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अदालत ने कर्नाटक सरकार पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया - no sanction against CS Karnataka

कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के ढीले रवैए के कारण उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. यह मामला पूर्व मुख्य सचिव से जुड़ा है. राज्य सरकार पर आरोप है कि वह उस अधिकारी के खिलाफ मामला चलाने को लेकर आवश्यक मंजूरी प्राप्त नहीं कर सकी.

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कर्नाटक के सीएम बोम्मई
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Published : Jun 14, 2022, 7:41 PM IST

बेंगलुरु : कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक पूर्व मुख्य सचिव के खिलाफ मामला चलाने को मंजूरी प्राप्त करने के वास्ते प्रयास करने में विफल रहने को लेकर कर्नाटक सरकार की उसके सुस्त रवैये के लिए खिंचाई की और उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. सरकारी अधिवक्ता ने गत 20 अप्रैल, 2022 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अभियोजन की मंजूरी के लिए छह सप्ताह का समय मांगा था और अदालत ने छह सप्ताह का समय दिया था.

उच्च न्यायालय ने अपने हालिया आदेश में कहा, 'ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार को मामले को आगे बढ़ाने और राज्य की संपत्ति की रक्षा करने में कोई दिलचस्पी नहीं है. इसलिए, राज्य के रवैया की आलोचना की जानी चाहिए और उसने आज तक डीओपीटी (कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग) से स्वीकृति प्राप्त करने के लिए कागजात संसाधित नहीं किए हैं और अभी तक कागजात नहीं भेजे हैं.' उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया, जिसका भुगतान एक सप्ताह के भीतर किया जाना है.

अदालत ने कहा, 'राज्य सरकार को जुर्माना राशि जमा करने और संबंधित से वसूल करने का निर्देश दिया जाता है, जिन्होंने छह सप्ताह का समय दिए जाने के बावजूद डीओपीटी से मंजूरी प्राप्त करने के लिए कागजात भेजने को लेकर कोई कदम नहीं उठाये.' मूल शिकायत भास्करन ने दायर की थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि तत्कालीन मुख्य सचिव अरविंद जाधव ने उपायुक्त, सहायक आयुक्त और अनेकल तालुक के तहसीलदार के साथ मिलकर अनेकल तालुक के गांव रामनायकनहल्ली में सरकारी जमीन से संबंधित फर्जी दस्तावेज बनाने के लिए आधिकारिक शक्ति का दुरुपयोग किया था.

सरकार ने कनिष्ठ सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत उन पर मुकदमा चलाने की अनुमति दी. आरोपियों में से एक, भूमि अभिलेख विभाग के एक सर्वेक्षक डी बी गंगैया ने अपने खिलाफ दायर मामले के खिलाफ वकील ए वी निशांत के जरिये उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. यह याचिका उच्च न्यायालय में 2020 से लंबित है. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने 2021 में सीलबंद लिफाफे में मामले की प्रगति रिपोर्ट उच्च न्यायालय को सौंपी थी. अदालत को सूचित किया गया था कि अनेकल के तहसीलदार अनिल कुमार और अन्य अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी लंबित है.

फरवरी 2022 में, उच्च न्यायालय को सूचित किया गया था कि सेवानिवृत्त मुख्य सचिव को छोड़कर मामले में आरोपी सभी सरकारी अधिकारियों पर मामला चलाने के लिए मंजूरी प्राप्त की गई है क्योंकि वह पहले ही सेवा से सेवानिवृत्त हो चुके हैं और सक्षम प्राधिकारी को मंजूरी देनी होगी और यह प्रक्रिया में है और इसमें समय लगता है क्योंकि उन्हें केंद्र सरकार के डीओपीटी से मंजूरी लेनी होती है.

मार्च में, आवश्यक दस्तावेजों का अनुवाद करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा गया था. 8 जून को जब मामला न्यायमूर्ति एच पी संदेश के सामने आई तो तब तक मंजूरी नहीं मिली थी. याचिका पर अगली सुनवाई 16 जून को तय की गई है.

ये भी पढ़ें : अदालत मस्जिद के सर्वेक्षण से जुड़ी याचिका की विचारणीयता पर अभी फैसला नहीं सुनाए: हाईकोर्ट

बेंगलुरु : कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक पूर्व मुख्य सचिव के खिलाफ मामला चलाने को मंजूरी प्राप्त करने के वास्ते प्रयास करने में विफल रहने को लेकर कर्नाटक सरकार की उसके सुस्त रवैये के लिए खिंचाई की और उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. सरकारी अधिवक्ता ने गत 20 अप्रैल, 2022 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अभियोजन की मंजूरी के लिए छह सप्ताह का समय मांगा था और अदालत ने छह सप्ताह का समय दिया था.

उच्च न्यायालय ने अपने हालिया आदेश में कहा, 'ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार को मामले को आगे बढ़ाने और राज्य की संपत्ति की रक्षा करने में कोई दिलचस्पी नहीं है. इसलिए, राज्य के रवैया की आलोचना की जानी चाहिए और उसने आज तक डीओपीटी (कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग) से स्वीकृति प्राप्त करने के लिए कागजात संसाधित नहीं किए हैं और अभी तक कागजात नहीं भेजे हैं.' उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया, जिसका भुगतान एक सप्ताह के भीतर किया जाना है.

अदालत ने कहा, 'राज्य सरकार को जुर्माना राशि जमा करने और संबंधित से वसूल करने का निर्देश दिया जाता है, जिन्होंने छह सप्ताह का समय दिए जाने के बावजूद डीओपीटी से मंजूरी प्राप्त करने के लिए कागजात भेजने को लेकर कोई कदम नहीं उठाये.' मूल शिकायत भास्करन ने दायर की थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि तत्कालीन मुख्य सचिव अरविंद जाधव ने उपायुक्त, सहायक आयुक्त और अनेकल तालुक के तहसीलदार के साथ मिलकर अनेकल तालुक के गांव रामनायकनहल्ली में सरकारी जमीन से संबंधित फर्जी दस्तावेज बनाने के लिए आधिकारिक शक्ति का दुरुपयोग किया था.

सरकार ने कनिष्ठ सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत उन पर मुकदमा चलाने की अनुमति दी. आरोपियों में से एक, भूमि अभिलेख विभाग के एक सर्वेक्षक डी बी गंगैया ने अपने खिलाफ दायर मामले के खिलाफ वकील ए वी निशांत के जरिये उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. यह याचिका उच्च न्यायालय में 2020 से लंबित है. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने 2021 में सीलबंद लिफाफे में मामले की प्रगति रिपोर्ट उच्च न्यायालय को सौंपी थी. अदालत को सूचित किया गया था कि अनेकल के तहसीलदार अनिल कुमार और अन्य अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी लंबित है.

फरवरी 2022 में, उच्च न्यायालय को सूचित किया गया था कि सेवानिवृत्त मुख्य सचिव को छोड़कर मामले में आरोपी सभी सरकारी अधिकारियों पर मामला चलाने के लिए मंजूरी प्राप्त की गई है क्योंकि वह पहले ही सेवा से सेवानिवृत्त हो चुके हैं और सक्षम प्राधिकारी को मंजूरी देनी होगी और यह प्रक्रिया में है और इसमें समय लगता है क्योंकि उन्हें केंद्र सरकार के डीओपीटी से मंजूरी लेनी होती है.

मार्च में, आवश्यक दस्तावेजों का अनुवाद करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा गया था. 8 जून को जब मामला न्यायमूर्ति एच पी संदेश के सामने आई तो तब तक मंजूरी नहीं मिली थी. याचिका पर अगली सुनवाई 16 जून को तय की गई है.

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