श्रीनगर : उच्चतम न्यायालय संविधान के विवादास्पद अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले की संवैधानिक वैधता पर आज अपना फैसला सुनाएगा. इसबीच, जम्मू कश्मीर के कई दलों ने पुराना प्रावधान बहाल किए जाने की उम्मीद जताई है. वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कहा कि शीर्ष अदालत के आदेश पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए और सभी को इसका सम्मान करना चाहिए. फैसले के मद्देनजर अधिकारियों ने जमीनी स्तर पर पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की है.
नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीर्ष अदालत के प्रतिकूल फैसले की स्थिति में भी उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर में शांति भंग नहीं करेगी और अपनी कानूनी लड़ाई जारी रखेगी. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि अदालत के फैसले से स्पष्ट होना चाहिए कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा लिया गया निर्णय 'अवैध' था.
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#WATCH On Article 370, National Conference Vice President Omar Abdullah said, "When we went to the Supreme Court in 2019, we went with the hope of justice, even today our feelings are the same. We were eagerly waiting for this day. Tomorrow, the judge will give his verdict, we… pic.twitter.com/4HVriiXqXW
— ANI (@ANI) December 10, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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नेकां और पीडीपी, 'पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकर डिक्लेरेशन' (पीएजीडी) का हिस्सा हैं, जिसे गुपकर गठबंधन भी कहा जाता है. इसका गठन अनुच्छेद 370 बहाल करने के वास्ते संघर्ष करने के लिए जम्मू-कश्मीर में कई दलों द्वारा किया गया था.
जम्मू कश्मीर के एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने उम्मीद जताई कि उच्चतम न्यायालय लोगों के पक्ष में फैसला सुनाएगा. पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को जब पांच अगस्त, 2019 को निरस्त कर दिया गया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया, तो जम्मू कश्मीर में कई प्रतिबंध लगाए गए और कई नेताओं को हिरासत में लिया गया या घरों में नजरबंद कर दिया गया था.
इस घटना के परिणाम के बारे में कई दलों द्वारा व्यक्त की गई आशंकाओं के बावजूद, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जोर देकर कहा था कि इस महत्वपूर्ण अवधि के दौरान 'खून की एक बूंद भी नहीं बहाई' गई.
अनुच्छेद 370 को खत्म करना भाजपा के एजेंडे के मुख्य मुद्दों में से एक था और इसे लगातार उसके चुनावी घोषणापत्र में शामिल किया गया था. अब्दुल्ला ने रविवार को कहा कि उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों को बहाल कराने के लिए संविधान के अनुरूप शांतिपूर्ण तरीके से लड़ाई जारी रखेगी.
उमर ने कहा, 'उच्चतम न्यायालय को फैसला देना है. फैसला देने दीजिए. अगर हमें स्थिति बिगाड़नी होती तो हमने 2019 के बाद ही ऐसा किया होता. हालांकि, हमने तब भी कहा था और अब भी दोहराते हैं कि हमारी लड़ाई शांतिपूर्ण तरीके से संविधान के अनुरूप होगी।.हम अपने अधिकारों की रक्षा और अपनी अस्मिता को सुरक्षित रखने के लिए संविधान और कानून की मदद ले रहे हैं.'
अब्दुल्ला ने बारामूला जिले के राफियाबाद में पार्टी के एक सम्मेलन में आरोप लगाया कि पुलिस शनिवार रात से ही नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं को पुलिस थानों पर बुला रही है और उन्हें 'धमकी' दे रही है.
उन्होंने कहा, 'उच्चतम न्यायालय ने अभी तक कोई फैसला नहीं सुनाया है. आप कैसे जानते हैं कि फैसला क्या है? शायद यह हमारे पक्ष में हो! फिर मेरी पार्टी के साथियों को थाने बुलाने की क्या जरूरत है.... अल्लाह ने चाहा, अगर फैसला उनके (भाजपा) खिलाफ जाता है, और अगर वे फेसबुक पर इसके खिलाफ लिखना शुरू कर दें तो आप क्या करेंगे?'
गुलाम नबी आजाद ने यहां संवाददाताओं से कहा, 'मैंने पहले भी यह कहा है... केवल दो (संस्थाएं) हैं जो जम्मू कश्मीर के लोगों को अनुच्छेद 370 और 35ए वापस कर सकती हैं और ये संस्थाएं संसद एवं उच्चतम न्यायालय हैं. उच्चतम न्यायालय की पीठ निष्पक्ष है और हमें उम्मीद है कि वह जम्मू कश्मीर के लोगों के पक्ष में फैसला देगी.'
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#WATCH | Srinagar, J&K: On the upcoming Supreme Court verdict tomorrow over Article 370, Democratic Progressive Azad Party (DPAP) President Ghulam Nabi Azad says, " Tomorrow when the verdict will come, we will get to know if it is in the interest of the Kashmiri people or against… pic.twitter.com/TMoDthDCP8
— ANI (@ANI) December 10, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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कांग्रेस से अलग होने के बाद, डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) की स्थापना करने वाले आजाद ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि संसद पांच अगस्त, 2019 को लिए गए निर्णयों को पलटेगी क्योंकि इसके लिए लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी.
उन्होंने कहा, 'अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को वापस लाने के लिए (लोकसभा में) 350 सीट की आवश्यकता होगी. जम्मू-कश्मीर में किसी भी क्षेत्रीय दल को तीन, चार या अधिकतम पांच सीट मिल सकती हैं. ये पर्याप्त नहीं होंगी. मुझे नहीं लगता कि विपक्ष इतनी संख्या जुटा पाएगा. (प्रधानमंत्री नरेंद्र ) मोदी जी के पास बहुमत है, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. इसलिए, यह केवल उच्चतम न्यायालय ही कर सकता है.'
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#WATCH | On Article 370, J&K People's Conference leader Sajad Gani Lone says, "We have all our hopes from the court. I think we were the first petitioners to go to the court. We still have faith in the court & are hoping that the decision is in favour of the people of J&K..." pic.twitter.com/C6q54R3fTd
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भाजपा की जम्मू कश्मीर इकाई के प्रमुख रविंदर रैना ने कहा कि शीर्ष अदालत ने पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से दोनों पक्षों को सुना है. रैना ने कहा, 'हमें विश्वास है कि शीर्ष अदालत के फैसले के बाद यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं रह जाएगा. न्यायालय जो भी फैसला करेगा, उसका सभी को सम्मान करना चाहिए और उसे स्वीकार करना चाहिए.'
महबूबा मुफ्ती ने कहा कि यह सुनिश्चित करना शीर्ष अदालत की जिम्मेदारी है कि वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एजेंडे को आगे न बढ़ाए, बल्कि देश की अखंडता और उसके संविधान को बरकरार रखे.
उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि निर्णय सरल होना चाहिए कि 5 अगस्त, 2019 को जो कुछ भी किया गया वह अवैध, असंवैधानिक, जम्मू-कश्मीर और यहां के लोगों से किए गए वादों के खिलाफ था.'
ये है मामला : केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों-जम्मू कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित कर दिया था. न्यायालय सरकार के इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को फैसला सुनाएगा. पांच न्यायाधीशों की पीठ ने गत पांच सितंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
सुरक्षा कड़ी : न्यायालय द्वारा फैसला सुनाए जाने के मद्देनजर कश्मीर में शांतिपूर्ण माहौल सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा के पर्याप्त प्रबंध किए गए हैं. पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने रविवार को यह जानकारी दी. कश्मीर जोन के पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) वी के बिरदी ने 'यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि घाटी में हर परिस्थिति में शांति बनी रहे.' आईजीपी ने कहा, 'हम सभी सावधानियां बरत रहे हैं और हम यह सुनिश्चित करेंगे कि कश्मीर में शांति भंग न हो.'
यह पूछे जाने पर कि क्या सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 लागू करने का आदेश उच्चतम न्यायालय के प्रत्याशित फैसले से संबंधित है, उन्होंने कहा कि कुछ तत्वों द्वारा लोगों को भड़काने की कोशिश करने की कई घटनाएं हुई हैं. बिरदी ने कहा, 'हाल में कई ऐसे पोस्ट साझा किए गए हैं, जिनमें लोगों को भड़काने की कोशिश की गई है. ऐसे तत्वों के खिलाफ पहले भी कार्रवाई की गई है और आगे भी की जाएगी.'
प्राधिकारियों ने सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील या आतंकवाद एवं अलगाववाद को बढ़ावा देने वाली सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए सीआरपीसी की धारा 144 के तहत सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं.
शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड की गई 11 दिसंबर (सोमवार) की वाद सूची के अनुसार, प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ फैसला सुनाएगी. पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत हैं.
अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली पहली याचिका वकील एमएल शर्मा द्वारा दायर की गई थी, जिसमें बाद में जम्मू-कश्मीर के एक अन्य वकील शाकिर शब्बीर भी शामिल हो गए. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 10 अगस्त को एक याचिका दायर की थी। इसके बाद कई अन्य याचिकाएं दायर की गईं.