नई दिल्ली: विदेश मंत्री जयशंकर (External Affairs Minister S Jaishankar) शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में शामिल होने के लिए ताजिकिस्तान के दौरे पर हैं. शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में इस हफ्ते भारतीय विदेश मंत्री और पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी आमने-सामने होंगे.
बुधवार को विदेश मंत्री जयशंकर ने ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में एससीओ समूह की एक महत्वपूर्ण बैठक को संबोधित किया. इस दौरान विदेश मंत्री ने कहा कि आतंकवाद और उग्रवाद का मुकाबला करना शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का प्रमुख उद्देश्य है और इसे आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकना चाहिए.
इसके अलावा जयशंकर ने कहा कि अफगानिस्तान, जन स्वास्थ्य और आर्थिक सुधार प्रमुख मुद्दे हैं. आतंकवाद और उग्रवाद का मुकाबला करना एससीओ का प्रमुख उद्देश्य है. आतंकवाद के वित्तपोषण और डिजिटल सुविधा को रोकना चाहिए.
NSA अजीत डोभाल की मांग
इससे पहले भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने भी ताजिकिस्तान में आयोजित शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) की बैठक में आतंकवाद का मुद्दा उठाया था.
ताजिकिस्तान में हुई शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) की मीटिंग में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने आतंकवाद का मुद्दा उठाया. उन्होंने पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के खिलाफ एक एक्शन प्लान का प्रस्ताव रखा था. हालांकि इसे लेकर पाकिस्तान की ओर से बैठक की कोई संभावना नहीं है.
अफगानिस्तान में सुरक्षा के बिगड़ते हालात पर भारत की नजर
तालिबान द्वारा अफगानिस्तान के कई इलाकों में कब्जा करने का बाद वहां सुरक्षा हालात बिगड़ते जा रहे हैं. लोग डर के साए में जी रहे हैं और जैसे-जैसे दूसरे देशों के सैनिक वापस लौट रहे हैं, अफगानिस्तान पर तालिबान की ताकत बढ़ती जा रही है. इस तरह अफगानिस्तान की बिगड़ती सुरक्षा स्थिति पर भारत नजर बनाए हुआ है. भारत अफगानिस्तान में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और संघर्षरत देश की सावधानी से निगरानी कर रहा है.
भारत को अफगानिस्तान की क्यों है इतनी चिंता
अगर अफगानिस्तान में तालिबान के वर्चस्व वाली सरकार बनती है तो भारत के लिए यह बड़ी चुनौती होगी. एक्सपर्ट के मुताबिक, अगर तालिबान चीन की सीमा तक पहुंच जाता है तो वह भारत के कश्मीर में संकट पैदा कर सकता है. पाकिस्तान का तालिबानीकरण कर सकता है. तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत में मुश्किलें बढ़ सकती है.
अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते प्रभाव से भारत की बड़ी चिंताए
- अफगानिस्तान में भारत शांति समझौते का समर्थक रहा है. अफगानिस्तान में स्थायी सरकार बनने के बाद भारत ने वहां बड़ा निवेश किया है. यह निवेश करीब 3 अरब डॉलर का है. ऐसे में भारत को आशंका है कि यदि अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभाव बढ़ता है तो उसके निवेश की प्रकिया में मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.
- तालिबान का प्रभुत्व बढ़ने से इसका सीधा असर कश्मीर में सक्रिय चरमपंथ पर पड़ सकता है. कश्मीर में हालात प्रभावित हो सकते हैं क्योंकि ताबिबान के एक धड़े पर पाकिस्तान का प्रभाव है.
भारत ने बनाया है अफगानिस्तान का संसद भवन
भारत ने अफगानिस्तान की संसद भवन का निर्माण किया है और अफगानिस्तान के साथ मिलकर हेरात में एक बड़ा बांध भी बनाया है. भारत ने अफगानिस्तान को शिक्षा और तकनीकी सहायता भी प्रदान की है. साथ ही वहां के प्राकृतिक संसाधनों में निवेश को भी भारत ने प्रोत्साहित किया है. तालिबान के बढ़ते प्रभाव से भारत की चिंताएं बढ़ा दी है.
विदेश मंत्री ने किया विकास कामों का जिक्र
विदेश मंत्री जयशंकर इस बैठक में लगातार अफगानिस्तान का मुद्दे पर फोकस कर रहे हैं. ताकि तालिबान के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अफगानिस्तान की मदद के लिए अन्य देशों का ध्यान आकृर्षित किया जा सके. बुधवार को जयशंकर ने अफगानिस्तान की स्थिति के साथ-साथ जन स्वास्थ्य और आर्थिक सुधार को क्षेत्र के समक्ष पेश होने वाली परेशानियों का भी जिक्र किया. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव, चीन के विदेश मंत्री वांग यी और पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद भी इस बैठक में शामिल हुए.
जरुरत पड़ने पर भारत से सैन्य मदद लेंगे: अफगानिस्तान
इसके अलावा भारत में अफगानिस्तान के राजदूत फरीद मामुन्दजई (Farid Mamundzay) ने एक साक्षात्कार में भविष्य में जरुरत पड़ने पर भारत से सैन्य मदद मांगने की कबूली है. उन्होंने तालिबान पर शांति के लिए दबाव बनाने में भारत की भूमिका को अहम माना है.