रायपुर: सीआरपीएफ डे पर अमित शाह ने अपने भाषण में कहा कि "नक्सलियों के खिलाफ हमारी लड़ाई अंतिम पड़ाव पर है. सीआरपीएफ की वजह से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास के काम हो रहे हैं. हमारे सुरक्षाबलों ने नक्सलियों के खिलाफ मजबूत लड़ाई छेड़ रखी है. अमित शाह के इस बयान पर नक्सल मामलों के जानकारों ने बड़ी बात कही है. उनका मानना है कि बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ आने वाले दिनों में सीधी लड़ाई देखने को मिल सकती है
नक्सल वॉर जोन में मच सकती है हलचल: नक्सल एक्सपर्ट वर्णिका शर्मा ने केंद्रीय गृह मंत्री के बयान पर कहा कि" अगर आंकड़ों को देखा जाए तो साल 2010 के बाद बस्तर में 78 फीसदी नक्सली वारदात में कमी आई है. अभी नक्सल समस्या सिर्फ 22 फीसदी तक सिमट कर रह गई है. ऐसे में गृह मंत्री के बयान से लगता है कि, सीआरपीएफ अब उसे एलिमिनेट करने की तैयारी में है"
बस्तर में लगातार हो रहा विकास: वर्णिका शर्मा ने बताया कि " गृह मंत्री ने वैक्यूम पार करने जैसी बात कही. वैक्यूम पार करने का मतलब होता है, उन स्थानों पर सुरक्षा व्यवस्था की पहुंच हो चुकी है, जिन स्थानों पर सुरक्षा के नाम पर सरकार कभी कुछ कहने की स्थिति में नहीं रहती थी. अंतिम मोर्चे की लड़ाई से यह मतलब है कि फोर्स केवल सुरक्षा ही नहीं बल्कि, विकास को गति देने के लिए भी कैपेबल है. आज सुरक्षा के साथ शिक्षा और सड़क के जरिए बस्तर में विकास पहुंच रहा है"
CRPF की भूमिका बस्तर में बढ़ी: वर्णिका शर्मा के मुताबिक" मैं स्वयं पहले सुकमा के पोटमपल्ली के क्षेत्र में जाया करती थी. वहां की स्तिथि अलग थी. लेकिन आज CRPF कैंप तक सीमित नहीं है. वह सिविक एक्शन प्लान का पालन कर रहे हैं. उन क्षेत्र में सीआरपीएफ ने ना केवल सुरक्षा के लिए काम किया है बल्कि शिक्षा और संचार के लिए एक विशेष प्रकार से काम कर रहे हैं"
नक्सल ऑपरेशन में राज्य पुलिस और सेंट्रल फोर्स दोनों करते हैं काम: इस मुद्दे पर नक्सल मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार मनीष गुप्ता से भी ईटीवी भारत ने बात की. मनीष गुप्ता ने बताया कि "आज के दौर में बस्तर में भौगोलिक परिस्थितियां और ग्राउंड रियलिटी अलग है. राज्य में अगर केंद्रीय बल काम कर रहा है तो उन्हें राज्य पुलिस फोर्स और गवर्नमेंट कोऑर्डिनेशन के जरिए काम करना पड़ता है. जिस प्रकार से आज के हालात हैं, सेंट्रल फोर्स भी कहीं ना कहीं स्टेट फोर्स पर डिपेंडेंट है. कोई भी ऑपरेशन चलता है तो वह ज्वाइंट एफर्ट लगाते हैं .अमित शाह ने कहा है कि साल 2024 तक नक्सल समस्या खत्म हो जाएगी. लेकिन छत्तीसगढ़ में इस कार्य के लिए थोड़ा समय लगेगा"
नक्सलियों पर कसा शिकंजा, लेकिन नक्सल समस्या का अंत होने में लगेगा समय: वरिष्ठ पत्रकार मनीष गुप्ता ने कहा कि "पहले से हालात बदल गए हैं. लगातार नक्सलियों पर शिकंजा कसता जा रहा है.नक्सलियों का इलाका छोटा होता जा रहा है. जैसे-जैसे कैंप खुल रहे हैं, नक्सलियों की सप्लाई लाइन डिस्टर्ब हो रही है. पहले के मुकाबले अभी के हालात बेहतर हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ से नक्सल समस्या को खत्म होने में समय लगेगा"
मनीष गुप्ता के मुताबिक "अमित शाह ने टारगेट किया है कि, साल 2024 तक नक्सल समस्या खत्म होगी .लेकिन यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता, हाल ही में जिस तरह से झारखंड, बिहार जैसे इलाके में सीआरपीएफ ने जो काम किया है. उसी पैटर्न को छत्तीसगढ़ में भी लागू किया जाएगा. अमित शाह ने कहा है नक्सल मोर्चे पर यह अंतिम लड़ाई है इससे यह साफ होता है कि छत्तीसगढ़ में बहुत जल्द नक्सलियों के बचे इलाकों को नक्सलियों से मुक्त कराया जाएगा."
नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन हो सकते हैं तेज: मनीष गुप्ता ने कहा कि "छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आने वाले दिनों में नक्सल और फोर्स के बीच सीधे वॉर देखने को मिल सकती है. अंदरूनी क्षेत्रों में ट्रामा सेंटर की मंजूरी दी गई है, जब भी लड़ाई हुई है दोनों को नुकसान होता है. जवान भी घायल होते हैं, लेकिन उन्हें ट्रीटमेंट नहीं मिल पाता था.अंदरूनी इलाकों में यह सारी चीजें सपोर्ट के लिहाज से बहुत जरूरी है. ट्रामा सेंटर खोलने के बाद अगर कैजुअल्टी होती है तो उन्हें रेस्क्यू कर हॉस्पिटल में इलाज दिया जाएगा. अंदरूनी इलाकों में उपचार की सुविधा मिल सकेगी .कहीं ना कहीं यह इस बात का भी संकेत देता है कि आने वाले समय में सीधे वॉर दिखाई देगा"
आखिरी लड़ाई अबूझमाड़ में लड़नी पड़ेगी: मनीष गुप्ता की मानें तो"अमित शाह ने कहा है कि नक्सल समस्या की लड़ाई अंतिम पड़ाव पर है. लेकिन छत्तीसगढ़ में अंतिम लड़ाई अबूझमाड़ में लड़नी पड़ेगी .आज भी नक्सलियों के पास कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां वे सेफ हैं. नक्सलियों की बटालियन उन जोन में आज भी सरवाइव कर रही है.छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के सेफ जोन की बात कही जाए तो, जगरगुंडा से लेकर पामेड़ के बीच का इलाका है. जहां आज भी नक्सलियों के बटालियन मौजूद हैं. दूसरा क्षेत्र बीजापुर और जगरगुंडा के बीच का का है. तीसरा इलाका बीजापुर के नेशनल पार्क क्षेत्र का है .चौथा इलाका बैलाडीला की पहाड़ियों से नीचे बीजापुर की ओर का है. वहीं, पांचवा सेफ जोन अबूझमाड़ का इलाका है, कहीं ना कहीं नक्सली आज भी यहां सेफ जोन पर हैं और सरवाइव कर रहे हैं. यहां कनेक्टिविटी की कमी है. इस कारण नक्सलियों को ज्यादा दिक्कतें नहीं होती"
क्यों नक्सली अभी भी छत्तीसगढ़ में हैं मौजूद: मनीष गुप्ता के मुताबिक इसकी वजह भौगोलिक हो सकती है" बीजापुर के क्षेत्र में चिंताबाबू नदी है. जो, बीजापुर और पामेड़ इलाके को डिवाइड करती है .नक्सलियों के लिए यह नदी लाइफ लाइन बनी हुई है. क्योंकि किसी बटालियन के लिए पानी और भोजन बेहद आवश्यक होता है. इस लिहाज से नक्सली यहां आसानी से सरवाइव कर पा रहे हैं. वर्तमान में इन क्षेत्रों पर कनेक्टिविटी नहीं है. लेकिन,पुल निर्माण प्रस्तावित है . आने वाले समय में वहां कनेक्टिविटी की भी फैसिलिटी हो जाएगी. आज भी कई ऐसे सपोर्ट सिस्टम की आवश्यकता है जो वर्तमान में मौजूद नहीं है .जिसकी वजह से नक्सलियों के पास फोर्स नहीं पहुंच पा रही है. अगर इन जगहों पर सपोर्टिव सिस्टम मिल जाते हैं तो सीआरपीएफ सीधे अंदर घुस कर नक्सलियों से सीधा मुकाबला कर पाएगी"