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डीबीटी ने नमक स्रावित करने वाली मैंग्रोव प्रजातियों के जीनोम अनुक्रम की जानकारी दी

जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने शनिवार को बताया कि वैज्ञानिकों ने अत्यधिक नमक-सहिष्णु और नमक-स्रावित करने वाली मैंग्रोव की वास्तविक प्रजातियों - एविसेनिया मरीना के संदर्भ-ग्रेड के संपूर्ण जीनोम अनुक्रम का पता चलने की जानकारी दी है.

मैंग्रोव प्रजाती
मैंग्रोव प्रजाती
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Published : Jul 11, 2021, 12:24 AM IST

नई दिल्ली : डीबीटी-जीव विज्ञान संस्थान (Institute of Life Sciences), भुवनेश्वर और एसआरएम-डीबीटी पार्टनरशिप प्लेटफॉर्म फॉर एडवांस्ड लाइफ साइंसेज टेक्नोलॉजीस , एसआरएम इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (SRM Institute of Science and Technology), तमिलनाडु द्वारा किए गए अध्ययन में 88 स्कैफोल्ड्स (जीनोम सीक्वेंस का एक हिस्सा) और 252 कॉन्टिग्स (डीएनए खंडों का समूह) में से लिए गए 31 गुणसूत्रों में अनुमानित 462.7 एमबी ए. मरीना जीनोम (98.7 प्रतिशत जीनोम कवरेज) के 456.6 एमबी (मेगाबेस) के संयोजन की जानकारी दी गई है.

जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने शनिवार को बताया कि वैज्ञानिकों ने अत्यधिक नमक-सहिष्णु (salt-tolerant ) और नमक-स्रावित करने वाली मैंग्रोव की वास्तविक प्रजातियों - एविसेनिया मरीना के संदर्भ-ग्रेड के संपूर्ण जीनोम अनुक्रम का पता चलने की जानकारी दी है.

विभाग ने कहा कि उत्पन्न जीनोमिक संसाधनों ने वैज्ञानिकों के लिए 7,500 किलोमीटर तटीय रेखा और दो बड़े द्वीप प्रणालियों वाले भारत के लिए तटीय क्षेत्र की महत्वपूर्ण फसल प्रजाति की खारापन एवं सूखा सहिष्णु किस्मों को विकसित करने के लिए पहचाने गए वंशाणु (जीन) की संभावना के अध्ययन का मार्ग खोल दिया है.

मैंग्रोव दलदले अंतर-ज्वारीय मुहाना क्षेत्रों में पाई जाने वाली प्रजातियों का एक अनूठा समूह है और यह अपने अनुकूलनीय तंत्रों के माध्यम से उच्च स्तर की लवणता से सुरक्षित रहते हैं. मैंग्रोव तटीय क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण संसाधन हैं और पारिस्थितिकी और आर्थिक मूल्य के मामले में इनकी बहुत महत्ता हैं. ये समुद्री और स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र के बीच एक कड़ी का निर्माण करते हैं, तटरेखाओं की रक्षा करते हैं, विभिन्न प्रकार के स्थलीय जीवों के लिए आवास प्रदान करते हैं.

एविसेनिया मरीना भारत में पाए जाने वाली सभी मैंग्रोव संरचनाओं की सबसे प्रमुख मैंग्रोव प्रजाति है. यह नमक स्रावित करने और असाधारण रूप से नमक-सहिष्णु मैंग्रोव प्रजाति है, जो 75 प्रतिशत समुद्री जल में बेहतर तरीके से बढ़ती है. यह पौधों की दुर्लभ प्रजातियों में से एक है जो पत्तियों में नमक ग्रंथियों के माध्यम से 40 प्रतिशत नमक का उत्सर्जन कर सकती हैं, इसके अलावा इसकी जड़ों में नमक के प्रवेश को रोकने की असाधारण क्षमता है.

पढ़ें - राज्यों को कोविड रोधी नियमों का कड़ा अनुपालन सुनिश्चित करने का दिया निर्देश

अध्ययन में कहा गया,'अंतरालों में जीनोम का प्रतिशत 0.26 प्रतिशत था, जिससे यह एक उच्च स्तरीय संयोजन साबित हुआ. इस अध्ययन में संयोजित ए.मरीना जीनोम करीब-करीब पूरा है और इसे अब तक दुनियाभर में किसी भी मैंग्रोव प्रजाति के लिए संदर्भ दे सकने वाले स्तर का जीनोम सीक्वेंसिंग और भारत से पहली रिपोर्ट के तौर पर माना जा सकता है.'

यह अध्ययन 'नेचर कम्युनिकेशन्स बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है.

नई दिल्ली : डीबीटी-जीव विज्ञान संस्थान (Institute of Life Sciences), भुवनेश्वर और एसआरएम-डीबीटी पार्टनरशिप प्लेटफॉर्म फॉर एडवांस्ड लाइफ साइंसेज टेक्नोलॉजीस , एसआरएम इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (SRM Institute of Science and Technology), तमिलनाडु द्वारा किए गए अध्ययन में 88 स्कैफोल्ड्स (जीनोम सीक्वेंस का एक हिस्सा) और 252 कॉन्टिग्स (डीएनए खंडों का समूह) में से लिए गए 31 गुणसूत्रों में अनुमानित 462.7 एमबी ए. मरीना जीनोम (98.7 प्रतिशत जीनोम कवरेज) के 456.6 एमबी (मेगाबेस) के संयोजन की जानकारी दी गई है.

जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने शनिवार को बताया कि वैज्ञानिकों ने अत्यधिक नमक-सहिष्णु (salt-tolerant ) और नमक-स्रावित करने वाली मैंग्रोव की वास्तविक प्रजातियों - एविसेनिया मरीना के संदर्भ-ग्रेड के संपूर्ण जीनोम अनुक्रम का पता चलने की जानकारी दी है.

विभाग ने कहा कि उत्पन्न जीनोमिक संसाधनों ने वैज्ञानिकों के लिए 7,500 किलोमीटर तटीय रेखा और दो बड़े द्वीप प्रणालियों वाले भारत के लिए तटीय क्षेत्र की महत्वपूर्ण फसल प्रजाति की खारापन एवं सूखा सहिष्णु किस्मों को विकसित करने के लिए पहचाने गए वंशाणु (जीन) की संभावना के अध्ययन का मार्ग खोल दिया है.

मैंग्रोव दलदले अंतर-ज्वारीय मुहाना क्षेत्रों में पाई जाने वाली प्रजातियों का एक अनूठा समूह है और यह अपने अनुकूलनीय तंत्रों के माध्यम से उच्च स्तर की लवणता से सुरक्षित रहते हैं. मैंग्रोव तटीय क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण संसाधन हैं और पारिस्थितिकी और आर्थिक मूल्य के मामले में इनकी बहुत महत्ता हैं. ये समुद्री और स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र के बीच एक कड़ी का निर्माण करते हैं, तटरेखाओं की रक्षा करते हैं, विभिन्न प्रकार के स्थलीय जीवों के लिए आवास प्रदान करते हैं.

एविसेनिया मरीना भारत में पाए जाने वाली सभी मैंग्रोव संरचनाओं की सबसे प्रमुख मैंग्रोव प्रजाति है. यह नमक स्रावित करने और असाधारण रूप से नमक-सहिष्णु मैंग्रोव प्रजाति है, जो 75 प्रतिशत समुद्री जल में बेहतर तरीके से बढ़ती है. यह पौधों की दुर्लभ प्रजातियों में से एक है जो पत्तियों में नमक ग्रंथियों के माध्यम से 40 प्रतिशत नमक का उत्सर्जन कर सकती हैं, इसके अलावा इसकी जड़ों में नमक के प्रवेश को रोकने की असाधारण क्षमता है.

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अध्ययन में कहा गया,'अंतरालों में जीनोम का प्रतिशत 0.26 प्रतिशत था, जिससे यह एक उच्च स्तरीय संयोजन साबित हुआ. इस अध्ययन में संयोजित ए.मरीना जीनोम करीब-करीब पूरा है और इसे अब तक दुनियाभर में किसी भी मैंग्रोव प्रजाति के लिए संदर्भ दे सकने वाले स्तर का जीनोम सीक्वेंसिंग और भारत से पहली रिपोर्ट के तौर पर माना जा सकता है.'

यह अध्ययन 'नेचर कम्युनिकेशन्स बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है.

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