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शामली: 300 साल पुरानी मस्जिद को बचाने के लिए आगे आए हिंदू, ऐतिहासिक गौरव गाथा समेटे इस मस्जिद में नहीं होती है नमाज

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Published : Jun 16, 2022, 10:05 AM IST

देश में इन दिनों धार्मिक उन्माद के चलते माहौल गर्म है, लेकिन यूपी के शामली से साम्प्रदायिक सद्भाव और भाईचारे को बढ़ाने वाली बड़ी पहल सामने आई है. यहां पर बगैर मुस्लिम आबादी वाले एक गांव के लोगों ने मुगलकालीन मस्जिद के संरक्षण का बीड़ा उठाया है.

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शामली 300 साल पुरानी मस्जिद

शामली: देश में इन दिनों धार्मिक टिप्पणियों को लेकर माहौल गर्म है, लेकिन इसके उलट यूपी के शामली से साम्प्रदायिक सद्भाव और भाईचारे को बढ़ाने वाली बड़ी पहल सामने आई है. यहां पर बगैर मुस्लिम आबादी वाले एक गांव के लोगों ने मुगल सल्तनत के इतिहास से जुड़ी 300 साल से ज्यादा पुरानी मस्जिद के संरक्षण का बीड़ा उठाया है. गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है. ऐसे में मस्जिद में नमाज नहीं होती है और इसकी देखरेख भी नहीं हो पा रही है. ऐसे में ऐतिहासिक महत्व वाली यह मस्जिद जीर्ण-शीर्ण हालत में पहुंच गई है.

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शामली में मस्जिद का संरक्षण

शामली जिले के गौसगढ़ गांव का एक समृद्ध इतिहास रहा है, जो कम ही लोगों को पता है. यहां पर मुगल शासन के दौरान 1760 से 1806 के बीच एक समृद्ध रियासत हुआ करती थी. फिलहाल 300 से अधिक वर्षों के बाद यहां पर एक जीर्ण-शीर्ण मस्जिद समेत शानदार अतीत के कुछ निशान बचे हुए हैं. गांव में मुसलमानों के नहीं रहने के कारण 1940 के बाद से इस मस्जिद में अजान, नमाज और दुआ तक नहीं हो सकी है. अब गांव के हिंदुओं ने सदियों पुरानी इस इमारत में जान डालने के लिए कदम आगे बढ़ाया है.

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शामली में हिंदुओं ने उठाया मस्जिद के संरक्षण का बीड़ा

मस्जिद को टूरिस्ट स्पॉट बनाने की तमन्ना: गौसगढ़ गांव में स्थित मस्जिद के संरक्षण का बीड़ा ग्रामीणों ने सामाजिक कार्यकर्ता चौधरी नीरज रोड़ के नेतृत्व में उठाया है. वह वर्तमान में ग्राम प्रधान के पति भी हैं. नीरज रोड़ ने ईटीवी भारत को बताया कि ग्राम पंचायत के सभी 13 सदस्य अपनी राय में एकमत हैं कि इस मस्जिद को संरक्षित करने की आवश्यकता है. क्योंकि, यह मस्जिद अतीत में इस क्षेत्र के महत्व को प्रदर्शित करने वाली एकमात्र विरासत बची है. उन्होंने बताया कि विभिन्न गांवों और जिलों से बहुत सारे मुसलमान इस जगह पर मस्जिद को देखने के लिए आते हैं. हम इसे धार्मिक पर्यटन स्थल में बदलने के लिए वित्तीय पहलुओं पर भी काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि मस्जिद परिसर लगभग 3.5 बीघा में फैला हुआ है, लेकिन इसकी अधिकांश खाली भूमि पर अतिक्रमण किया गया है, जिसको हटाने के लिए सभी लोगों में सहमति भी बन गई है.

किसानों ने भी दी अपनी सहमति: इस ऐतिहासिक मस्जिद के पास ही गांव के किसान संजय चौधरी के भी खेत स्थित हैं. उन्होंने बताया कि अगर मस्जिद की कोई जमीन किसान के खेत पर आती है तो सभी किसान बातचीत के बाद उसे छोड़ने के लिए तैयार हैं. हम सभी चाहते हैं कि इस ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित किया जाए. किसान ने बताया कि यह मस्जिद देश में सांप्रदायिक सद्भाव का उदाहरण बन सकती है.

सरकार से भी मदद की दरकार: ग्राम पंचायत सदस्य शिवलाल ने बताया कि इस स्थल पर धूल-मिट्टी जम गई है. मौके पर सफाई सुनिश्चित करने के लिए 50-60 ग्रामीणों की टीम बनाई गई है. इस स्थान पर मस्जिद को देखने के लिए कई मुसलमान आते रहते हैं. ऐसे में इस धरोहर की सुरक्षा बेहद जरूरी है. उन्होंने बताया कि हम सरकार से इस कार्य में मदद करने की उम्मीद करते हैं.

खजाने की चाह में कई बार खुदाई: ग्रामीण अभिषेक कुमार ने बताया कि कई साल पहले इस स्थान पर बाहरी लोग आकर रात के समय खजाना खोजने के लिए खुदाई करते थे. ग्रामीणों को सुबह गहरे गड्ढे दिखाई देते थे. गहरी खुदाई होने की वजह से भी मस्जिद की इमारत को नुकसान पहुंचा है. समाजसेवी नीरज रोड़ ने बताया कि मस्जिद के संरक्षण का कार्य शुरू करने के लिए अधिकारियों संपर्क किया जा रहा है. इसके बाद अतिक्रमण को हटाया जाएगा और परिसर की सफाई करते हुए चारदीवारी बनाई जाएगी. उन्होंने बताया कि इस उद्देश्य को लेकर ग्राम पंचायत सदस्यों की बैठक भी हो चुकी है.



शानदार है इतिहास: यह मस्जिद तत्कालीन रियासतदार और 1788 में करीब ढाई महीने तक मुगल बादशाह शाह आलम को अपदस्थ कर दिल्ली की गद्दी कर कब्जा करने वाले गुलाम कादिर के महल के अंदर बनाई गई थी. समय के साथ महल का अस्तित्व समाप्त हो गया और केवल मस्जिद के खंडहर ही रह गए हैं. इतिहासकारों के अनुसार गुलाम कादिर नजीबाबाद (बिजनौर में) की स्थापना करने वाले नजीब-उद-दौला के पोते थे. गुलाम कादिर को दिल्ली की घेराबंदी और लूट के दौरान मुगल सल्तनत के बादशाह शाह आलम द्वितीय को प्रताड़ित और उसे अंधा करने के लिए भी जाना जाता है.

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शामली: देश में इन दिनों धार्मिक टिप्पणियों को लेकर माहौल गर्म है, लेकिन इसके उलट यूपी के शामली से साम्प्रदायिक सद्भाव और भाईचारे को बढ़ाने वाली बड़ी पहल सामने आई है. यहां पर बगैर मुस्लिम आबादी वाले एक गांव के लोगों ने मुगल सल्तनत के इतिहास से जुड़ी 300 साल से ज्यादा पुरानी मस्जिद के संरक्षण का बीड़ा उठाया है. गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है. ऐसे में मस्जिद में नमाज नहीं होती है और इसकी देखरेख भी नहीं हो पा रही है. ऐसे में ऐतिहासिक महत्व वाली यह मस्जिद जीर्ण-शीर्ण हालत में पहुंच गई है.

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शामली में मस्जिद का संरक्षण

शामली जिले के गौसगढ़ गांव का एक समृद्ध इतिहास रहा है, जो कम ही लोगों को पता है. यहां पर मुगल शासन के दौरान 1760 से 1806 के बीच एक समृद्ध रियासत हुआ करती थी. फिलहाल 300 से अधिक वर्षों के बाद यहां पर एक जीर्ण-शीर्ण मस्जिद समेत शानदार अतीत के कुछ निशान बचे हुए हैं. गांव में मुसलमानों के नहीं रहने के कारण 1940 के बाद से इस मस्जिद में अजान, नमाज और दुआ तक नहीं हो सकी है. अब गांव के हिंदुओं ने सदियों पुरानी इस इमारत में जान डालने के लिए कदम आगे बढ़ाया है.

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शामली में हिंदुओं ने उठाया मस्जिद के संरक्षण का बीड़ा

मस्जिद को टूरिस्ट स्पॉट बनाने की तमन्ना: गौसगढ़ गांव में स्थित मस्जिद के संरक्षण का बीड़ा ग्रामीणों ने सामाजिक कार्यकर्ता चौधरी नीरज रोड़ के नेतृत्व में उठाया है. वह वर्तमान में ग्राम प्रधान के पति भी हैं. नीरज रोड़ ने ईटीवी भारत को बताया कि ग्राम पंचायत के सभी 13 सदस्य अपनी राय में एकमत हैं कि इस मस्जिद को संरक्षित करने की आवश्यकता है. क्योंकि, यह मस्जिद अतीत में इस क्षेत्र के महत्व को प्रदर्शित करने वाली एकमात्र विरासत बची है. उन्होंने बताया कि विभिन्न गांवों और जिलों से बहुत सारे मुसलमान इस जगह पर मस्जिद को देखने के लिए आते हैं. हम इसे धार्मिक पर्यटन स्थल में बदलने के लिए वित्तीय पहलुओं पर भी काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि मस्जिद परिसर लगभग 3.5 बीघा में फैला हुआ है, लेकिन इसकी अधिकांश खाली भूमि पर अतिक्रमण किया गया है, जिसको हटाने के लिए सभी लोगों में सहमति भी बन गई है.

किसानों ने भी दी अपनी सहमति: इस ऐतिहासिक मस्जिद के पास ही गांव के किसान संजय चौधरी के भी खेत स्थित हैं. उन्होंने बताया कि अगर मस्जिद की कोई जमीन किसान के खेत पर आती है तो सभी किसान बातचीत के बाद उसे छोड़ने के लिए तैयार हैं. हम सभी चाहते हैं कि इस ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित किया जाए. किसान ने बताया कि यह मस्जिद देश में सांप्रदायिक सद्भाव का उदाहरण बन सकती है.

सरकार से भी मदद की दरकार: ग्राम पंचायत सदस्य शिवलाल ने बताया कि इस स्थल पर धूल-मिट्टी जम गई है. मौके पर सफाई सुनिश्चित करने के लिए 50-60 ग्रामीणों की टीम बनाई गई है. इस स्थान पर मस्जिद को देखने के लिए कई मुसलमान आते रहते हैं. ऐसे में इस धरोहर की सुरक्षा बेहद जरूरी है. उन्होंने बताया कि हम सरकार से इस कार्य में मदद करने की उम्मीद करते हैं.

खजाने की चाह में कई बार खुदाई: ग्रामीण अभिषेक कुमार ने बताया कि कई साल पहले इस स्थान पर बाहरी लोग आकर रात के समय खजाना खोजने के लिए खुदाई करते थे. ग्रामीणों को सुबह गहरे गड्ढे दिखाई देते थे. गहरी खुदाई होने की वजह से भी मस्जिद की इमारत को नुकसान पहुंचा है. समाजसेवी नीरज रोड़ ने बताया कि मस्जिद के संरक्षण का कार्य शुरू करने के लिए अधिकारियों संपर्क किया जा रहा है. इसके बाद अतिक्रमण को हटाया जाएगा और परिसर की सफाई करते हुए चारदीवारी बनाई जाएगी. उन्होंने बताया कि इस उद्देश्य को लेकर ग्राम पंचायत सदस्यों की बैठक भी हो चुकी है.



शानदार है इतिहास: यह मस्जिद तत्कालीन रियासतदार और 1788 में करीब ढाई महीने तक मुगल बादशाह शाह आलम को अपदस्थ कर दिल्ली की गद्दी कर कब्जा करने वाले गुलाम कादिर के महल के अंदर बनाई गई थी. समय के साथ महल का अस्तित्व समाप्त हो गया और केवल मस्जिद के खंडहर ही रह गए हैं. इतिहासकारों के अनुसार गुलाम कादिर नजीबाबाद (बिजनौर में) की स्थापना करने वाले नजीब-उद-दौला के पोते थे. गुलाम कादिर को दिल्ली की घेराबंदी और लूट के दौरान मुगल सल्तनत के बादशाह शाह आलम द्वितीय को प्रताड़ित और उसे अंधा करने के लिए भी जाना जाता है.

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