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असम : एनआरसी पर घमासान, एपीडब्ल्यू ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया हलफनामा

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Published : Feb 10, 2021, 7:48 PM IST

नई दिल्ली में ईटीवी भारत से बात करते हुए एपीडब्ल्यू के अध्यक्ष अभिजीत शर्मा ने दावा किया कि एनआरसी में कई अवैध बांग्लादेशियों के नाम दर्ज हैं. अभिजीत शर्मा ने कहा कि वर्तमान एनआरसी समन्वयक हितेश देव शर्मा ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर किया है.

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नई दिल्ली : असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू) ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफनामा दायर करने का फैसला किया, जो असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) प्रक्रिया के पुनर्जीवन की मांग करता है.

एपीडब्ल्यू के अध्यक्ष अभिजीत शर्मा ने कहा कि वर्तमान एनआरसी समन्वयक हितेश देव शर्मा ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर किया है. जिसमें दस्तावेजों को प्रस्तुत किया गया है कि 2019 में अगस्त में प्रकाशित एनआरसी में कई अवैध बांग्लादेशियों के नाम थे. वर्तमान एनआरसी समन्वयक ने अंतिम एनआरसी को चुनौती देते हुए गुवाहाटी उच्च न्यायालय में एक हलफनामा प्रस्तुत किया है. एपीडब्ल्यू ने मामले पर शीर्ष अदालत में जाने का फैसला किया है.

एनआरसी का मौजूदा स्वरूप स्वीकार नहीं

यहां यह उल्लेख किया जा सकता है कि एक गैर सरकारी संगठन APW एनआरसी मामले में पहला याचिकाकर्ता है, जिसके बाद राज्य में एनआरसी को अपडेट करने का अभ्यास हुआ. शर्मा ने कहा कि एनआरसी को उसके मौजूदा स्वरूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि एनआरसी से सभी गैरकानूनी नामों को हटाना त्रुटि मुक्त मतदाता सूचियों के लिए जरूरी है. असम में विधानसभा चुनाव दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. इस बात की पूरी संभावना है कि राजनीतिक दल एनआरसी के मुद्दे को वोट बैंक की राजनीति के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं.

एपीडब्ल्यू ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया हलफनामा

80 लाख अवैध मतदाताओं के नाम शामिल

एपीडब्ल्यू ने आरोप लगाया कि 80 लाख से अधिक अवैध मतदाताओं के नाम अंतिम एनआरसी में शामिल किए गए हैं जो अगस्त 2019 में प्रकाशित हुए थे. अंतिम एनआरसी सूची में 19 लाख लोगों को भी छोड़ दिया गया था. APW ने एनआरसी के पूर्व समन्वयक प्रतीक हजेला पर एनआरसी अपडेट प्रक्रिया के लिए केंद्र से जारी भारी मात्रा में धन निकालने का आरोप भी लगाया है. पहले के अवसरों पर, केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में कई अपीलें कीं. अंतिम एनआरसी प्रकाशित होने से पहले पुनर्विचार की मांग की. अदालत ने हालांकि, हजेला द्वारा प्रस्तुत किए जाने के बाद उनकी अपील को ठुकरा दिया कि उसने 27 प्रतिशत आवेदकों का डाटा पुन: सत्यापित किया है.

सरकार ने भी मानी है गड़बड़ी

असम में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि कई अवैध विदेशी नागरिकों के नाम एनआरसी में शामिल किए गए हैं. अंतिम एनआरसी 31 अगस्त 2019 को कुल 33027661 आवेदकों में से 31121004 नामों वाले 1906657 व्यक्तियों को छोड़कर प्रकाशित किया गया था. केंद्र सरकार ने हाल ही में संसद में कहा है कि एनआरसी को तुरंत अधिसूचित नहीं किया जाएगा. सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्देश का हवाला देते हुए गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा है कि एनआरसी समन्वयक को आधार डाटा के लिए प्रदान की गई सुरक्षा व्यवस्था के समान उचित सुरक्षा व्यवस्था बनाने के लिए कहा गया है. जिसके बाद समावेशन और बहिष्करण की सूची जारी होगी, जिसे राज्य सरकार, केंद्र सरकार और भारत के रजिस्ट्रार जनरल को उपलब्ध कराया जाएगा.

यह भी पढ़ें-लोक सभा में विपक्ष पर बरसे पीएम मोदी, बोले- ना खेलब ना खेलन देब, खेलबे बिगाड़ब

एनआरसी से बाहर किए गए नामों की अस्वीकृति पर्ची जारी की जानी थी, जिसके बाद वे विदेश के ट्रिब्यूनल में अपील कर सकते थे. जहां वे परीक्षण से गुजरेंगे. असम में एनआरसी राज्य में रहने वाले अवैध बांग्लादेशियों का पता लगाने के लिए किया गया था.

नई दिल्ली : असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू) ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफनामा दायर करने का फैसला किया, जो असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) प्रक्रिया के पुनर्जीवन की मांग करता है.

एपीडब्ल्यू के अध्यक्ष अभिजीत शर्मा ने कहा कि वर्तमान एनआरसी समन्वयक हितेश देव शर्मा ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर किया है. जिसमें दस्तावेजों को प्रस्तुत किया गया है कि 2019 में अगस्त में प्रकाशित एनआरसी में कई अवैध बांग्लादेशियों के नाम थे. वर्तमान एनआरसी समन्वयक ने अंतिम एनआरसी को चुनौती देते हुए गुवाहाटी उच्च न्यायालय में एक हलफनामा प्रस्तुत किया है. एपीडब्ल्यू ने मामले पर शीर्ष अदालत में जाने का फैसला किया है.

एनआरसी का मौजूदा स्वरूप स्वीकार नहीं

यहां यह उल्लेख किया जा सकता है कि एक गैर सरकारी संगठन APW एनआरसी मामले में पहला याचिकाकर्ता है, जिसके बाद राज्य में एनआरसी को अपडेट करने का अभ्यास हुआ. शर्मा ने कहा कि एनआरसी को उसके मौजूदा स्वरूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि एनआरसी से सभी गैरकानूनी नामों को हटाना त्रुटि मुक्त मतदाता सूचियों के लिए जरूरी है. असम में विधानसभा चुनाव दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. इस बात की पूरी संभावना है कि राजनीतिक दल एनआरसी के मुद्दे को वोट बैंक की राजनीति के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं.

एपीडब्ल्यू ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया हलफनामा

80 लाख अवैध मतदाताओं के नाम शामिल

एपीडब्ल्यू ने आरोप लगाया कि 80 लाख से अधिक अवैध मतदाताओं के नाम अंतिम एनआरसी में शामिल किए गए हैं जो अगस्त 2019 में प्रकाशित हुए थे. अंतिम एनआरसी सूची में 19 लाख लोगों को भी छोड़ दिया गया था. APW ने एनआरसी के पूर्व समन्वयक प्रतीक हजेला पर एनआरसी अपडेट प्रक्रिया के लिए केंद्र से जारी भारी मात्रा में धन निकालने का आरोप भी लगाया है. पहले के अवसरों पर, केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में कई अपीलें कीं. अंतिम एनआरसी प्रकाशित होने से पहले पुनर्विचार की मांग की. अदालत ने हालांकि, हजेला द्वारा प्रस्तुत किए जाने के बाद उनकी अपील को ठुकरा दिया कि उसने 27 प्रतिशत आवेदकों का डाटा पुन: सत्यापित किया है.

सरकार ने भी मानी है गड़बड़ी

असम में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि कई अवैध विदेशी नागरिकों के नाम एनआरसी में शामिल किए गए हैं. अंतिम एनआरसी 31 अगस्त 2019 को कुल 33027661 आवेदकों में से 31121004 नामों वाले 1906657 व्यक्तियों को छोड़कर प्रकाशित किया गया था. केंद्र सरकार ने हाल ही में संसद में कहा है कि एनआरसी को तुरंत अधिसूचित नहीं किया जाएगा. सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्देश का हवाला देते हुए गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा है कि एनआरसी समन्वयक को आधार डाटा के लिए प्रदान की गई सुरक्षा व्यवस्था के समान उचित सुरक्षा व्यवस्था बनाने के लिए कहा गया है. जिसके बाद समावेशन और बहिष्करण की सूची जारी होगी, जिसे राज्य सरकार, केंद्र सरकार और भारत के रजिस्ट्रार जनरल को उपलब्ध कराया जाएगा.

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एनआरसी से बाहर किए गए नामों की अस्वीकृति पर्ची जारी की जानी थी, जिसके बाद वे विदेश के ट्रिब्यूनल में अपील कर सकते थे. जहां वे परीक्षण से गुजरेंगे. असम में एनआरसी राज्य में रहने वाले अवैध बांग्लादेशियों का पता लगाने के लिए किया गया था.

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