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नई सरकार के गठन से भारत-इजराइल के संबंधों पर नहीं पड़ेगा प्रभाव : पूर्व राजदूत

इजराइल में 12 वर्षों के बाद नई सरकार ने कार्यभार संभाला लिया है. नए प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने संसद में बहुमत प्राप्त किया और लंबे समय से पद पर आसीन बेंजामिन नेतन्याहू की विदाई हुई. बेनेट के पदभार संभालने के बाद से यह चर्चा होने लगी है कि क्या नई सरकार बनेने से भारत-इजराइल के संबंधों पर असर पड़ेगा. इस संबंध में ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी ने भारत के पूर्व राजदूत और विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव पिनाक रंजन चक्रवर्ती से बात की है. आइए जानते हैं उन्होंने क्या कुछ कहा....

पूर्व राजदूत
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Published : Jun 19, 2021, 12:16 AM IST

Updated : Jun 19, 2021, 3:39 AM IST

नई दिल्ली : इजराइल के नए प्रधानमंत्री के तौर पर नफ्ताली बेनेट ने शपथ ले ली है. वह पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के पूर्व सहयोगी रहे हैं. नेतन्याहू के 12 साल के शासन को खत्म करने के लिए बेनेट ने मध्य और वाम धड़े के दलों से हाथ मिलाया. नफ्ताली बेनेट के प्रधानमंत्री बनने से भारत-इजराइल के संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ेगा. इस संबंध में ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी ने भारत के पूर्व राजदूत और विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव पिनाक रंजन चक्रवर्ती से बात की.

इस दौरान उन्होंने कहा कि इजराइल में नई सरकार के गठन से भारत-इजराइल संबंधों में किसी भी तरह के बदलाव की संभावना नहीं है, क्योंकि दोनों देश विशेष (सब्सटेंटिव) क्षेत्रों में भारी निवेश कर रहे हैं.

चक्रवर्ती ने कहा कि इजराइल के प्रधानमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद बेनेट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर के द्वारा भेजे गए बधाई संदंशों का गर्मजोशी से प्रतिक्रिया दी. बेनेट के साथ इजराइल के वैकल्पिक प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री यायर लैपिड ने बधाई संदेशों की प्रतिक्रिया दी.

पूर्व राजनयिक ने कहा कि भारत-इजराइल ने द्विपक्षीय संबंधों विशेष रूप से रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करने के लिए पारस्परिक संबंध बनाए हैं. इसलिए मैं किसी को द्विपक्षीय संबंधों की नाव को डगमगाते हुए नहीं देख रहा.

इजराइल के साथ भारत के बहुआयामी संबंध 2017 में एक रणनीतिक साझेदारी में बदल गए, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पश्चिम एशियाई देशों की यात्रा पर गए, ऐसा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने. इसके अलावा, इजराइल भारत का रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है. हालांकि, रूस पहले स्थान पर बना हुआ है.

इसके अलावा, फिलीस्तीनी संघर्ष जैसे मुद्दों से निपटने के लिए बेनेट के दृष्टिकोण के बारे में पूछे जाने पर चक्रवर्ती ने कहा कि नए नेतृत्व से फिलीस्तीनी मुद्दे पर किसी आंदोलन की उम्मीद नहीं की जा सकती है.

उन्होंने कहा कि नए प्रधानमंत्री को इजराइल समाज के दक्षिणपंथी के रूप में जाना जाता है और कुछ तो उन्हें पूर्व पीएम नेतन्याहू से भी अधिक दक्षिणपंथी कहते हैं. लेकिन मुझे नहीं लगता है कि बेनेट दक्षिणपंथी के एजेंडे को आगे बढ़ाने में सक्षम होंगे, क्योंकि पूरा गठबंधन अब वामपंथियों से बना है, जिसमें पहली बार एक अरब पार्टी शामिल है.

उन्होंने कहा कि अरब पार्टी के साथ संबंध बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगी. इसके अलावा, बेनेट केवल दो साल के लिए पीएम हैं. इसलिए, यह बहुत कम संभावना है कि वह कोई नई पहल कर सकते हैं. मुझे लगता है कि फिलीस्तीनी मुद्दा स्थिर रहेगा और कोई नई पहल नहीं की जाएगी. कमोबेश यथास्थिति बनी रह सकती है.

उन्होंने कहा कि जब फिलीस्तीन संकट की बात आती है तो भारत ने हमेशा द्विराष्ट्र सिद्धांत (two-nation theory) के कारण को पहचाना और लड़ा है, लेकिन भारत ने हमास के आतंकी हमले का विरोध किया. फिलीस्तीन के साथ भारत के संबंध इजराइल के साथ संबंधों से अलग हैं.

उन्होंने कहा कि फिलीस्तीन के साथ हमारे संबंध आत्मनिर्णय के राजनीतिक सिद्धांत पर आधारित हैं, लेकिन इजराइल के साथ संबंध एक अलग मंच पर हैं. भारत-इज़राइल के बीच संबंध व्यक्तिगत मित्रता पर नहीं, बल्कि ठोस रणनीतिक मजबूरियों पर बने हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या नेतन्याहू सुर्खियों में बने रहेंगे और भविष्य में गठबंधन सरकार बनाने के लिए हर संभव कोशिश करेंगे इस पर चक्रवर्ती ने कहा कि नेतन्याहू सबसे बड़े विपक्षी दल लिकुंड के नेता हैं, जिनके पास नेसेट (संसद) में लगभग 30 सीटें हैं. इसलिए,वह विपक्ष के नेता के रूप में सुर्खियों में बने रहेंगे. वह नई सरकार को गिराने की पूरजोर कोशिश करेंगे. क्योंकि नए सरकार आठ दलीय है, जिसके बीच बहुत सारे विरोधाभास हैं. नेतन्याहू गठबंधन को तोड़ने की बहुत कोशिश कर सकते हैं.

भारत और इज़राइल के बीच द्विपक्षीय संबंध पिछले कुछ वर्षों में बढ़े हैं और नेतन्याहू की अनुपस्थिति के बावजूद संबंध बरकरार रहेंगे. यहां गौर करने की बात यह है कि नेतन्याहू ने भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए काफी प्रयास किए थे और तब से, दोनों देशों के बीच संबंधों में विभिन्न क्षेत्रों में अत्यधिक वृद्धि देखी गई है, चाहे वह रणनीति, प्रौद्योगिकी या कृषि आदि हो.

पीएम मोदी और इजराइल के पूर्व पीएम नेतन्याहू के बीच की बॉन्डिंग भारत में काफी मशहूर रही है. महामारी के दौरान द्विपक्षीय संबंध और भी मजबूत हुए. कोरोना की दूसरी लहर से भारत बुरी तरह से प्रभावित था, तब इजराइल ने भारत को समर्थन और सहायता प्रदान की.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में हाल ही में गाजा में इजराइल द्वारा उल्लंघनों की स्वतंत्र जांच के लिए मतदान के दौरान भारत की गैर हाजिरी का इजराइल ने साथ स्वागत किया था.

इसलिए, चाहे वह नेतन्याहू हों या बेनेट या कोई अन्य इजराइली राजनेता, सभी भारत के साथ घनिष्ठ संबंध चाहते हैं.

इससे पहले संसद में हुए विश्वास मत में 120 सदस्यीय सदन के 60 सांसदों ने नई सरकार के पक्ष में मतदान किया, जबकि 59 ने इसके खिलाफ मतदान किया. नई सरकार के तहत 27 नए मंत्रियों को भी शपथ दिलाई गई. बेनेट और लैपिड दो साल के अंतराल पर प्रधानमंत्री बनेंगे. बेनेट पहले प्रधानमंत्री बने हैं और इस आधार पर 2023 में लैपिड पीएम बनेंगे.

अभी फिलहाल लैपिड इजराइल के वैकल्पिक प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में काम करेंगे. गौरतलब है कि नेतन्याहू इजराइल के सबसे अधिक समय तक प्रधानमंत्री रहे हैं. वह पांच बार इजराइल के प्रधानमंत्री तौर पर चुने गए.

नई दिल्ली : इजराइल के नए प्रधानमंत्री के तौर पर नफ्ताली बेनेट ने शपथ ले ली है. वह पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के पूर्व सहयोगी रहे हैं. नेतन्याहू के 12 साल के शासन को खत्म करने के लिए बेनेट ने मध्य और वाम धड़े के दलों से हाथ मिलाया. नफ्ताली बेनेट के प्रधानमंत्री बनने से भारत-इजराइल के संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ेगा. इस संबंध में ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी ने भारत के पूर्व राजदूत और विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव पिनाक रंजन चक्रवर्ती से बात की.

इस दौरान उन्होंने कहा कि इजराइल में नई सरकार के गठन से भारत-इजराइल संबंधों में किसी भी तरह के बदलाव की संभावना नहीं है, क्योंकि दोनों देश विशेष (सब्सटेंटिव) क्षेत्रों में भारी निवेश कर रहे हैं.

चक्रवर्ती ने कहा कि इजराइल के प्रधानमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद बेनेट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर के द्वारा भेजे गए बधाई संदंशों का गर्मजोशी से प्रतिक्रिया दी. बेनेट के साथ इजराइल के वैकल्पिक प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री यायर लैपिड ने बधाई संदेशों की प्रतिक्रिया दी.

पूर्व राजनयिक ने कहा कि भारत-इजराइल ने द्विपक्षीय संबंधों विशेष रूप से रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करने के लिए पारस्परिक संबंध बनाए हैं. इसलिए मैं किसी को द्विपक्षीय संबंधों की नाव को डगमगाते हुए नहीं देख रहा.

इजराइल के साथ भारत के बहुआयामी संबंध 2017 में एक रणनीतिक साझेदारी में बदल गए, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पश्चिम एशियाई देशों की यात्रा पर गए, ऐसा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने. इसके अलावा, इजराइल भारत का रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है. हालांकि, रूस पहले स्थान पर बना हुआ है.

इसके अलावा, फिलीस्तीनी संघर्ष जैसे मुद्दों से निपटने के लिए बेनेट के दृष्टिकोण के बारे में पूछे जाने पर चक्रवर्ती ने कहा कि नए नेतृत्व से फिलीस्तीनी मुद्दे पर किसी आंदोलन की उम्मीद नहीं की जा सकती है.

उन्होंने कहा कि नए प्रधानमंत्री को इजराइल समाज के दक्षिणपंथी के रूप में जाना जाता है और कुछ तो उन्हें पूर्व पीएम नेतन्याहू से भी अधिक दक्षिणपंथी कहते हैं. लेकिन मुझे नहीं लगता है कि बेनेट दक्षिणपंथी के एजेंडे को आगे बढ़ाने में सक्षम होंगे, क्योंकि पूरा गठबंधन अब वामपंथियों से बना है, जिसमें पहली बार एक अरब पार्टी शामिल है.

उन्होंने कहा कि अरब पार्टी के साथ संबंध बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगी. इसके अलावा, बेनेट केवल दो साल के लिए पीएम हैं. इसलिए, यह बहुत कम संभावना है कि वह कोई नई पहल कर सकते हैं. मुझे लगता है कि फिलीस्तीनी मुद्दा स्थिर रहेगा और कोई नई पहल नहीं की जाएगी. कमोबेश यथास्थिति बनी रह सकती है.

उन्होंने कहा कि जब फिलीस्तीन संकट की बात आती है तो भारत ने हमेशा द्विराष्ट्र सिद्धांत (two-nation theory) के कारण को पहचाना और लड़ा है, लेकिन भारत ने हमास के आतंकी हमले का विरोध किया. फिलीस्तीन के साथ भारत के संबंध इजराइल के साथ संबंधों से अलग हैं.

उन्होंने कहा कि फिलीस्तीन के साथ हमारे संबंध आत्मनिर्णय के राजनीतिक सिद्धांत पर आधारित हैं, लेकिन इजराइल के साथ संबंध एक अलग मंच पर हैं. भारत-इज़राइल के बीच संबंध व्यक्तिगत मित्रता पर नहीं, बल्कि ठोस रणनीतिक मजबूरियों पर बने हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या नेतन्याहू सुर्खियों में बने रहेंगे और भविष्य में गठबंधन सरकार बनाने के लिए हर संभव कोशिश करेंगे इस पर चक्रवर्ती ने कहा कि नेतन्याहू सबसे बड़े विपक्षी दल लिकुंड के नेता हैं, जिनके पास नेसेट (संसद) में लगभग 30 सीटें हैं. इसलिए,वह विपक्ष के नेता के रूप में सुर्खियों में बने रहेंगे. वह नई सरकार को गिराने की पूरजोर कोशिश करेंगे. क्योंकि नए सरकार आठ दलीय है, जिसके बीच बहुत सारे विरोधाभास हैं. नेतन्याहू गठबंधन को तोड़ने की बहुत कोशिश कर सकते हैं.

भारत और इज़राइल के बीच द्विपक्षीय संबंध पिछले कुछ वर्षों में बढ़े हैं और नेतन्याहू की अनुपस्थिति के बावजूद संबंध बरकरार रहेंगे. यहां गौर करने की बात यह है कि नेतन्याहू ने भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए काफी प्रयास किए थे और तब से, दोनों देशों के बीच संबंधों में विभिन्न क्षेत्रों में अत्यधिक वृद्धि देखी गई है, चाहे वह रणनीति, प्रौद्योगिकी या कृषि आदि हो.

पीएम मोदी और इजराइल के पूर्व पीएम नेतन्याहू के बीच की बॉन्डिंग भारत में काफी मशहूर रही है. महामारी के दौरान द्विपक्षीय संबंध और भी मजबूत हुए. कोरोना की दूसरी लहर से भारत बुरी तरह से प्रभावित था, तब इजराइल ने भारत को समर्थन और सहायता प्रदान की.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में हाल ही में गाजा में इजराइल द्वारा उल्लंघनों की स्वतंत्र जांच के लिए मतदान के दौरान भारत की गैर हाजिरी का इजराइल ने साथ स्वागत किया था.

इसलिए, चाहे वह नेतन्याहू हों या बेनेट या कोई अन्य इजराइली राजनेता, सभी भारत के साथ घनिष्ठ संबंध चाहते हैं.

इससे पहले संसद में हुए विश्वास मत में 120 सदस्यीय सदन के 60 सांसदों ने नई सरकार के पक्ष में मतदान किया, जबकि 59 ने इसके खिलाफ मतदान किया. नई सरकार के तहत 27 नए मंत्रियों को भी शपथ दिलाई गई. बेनेट और लैपिड दो साल के अंतराल पर प्रधानमंत्री बनेंगे. बेनेट पहले प्रधानमंत्री बने हैं और इस आधार पर 2023 में लैपिड पीएम बनेंगे.

अभी फिलहाल लैपिड इजराइल के वैकल्पिक प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में काम करेंगे. गौरतलब है कि नेतन्याहू इजराइल के सबसे अधिक समय तक प्रधानमंत्री रहे हैं. वह पांच बार इजराइल के प्रधानमंत्री तौर पर चुने गए.

Last Updated : Jun 19, 2021, 3:39 AM IST
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