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शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य पाने के लिए 5630 गीगावॉट सौर ऊर्जा क्षमता की जरूरत : रिपोर्ट

भारत को 2070 तक शून्य उत्सर्जन वाला देश बनने के लिए अपनी सौर ऊर्जा क्षमता को बढ़ाकर 5630 गीगावॉट करनी होगी. एक अध्ययन में यह बात निकलकर सामने आई है.

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Published : Oct 12, 2021, 9:44 PM IST

नई दिल्ली : ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि इस समय भारत में 100 गीगावॉट स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता है. जिसमें से सौर क्षमता 40 गीगावॉट है. सरकार ने 2030 तक अपनी कुल अक्षय ऊर्जा क्षमता को 450 गीगावॉट तक बढ़ाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है.

रिपोर्ट में आगे कहा गया कि भारत को सोलर फोटो वोल्टिक (पीवी) कचरे के निपटान के लिए भी अपेक्षित रिसाइकिलिंग क्षमता विकसित करनी होगी. सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में यह भी बताया गया है कि 2070 तक शुद्ध रूप से शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य पाने के लिए बिजली उत्पादन के लिए कोयले के उपयोग में कटौती करनी होगी और 2040 से 2060 के बीच इसमें 99 प्रतिशत तक कमी लाने की जरूरत होगी.

इसके अलावा कच्चे तेल की खपत में 2050 से 2070 के बीच 90 प्रतिशत तक कमी लाने की जरूरत होगी. अध्ययन में कहा गया कि ग्रीन हाइड्रोजन औद्योगिक क्षेत्र की कुल ऊर्जा जरूरतों का 19 प्रतिशत पूरा कर सकता है. ऐसे में इस बदलाव में हाइड्रोजन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी.

अध्ययन में यह भी कहा गया कि सीसीएस तकनीक में कोई बड़ी सफलता और कम लागत वाले वित्त की व्यवस्था, इस बदलाव की आर्थिक लागत को घटाने में मदद कर सकती है. सीईईडब्ल्यू के फेलो डॉ. वैभव चतुर्वेदी ने कहा कि भारत जैसे विशाल और विविधता वाले विकासशील देशों के लिए उत्सर्जन में कटौती की शुरुआत करने के वर्ष और शून्य उत्सर्जन वर्ष के बीच कम से कम 30 वर्ष का अंतर रखना बहुत महत्वपूर्ण होगा.

यह भी पढ़ें-भारत के तेजी से बढ़ते बिजली क्षेत्र को कैसे चीन ने बनाया अपने अनुकूल

यह नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों को नई ऊर्जा व्यवस्था के लिए योजना बनाने और उसे अपनाने के लिए पर्याप्त समय देते हुए बाधारहित बदलाव को सुनिश्चित करेगा.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि इस समय भारत में 100 गीगावॉट स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता है. जिसमें से सौर क्षमता 40 गीगावॉट है. सरकार ने 2030 तक अपनी कुल अक्षय ऊर्जा क्षमता को 450 गीगावॉट तक बढ़ाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है.

रिपोर्ट में आगे कहा गया कि भारत को सोलर फोटो वोल्टिक (पीवी) कचरे के निपटान के लिए भी अपेक्षित रिसाइकिलिंग क्षमता विकसित करनी होगी. सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में यह भी बताया गया है कि 2070 तक शुद्ध रूप से शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य पाने के लिए बिजली उत्पादन के लिए कोयले के उपयोग में कटौती करनी होगी और 2040 से 2060 के बीच इसमें 99 प्रतिशत तक कमी लाने की जरूरत होगी.

इसके अलावा कच्चे तेल की खपत में 2050 से 2070 के बीच 90 प्रतिशत तक कमी लाने की जरूरत होगी. अध्ययन में कहा गया कि ग्रीन हाइड्रोजन औद्योगिक क्षेत्र की कुल ऊर्जा जरूरतों का 19 प्रतिशत पूरा कर सकता है. ऐसे में इस बदलाव में हाइड्रोजन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी.

अध्ययन में यह भी कहा गया कि सीसीएस तकनीक में कोई बड़ी सफलता और कम लागत वाले वित्त की व्यवस्था, इस बदलाव की आर्थिक लागत को घटाने में मदद कर सकती है. सीईईडब्ल्यू के फेलो डॉ. वैभव चतुर्वेदी ने कहा कि भारत जैसे विशाल और विविधता वाले विकासशील देशों के लिए उत्सर्जन में कटौती की शुरुआत करने के वर्ष और शून्य उत्सर्जन वर्ष के बीच कम से कम 30 वर्ष का अंतर रखना बहुत महत्वपूर्ण होगा.

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यह नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों को नई ऊर्जा व्यवस्था के लिए योजना बनाने और उसे अपनाने के लिए पर्याप्त समय देते हुए बाधारहित बदलाव को सुनिश्चित करेगा.

(पीटीआई-भाषा)

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