राज्य सूचना आयुक्त के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले पेंशन योग्य पद पर तैनात था, तो ही वे पेंशन का हकदार है.
यह भी पढ़ें- वाहन विनिर्माताओं से डीलरों के हित अलग नहीं हैं : सुप्रीम कोर्ट
उच्च न्यायालय ने इस पर जनवरी 2013 के आदेश का जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि राज्य सूचना आयुक्त, मुख्य सचिव को देय पेंशन के हकदार होंगे, जिसके तहत उनकी पिछली सेवा के लिए उन्हें मिलने वाली पेंशन में कटौती की जाएगी.
उच्च न्यायालय में मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने बताया था कि याचिकाकर्ता राज्य सूचना आयुक्त के पद का प्रत्याशी था और उसने नियुक्ति के लिए एक आवेदन किया था, जिसे उसके नियुक्ति के लिए उपयुक्त नहीं पाए जाने पर अस्वीकार कर दिया गया था.
(पीटीआई भाषा)