वाराणसी: भारतीय सनातन परम्परा में पर्व तिथि का खास महत्व है.हिन्दू पंचांग में प्रत्येक मास की एकादशी तिथि को खास महत्ता है. सभी तिथि विशेष पर पूजा-अर्चना करके सुख-समृद्धि की प्राप्ति की जाती है. आश्विन मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि को इन्दिरा एकादशी नाम से जानी जाती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार जो इस इन्दिरा एकादशी का व्रत करके व्रत का पुण्य अपने पितरों को समर्पित करता है. उनके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा व्रतकर्ता को भी मृत्योपरान्त मुक्ति मिलती है.
इंदिरा एकादशी पूजा विधि: ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि आश्विन मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि 20 सितम्बर, मंगलवार की रात्रि 9 बजकर 27 मिनट पर लग गई है जो 21 सितम्बर, बुधवार की रात्रि 11 बजकर 35 मिनट तक रहेगी. 21 सितम्बर, बुधवार को सम्पूर्ण दिन एकादशी तिथि का मान होने से इन्दिरा एकादशी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा.
इंदिरा एकादशी 2022 शुभ योग: व्रतकर्ता को एक दिन पूर्व सायंकाल अपने दैनिक नित्य कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान ध्यान के पश्चात् इन्दिरा एकादशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए, और दूसरे दिन यानि इन्दिरा एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना के पश्चात् उनकी महिमा में श्रीविष्णु सहस्रनाम, श्रीपुरुषसूक्त तथा श्रीविष्णुजी से सम्बन्धित मन्त्र 'ॐ श्रीविष्णवे नमः ' या ' ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जप अधिक से अधिक संख्या में करना चाहिए. सम्पूर्ण दिन निराहार रहकर व्रत सम्पादित करना चाहिए.
विमल जैन ने कहा कि व्रत का पारण द्वादशी तिथि के दिन किया जाता है. एकादशी तिथि के दिन चावल ग्रहण नहीं किया जाता. इस दिन दूध या फलाहार ग्रहण करना चाहिए. व्रत के व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए. इन्दिरा एकादशी के व्रत व भगवान श्रीविष्णुजी की विशेष कृपा से व्रतकर्ता के पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और व्रतकर्ता की भी मृत्योपरान्त मुक्ति मिलती है. व्रतकर्ता को अपने जीवन में मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है. आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामथ्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए.
पौराणिक व्रतकथा: एक समय राजा इन्द्रसेन ने सपने में अपने पिता को नरक की यातना भोगते देखा. पिता ने कहा कि मुझे नरक से मुक्ति दिलाने के उपाय करो, राजा इंद्रसेन ने नारद मुनि के सुझाव पर आश्विन महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत किया और इस व्रत से प्राप्त पुण्य को अपने पिता को दान कर दिया. इससे इंद्रसेन के पिता नरक से मुक्त होकर भगवान विष्णु के लोक बैकुंठ में चले गए.
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