हैदराबाद: पीएम मोदी इन दिनों 5 दिन के विदेश दौरे पर हैं. इस दौरान वो दो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दुनिया के कई देशों के नेताओं से मिलेंगे. पहले इटली में जी20 की बैठक और फिर ग्लास्गो में जलवायु परिवर्तन कॉन्फ्रेंस में शिरकत करेंगे. इन दोनों बैठकों में जिन मुद्दों पर चर्चा होगी उससे भारत समेत पूरी दुनिया जूझ रही है. इन मोर्चों पर भारत की भूमिका बहुत अहम है. इसलिये पीएम मोदी का ये विदेश दौरा बहुत अहम माना जा रहा है.
इटली में G20 सम्मेलन
16वें G20 सम्मेलन का आयोजन इटली के रोम में हो रहा है. पीएम मोदी इटली के प्रधानमंत्री मारिया ड्रैगी के निमंत्रण पर रोम पहुंच चुके हैं. जहां वो 30-31 अक्टूबर को जी20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे.
G20- दुनिया की 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का एक वैश्विक मंच है. इसके सदस्यों की वैश्विक जीडीपी में करीब 80 फीसदी, वैश्विक व्यापार में 70 फीसदी और दुनिया की आबादी में 60 फीसदी की हिस्सेदारी है. 26 सितंबर 1999 को वैश्विक अर्थव्यवस्था, औद्योगिक विकास और विकासशील देशों को एक साथ लाने के उद्देश्य से जी20 की शुरुआत हुई. दुनियाभर में मौजूदा वित्तीय संक्टों से निपटने के साथ भविष्य के वित्तीय संकटों के समाधान की योजना करना भी इस मंच का उद्देश्य है.
जी20 के सदस्य- संयुक्त राज्य अमेरिका, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, मैक्सिको, रूस, जापान, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, यूनाइटेड किंगडम, तुर्की और यूरोपीय संघ. इसके अलावा स्पेन जी20 का स्थायी अतिथि है जिसे हर साल विशेष तौर पर आमंत्रित किया जाता है.
G20 में इस बार कौन से मुद्दों पर होगी चर्चा ?
मौजूदा समय में दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं कोरोना संकट से उबरने की कोशिश कर रही है. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन को लेकर भी 16वें जी20 सम्मेलन में मंथन हो सकता है. माना जा रहा है कि अफगानिस्तान संकट पर भी जी20 देशों के सदस्यों के बीच चर्चा हो सकती है. दुनिया की अर्थव्यवस्था से लेकर उद्योग और आबादी तक में जी20 के सदस्यों की बड़ी हिस्सेदारी है.
पीएम मोदी पहुंचे इटली
भारत दूसरी सबसे अधिक आबादी वाला देश है. जहां कोरोना से लेकर वैक्सीनेशन और अर्थव्यवस्था से लेकर जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर अपनी चिंताएं हैं. दुनियभर की नजरें एक बड़े बाजार के रूप में भारत की ओर हैं. ऐसे में हर मोर्चे पर भारत की भागीदारी अहम हो जाती है. पीएम मोदी बैठक में शामिल होने के लिए इटली पहुंच चुके हैं.
जी20 बैठक के लिए इटली रवाना होने से पहले पीएम मोदी ने कहा कि जी20 नेताओं के साथ महामारी और सतत विकास के अलावा जलवायु परिवर्तन से होने वाले नफा-नुकसान पर भी चर्चा हो सकती है. पीएम मोदी ने कहा कि इस दौरान वो वेटिकन सिटी का भी दौरा करेंगे. इस दौरान वो इटली के पीएम मोरिया द्रागी समेत कई राष्ट्र प्रमुखों के साथ द्विपक्षीय बैठक भी कर सकते हैं.
ग्लास्गो में COP26 की बैठक में हिस्सा लेंगे पीएम मोदी
इटली में G20 की बैठक के बाद पीएम मोदी 2 नवंबर तक ग्लास्गो दौरे पर रहेंगे. जहां वो संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन कॉन्फ्रेंस में शिरकत करेंगे. जिसे COP यानि Conference of the Parties कहा जाता है, जलवायु परिवर्तन की ये 26वीं बैठक है इसलिये इसे COP 26 कहा जाता है. इस बार यूनाइटेड किंग्डम इस बार सम्मेलन का मेजबान है. स्कॉटलैंड के ग्लास्गो शहर में करीब 120 देश जलवायु परिवर्तन पर मंथन के लिए जुटेंगे. ये कॉन्फ्रेंस इस बार 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक चलेगी.
ग्लास्गो की बैठक में पेरिस समझौते की चर्चा
जलवायु परिवर्तन की इस बैठक का मुख्य एजेंडा पृथ्वी के बढ़ते तापमान को काबू करना है. जो ज्यादातर प्रदूषण और विकास की होड़ में अंधाधुंध कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों की बदौलत होता है. साल 2015 में जलवायु परिवर्तन को लेकर पेरिस समझौता हुआ था, जिसके तहत दुनिया के तापमान में सालाना बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री से 2 डिग्री तक सीमित करना था. दुनिया के सभी देशों ने कार्बन उत्सर्जन कम करने को लेकर लक्ष्य तय किए लेकिन इन लक्ष्यों के मुताबिक इस सदी के आखिर में भी धरती का तापमान करीब 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा.
ग्लास्गो में जलवायु परिवर्तन के साथ बढ़ते तापमान को काबू करने के लिए तय गिए लक्ष्यों को निर्धारित करने और उन्हें लागू करने पर मंथन हो सकता है. ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है जो भविष्य में ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के साथ समुद्र के बढ़ते जल स्तर बढ़ने और कई निचले इलाकों के बाढ़ में डूबने के रूप में सामने आएगा.
चीन और अमेरिका दुनिया के दो सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देश हैं. भारत इस सूची में तीसरे नंबर पर है. चीन ने 2060 तो अमेरिका ने 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो तक पहुंचाने की घोषणा की है. इसी तरह हर देश को एक वर्ष डेडलाइन के तौर पर देना है, भारत समेत कई देशों ने अभी इस पर कोई गोल सेट नहीं किया है. देखना होगा कि क्या इस बैठक में ऐसा कुछ तय हो पाता है.
पेरिस समझौते में जलवायु कोष के तहत वित्तीय सहायत के लिए विकसित देशों को हर साल 100 अरब डॉलर देने की बात तय हुई थी, लेकिन ये वादा पूरा नहीं हो पाया है. जबकि विकासशील देश तो इस रकम को बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. कुल मिलाकर विशेषज्ञ मानते हैं कि ग्लास्गो की मौजूदा बैठक में नए एजेंडों से ज्यादा पुराने मसलों का हल और पुराने वादों को पूरा करने पर मंथन हो सकता है.
जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर मुश्किलों भरी है भारत की डगर
जलवायु परिवर्तन के हर मंच पर पहली उंगली कोयले के इस्तेमाल और कार्बन उत्सर्जन को लेकर ही उठती है. चीन, अमेरिका और भारत इस कार्बन उत्सर्जन के लिए बड़े जिम्मेदार है. लेकिन तीनों की ही तरफ से कोयले पर निर्भरता खत्म करने की कोई डेडलाइन नहीं दी गई है.
भारत इस समय दुनिया की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है. इसी के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा कोयला उपभोक्ता है, देश में बिजली उत्पादन का दो तिहाई से ज्यादा हिस्सा कोयले की बदौलत मिलता है. ऐसे में कार्बन उत्सर्जन को लेकर एक समय तय कर पाना बहुत मुश्किल है. जानकार मानते हैं कि अमेरिका विकसित देशों की कतार में सबसे आगे खड़ा है वहीं चीन की अर्थव्यवस्था भी भारत के मुकाबले कहीं बड़ी है. ऐसे में विकास की राह में बढ़ रहे भारत के लिए कोयले का इस्तेमाल कम करना टेढी खीर है.
भारत की तरफ से पेरिस में 2030 तक साल 2005 के मुकाबले कार्बन उत्सर्जन 33 फीसदी कम करने का वादा किया था, भारत सरकार का दावा है कि वो इस लक्ष्य को इस दशक के अंत तक हासिल कर लेगी क्योंकि 2021 में करीब 28 फीसदी टारगेट पूरा हो चुका है. 2030 तक जंगल बढ़ाने और 40 फीसदी बिजली की आपूर्ति अक्षय और परमाणु ऊर्जा के जरिये हासिल करने का भी वादा किया था. भारत सरकार के मुताबिक बीते 20 सालों में देश में फॉरेस्ट कवर 5 फीसदी से अधिक बढ़ा है जबकि अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के मुताबिक देश में जंगल घटे हैं.
इसी तरह सरकार अक्षय ऊर्जा के जरिये बिजली उत्पादन को बढ़ावा देने की कोशिश तो कर रही है लेकिन वो फिलहाल नाकाफी साबित हो रही हैं. क्योंकि कोयले पर निर्भरता कम नहीं हो रही है. कोयले की खपत बढ़ने से कार्बन उत्सर्जन का बढ़ना लाजमी है ऐसे में किए गए वादे और तय किए लक्ष्य कैसे समय पर पूरे होंगे ये देखने वाली बात होगी. कोयले की कमी और कार्बन उत्सर्जन कम करने के लक्ष्यों को भी चीन की पिछली तिमाही में गिरावट की वजह माना गया था. जानकार मानते हैं कि भारत की बढ़ती आबादी की ऊर्जा संबंधी जरूरतें पूरा करने के लिए कोयले पर निर्भरता बनी रहेगी और इसमें फिलहाल बहुत ज्यादा कटौती होना मुश्किल है. ऐसे में जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर पीएम मोदी को एक बेहतर रोडमैप COP 26 के मंच पर रखना होगा, जो भारत के साथ-साथ दुनिया के अन्य देशों के लिए भी नई राह दे सके.
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