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तमिलनाडु : बंद होगा सौ साल से भी पुराना पंबन ब्रिज, नए पुल पर शुरू होगा रेल यातायात - तमिलनाडु पंबन ब्रिज

Hundred years past Pamban Bridge : तमिलनाडु में सौ साल से भी पुराना पंबन ब्रिज बंद होगा, इस साल नया ब्रिज शुरू होगा. समुद्र के ऊपर बना यह ऐसा ब्रिज है जो हाइड्रोलिक के जरिए ऊपर नीचे होगा. पूर्व रेलवे लोको पायलट ने पुराने ब्रिज के बारे में जानकारी और अनुभव साझा किए.

Pampan Bridge
इस साल नया ब्रिज शुरू होगा
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 30, 2023, 7:32 PM IST

रामनाथपुरम (तमिलनाडु): रामनाथपुरम जिले के मंडपम और समुद्र में स्थित रामेश्वरम द्वीप को जोड़ने के लिए 1913 में अंग्रेज इंजीनियर शेरशेर के नेतृत्व में 2 हजार 340 मीटर लंबा पुल बनाया गया था. भयंकर तूफ़ान का सामना करते हुए एक सदी से भी अधिक समय से शान से खड़ा पंबन ब्रिज बंद कर दिया जाएगा और नए पुल पर रेल यातायात चलाया जाएगा. ऐसे में पुल पर सैकड़ों बार यात्रा कर चुके पूर्व लोको पायलट कृष्णन ने ईटीवी भारत को दिए एक इंटरव्यू में पंबन पुल पर यात्रा के अपने अनुभवों के बारे में बताया.

ब्रिज
ब्रिज

ब्रिटिश काल में बना: इस इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'जब मैंने 1985 में रामेश्वरम ट्रेन में काम करना शुरू किया तो मुझे 786 नंबर दिया गया था. मुझे इस नंबर पर बहुत गर्व है, जिसकी मुस्लिम पूजा करते हैं.ब्रिटिश काल के दौरान बनाया गया, पम्पन ब्रिज आज भी शानदार ढंग से खड़ा है.'

Pamban Bridge
पुराना पंबन ब्रिज

लहरों की भविष्यवाणी करना आसान नहीं है: कृष्णन ने कहा, 'सबसे पहले ट्रेन में सफर करते समय मुझे चक्कर आ गया. तब से पंबन ब्रिज लगातार यात्राओं में मेरा पसंदीदा रहा है. जब समुद्र की लहरें थोड़ी तेज उठती हैं तो समुद्र का पानी ट्रेन के इंजन तक चढ़ जाता है. ऐसे में धीरे चलना होता है.

चल रहा ब्रिज का काम
चल रहा ब्रिज का काम

राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाएगा: कृष्णन ने कहा, हर दिन ट्रेन से दूध और सब्जियों सहित सभी आवश्यक सामान रामेश्वरम द्वीप तक ले जाया जाता है. पंबन ब्रिज को ब्रॉड गेज रेलवे में बदलने के पीछे दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम थे. उन्होंने कहा कि जब हम ट्रेन से यात्रा कर रहे थे तो वह अब्दुल कलाम का परिवार ही था जिसने रामेश्वरम द्वीप पर हम सभी को पानी उपलब्ध कराया था. भले ही अब एक नया रेलवे पुल बनाया जा रहा है, लेकिन इस पुराने पुल को राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाना चाहिए. तभी आने वाली पीढ़ियां इस पुल की जरूरत और खूबसूरती को समझ पाएंगी.

चल रहा ब्रिज का काम
चल रहा ब्रिज का काम

कृष्णन ने कहा कि 'जिस तरह मुल्लाई पेरियार बांध दक्षिणी जिले के लोगों की आजीविका और स्मारक है, उसी तरह पंबन रेलवे ब्रिज रामेश्वरम के लोगों की आजीविका का प्रतीक है. इसलिए मेरा अनुरोध है कि इसे स्मारक घोषित किया जाए और इसका नियमित रखरखाव किया जाए. पंबन ब्रिज पर यात्रा करने के लिए रेलवे कर्मचारियों के लिए विशेष प्रशिक्षण हैं जो विभिन्न स्तरों पर काम कर सकते हैं.'

कृष्णन ने बताया कि 'रात में पुल पार करते समय भी अलार्म बजाना चाहिए. एक बार ट्रेन की हेडलाइट टूट गई थी. हमने अपने पास मौजूद दो टॉर्च लाइटों को ट्रेन के सामने जोड़ दिया और उस रोशनी में भी अलार्म बजाते रहे, हम धीरे-धीरे आगे बढ़े और पंबन ब्रिज पार कर गए. ऐसी जोखिम भरी यात्रा करने के लिए उच्च अधिकारियों द्वारा हमारी जांच की गई.'

एक अन्य व्यक्ति अरुण पांडियन ने कहा, '1914 में पंबन आयरन ब्रिज को अरक्कोणम रेलवे वर्कशॉप द्वारा बनाया गया था. हालांकि पंबन पुल का निर्माण रामेश्वरम द्वीप को जोड़ने के लिए किया गया था, लेकिन पुल का उद्देश्य विशेष रूप से धनुषकोडी के माध्यम से श्रीलंका के थलाईमन्नार को जोड़ना था. धनुषकोडी के बाद श्रीलंका तक परिवहन जहाज द्वारा होता था.

'इंडो-सीलोन एक्सप्रेस' और 'बोट मेल' नाम की ट्रेन चेन्नई एग्मोर से धनुषकोडी तक चलने वाली पहली ट्रेन थी. यह 1962 में आखिरी तूफान आपदा तक संचालित रहा.

ऐसे समय में जब भारत और श्रीलंका के लिए हवाई यात्रा इतनी आम नहीं थी, यह रेलवे परिवहन का मुख्य रूप बन गया. भारत और श्रीलंका के सभी महानतम राजनीतिक नेताओं ने इसी मार्ग से यात्रा की. इस यातायात के कारण दोनों देशों के बीच व्यापार में अच्छी वृद्धि हासिल हुई. धनुषकोडी में तूफान के बाद, पुल का पुनर्निर्माण किया गया और जहाजों के गुजरने के लिए एक रास्ता बनाया गया.

उन्होंने कहा, '1988 में सड़क परिवहन के लिए पुल के निर्माण तक पंबन को पार करने के लिए ट्रेन या नाव से जाना पड़ता था. पंबन रेलवे पुल और समुद्र के बीच अधिकतम ऊंचाई 10 फीट है. इसलिए, भले ही समुद्र की लहरें थोड़ी तेज़ हों, ट्रेन के डिब्बे के अंदर पानी के छींटे पड़ेंगे. पंबन ब्रिज को रेलवे इंजीनियरिंग का चमत्कार कहा जा सकता है. अब आधुनिक तकनीक के आधार पर एक नया पुल बनाया जा रहा है.'

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रामनाथपुरम (तमिलनाडु): रामनाथपुरम जिले के मंडपम और समुद्र में स्थित रामेश्वरम द्वीप को जोड़ने के लिए 1913 में अंग्रेज इंजीनियर शेरशेर के नेतृत्व में 2 हजार 340 मीटर लंबा पुल बनाया गया था. भयंकर तूफ़ान का सामना करते हुए एक सदी से भी अधिक समय से शान से खड़ा पंबन ब्रिज बंद कर दिया जाएगा और नए पुल पर रेल यातायात चलाया जाएगा. ऐसे में पुल पर सैकड़ों बार यात्रा कर चुके पूर्व लोको पायलट कृष्णन ने ईटीवी भारत को दिए एक इंटरव्यू में पंबन पुल पर यात्रा के अपने अनुभवों के बारे में बताया.

ब्रिज
ब्रिज

ब्रिटिश काल में बना: इस इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'जब मैंने 1985 में रामेश्वरम ट्रेन में काम करना शुरू किया तो मुझे 786 नंबर दिया गया था. मुझे इस नंबर पर बहुत गर्व है, जिसकी मुस्लिम पूजा करते हैं.ब्रिटिश काल के दौरान बनाया गया, पम्पन ब्रिज आज भी शानदार ढंग से खड़ा है.'

Pamban Bridge
पुराना पंबन ब्रिज

लहरों की भविष्यवाणी करना आसान नहीं है: कृष्णन ने कहा, 'सबसे पहले ट्रेन में सफर करते समय मुझे चक्कर आ गया. तब से पंबन ब्रिज लगातार यात्राओं में मेरा पसंदीदा रहा है. जब समुद्र की लहरें थोड़ी तेज उठती हैं तो समुद्र का पानी ट्रेन के इंजन तक चढ़ जाता है. ऐसे में धीरे चलना होता है.

चल रहा ब्रिज का काम
चल रहा ब्रिज का काम

राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाएगा: कृष्णन ने कहा, हर दिन ट्रेन से दूध और सब्जियों सहित सभी आवश्यक सामान रामेश्वरम द्वीप तक ले जाया जाता है. पंबन ब्रिज को ब्रॉड गेज रेलवे में बदलने के पीछे दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम थे. उन्होंने कहा कि जब हम ट्रेन से यात्रा कर रहे थे तो वह अब्दुल कलाम का परिवार ही था जिसने रामेश्वरम द्वीप पर हम सभी को पानी उपलब्ध कराया था. भले ही अब एक नया रेलवे पुल बनाया जा रहा है, लेकिन इस पुराने पुल को राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाना चाहिए. तभी आने वाली पीढ़ियां इस पुल की जरूरत और खूबसूरती को समझ पाएंगी.

चल रहा ब्रिज का काम
चल रहा ब्रिज का काम

कृष्णन ने कहा कि 'जिस तरह मुल्लाई पेरियार बांध दक्षिणी जिले के लोगों की आजीविका और स्मारक है, उसी तरह पंबन रेलवे ब्रिज रामेश्वरम के लोगों की आजीविका का प्रतीक है. इसलिए मेरा अनुरोध है कि इसे स्मारक घोषित किया जाए और इसका नियमित रखरखाव किया जाए. पंबन ब्रिज पर यात्रा करने के लिए रेलवे कर्मचारियों के लिए विशेष प्रशिक्षण हैं जो विभिन्न स्तरों पर काम कर सकते हैं.'

कृष्णन ने बताया कि 'रात में पुल पार करते समय भी अलार्म बजाना चाहिए. एक बार ट्रेन की हेडलाइट टूट गई थी. हमने अपने पास मौजूद दो टॉर्च लाइटों को ट्रेन के सामने जोड़ दिया और उस रोशनी में भी अलार्म बजाते रहे, हम धीरे-धीरे आगे बढ़े और पंबन ब्रिज पार कर गए. ऐसी जोखिम भरी यात्रा करने के लिए उच्च अधिकारियों द्वारा हमारी जांच की गई.'

एक अन्य व्यक्ति अरुण पांडियन ने कहा, '1914 में पंबन आयरन ब्रिज को अरक्कोणम रेलवे वर्कशॉप द्वारा बनाया गया था. हालांकि पंबन पुल का निर्माण रामेश्वरम द्वीप को जोड़ने के लिए किया गया था, लेकिन पुल का उद्देश्य विशेष रूप से धनुषकोडी के माध्यम से श्रीलंका के थलाईमन्नार को जोड़ना था. धनुषकोडी के बाद श्रीलंका तक परिवहन जहाज द्वारा होता था.

'इंडो-सीलोन एक्सप्रेस' और 'बोट मेल' नाम की ट्रेन चेन्नई एग्मोर से धनुषकोडी तक चलने वाली पहली ट्रेन थी. यह 1962 में आखिरी तूफान आपदा तक संचालित रहा.

ऐसे समय में जब भारत और श्रीलंका के लिए हवाई यात्रा इतनी आम नहीं थी, यह रेलवे परिवहन का मुख्य रूप बन गया. भारत और श्रीलंका के सभी महानतम राजनीतिक नेताओं ने इसी मार्ग से यात्रा की. इस यातायात के कारण दोनों देशों के बीच व्यापार में अच्छी वृद्धि हासिल हुई. धनुषकोडी में तूफान के बाद, पुल का पुनर्निर्माण किया गया और जहाजों के गुजरने के लिए एक रास्ता बनाया गया.

उन्होंने कहा, '1988 में सड़क परिवहन के लिए पुल के निर्माण तक पंबन को पार करने के लिए ट्रेन या नाव से जाना पड़ता था. पंबन रेलवे पुल और समुद्र के बीच अधिकतम ऊंचाई 10 फीट है. इसलिए, भले ही समुद्र की लहरें थोड़ी तेज़ हों, ट्रेन के डिब्बे के अंदर पानी के छींटे पड़ेंगे. पंबन ब्रिज को रेलवे इंजीनियरिंग का चमत्कार कहा जा सकता है. अब आधुनिक तकनीक के आधार पर एक नया पुल बनाया जा रहा है.'

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