नई दिल्ली : पाकिस्तान के इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद की अघोषित काबुल यात्रा ऐसे समय हुई है जब तालिबान पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को स्वीकार्य समावेशी सरकार बनाने का दबाव बढ़ रहा है.
वर्ष 2017 में सेवानिवृत्त होने से पहले विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्वी मामले) के रूप में कार्य कर चुके अनिल वाधवा ने कहा कि भारत को अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर किसी भी तरह की बना सोचे समझे प्रतिक्रिया से बचना चाहिए तथा प्रतीक्षा करो और देखो की नीति का अनुपालन करना चाहिए.
वाधवा ने कहा कि भारत को बिना सोचे-समझे प्रतिक्रिया से बचना चाहिए क्योंकि यह देखा जाना बाकी है कि तालिबान किस तरह की सरकार बनाती है और क्या वह एक समावेशी सरकार होगी या नहीं. भारत को बिना सोचे-समझे प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करनी चाहिए और यह देखने के लिए इंतजार करना चाहिए कि स्थिति क्या करवट लेती है.
आईएसआई प्रमुख की काबुल यात्रा पर उन्होंने कहा कि तालिबान, विशेष तौर पर हक्कानियों पर आईएसआई का प्रभाव जगजाहिर है और इसलिए वे नई सरकार में वह प्रभाव चाहते हैं. यह पूछे जाने पर कि क्या भारत को अफगानिस्तान में नई सरकार को अपनी उम्मीदों के बारे में अवगत कराना चाहिए.
वाधवा ने कहा कि दोहा में तालिबान के प्रतिनिधियों के साथ जब भी बातचीत होती है, तो यह बताया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इसकी पूरी संभावना है कि भारत तालिबानी पक्ष को पहले ही बता चुका है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
जून 2013-दिसंबर 2015 तक पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रहे टीसीए राघवन ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए और कहा कि अफगानिस्तान में स्थिति अभी भी निरंतर परिवर्तनशील है और भारत को प्रतीक्षा करने एवं देखने का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि मेरे विचार में अफगानिस्तान में स्थिति अभी भी उतार-चढ़ाव में है, इसलिए हमें ऐसी स्थिति में नहीं जाना चाहिए जहां हम अपने विश्लेषण पर टिप्पणी करें. चूंकि पाकिस्तान आईएसआई प्रमुख वहां हैं, इसलिए हमारे अपने आकलन पर टिप्पणी शुरू करना आसान है कि वह सरकार बना रहे हैं.
राघवन ने कहा कि स्थिति (अफगानिस्तान में) उतार-चढ़ाव में है और हमें घटनाक्रम का इंतजार करना चाहिए. यह तथ्य आज निर्विवाद है कि अफगानिस्तान में पाकिस्तानियों की एक निश्चित स्थिति है.
यह पूछे जाने पर कि क्या भारत को अफगानिस्तान में सरकार को अपनी अपेक्षाओं को बताना चाहिए और वहां के शासन को मान्यता देने के लिए अपनी पूर्व शर्तें निर्धारित करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि हम उस स्तर पर हैं जहां हम अपने उद्देश्यों को पूर्व शर्त बनाएं.
अफगानिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत राकेश सूद ने कहा कि मुझे लगता है कि हमारे पास इंतजार करने और देखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. मुझे नहीं लगता कि हमारे पास कोई अन्य विकल्प है. सूद ने कहा कि यदि महानिदेशक आईएसआई को मामलों को सुलझाने के लिए वहां जाना पड़ा है, तो यह बिलकुल स्पष्ट है कि स्थिति क्या है. वह वहां मौसम के बारे में विचार विमर्श का आदान प्रदान करने नहीं गए हैं.
पाकिस्तान सहित कई देशों में भारत के दूत रहे जी पार्थसारथी ने कहा कि भारत को किसी भी चीज में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए और अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर बिना सोचे समझे किसी भी प्रतिक्रिया से बचना चाहिए. उन्होंने आईएसआई प्रमुख के दौरे की ओर इशारा करते हुए कहा कि पाकिस्तान में सात साल तक रहने के बाद, मुझे आश्चर्य होता अगर पाकिस्तानियों ने वह नहीं किया होता जो वे कर रहे हैं.
चीन-पाकिस्तान गठजोड़ के खिलाफ आगाह करते हुए पार्थसारथी ने कहा कि जब तक हम चीन-पाकिस्तान गठजोड़ से उत्पन्न खतरों को कम आंकते हैं, तब तक हम गलत होंगे. पाकिस्तान अपने आप में कोई खतरा नहीं है, जब वह चीन के साथ गठजोड़ में काम करता है तो वह समस्या बन जाता है.
भारत का दृष्टिकोण क्या होना चाहिए, इसपर पूर्व राजनयिक ने कहा कि भारत को किसी भी चीज में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए, समय लेना चाहिए और देखना चाहिए कि चीजें किस दिशा में आगे बढ़ रही हैं क्योंकि अफगानिस्तान की आंतरिक राजनीति घटनाक्रम को आकार देगी.
उन्होंने कहा कि हक्कानी नेटवर्क जैसे समूह हैं जो आईएसआई के एजेंट हैं क्योंकि हक्कानी परिवार पाकिस्तान में रहता है. देखते हैं कि यह कैसे व्यवहार करता है. हमें किसी भी चीज में जल्दबाजी करने की आवश्यकता नहीं है. समझदार अफगानों ने हमें बताया है कि वे भारतीय सहायता की सराहना करते हैं.
उन्होंने कहा कि भारत ने अब तक सही काम किया है. संयुक्त अरब अमीरात और ईरान में भारत के दूत के रूप में काम कर चुके के सी सिंह ने कहा कि तालिबान सरकार के गठन में देरी मुल्ला बरादर के नेतृत्व वाले अधिक उदार तत्वों और हक्कानी नेटवर्क के बीच संघर्ष का संकेत देती है.
उन्होंने कहा कि ज्यादातर देश इंतजार कर रहे हैं और देख हे हैं लेकिन तालिबान पर दबाव भी बना रहे हैं. भारत को एक सार्वजनिक रुख अपनाना चाहिए कि वह किस तरह की समावेशी सरकार की उम्मीद करता है और उसके बिना वह तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देगा.
पंद्रह अगस्त को तालिबान के काबुल पर कब्जा करने के बाद से आईएसआई महानिदेशक हमीद की अफगानिस्तान यात्रा किसी भी पाकिस्तानी अधिकारी की अफगानिस्तान की पहली उच्चस्तरीय यात्रा है. तब से तालिबान सरकार बनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अब तक इसी घोषणा नहीं की है.
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तालिबान ने इस सप्ताह के लिए अफगानिस्तान में एक नई सरकार के गठन को स्थगित कर दिया था क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए स्वीकार्य व्यापक और समावेशी प्रशासन को आकार देने के लिए प्रयासरत है.
(पीटीआई-भाषा)