नागपुर: औरंगाबाद के एक अस्पताल में डॉक्टरों ने एचआईवी पॉजिटिव रोगी के किडनी का सफल प्रत्यारोपण किया. डॉक्टरों का कहना है कि किडनी डोनर भी एचआईवी पॉजिटिव थी जिसके कारण यह दुर्लभ प्रत्यारोपण था. बीड जिले का रहने वाला एक कपास व्यापारी 2019 से किडनी की बीमारी से जूझ रहा था.
पिछले 3 साल से उसका डायलिसिस की जा रही थी. बाद में डॉक्टरों ने किडनी ट्रांसप्लांट कराने के लिए कहा. उसकी पत्नी किडनी देने के लिए तैयार हो गई, लेकिन डॉक्टरों के लिए चुनौती था कि उसकी पत्नी भी एचआईवी पॉजिटिव थी. अलग-अलग ब्लड ग्रुप और एचआईवी पॉजिटिव होने के बावजूद दोनों का सफल ट्रांसप्लांट हुआ.
किडनी ट्रांसप्लांट की अनुमति: मरीज के परिवार के साथ किडनी ट्रांसप्लांट के विकल्प पर चर्चा की गई. मरीज की 45 वर्षीय पत्नी भी एचआईवी पॉजिटिव थी. वह अपने पति की जान बचाने के लिए किडनी डोनर बनकर आगे आई. उसका ब्लड ग्रुप 'ए' पॉजिटिव था जबकि मरीज का ब्लड ग्रुप 'बी' पॉजिटिव था. एचआईवी पॉजिटिव रोगियों में प्रत्यारोपण के लिए दिशानिर्देशों का पालन करते हुए सितंबर 2022 में पूर्ण स्वास्थ्य जांच की गई. डोनर और मरीज दोनों की योग्यता की पुष्टि के बाद जरूरी कानूनी औपचारिकताएं पूरी की गईं. औरंगाबाद में जिला प्राधिकरण समिति से किडनी प्रत्यारोपण की अनुमति ली गई. सर्जरी 18 जनवरी, 2023 को सफलतापूर्वक की गई.
दुनिया में पहली सर्जरी: यह दुनिया का पहला मामला है कि एचआईवी संक्रमित पत्नी ने एचआईवी संक्रमित पति को किडनी दान की है. सचिन सोनी के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक टीम ने इस सफल प्रत्यारोपण को अंजाम दिया. चूंकि दोनों मरीज एचआईवी पॉजिटिव और एंटी-ब्लड टाइप हैं, इसलिए यह दुनिया में इस तरह का पहला गुर्दा प्रत्यारोपण है. पीड़ित पिछले तीन साल से किडनी की बीमारी से पीड़ित था.
वह सीएपीडी होम डायलिसिस पर था. किडनी मिलने पर उसे नया जीवन मिलना था, लेकिन उनके किसी भी रिश्तेदार या दोस्त को डोनर नहीं मिला. उस वक्त उनकी प्रभावित पत्नी ने किडनी डोनेट करने की इच्छा जाहिर की थी. उनके सभी परीक्षणों के बाद, सभी क्लीयरेंस के साथ उनका सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण किया गया. अब दोनों मरीज ठीक हैं और हाल ही में उन्हें डिस्चार्ज किया गया है. अब वे अपना दैनिक कार्य आसानी से कर सकते हैं, ऐसा डॉ. सचिन सोनी ने बताया.
जटिल थी सर्जरी: डॉ. सोनी के मुताबिक, एचआईवी के मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले से ही कम होती है. प्रत्यारोपण के दौरान उपयोग की जाने वाली दवाएं ऐसे रोगियों की प्रतिरक्षा प्रणाली को और कमजोर कर सकती हैं. इन रोगियों के लिए दवा की बेहतर खुराक और उपचार की मदद से प्रत्यारोपण किया गया. सर्जरी करीब 4 घंटे तक चली. नेफ्रोलॉजिस्ट, सर्जन, सहायक, नर्सिंग स्टाफ और सहायिकाओं सहित पूरी टीम ने आवश्यक सावधानियों का पालन किया. डोनर को सफल ट्रांसप्लांट के बाद 24 जनवरी को डिस्चार्ज कर दिया गया. प्राप्तकर्ता को 31 जनवरी को घर से छुट्टी दे दी गई. ये अंग प्रत्यारोपण बहुत चुनौतीपूर्ण होते हैं.
रक्त समूह की असंगति के कारण चुनौतियाँ: डॉ. सचिन सोनी ने कहा कि रोगी और डोनर दोनों एचआईवी पॉजिटिव हैं और ब्लड ग्रूप की असंगति इस चुनौती को और बढ़ा देती है. इस प्रत्यारोपण प्रक्रिया में डॉ. सचिन सोनी, डॉ. शरद सोमानी, डॉ. प्रशांत दर्ख, डॉ. राहुल रुईकर, डॉ. मयूर दलवी, डॉ. दिनेश लाहिरे, डॉ. सुनील मुर्की, डॉ. अभिजीत कबाडे और डॉ. निनाद धोकटे ने भाग लिया. जबकि संदीप चव्हाण ने अंगदान प्रक्रिया की कानूनी औपचारिकताओं को पूरा करने में मदद की.