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कश्मीर के राजा हरि सिंह ने जब विलयपत्र पर हस्ताक्षर किए नेहरू और पटेल साथ ही थे

समृद्ध संस्कृति वाला देश 26 जनवरी को 72वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. आजादी की वर्षगांठ हो या गणतंत्र दिवस, कश्मीर की बात हमेशा की जाती है. आज की खास रिपोर्ट में जानें कश्मीर के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका...

kashmir
हरि भाई देसाई
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Published : Jan 25, 2021, 11:09 PM IST

Updated : Jan 26, 2021, 4:41 PM IST

अहमदाबाद : आमतौर पर माना जाता है कि आजादी से पहले और बाद कश्मीर को लेकर सारे निर्णय जवाहर लाल नेहरू ने किए थे, लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका भी अहम थी. भले ही पटेल का कश्मीर से कोई नाता नहीं था लेकिन कश्मीर के फैसले लेते समय जवाहर लाल नेहरू उनसे बात जरूर करते थे. ऐसा कहना है इतिहास के जानकार हरि देसाई का.

कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म किया गया है. कश्मीर का पूरा सच क्या था, इसे जानने के लिए 'ईटीवी भारत' ने इतिहास के जानकार और राजनीतिक विश्लेषक हरि देसाई से बात की.

खास रिपोर्ट

हरि देसाई ने बताया कि जून 1947 से दिसंबर 1948 तक यानी जम्मू कश्मीर हमारे साथ हो गया तब तक जवाहर लाल नेहरू और पटेल साथ-साथ ही थे. कश्मीर के मसले पर दोनों में आपसी राय थी. हमें जनता को सच बताना चाहिए. कैबिनेट ने कश्मीर को लेकर फैसला किया था. उस कैबिनेट में वह निर्णय पारित हुआ था जिसमें पं. जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में सरदार पटेल, डॉ. भीमराव अंबेडकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी समेत कई लोग थे.

हरि देसाई ने बताया कि 1953 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी जो जनसंघ के संस्थापक भी थे, ने संसद में इसे स्वीकार किया था. हरि देसाई ने बताया कि नेहरू और पटेल में दृष्टिकोण अलग था, मतभेद जरूर थे, लेकिन उनमें पत्र व्यवहार होता था. हमें पता है कि कश्मीर के विलय के लिए पटेल महाराज हरि सिंह से बात कर रहे थे जबकि नेहरू शेख अब्दुल्ला से बात कर रहे थे. हरि सिंह के पास पाकिस्तान से जुड़ने का विकल्प भी था.

सरदार पटेल ने उनसे कहा था कि जो भी निर्णय लेना है 15 अगस्त 1947 तक कर लें. 22 अक्टूबर 1947 को जब पाक से हमला हुआ तो महाराजा के पास विकल्प ही नहीं था. तब उन्होंने भारत के साथ विलयपत्र पर हस्ताक्षर किए. इस दौरान नेहरू और पटेल साथ ही थे.

उन्होंने कहा कि ये कहना कि 370 केवल नेहरू का था, ये गलत है. महाराजा के दीवान ने इसे डाफ्ट किया, इसे सरदार पटेल ने पढ़ा. उन्होंने कहा कि इस बारे में वी. संकर जो सरदार पटेल के सेक्रेटरी थे उन्होंने दो वॉल्यूम संपादित किए हैं, उसमें इसका जिक्र है. कोई भी देख सकता है. पढ़ सकता है.

उन्होंने कहा कि 370 से केवल नेहरू का ही संबंध था ऐसा नहीं, सरदार पटेल की भी दीर्घ दृष्टि थी. बाद में महाराजा ने खुद भी 1952 में जब पुणे से राष्ट्रपति को मेमोरेंडम भेजा, उसमें भी ये बातें बहुत स्पष्ट हैं. उन्होंने कहा कि सभी को जम्मू कश्मीर के बारे में जानना चाहिए.

हरि देसाई ने कहा भारत के अन्य राज्यों में जो कानून लागू होते हैं, उनमें से अधिकांश कानून कश्मीर में लागू होते थे. बल्कि कुछ कानून तो ज्यादा अच्छे से लागू होते हैं जैसे सूचना का अधिकार की बात करें, शिक्षा का अधिकार की बात करें तो.

अटलजी के शब्द कश्मीर की जनता के दिल में हैं

उनका कहना है कि भाजपा ने 370 को रद्द किया तो लोगों का जुड़ाव उनसे हुआ. 371 में तो पूरा ईशान भारत है. इसलिए गृहमंत्री को बार बार कहना पड़ रहा कि नहीं हम इनके विशेष दर्जे नहीं खत्म करेंगे.

पढ़ें- पटेल यूं ही नहीं कहे जाते थे 'सरदार'

हरि देसाई ने कहा कि कश्मीर की जनता अटल बिहारी वाजपेयी को दिल से प्यार करती है क्योंकि उन्होंने तीन शब्द कहे थे जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत, ये आज भी कश्मीरियों के दिल में हैं.

अहमदाबाद : आमतौर पर माना जाता है कि आजादी से पहले और बाद कश्मीर को लेकर सारे निर्णय जवाहर लाल नेहरू ने किए थे, लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका भी अहम थी. भले ही पटेल का कश्मीर से कोई नाता नहीं था लेकिन कश्मीर के फैसले लेते समय जवाहर लाल नेहरू उनसे बात जरूर करते थे. ऐसा कहना है इतिहास के जानकार हरि देसाई का.

कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म किया गया है. कश्मीर का पूरा सच क्या था, इसे जानने के लिए 'ईटीवी भारत' ने इतिहास के जानकार और राजनीतिक विश्लेषक हरि देसाई से बात की.

खास रिपोर्ट

हरि देसाई ने बताया कि जून 1947 से दिसंबर 1948 तक यानी जम्मू कश्मीर हमारे साथ हो गया तब तक जवाहर लाल नेहरू और पटेल साथ-साथ ही थे. कश्मीर के मसले पर दोनों में आपसी राय थी. हमें जनता को सच बताना चाहिए. कैबिनेट ने कश्मीर को लेकर फैसला किया था. उस कैबिनेट में वह निर्णय पारित हुआ था जिसमें पं. जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में सरदार पटेल, डॉ. भीमराव अंबेडकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी समेत कई लोग थे.

हरि देसाई ने बताया कि 1953 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी जो जनसंघ के संस्थापक भी थे, ने संसद में इसे स्वीकार किया था. हरि देसाई ने बताया कि नेहरू और पटेल में दृष्टिकोण अलग था, मतभेद जरूर थे, लेकिन उनमें पत्र व्यवहार होता था. हमें पता है कि कश्मीर के विलय के लिए पटेल महाराज हरि सिंह से बात कर रहे थे जबकि नेहरू शेख अब्दुल्ला से बात कर रहे थे. हरि सिंह के पास पाकिस्तान से जुड़ने का विकल्प भी था.

सरदार पटेल ने उनसे कहा था कि जो भी निर्णय लेना है 15 अगस्त 1947 तक कर लें. 22 अक्टूबर 1947 को जब पाक से हमला हुआ तो महाराजा के पास विकल्प ही नहीं था. तब उन्होंने भारत के साथ विलयपत्र पर हस्ताक्षर किए. इस दौरान नेहरू और पटेल साथ ही थे.

उन्होंने कहा कि ये कहना कि 370 केवल नेहरू का था, ये गलत है. महाराजा के दीवान ने इसे डाफ्ट किया, इसे सरदार पटेल ने पढ़ा. उन्होंने कहा कि इस बारे में वी. संकर जो सरदार पटेल के सेक्रेटरी थे उन्होंने दो वॉल्यूम संपादित किए हैं, उसमें इसका जिक्र है. कोई भी देख सकता है. पढ़ सकता है.

उन्होंने कहा कि 370 से केवल नेहरू का ही संबंध था ऐसा नहीं, सरदार पटेल की भी दीर्घ दृष्टि थी. बाद में महाराजा ने खुद भी 1952 में जब पुणे से राष्ट्रपति को मेमोरेंडम भेजा, उसमें भी ये बातें बहुत स्पष्ट हैं. उन्होंने कहा कि सभी को जम्मू कश्मीर के बारे में जानना चाहिए.

हरि देसाई ने कहा भारत के अन्य राज्यों में जो कानून लागू होते हैं, उनमें से अधिकांश कानून कश्मीर में लागू होते थे. बल्कि कुछ कानून तो ज्यादा अच्छे से लागू होते हैं जैसे सूचना का अधिकार की बात करें, शिक्षा का अधिकार की बात करें तो.

अटलजी के शब्द कश्मीर की जनता के दिल में हैं

उनका कहना है कि भाजपा ने 370 को रद्द किया तो लोगों का जुड़ाव उनसे हुआ. 371 में तो पूरा ईशान भारत है. इसलिए गृहमंत्री को बार बार कहना पड़ रहा कि नहीं हम इनके विशेष दर्जे नहीं खत्म करेंगे.

पढ़ें- पटेल यूं ही नहीं कहे जाते थे 'सरदार'

हरि देसाई ने कहा कि कश्मीर की जनता अटल बिहारी वाजपेयी को दिल से प्यार करती है क्योंकि उन्होंने तीन शब्द कहे थे जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत, ये आज भी कश्मीरियों के दिल में हैं.

Last Updated : Jan 26, 2021, 4:41 PM IST
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