कुरुक्षेत्र: भारत में सभी फलों में आम सबसे ऊपर है. आम चाहे कच्चे हों या पके दोनों का ही अपना महत्व है. भारत में आम के फल लगभग सभी राज्यों में होते हैं लेकिन अलग-अलग राज्यों में आम फल की वैरायटी भी अलग-अलग होती है. कुरुक्षेत्र के लाडवा स्थित इंडो इजरायल फल उत्कृष्ट केंद्र में 30 प्रकार की आम की नई किस्म तैयार की जा रही हैं. इनमें से 12 ऐसी हैं जो दाम, रंग और पैदावार के मामले में बाकी के आम के फलों से बिल्कुल अलग हैं.
इंडो इजरायल उत्कृष्ट केंद्र के डायरेक्टर डॉक्टर बिल्लू यादव ने कहा कि उनके सेंटर पर अबकी बार आम की 30 किस्म तैयार की जा रही हैं. इनमें से 12 किस्म ऐसी हैं जो दूसरे रंगों की है और काफी आकर्षित करती है. इनके उत्पादन से लेकर दाम तक दूसरी किस्मों से ज्यादा रहता है. यहां पर तोता परी, चौसा, अमरपाली, आरुणिक, लंगड़ा, केसर, राम केला, अंबिका, पूसा, अरुणिमा, दशहरी, मल्लिका, ऑस्टिन, लिली, दूध पेड़ा, पूसा लालिमा, पूसा सूर्या, पूसा प्रतिमा, पूसा पितांबर लगभग ऐसी 30 किस्म यहां पर तैयार की जा रही हैं. दूसरे रंगों की किस्म में पूसा पितांबर, ऑस्टिन ,लिली, टॉमी अरुणिमा, अरुणिका, अंबिका, पूसा लिलिमा इत्यादि हैं.
डॉक्टर बिल्लू यादव ने बताया कि पहले 10-10 फीट की दूरी पर आम के पौधे लगाए जाते थे. इस बार यहां पर हमने नया एक्सपेरिमेंट करके 4-4 फीट की दूरी पर पौधे तैयार करके बंपर पैदावार करने वाली किस्में तैयार की हैं. इन किस्मों के एक पौधे से 120 क्विंटल से लेकर 200 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है. यहां से दिल्ली, राजस्थान, यूपी, पंजाब, हरियाणा के किसान आम के पौधे लेकर जा रहे हैं. इनमें कुछ ऐसी भी किस्में है जिसमें अभी एक्सपेरिमेंट चल रहे हैं. हमें उम्मीद है कि यह आने वाले समय में भारत के सबसे अच्छे आम में शुमार होंगे.
आधा किलोग्राम का होता है एक आम- संस्थान के ही डॉ. एसपीएस सोलंकी ने कहा कि यहां पर जो दूसरे रंगों की किस्म तैयार की जा रही है. उनकी पैदावार अब तक की सबसे ज्यादा पैदावार देने वाले पौधों में हैं. हरियाणा में एकमात्र यही संस्थान है जहां पर दूसरे रंगों के आमों कि किस्म तैयार किए गए हैं. उन्होंने कहा कि अगर किसान इनका सही प्रबंधन करें तो लगभग पांच सौ ग्राम तक का एक आम हो जाता है. जिसकी बाजार में दूसरे फलों से ज्यादा कीमत मिलती है.
दो सौ से तीन सौ रुपये का बिकता है एक आम- डॉक्टर एसपीएस सोलंकी ने बताया कि आने वाले वक्त में उम्मीद जताई जा रही है कि यहां से जो आम किसान अपने खेतों में लगाएंगे वह विदेशों में भी जाएंगे. उनसे किसान अच्छा मुनाफा कमाएंगे. क्योंकि इनकी गुणवत्ता दूसरे सभी आम की किस्मों से काफी अच्छी है.वही साधारण आम की अगर बात करें डेढ़ सौ रुपए प्रति किलो के हिसाब से मार्केट में बिक रहा है. जबकि दूसरें रंगों की इस किस्म के एक आम की कीमत 200 से 300 रुपये तक मार्केट में होती है. अगर किसान सही मैनेजमेंट के जरिए यह आम तैयार करते हैं तो अच्छा मुनाफा किसान इनसे ले सकते हैं.
एक साल बाद देने लगता है फल- सोलंकी ने बताया कि दूसरे रंगों के आमों पर एक साल बाद फल आना शुरू हो जाता है लेकिन किसान को उस दौरान कम फल लेना चाहिए. क्योंकि उस समय पौधा छोटा होता है. जबकि तीसरे साल से सही तरीके से फल आना शुरू हो जाता है. जो लगभग 40 से 50 साल तक किसान को फल देता रहता है. रंगों के नाम की वजह से इनका भाव किसानों को दूसरे आम की अपेक्षा ज्यादा मिलता है. वहीं पैदावार भी ज्यादा होती है. यहां पर ऐसे ही आम तैयार किए गए हैं जो अल्फांसो नाम के आम से भी महंगा बिक रहा है.
कहां होती है अल्फांसो आम की पैदावार- दरअसल हापुस आम की किस्म को ही अंग्रेजी में अल्फांसो नाम दिया गया है. इस आम की पैदावार महाराष्ट्र में होती है. इसे भारत का सबसे महंगा आम कहा जाता है. इस एक आम की कीमत तीन सौ से चार सौ रुपये तक होती है. आम का वजन डेढ़ सौ ग्राम से लेकर 300 ग्राम तक होता है. मिठास, सुगंध और बेहतरीन स्वाद हापुस की सबसे बड़ी खासियत है. इन्ही कारणों से यह बाकी के अन्य आमों से महंगा होता है. ये आम किलोग्राम के भाव से नहीं बल्कि दर्जन के भाव में बिकता है
कैसे करें आम का प्रबंधन : आम उष्णकटिबंधीय पौधा वाला फल है फिर भी इसे दूसरे क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक पैदा किया जा सकता है. 25 से 45 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तक इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है. मानसून के दौरान 125 सेंटीमीटर बारिश होती है जो इसके लिए उपयुक्त है. आम के पेड़ को पूरी तरह से तैयार होने में 10 से 12 साल का समय लगता है. जब पौधे छोटे होते हैं तो उनके बीच खाली पड़ी जमीन में जोई, मूंग, लोबिया, रवि में मटर,चना ,मसूर गर्मियों में लोबिया मिर्ची या भिंडी की फसलें उगाकर किसान लाभ कमा सकते हैं. इसके अलावा जमीन की उर्वरक शक्ति को भी बढ़ा सकते हैं. आम के पौधों में ज्यादा रोग तथा कीट नहीं लगते लेकिन कुछ लोग ऐसे जरूर है जिनका समय-समय पर बागवानी विभाग के अधिकारी से पूछ कर उनका प्रबंधन करते रहना चाहिए.
मैंगो हापर सीट कीट- मैगों हापर सीट के लिए फरवरी-मार्च में प्रबंधन करना चाहिए. फरवरी-मार्च में कीट आक्रमण करता है जिससे फूल- फल झड़ जाते हैं. इसके अलावा फफूंद भी पैदा हो जाती है. इसके लिए एक लीटर पानी में किविनालाफास दवा की एक एमएल मात्रा मिलाकर छिड़काव करें. मिलीबग नाम के कीट फरवरी महीने में टहनियों से रस चूसते हैं जिससे फल- फूल झड़ जाते हैं. इसके लिए क्लोरोपायरीफास् दवाई का 200 ग्राम प्रति पौधा छिड़काव करें. बांध रोग की वजह से आम के पौधों की पत्तियां गुच्छे का रूप धारण करती है. इस दौरान फल में नर फूलों की संख्या बढ़ जाती है. प्रभावित फूलों को काटकर 2 एमएल नेप्थलीन ऐसटिक एसिड का छिड़काव 15 दिन के अंतराल में दो बार करें. ऐसा करने से किसान एक अच्छी फसल आम की खेती के लिए सकते हैं.
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