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बर्फबारी नहीं होने से कश्मीर के गुलमर्ग में पर्यटक मायूस, जानिए क्या है वजह

Gulmarg : कश्मीर घाटी में बर्फबारी नहीं होने से मशहूर पर्यटन स्थल गुलमर्ग पहुंचे पर्यटकों को मायूस होना पड़ रहा है. वहीं दूसरी तरफ मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि अल नीनों की वजह से ऐसा हुआ है. पढ़िए ईटीवी भारत के संवाददाता मोहम्मद जुल्कारनैन जुल्फी की रिपोर्ट...Kashmir Valley

Tourists disappointed in Kashmir's Gulmarg due to lack of snowfall
बर्फबारी नहीं होने से कश्मीर के गुलमर्ग में पर्यटक मायूस
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 9, 2024, 6:37 PM IST

श्रीनगर : कश्मीर घाटी में इस साल बर्फबारी नहीं होने से लोकप्रिय पर्यटन स्थल गुलमर्ग में पर्यटक निराश हैं. बर्फबारी होने से स्कीइंग के साथ ही अन्य जगहें पर्यटकों को लुभाती हैं. मौसम विज्ञान विशेषज्ञ इस विसंगति के लिए अल नीनो जलवायु की घटना को जिम्मेदार मानते हैं. उनका मानना है कि पिछले साल पूरे दिसंबर में 79 फीसदी वर्षा की भारी कमी हुई है.

बताया जाता है कि अल नीनो से मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में वृद्ध होती है. वहीं कश्मीर में बारिश सहित वैश्विक मौसम के पैटर्न पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है. इस संबंध में मौसम विज्ञान केंद्र श्रीनगर के निदेशक मुख्तार अहमद ने बताया कि दिसंबर और जनवरी के पहले सप्ताह असाधारण रूप से शुष्क रहा है. उन्होंने कहा कि कम से कम 16 जनवरी तक कोई बड़ी बारिश होने की संभावना नहीं है.

गौरतलब है कि पिछले तीन से चार वर्षों में देखी गई शुरुआती बर्फबारी के इस वर्ष के तरीके में परिवर्तन उल्लेखनीय है. अल नीनो का प्रभाव नवंबर से बना हुआ है और आने वाले महीने में भी इसके जारी रहने की उम्मीद है. इस वजह से घाटी की सामान्य जलवायु बाधित हो जाएगी. अल नीनो तेजी को दक्षिण की ओर स्थानांतरित कर देता है और इसे पूर्व की ओर बढ़ा देता है. इसकी वजह से दक्षिणी अमेरिका में आर्द्र स्थितियां और उत्तर में शुष्क, गर्म स्थितियां पैदा हो जाती हैं. वहीं दक्षिण पूर्व एशिया में आमतौर पर दिसंबर से फरवरी तक औसत से अधिक शुष्क वर्षा की स्थिति और गर्म तापमान होता है. कश्मीर में इसका मतलब लंबे समय तक शुष्क मौसम, हल्की सर्दियां और कम बर्फबारी है.

मुख्तार अहमद के अनुसार पूर्वानुमान कम आशा प्रदान करता है. उन्होंने कहा कि शुष्क मौसम की स्थिति कम से कम 12 जनवरी तक बनी रहने की उम्मीद है. विशेषज्ञ संभावित भविष्य की चुनौतियों के बारे में चेतावनी देते हुए संकेत देते हैं कि जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट प्रभाव के कारण घाटी को अधिक बार और लंबे समय तक सूखे का सामना करना पड़ सकता है. स्थानीय कृषि पहले से ही इसका असर महसूस कर रही है, वहीं कश्मीर में केसर किसानों को मौसम के बदलते मिजाज का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. लंबे समय तक शुष्क परिस्थितियों ने उनकी फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, जो जलवायु संबंधी व्यवधानों के प्रति पारंपरिक कृषि पद्धतियों की संवेदनशीलता को रेखांकित करता है. इस बीच कश्मीर के विंटर वंडरलैंड में बर्फ न होने से पर्यटक भी निराश नजर आ रहे हैं.

ये भी पढ़ें - जम्मू-कश्मीर शीतलहर की चपेट में, घने कोहरे के कारण दृश्यता प्रभावित

श्रीनगर : कश्मीर घाटी में इस साल बर्फबारी नहीं होने से लोकप्रिय पर्यटन स्थल गुलमर्ग में पर्यटक निराश हैं. बर्फबारी होने से स्कीइंग के साथ ही अन्य जगहें पर्यटकों को लुभाती हैं. मौसम विज्ञान विशेषज्ञ इस विसंगति के लिए अल नीनो जलवायु की घटना को जिम्मेदार मानते हैं. उनका मानना है कि पिछले साल पूरे दिसंबर में 79 फीसदी वर्षा की भारी कमी हुई है.

बताया जाता है कि अल नीनो से मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में वृद्ध होती है. वहीं कश्मीर में बारिश सहित वैश्विक मौसम के पैटर्न पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है. इस संबंध में मौसम विज्ञान केंद्र श्रीनगर के निदेशक मुख्तार अहमद ने बताया कि दिसंबर और जनवरी के पहले सप्ताह असाधारण रूप से शुष्क रहा है. उन्होंने कहा कि कम से कम 16 जनवरी तक कोई बड़ी बारिश होने की संभावना नहीं है.

गौरतलब है कि पिछले तीन से चार वर्षों में देखी गई शुरुआती बर्फबारी के इस वर्ष के तरीके में परिवर्तन उल्लेखनीय है. अल नीनो का प्रभाव नवंबर से बना हुआ है और आने वाले महीने में भी इसके जारी रहने की उम्मीद है. इस वजह से घाटी की सामान्य जलवायु बाधित हो जाएगी. अल नीनो तेजी को दक्षिण की ओर स्थानांतरित कर देता है और इसे पूर्व की ओर बढ़ा देता है. इसकी वजह से दक्षिणी अमेरिका में आर्द्र स्थितियां और उत्तर में शुष्क, गर्म स्थितियां पैदा हो जाती हैं. वहीं दक्षिण पूर्व एशिया में आमतौर पर दिसंबर से फरवरी तक औसत से अधिक शुष्क वर्षा की स्थिति और गर्म तापमान होता है. कश्मीर में इसका मतलब लंबे समय तक शुष्क मौसम, हल्की सर्दियां और कम बर्फबारी है.

मुख्तार अहमद के अनुसार पूर्वानुमान कम आशा प्रदान करता है. उन्होंने कहा कि शुष्क मौसम की स्थिति कम से कम 12 जनवरी तक बनी रहने की उम्मीद है. विशेषज्ञ संभावित भविष्य की चुनौतियों के बारे में चेतावनी देते हुए संकेत देते हैं कि जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट प्रभाव के कारण घाटी को अधिक बार और लंबे समय तक सूखे का सामना करना पड़ सकता है. स्थानीय कृषि पहले से ही इसका असर महसूस कर रही है, वहीं कश्मीर में केसर किसानों को मौसम के बदलते मिजाज का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. लंबे समय तक शुष्क परिस्थितियों ने उनकी फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, जो जलवायु संबंधी व्यवधानों के प्रति पारंपरिक कृषि पद्धतियों की संवेदनशीलता को रेखांकित करता है. इस बीच कश्मीर के विंटर वंडरलैंड में बर्फ न होने से पर्यटक भी निराश नजर आ रहे हैं.

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