नई दिल्ली : हमारे देश के संविधान में समय-समय पर जरूरत पड़ने पर तरह तरह के संशोधन होते रहे हैं. संविधान के लागू होने के बाद से आज तक कुल 104 संशोधन हो चुके हैं. हमारे देश में 26 नवंबर 1949 को संविधान पारित हुआ और 26 जनवरी 1950 को औपचारिक रूप से लागू कर दिया गया था. इसीलिए 26 नवंबर के दिन को भारत के संविधान दिवस के रूप में मनाये जाने की परंपरा है.
आपको बता दें कि अब तक 127 संविधान संशोधन विधेयक संसद में लाये गये हैं, जिनमें से 105 संविधान संशोधन विधेयक पारित हो चुके हैं. भारत का संविधान को दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान कहा जाता है. विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश में इससे लंबा लिखित संविधान नहीं है. संविधान को पूर्ण रूप से तैयार करने में 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन का समय लगा था. इसको लागू कर दिए जाने के बाद जरूरत के हिसाब से भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन से लेकर गरीब सवर्णों को आरक्षण देने तक मामलों के लिए कई बार इसमें संशोधन की कोशिश की गयी. 126 में से केवल 105 संशोधन ही पारित हो सके. शेष को रद्द कर दिया गया.
भारत का संविधान न तो कठोर है और न ही लचीला. संसद को 'संविधान की मूल संरचना' के अधीन अनुच्छेद 368 के तहत भारतीय संविधान में संशोधन करने का अधिकार है. यह तीन तरह से किया जाता है...
1. साधारण बहुमत से
2. विशेष बहुमत से
3. आधे राज्यों द्वारा समर्थन मिलने के बाद विशेष बहुमत से
भारत के संविधान दिवस के पर जानने की कोशिश करते हैं..संविधान के कुछ महत्वपूर्ण संशोधनों के बारे में...
संविधान का पहला संशोधन
इसे संसद में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा 10 मई 1951 को पेश किया गया, जिसे 18 जून 1951 को संसद में पास कर दिया गया था. संविधान के पहले संशोधन के तहत मौलिक अधिकारों में परिवर्तन किए गए और भाषण तथा अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार आम आदमी को देने की पहल की गयी थी.
भाषीय आधार पर राज्यों का पुनर्गठन
भारतीय संविधान में सातवां संशोधन 1956 को लागू किया गया था. इस संशोधन द्वारा भाषीय आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया था, जिसमें अगली तीन श्रेणियों में राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त करते हुए राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में उन्हें विभाजित किया गया. इसके साथ ही, इनके अनुरूप केंद्र एवं राज्य की विधान पालिकाओं में सीटों को पुनर्व्यवस्थित किया गया.
दल बदल कानून
1985 में 52वें संविधान संशोध नके जरिए संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई, जिसे दल-बदल विरोधी कानून कहा जाता है. उसके जरिए दल बदलने वालों की सदस्यता समाप्त करने का प्राविधान तैयार किया गया व दल बदल के नियमों को कड़ा बनाया गया.
नागरिकता संशोधन विधेयक 2019
साल 2019 में संसद ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को पारित किया, जो राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद अधिनियम बना. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 को नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन करने के लिये लाया गया था. नागरिकता अधिनियम, 1955 नागरिकता प्राप्त करने के लिये विभिन्न आधार प्रदान करता है. यह एक बड़ा संशोधन कहा गया.
99वें संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया था झटका
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिक आयोग के गठन के संबंधित 99वें संविधान संशोधन को असंवैधानिक करार देकर सरकार को करारा झटका दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 को जजों द्वारा जजों की नियुक्ति की 22 साल पुरानी कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेने वाले एनजेएसी कानून, 2014 को निरस्त कर दिया था. पांच जजों की संविधान पीठ ने चार-एक के बहुमत से फैसला लिया था और सरकार के द्वारा किए गए संशोधन को खारिज कर दिया था.
100वां संविधान संशोधन अधिनियम 2015
इस संशोधन ने भूमि सीमा समझौते और भारत और बांग्लादेश की सरकारों के बीच हुए इसके प्रोटोकॉल के अनुसरण में भारत द्वारा क्षेत्रों के अधिग्रहण और बांग्लादेश को कुछ क्षेत्रों के हस्तांतरण को प्रभावी बनाया गया था.
101वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम 2016
माल और सेवा कर (जीएसटी) के नामांकन के लिए नए अनुच्छेद 246-ए, 269-ए और 279-ए को सम्मिलित किया गया, जिसने सातवीं अनुसूची और अंतर-राज्यीय व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में परिवर्तन किया. देश में वस्तु एवं सेवा कर लागू करने के लिए भारतीय संविधान में 101वां संशोधन करने की पहल की गयी. इसका उद्देश्य राज्यों के बीच वित्तीय बाधाओं को दूर करते हुए एक समान बाजार की व्यवस्था को तैयार करना था. यह संपूर्ण भारत में वस्तुओं और सेवाओं पर लगाया जाने वाला एकल राष्ट्रीय एकसमान कर व्यवस्था है.
102वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2018
इसके जरिए संविधान के अनुच्छेद 338-बी के तहत एक संवैधानिक निकाय के रूप में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) की स्थापना की गयी. यह नौकरियों में आरक्षण के लिए पिछड़े समुदायों की सूची में समुदायों को शामिल करने और बाहर करने पर विचार करने की जिम्मेदारी दी गयी.
103वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम 2019
सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए 124वां संविधान संशोधन बिल संसद के द्वारा पास किया गया. राज्यसभा में इस बिल के समर्थन में कुल 165 मत पड़े, जबकि 7 लोगों ने इसका विरोध भी किया. लोकसभा में इसके समर्थन में 323 मत पड़े, जबकि विरोध में केवल 3 मत डाले गए थे. इस तरह से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण का नियम बन गया. इससे अनुच्छेद 15 (6) और अनुच्छेद 16 (6) के तहत सरकार को "आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों" की उन्नति सुनिश्चित करने की अनुमति देने के लिए नए प्रावधान जोड़े गए.
104वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम 2020
संसद में 126वां संविधान संशोधन विधेयक 2 दिसंबर 2019 को संसद में लाया गया था. जिसे भारतीय संविधान के 105वां संशोधन करते हुए स्वीकार किया गया. इसके तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 में संशोधन किया गया और लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि को 10 वर्ष के लिए और बढा दिया गया था. इनके आरक्षण की सीमा 25 जनवरी 2020 को खत्म हो रही थी. इसके जरिए अनुच्छेद 331 के तहत एंग्लो-इंडियन समुदायों के लिए संसद में 2 आरक्षित सीटों और विधान सभा के लिए 1 सीटों का विस्तार नहीं किया गया.
105वां संशोधन अधिनियम 2021
मराठा आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर 105वां संशोधन पेश किया गया था, जिसमें कहा गया था कि केंद्रीय सूची के तहत केंद्र सरकार द्वारा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की एक सूची तैयार की जानी चाहिए. यह संशोधन सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों (एसईबीसी) की पहचान करने और केंद्रीय सूची के अलावा अन्य पिछड़े समुदायों की एक अलग सूची बनाए रखने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की शक्ति को बहाल करने के लिए किया गया था. उपरोक्त के संबंध में अनुच्छेद 366(26C) और 338B सम्मिलित किया गया है.
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