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जानिए, भारतीय राष्ट्रीय सेना के 'आजाद हिंद फौज' बनने की कहानी

भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी बोस ने जापान में रहकर भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन किया था. जुलाई, 1943 में सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में एक समारोह में भारतीय राष्ट्रीय सेना का नेतृत्व संभाला. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में इसका नाम 'आजाद हिंद फौज' कर दिया गया था. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Sep 1, 2021, 5:02 AM IST

Rash Behari Bose
Rash Behari Bose

हैदराबाद : भारतीय राष्ट्रीय सेना (Indian National Army) का गठन 01 सितंबर, 1942 को किया गया था. स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी बोस (Rash Behari Bose) ने भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) का गठन किया था, जिसमें 50,000 सैनिक शामिल थे. बाद में रास बिहारी बोस ने आईएनए को सुभाष चंद्र बोस को सौंप दिया.

वर्ष 1943 में सुभाष चंद्र बोस दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र में गए और उनके नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय सेना का 'आजाद हिंद फौज' के रूप में पुनर्गठन किया गया.

भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन
रास बिहारी बोस को अलीपुर बम मामले (1908) में गिरफ्तार किया गया था. जेल से छूटने के बाद वह देहरादून चले गए और यहां वन अनुसंधान संस्थान में हेड क्लर्क (प्रधान लिपिक) के रूप में कार्य करने लगे. हालांकि, इस दौरान वह गुप्त रूप से क्रांतिकारियों से मिलते रहे.

दिल्ली में वायसराय लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग पर बम फेंकने की असफल कोशिश में रास बिहारी की भागीदारी के कारण ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें निशाना बनाया.

इसके बाद रास बिहारी बोस ने अखिल भारतीय क्रांति की योजना बनाई, लेकिन यह विफल रही और अधिकांश क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि, रास बिहारी बच निकलने में सफल रहे और 1915 में जापान पहुंच गए. वहां उन्होंने जापानी अधिकारियों को भारत की स्वतंत्रता के लिए भारतीय राष्ट्रवादियों को सक्रिय समर्थन देने के लिए राजी किया.

17 फरवरी, 1942 को, सिंगापुर के पतन के दो दिन बाद, लगभग 45,000 भारतीय युद्ध बंदी (Prisoners-Of-War), फार्रर पार्क (Farrer Park) में एकत्र हुए. इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें जापानियों के हवाले कर दिया.

जापानियों ने उनका स्वागत किया और भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना समर्थन देने का वचन दिया.

इसके बाद, ब्रिटिश सेना में 1/14वीं पंजाब रेजिमेंट के कप्तान मोहन सिंह ने भारतीयों से भारत को आजाद कराने के लिए एक सेना बनाने का आह्वान किया. लगभग 20,000 सैनिक तुरंत इसमें शामिल होने के लिए आगे आए और आईएनए का गठन हुआ.

जापानी सैन्य प्रशासन ने पूर्वी एशिया में विभिन्न भारतीय राष्ट्रवादी समूहों को ब्रिटिश विरोधी गठबंधन बनाने के लिए प्रोत्साहित किया था. इन भारतीय राष्ट्रवादी समूहों ने तब इंडियन इंडिपेंडेंस लीग (IIL) की स्थापना की, जिसका मुख्यालय सिंगापुर में था. आईआईएल पूर्वी एशिया में भारतीय समुदाय के कल्याण के लिए भी कार्य करती थी.

मार्च 1942 की शुरुआत में, जापान ने प्रस्ताव दिया कि आईएनए आईआईएल की सैन्य शाखा होगी और भारतीय क्रांतिकारी रास बिहारी बोस आंदोलन का नेतृत्व करेंगे. इसकी औपचारिक घोषणा जून 1942 में बैंकॉक में की गई थी.

वर्ष 1942 के अंत तक, भारतीयों को एहसासा हुआ कि जापानी उनका इस्तेमाल कर रहे हैं और उन्होंने रास बिहारी बोस पर भरोसा नहीं किया. दिसंबर 1942 में, मोहन सिंह और अन्य आईएनए नेताओं ने जापानियों के साथ असहमति के बाद आईएनए को भंग करने का आदेश दिया. मोहन सिंह को बाद में जापानियों ने गिरफ्तार कर लिया और पुलाऊ उबिन (Pulau Ubin) में निर्वासित कर दिया.

नई लीडरशिप

दिसंबर 1942 और फरवरी 1943 के बीच, रास बिहारी बोस ने IIL और INA की गतिविधियों को जारी रखने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे. हजारों INA सैनिक फिर से युद्ध-बंदी की स्थिति में पहुंच गए और IIL के अधिकांश नेताओं ने इस्तीफा दे दिया. स्थिति से निपटने के लिए, जापानियों ने आईएनए नेताओं के साथ बैठक की और कहा गया कि केवल सुभाष चंद्र बोस ही आईआईएल और आईएनए का नेतृत्व कर सकते हैं.

02 जुलाई, 1943 को सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर पहुंचे. दो दिन बाद, उन्होंने कैथे बिल्डिंग (Cathay Building) में एक समारोह में आईआईएल और आईएनए का नेतृत्व संभाला. अपने प्रभावशाली भाषणों और करिश्मे के साथ, बोस ने जल्द ही आईआईएल और आईएनए को पुनर्जीवित कर दिया.

आईएनए, जिसमें पहले मुख्य रूप से युद्ध-बंदी शामिल थे, स्थानीय नागरिकों के शामिल होते ही इसकी ताकत दोगुनी हो गई. आईएनए में कई भारतीय (बैरिस्टर से लेकर बागान श्रमिकों तक) शामिल हुए, उनके पास कोई सैन्य अनुभव नहीं था.

बोस के नेतृत्व में आईएनए में शामिल होने के लिए वॉलंटियर्स की भीड़ उमड़ पड़ी. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने गांधी, नेहरू, मौलाना आजाद और खुद के नाम पर आईएनए की ब्रिगेड/रेजिमेंट का नाम रखा. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर एक सर्व-महिला रेजिमेंट भी थी.

आईएनए का अंत

रास बिहारी बोस की जनवरी 1945 में टोक्यो में मृत्यु हो गई. माना जाता है कि इसके बाद ही सुभाष चंद्र बोस की भी मृत्यु हो गई थी. युद्ध समाप्त होने से पहले ही, आईएनए के सैनिक मित्र राष्ट्र देशों के हाथों में पड़ने लगे. इन्हें युद्ध-बंदी के रूप में लिया गया और 1943 की शुरुआत में इन पर कोर्ट मार्शल शुरू हुआ.

आईएनए के बचे हुए सदस्यों पर ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा राजद्रोह का मुकदमा चलाया जाना था. लाल किले में इनके खिलाफ ट्रायल होने था. इन्होंने देश में राष्ट्रवाद की एक नई लहर का नेतृत्व किया.

यह भी पढ़ें- नेताजी का उत्तराखंड से था खास नाता, गढ़वाली सैनिकों को करते थे पसंद

आईएनए के पास लगभग 43,000 सैनिक थे, जिनमें से कई मारे गए, कई भाग गए और नागरिकों के साथ मिल गए, लेकिन 16,000 सैनिकों को पकड़ लिया गया. उन्हें जहाजों में भरकर रंगून के रास्ते भारत भेज दिया गया.

कलकत्ता (अब कोलकाता) के पास झिंगरगाचा और नीलगंज, पुणे के पास किरकी, अटक, मुल्तान और दिल्ली के पास बहादुरगढ़ में विभिन्न डिटेंशन कैंप बनाए गए थे.

रास बिहारी बोस का परिचय

  • रास बिहारी बोस का जन्म पश्चिम बंगाल के बर्धमान में हुआ था. उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों में दिलचस्पी थी, फिर भी उन्होंने चिकित्सा विज्ञान और इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की.
  • बोस ने मैट्रिक पास करने से पहले ही कच्चे बम बनाने के गुर सीख लिए थे.
  • उन्होंने अपने बलिदान और संगठनात्मक कौशल से भारत की स्वतंत्रता में अहम भूमिका निभाई.
  • विदेश में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को सक्रिय करने के लिए, उन्होंने एएम नायर के साथ, जापानी अधिकारियों को भारतीय राष्ट्रवादियों का समर्थन करने और उनके साथ खड़े होने के लिए राजी किया.
  • उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता लीग (Indian Independence League) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
  • बोस ने 23 दिसंबर, 1912 को दिल्ली में परेड में बम फेंककर लॉर्ड हार्डिंग की हत्या करने का प्रयास किया.
  • वह गिरफ्तारी से बच गए, लेकिन उनके कई सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया और प्रसिद्ध लाहौर षडयंत्र मामले (Lahore Conspiracy Case) के लिए उन्हें फांसी दे दी गई.
  • रास बिहारी बोस 1915 में भारत से भाग निकले और जापान पहुंच गए.
  • बोस का 58 वर्ष की आयु में टोक्यो में 21 जनवरी, 1945 में निधन हो गया. उनके निधन के बाद शाही कोच को उनके शरीर को ले जाने के लिए भेजा गया था, जो एक बड़ा सम्मान है.
  • बोस की मृत्यु से पहले जापानी सरकार ने उन्हें 'सेकंड ऑर्डर ऑफ द मेरिट ऑफ द राइजिंग सन' से सम्मानित किया था.

हैदराबाद : भारतीय राष्ट्रीय सेना (Indian National Army) का गठन 01 सितंबर, 1942 को किया गया था. स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी बोस (Rash Behari Bose) ने भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) का गठन किया था, जिसमें 50,000 सैनिक शामिल थे. बाद में रास बिहारी बोस ने आईएनए को सुभाष चंद्र बोस को सौंप दिया.

वर्ष 1943 में सुभाष चंद्र बोस दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र में गए और उनके नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय सेना का 'आजाद हिंद फौज' के रूप में पुनर्गठन किया गया.

भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन
रास बिहारी बोस को अलीपुर बम मामले (1908) में गिरफ्तार किया गया था. जेल से छूटने के बाद वह देहरादून चले गए और यहां वन अनुसंधान संस्थान में हेड क्लर्क (प्रधान लिपिक) के रूप में कार्य करने लगे. हालांकि, इस दौरान वह गुप्त रूप से क्रांतिकारियों से मिलते रहे.

दिल्ली में वायसराय लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग पर बम फेंकने की असफल कोशिश में रास बिहारी की भागीदारी के कारण ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें निशाना बनाया.

इसके बाद रास बिहारी बोस ने अखिल भारतीय क्रांति की योजना बनाई, लेकिन यह विफल रही और अधिकांश क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि, रास बिहारी बच निकलने में सफल रहे और 1915 में जापान पहुंच गए. वहां उन्होंने जापानी अधिकारियों को भारत की स्वतंत्रता के लिए भारतीय राष्ट्रवादियों को सक्रिय समर्थन देने के लिए राजी किया.

17 फरवरी, 1942 को, सिंगापुर के पतन के दो दिन बाद, लगभग 45,000 भारतीय युद्ध बंदी (Prisoners-Of-War), फार्रर पार्क (Farrer Park) में एकत्र हुए. इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें जापानियों के हवाले कर दिया.

जापानियों ने उनका स्वागत किया और भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना समर्थन देने का वचन दिया.

इसके बाद, ब्रिटिश सेना में 1/14वीं पंजाब रेजिमेंट के कप्तान मोहन सिंह ने भारतीयों से भारत को आजाद कराने के लिए एक सेना बनाने का आह्वान किया. लगभग 20,000 सैनिक तुरंत इसमें शामिल होने के लिए आगे आए और आईएनए का गठन हुआ.

जापानी सैन्य प्रशासन ने पूर्वी एशिया में विभिन्न भारतीय राष्ट्रवादी समूहों को ब्रिटिश विरोधी गठबंधन बनाने के लिए प्रोत्साहित किया था. इन भारतीय राष्ट्रवादी समूहों ने तब इंडियन इंडिपेंडेंस लीग (IIL) की स्थापना की, जिसका मुख्यालय सिंगापुर में था. आईआईएल पूर्वी एशिया में भारतीय समुदाय के कल्याण के लिए भी कार्य करती थी.

मार्च 1942 की शुरुआत में, जापान ने प्रस्ताव दिया कि आईएनए आईआईएल की सैन्य शाखा होगी और भारतीय क्रांतिकारी रास बिहारी बोस आंदोलन का नेतृत्व करेंगे. इसकी औपचारिक घोषणा जून 1942 में बैंकॉक में की गई थी.

वर्ष 1942 के अंत तक, भारतीयों को एहसासा हुआ कि जापानी उनका इस्तेमाल कर रहे हैं और उन्होंने रास बिहारी बोस पर भरोसा नहीं किया. दिसंबर 1942 में, मोहन सिंह और अन्य आईएनए नेताओं ने जापानियों के साथ असहमति के बाद आईएनए को भंग करने का आदेश दिया. मोहन सिंह को बाद में जापानियों ने गिरफ्तार कर लिया और पुलाऊ उबिन (Pulau Ubin) में निर्वासित कर दिया.

नई लीडरशिप

दिसंबर 1942 और फरवरी 1943 के बीच, रास बिहारी बोस ने IIL और INA की गतिविधियों को जारी रखने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे. हजारों INA सैनिक फिर से युद्ध-बंदी की स्थिति में पहुंच गए और IIL के अधिकांश नेताओं ने इस्तीफा दे दिया. स्थिति से निपटने के लिए, जापानियों ने आईएनए नेताओं के साथ बैठक की और कहा गया कि केवल सुभाष चंद्र बोस ही आईआईएल और आईएनए का नेतृत्व कर सकते हैं.

02 जुलाई, 1943 को सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर पहुंचे. दो दिन बाद, उन्होंने कैथे बिल्डिंग (Cathay Building) में एक समारोह में आईआईएल और आईएनए का नेतृत्व संभाला. अपने प्रभावशाली भाषणों और करिश्मे के साथ, बोस ने जल्द ही आईआईएल और आईएनए को पुनर्जीवित कर दिया.

आईएनए, जिसमें पहले मुख्य रूप से युद्ध-बंदी शामिल थे, स्थानीय नागरिकों के शामिल होते ही इसकी ताकत दोगुनी हो गई. आईएनए में कई भारतीय (बैरिस्टर से लेकर बागान श्रमिकों तक) शामिल हुए, उनके पास कोई सैन्य अनुभव नहीं था.

बोस के नेतृत्व में आईएनए में शामिल होने के लिए वॉलंटियर्स की भीड़ उमड़ पड़ी. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने गांधी, नेहरू, मौलाना आजाद और खुद के नाम पर आईएनए की ब्रिगेड/रेजिमेंट का नाम रखा. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर एक सर्व-महिला रेजिमेंट भी थी.

आईएनए का अंत

रास बिहारी बोस की जनवरी 1945 में टोक्यो में मृत्यु हो गई. माना जाता है कि इसके बाद ही सुभाष चंद्र बोस की भी मृत्यु हो गई थी. युद्ध समाप्त होने से पहले ही, आईएनए के सैनिक मित्र राष्ट्र देशों के हाथों में पड़ने लगे. इन्हें युद्ध-बंदी के रूप में लिया गया और 1943 की शुरुआत में इन पर कोर्ट मार्शल शुरू हुआ.

आईएनए के बचे हुए सदस्यों पर ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा राजद्रोह का मुकदमा चलाया जाना था. लाल किले में इनके खिलाफ ट्रायल होने था. इन्होंने देश में राष्ट्रवाद की एक नई लहर का नेतृत्व किया.

यह भी पढ़ें- नेताजी का उत्तराखंड से था खास नाता, गढ़वाली सैनिकों को करते थे पसंद

आईएनए के पास लगभग 43,000 सैनिक थे, जिनमें से कई मारे गए, कई भाग गए और नागरिकों के साथ मिल गए, लेकिन 16,000 सैनिकों को पकड़ लिया गया. उन्हें जहाजों में भरकर रंगून के रास्ते भारत भेज दिया गया.

कलकत्ता (अब कोलकाता) के पास झिंगरगाचा और नीलगंज, पुणे के पास किरकी, अटक, मुल्तान और दिल्ली के पास बहादुरगढ़ में विभिन्न डिटेंशन कैंप बनाए गए थे.

रास बिहारी बोस का परिचय

  • रास बिहारी बोस का जन्म पश्चिम बंगाल के बर्धमान में हुआ था. उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों में दिलचस्पी थी, फिर भी उन्होंने चिकित्सा विज्ञान और इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की.
  • बोस ने मैट्रिक पास करने से पहले ही कच्चे बम बनाने के गुर सीख लिए थे.
  • उन्होंने अपने बलिदान और संगठनात्मक कौशल से भारत की स्वतंत्रता में अहम भूमिका निभाई.
  • विदेश में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को सक्रिय करने के लिए, उन्होंने एएम नायर के साथ, जापानी अधिकारियों को भारतीय राष्ट्रवादियों का समर्थन करने और उनके साथ खड़े होने के लिए राजी किया.
  • उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता लीग (Indian Independence League) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
  • बोस ने 23 दिसंबर, 1912 को दिल्ली में परेड में बम फेंककर लॉर्ड हार्डिंग की हत्या करने का प्रयास किया.
  • वह गिरफ्तारी से बच गए, लेकिन उनके कई सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया और प्रसिद्ध लाहौर षडयंत्र मामले (Lahore Conspiracy Case) के लिए उन्हें फांसी दे दी गई.
  • रास बिहारी बोस 1915 में भारत से भाग निकले और जापान पहुंच गए.
  • बोस का 58 वर्ष की आयु में टोक्यो में 21 जनवरी, 1945 में निधन हो गया. उनके निधन के बाद शाही कोच को उनके शरीर को ले जाने के लिए भेजा गया था, जो एक बड़ा सम्मान है.
  • बोस की मृत्यु से पहले जापानी सरकार ने उन्हें 'सेकंड ऑर्डर ऑफ द मेरिट ऑफ द राइजिंग सन' से सम्मानित किया था.
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