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ब्रेल लिपि में हनुमान चालीसा, दृष्टिहीन भी पढ़ सकेंगे

रायपुर की बुजुर्ग महिला शुभांगी आप्टे (Shubhangi Apte of Raipur printed Hanuman Chalisa) ने ब्रेल लिपि (Hanuman Chalisa in Braille script) में हनुमान चालीसा छपवाया है. इस हनुमान चालीसा को दृष्टिहीन भी पढ़ सकेंगे. जल्द ही इस पुस्तक का विमोचन होने वाला है. जिसके बाद लोगों के हाथों तक ये पुस्तक पहुंच जाएगी.

Hanuman Chalisa in Braille script
ब्रेल लिपि में हनुमान चालीसा
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Published : May 3, 2022, 4:53 PM IST

रायपुर: अबतक आपने ब्रेल लिपि में रामायण की चौपाई पढ़ते दृष्टिहीन दिव्यांगों को देखा या सुना होगा. अब दृष्टिहीन हनुमान चालीसा भी पढ़ेंगे. रामायण की चौपाई की तरह अब ब्रेल लिपि में हनुमान चालीसा भी उपलब्ध होगी. रायपुर की 67 वर्षीय शुभांगी आप्टे नाम की बुजुर्ग महिला ने ब्रेल लिपि में हनुमान चालीसा छपवाया है. शुभांगी बहुत जल्द इसका विमोचन करने वाली हैं. जिसके बाद दिव्यांगों को हनुमान चालीसा नि:शुल्क दी जाएगी. ईटीवी भारत की टीम ने समाज सेविका शुभांगी आप्टे से खास बातचीत की है.

ब्रेल लिपि में हनुमान चालीसा

सवाल: आपके मन में हनुमान चालीसा ब्रेल लिपि में छपवाने का ख्याल कैसे आया?

जवाब: हम लोग रोज हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं. लोग कहते हैं कि कोई भी अच्छा काम रहता है तो अचानक दिमाग में आ जाता है. हम लोग हनुमान चालीसा बोल रहे थे. इसी बीच एकदम से मेरे दिमाग में आया कि ब्रेल लिपि में यह है कि नहीं. चूंकि नागपुर से मैं किताब छपवाती हूं. वहां फोन पर बात की. उनसे पूछा कि ब्रेल लिपि में हनुमान चालीसा है या नहीं. उन्होंने कहा कि अभी तक तो नहीं है. उसके बाद मैंने उनसे कहा कि मुझे ब्रेल में हनुमान चालीसा छपवाना है. अब इसे संयोग कहें या कुछ और. क्योंकि रामनवमी और हनुमान जयंती के बीच ही मेरा उपक्रम पूरा हो गया. उसी दिन मेरे हाथ में बुक का प्रिंटआउट आया और अब तो मेरे पास काफी किताबें भी उपलब्ध है.

सवाल: इस किताब को आप किस तरह से दिव्यांगों तक पहुंचाएंगी?

जवाब: जितने भी ब्लाइंड स्कूल हैं, वहां हम विजिट करेंगे. वहां जाकर हम दिव्यांगों को किताब देंगे. इसके साथ ही रिलायंस दृष्टि की पत्रिका मुंबई से निकलती है, जो दिव्यांगों के लिए होती है. उसमें मेरा फोन नंबर दिया हुआ है उनसे कॉन्टैक्ट करके कहूंगी कि उसमें यह भी जिक्र कर दिया जाए कि ब्रेल लिपि में मेरे पास हनुमान चालीसा उपलब्ध है. ताकि जो भी दिव्यांग भाई-बहन मुझसे कॉन्टैक्ट करेंगे. उन्हें यह पुस्तक निःशुल्क दूंगी.

सवाल: हनुमान चालीसा, ब्रेल लिपि में ही छपवाने का उद्देश्य क्या है?

जवाब: मैं चार-पांच साल से दिव्यांगों के लिए काम कर रही हूं . मुझे इनके साथ काम करने में बड़ी संतुष्टि मिलती है. एक बात बता दूं कि यह बच्चे हमसे ज्यादा टैलेंटेड है. इनमें सीखने की बहुत इच्छा है. चूंकि मेरी गेम्स की भी बुक्स है. हम लोग ब्लाइंड्स स्कूल में विजिट करते हैं और उनके साथ गेम्स खेलते हैं तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है. यह हनुमान चालीसा भी मैंने एक ब्लाइंड बच्ची से पढ़वाया. उसने इतने अच्छे से पढ़ा. गेम्स की पुस्तक भी पढ़ी. बाद में उसने मुझे यह भी कहा कि आपके बुक में गेम्स बहुत अच्छे हैं. मैं यह कहना चाहूंगी कि ये बच्चे हमसे कहीं ज्यादा टैलेंटेड हैं. चूंकि इनके साथ काम करने में मुझे आत्मीय संतुष्टि भी मिलती है.

सवाल: इसका प्रचार-प्रसार आप कैसे करेंगी, जिन्हें बुक चाहिए वो कैसे आप तक पहुंचेंगे?

जवाब: इसका हम लोग विमोचन करेंगे. अभी विमोचन नहीं किया गया है. विमोचन के लिए मैंने सोचा है कि दिव्यांग भाई-बहनों को बुलाया जाए. उनसे पढ़ाया जाए. उससे अच्छा विमोचन क्या होगा. जहां तक कॉन्टैक्ट नंबर की बात है तो मैं शुभांगी आप्टे. रायपुर छत्तीसगढ़ से हूं. मेरा कॉन्टैक्ट नंबर है - 9406052081. इस नंबर पर कॉल कर सकते हैं. जिसके बाद यह किताब पोस्टल ऑर्डर के जरिए आपके घर तक 8 दिन के भीतर पहुंच जाएगी.

सवाल: दिव्यांगों की बेहतरी के लिए आपकी ओर से क्या कदम उठाए जाएंगे?

जवाब: मेरी कोशिश रहती है कि मुझसे जो भी इनके लिए बने वह कर पाऊं. अभी मैंने गेम्स की तीसरी पुस्तक नागपुर भेजी है. इसी महीने में तीसरी गेम्स की पुस्तक आ जाएगी. इसके अलावा कुछ लोग आकर बोलते हैं कि हमको यह जरूरत है तो हम उनके लिए जो बन पाता है वह करते हैं. मेरा मानना है कि, भगवान ने जब आपको इतना कुछ दिया हुआ है तो अपने से दूसरों के लिए जितना कुछ बन सके वह अच्छा है. उसमें जो संतोष मिलता है वह मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती.

सवाल: इसके प्रकाशन के लिए आपने कितना खर्च किया. क्या आपको परिवार से भी मदद मिलती है?

जवाब: इसका प्रकाशन मैंने अपनी निजी खर्चे से किया है. क्योंकि मेरा यह मानना है, यदि हम किसी को कुछ दे रहे हैं तो दूसरे से मदद लेकर देना, कोई मतलब नहीं रहता. जहां तक हमसे होता है हम मदद करते हैं.सबसे बड़ी बात है कि परिवार से मुझे अच्छा सपोर्ट मिलता है. मेरे हस्बैंड को भी इन सब कामों में इंटरेस्ट है तो कोई प्रॉबलम नहीं आता. यहां तक कि मेरी बेटी और बेटा दोनों बाहर है. दोनों की शादी हो चुकी है. दोनों बाहर रहते हुए भी मुझे सपोर्ट करते हैं. वे कहते हैं कि मम्मी आप बहुत अच्छा काम कर रही हो. ये आगे भी करो.

रायपुर: अबतक आपने ब्रेल लिपि में रामायण की चौपाई पढ़ते दृष्टिहीन दिव्यांगों को देखा या सुना होगा. अब दृष्टिहीन हनुमान चालीसा भी पढ़ेंगे. रामायण की चौपाई की तरह अब ब्रेल लिपि में हनुमान चालीसा भी उपलब्ध होगी. रायपुर की 67 वर्षीय शुभांगी आप्टे नाम की बुजुर्ग महिला ने ब्रेल लिपि में हनुमान चालीसा छपवाया है. शुभांगी बहुत जल्द इसका विमोचन करने वाली हैं. जिसके बाद दिव्यांगों को हनुमान चालीसा नि:शुल्क दी जाएगी. ईटीवी भारत की टीम ने समाज सेविका शुभांगी आप्टे से खास बातचीत की है.

ब्रेल लिपि में हनुमान चालीसा

सवाल: आपके मन में हनुमान चालीसा ब्रेल लिपि में छपवाने का ख्याल कैसे आया?

जवाब: हम लोग रोज हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं. लोग कहते हैं कि कोई भी अच्छा काम रहता है तो अचानक दिमाग में आ जाता है. हम लोग हनुमान चालीसा बोल रहे थे. इसी बीच एकदम से मेरे दिमाग में आया कि ब्रेल लिपि में यह है कि नहीं. चूंकि नागपुर से मैं किताब छपवाती हूं. वहां फोन पर बात की. उनसे पूछा कि ब्रेल लिपि में हनुमान चालीसा है या नहीं. उन्होंने कहा कि अभी तक तो नहीं है. उसके बाद मैंने उनसे कहा कि मुझे ब्रेल में हनुमान चालीसा छपवाना है. अब इसे संयोग कहें या कुछ और. क्योंकि रामनवमी और हनुमान जयंती के बीच ही मेरा उपक्रम पूरा हो गया. उसी दिन मेरे हाथ में बुक का प्रिंटआउट आया और अब तो मेरे पास काफी किताबें भी उपलब्ध है.

सवाल: इस किताब को आप किस तरह से दिव्यांगों तक पहुंचाएंगी?

जवाब: जितने भी ब्लाइंड स्कूल हैं, वहां हम विजिट करेंगे. वहां जाकर हम दिव्यांगों को किताब देंगे. इसके साथ ही रिलायंस दृष्टि की पत्रिका मुंबई से निकलती है, जो दिव्यांगों के लिए होती है. उसमें मेरा फोन नंबर दिया हुआ है उनसे कॉन्टैक्ट करके कहूंगी कि उसमें यह भी जिक्र कर दिया जाए कि ब्रेल लिपि में मेरे पास हनुमान चालीसा उपलब्ध है. ताकि जो भी दिव्यांग भाई-बहन मुझसे कॉन्टैक्ट करेंगे. उन्हें यह पुस्तक निःशुल्क दूंगी.

सवाल: हनुमान चालीसा, ब्रेल लिपि में ही छपवाने का उद्देश्य क्या है?

जवाब: मैं चार-पांच साल से दिव्यांगों के लिए काम कर रही हूं . मुझे इनके साथ काम करने में बड़ी संतुष्टि मिलती है. एक बात बता दूं कि यह बच्चे हमसे ज्यादा टैलेंटेड है. इनमें सीखने की बहुत इच्छा है. चूंकि मेरी गेम्स की भी बुक्स है. हम लोग ब्लाइंड्स स्कूल में विजिट करते हैं और उनके साथ गेम्स खेलते हैं तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है. यह हनुमान चालीसा भी मैंने एक ब्लाइंड बच्ची से पढ़वाया. उसने इतने अच्छे से पढ़ा. गेम्स की पुस्तक भी पढ़ी. बाद में उसने मुझे यह भी कहा कि आपके बुक में गेम्स बहुत अच्छे हैं. मैं यह कहना चाहूंगी कि ये बच्चे हमसे कहीं ज्यादा टैलेंटेड हैं. चूंकि इनके साथ काम करने में मुझे आत्मीय संतुष्टि भी मिलती है.

सवाल: इसका प्रचार-प्रसार आप कैसे करेंगी, जिन्हें बुक चाहिए वो कैसे आप तक पहुंचेंगे?

जवाब: इसका हम लोग विमोचन करेंगे. अभी विमोचन नहीं किया गया है. विमोचन के लिए मैंने सोचा है कि दिव्यांग भाई-बहनों को बुलाया जाए. उनसे पढ़ाया जाए. उससे अच्छा विमोचन क्या होगा. जहां तक कॉन्टैक्ट नंबर की बात है तो मैं शुभांगी आप्टे. रायपुर छत्तीसगढ़ से हूं. मेरा कॉन्टैक्ट नंबर है - 9406052081. इस नंबर पर कॉल कर सकते हैं. जिसके बाद यह किताब पोस्टल ऑर्डर के जरिए आपके घर तक 8 दिन के भीतर पहुंच जाएगी.

सवाल: दिव्यांगों की बेहतरी के लिए आपकी ओर से क्या कदम उठाए जाएंगे?

जवाब: मेरी कोशिश रहती है कि मुझसे जो भी इनके लिए बने वह कर पाऊं. अभी मैंने गेम्स की तीसरी पुस्तक नागपुर भेजी है. इसी महीने में तीसरी गेम्स की पुस्तक आ जाएगी. इसके अलावा कुछ लोग आकर बोलते हैं कि हमको यह जरूरत है तो हम उनके लिए जो बन पाता है वह करते हैं. मेरा मानना है कि, भगवान ने जब आपको इतना कुछ दिया हुआ है तो अपने से दूसरों के लिए जितना कुछ बन सके वह अच्छा है. उसमें जो संतोष मिलता है वह मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती.

सवाल: इसके प्रकाशन के लिए आपने कितना खर्च किया. क्या आपको परिवार से भी मदद मिलती है?

जवाब: इसका प्रकाशन मैंने अपनी निजी खर्चे से किया है. क्योंकि मेरा यह मानना है, यदि हम किसी को कुछ दे रहे हैं तो दूसरे से मदद लेकर देना, कोई मतलब नहीं रहता. जहां तक हमसे होता है हम मदद करते हैं.सबसे बड़ी बात है कि परिवार से मुझे अच्छा सपोर्ट मिलता है. मेरे हस्बैंड को भी इन सब कामों में इंटरेस्ट है तो कोई प्रॉबलम नहीं आता. यहां तक कि मेरी बेटी और बेटा दोनों बाहर है. दोनों की शादी हो चुकी है. दोनों बाहर रहते हुए भी मुझे सपोर्ट करते हैं. वे कहते हैं कि मम्मी आप बहुत अच्छा काम कर रही हो. ये आगे भी करो.

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