नई दिल्ली : कूटनीतिक रूप से भारत एक प्रमुख संकट में है. इसे अपने पारंपरिक रूप से करीबी सहयोगी रूस द्वारा अपना रुख तय करने के लिए कह दिया गया है. भारत को रूस इससे अधिक साफ शब्दों में नहीं कह सकता कि वह दोस्त के रूप में अमेरिका और रूस में किसी एक को चुन ले. शुक्रवार को भारत इस मामले में एक आधिकारिक प्रतिक्रिया के साथ सामने आया. हालांकि, प्रतिक्रिया से भारत का रुख स्पष्ट नहीं हुआ. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा था कि भारत ने हमेशा अपने राष्ट्रीय हित के आधार पर एक स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई है. भारत का प्रत्येक देश के साथ संबंध तीसरे देशों के साथ उसके संबंधों से स्वतंत्र है. हमें उम्मीद है कि यह हमारे सभी भागीदारों द्वारा अच्छी तरह से समझा और सराहा गया है.
क्या रूस समझेगा और सराहना करेगा?
मंगलवार को रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा था कि भारत वर्तमान में पश्चिमी देशों की निरंतर, आक्रामक और कुटिल नीति का एक उद्देश्य है. अमेरिका और पश्चिमी देश भारत को भारत-प्रशांत रणनीतियों और तथाकथित क्वाड को बढ़ावा देकर चीन विरोधी खेल में संलग्न करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, लावरोव ने साथ ही कहा कि पश्चिम भारत के साथ हमारी करीबी साझेदारी और विशेषाधिकार प्राप्त संबंधों को कमजोर करने का प्रयास कर रहा है. अमेरिका के नेतृत्व वाले इंडो-पैसिफिक मोर्चे और क्वाड के जरिए भारत को एक कोने में धकेला जा रहा है.
रूस कर रहा मध्यस्थता
पूर्वी लद्दाख के साथ विभिन्न सीमा बिंदुओं पर आठ महीने लंबे भारत-चीन गतिरोध के बीच रूस चुपचाप भारत और चीन को एक साथ लाने के लिए बहुत सूक्ष्मता से काम कर रहा है. भारत, चीन और रूस पहले से ही रूस-भारत-चीन (आरआईसी) त्रिपक्षीय, ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका), शंघाई संगठन सहयोग (एससीओ) और जी 20 सहित कई बहुपक्षीय प्लेटफार्मों के सदस्य हैं. यह रूस को एशियाई दिग्गजों के बीच मध्यस्थता करने के लिए एक स्थान देता है. माना जाता है कि मध्यस्थ की भूमिका पहले से ही एक शीर्ष-गुप्त रूसी योजना में है, जिसे 13 नवंबर को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा अनुमोदित किया गया था कि रूस बाहरी और आंतरिक चुनौतियों का सामना कैसे करेगा. इसमें चीनी-भारतीय और भारतीय-पाकिस्तानी संघर्षों में एक शांति बहाली भूमिका शामिल है ताकि रूस की अंतरराष्ट्रीय छवि और प्रतिष्ठा को बढ़ाया जा सके.
भारतीय सेना में रूस का दखल
रूस द्वारा भारतीय रुख पर अधिक स्पष्टता के लिए कहने के पीछे भू-रणनीतिक कारणों के अलावा रूस के हथियारों की सुरक्षा भी है. रूस नहीं चाहता कि भारत को आपूर्ति किए गए उसके हथियार अमेरिकी हथियारों और सैन्य प्रणालियों के साथ एकीकृत हों, क्योंकि इससे रूसी सैन्य तकनीक अमेरिकी के हाथ जाने का खतरा है. जुलाई में स्टिमसन सेंटर के समीर लालवानी के के अनुसार, भारत में वर्तमान में सैन्य सेवा में शामिल सभी उपकरणों, हथियारों और प्लेटफार्मों में से 86 प्रतिशत रूसी मूल के हैं. सेना के लिए संख्या 90 फीसदी, वायुसेना के लिए लगभग 66 फीसदी और नौसेना के लिए 41 फीसदी से अधिक है. इसके अलावा, पिछले छह वर्षों में, सभी भारतीय सैन्य आयात का 55 प्रतिशत से अधिक रूस से हुआ है. लेकिन हाल के दिनों में, सैन्य आयात में अमेरिका आगे जा रहा है. M-777 हॉवित्जर से लेकर चिनूक परिवहन और अपाचे हमले हेलीकाप्टरों की आपूर्ति अमेरिका ने भारत को की है. इसलिए रूस चाहता है कि भारत अमेरिका के साथ कुछ दूरी रखे. क्वाड की नींव हिलाना उस दिशा में पहला कदम हो सकता है. रूस आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन को भी कमजोर करने का इच्छुक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अमेरिका फर्स्ट के नारे वाले ट्रंप शासन से कुछ हासिल नहीं हुआ.यद्यपि रूस और चीन के बीच भी समस्याएं हैं. वे एक-दूसरे को रणनीतिक सहयोगी के रूप में तो देख रहे हैं, हालांकि, रूस को यह भी आशंका है कि उन्हें तकनीकी रूप से चीनी द्वारा बाईपास किया जा सकता है.
अमेरिका की स्थिति
अमेरिकी डेमोक्रेटिक सीनेटर मार्क वार्न ने इस मुद्दे पर अमेरिका की स्थिति को सबसे अच्छी तरह से समझाया है. वार्न ने कहा कि भारत को बाड़ से उतरने और यह महसूस करने की आवश्यकता होगी कि चीन द्वारा लगाए जा रहे सत्तावादी पूंजीवाद मॉडल पर आप नहीं चल सकते. आपको यह तय करना होगा कि आप लोकतंत्र के साथ गठबंधन करने जा रहे हैं या नहीं. स्पष्ट रूप से भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और मेरा मानना है कि यह लोकतंत्र वाले समूह के साथ दोस्ती करेगा. वार्नर सीनेट की चयन समिति के उपाध्यक्ष हैं. लेकिन भारत को सतर्कता के साथ चलना होगा क्योंकि अमेरिका अब वह विश्व नेता नहीं है, जो वह था. चीन पर अमेरिका यूरोपीय संघ (ईयू) से भी समर्थन हासिल नहीं कर सका है. रूस और पाकिस्तान के बीच चल रहे नौसैनिक अभ्यास के साथ रूस-चीन-पाकिस्तान की सांठगांठ पर नियंत्रण रेखा (एलओसी) और विशेष रूप से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर प्रभाव प्रभाव पड़ सकता है. विशेष रूप से दक्षिण एशियाई क्षेत्र पर.
भारत की स्थिति क्या है?
इस पर भी अस्पष्टता है कि बिडेन शासन क्या करेगा और क्या यह उन्हीं प्रतिबद्धताओं के साथ जारी रहेगा, जो भारत के लिए ट्रंप शासन में है. संक्षेप में, भारत एक अस्वीकार्य स्थिति में है, जहां उसे एक विकल्प बनाना होगा. एक रिश्ते को दूसरे की कीमत पर करने के लिए.