नई दिल्ली : मोरबी पुल हादसा ऐसे समय में हुआ जबकि गुजरात में चुनाव होने वाले हैं. भारतीय जनता पार्टी के लिए यह बहुत ही परेशान करने वाली बात है. इस हादसे में 135 लोग मारे गए थे. मोरबी सौराष्ट्र का औद्योगिक इलाका है. मोरबी औैर उसके आसपास का क्षेत्र पटेल बाहुल्य है. भाजपा पटेल समाज को पिछले कुछ समय से खुश करने की कोशिश में जुटी हुई है. गुजरात के वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल इसी समुदाय से आते हैं.
कल यानी एक दिसंबर को पहले चरण का चुनाव है. 182 में से 89 सीटों पर चुनाव होना है. दूसरे फेज के लिए 93 सीटों पर सोमवार पांच दिसंबर को मतदान होगा. मोरबी हादसा, एंटी इंकेंबसी फैक्टर, आप की एंट्री इन सबों का चुनाव पर कितना असर पड़ा है, यह सब आठ दिसंबर को ही पता चल पाएगा, जब वोटों की गणना होगा. लिहाजा, भाजपा के लिए पहला चरण बहुत ही महत्वपूर्ण है.
सौराष्ट्र में पहले चरण में ही चुनाव हो रहा है. इस इलाके में परंपरागत रूप से कांग्रेस मजबूत रही है. 2017 में भी कांग्रेस ने यहां पर अच्छा प्रदर्शन किया था. यहां की 48 में से 28 सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई थी. 2012 के मुकाबले कांग्रेस को यहां पर 13 सीटों का फायदा हुआ था. तब कांग्रेस को यहां पर 15 सीटें ही मिली थीं. ये अलग बात है कि बाद में कांग्रेस के कई विधायकों ने पार्टी छोड़ दी और उन्होंने भाजपा में जाना स्वीकार कर लिया.
इसके बावजूद 2017 में पटेल समुदायों का भाजपा से जिस तरह 'विलगाव' हुआ, पार्टी ने इसे गंभीरता से महसूस किया. अगर यह ट्रेंड नहीं बदला, तो इस बार भाजपा को गहरा 'आघात' पहुंच सकता है. भाजपा ने हालांकि, सौराष्ट्र में पार्टी को मजबूत करने के लिए बहुत सारे फैसले लिए हैं. इसने यहां के पटेल नेताओं को पार्टी में जगह दी है. कई सारी योजनाओं की शुरुआत की. इस क्षेत्र में कांग्रेस के मजबूत नेताओं को अपनी पार्टी में मिला लिया. ये सब ऐसे फैक्टर हैं, जिन पर भाजपा ने दांव लगाया है. यहां पर कुछ सीटों पर उपचुनाव हुए थे, उसमें भी भाजपा को जीत मिली थी.
पर, यह बात तय है कि अगर सौराष्ट्र में भाजपा ने 2017 के ट्रेंड पर काबू नहीं पाया तो उसे इसका खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए. इस नुकसान की भरपाई मुश्किल होगी. दूसरे फेज में उत्तर, मध्य और जनजातीय इलाकों में चुनाव होंगे. यानि ओवरऑल अगर भाजपा को अच्छा करना है, तो उसे सौराष्ट्र में भी अच्छा करना ही होगा.
अब कांग्रेस के मतदाताओं के लिए भी यह बहुत बड़ा समय है. उन्हें इस पर गंभीरता से विचार करना होगा कि आखिर वे मत कांग्रेस के लिए करते हैं, लेकिन उनके नेता बाद में पाला बदल लेते हैं. क्या उनके लिए मतदान करना सही होगा. भाजपा उम्मीद कर रही है कि कमजोर कांग्रेस ही उसकी मजबूती है, इसलिए सौराष्ट्र में भी कांग्रेस बेहतर नहीं कर पाएगी. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि आप और मोरबी हादसा ने कितना बदलाव लाया है. इसके बारे में अब तक बहुत अधिक चर्चा नहीं हुई है. कहीं इसकी वजह से बदलाव न आ जाए, इसलिए भाजपा पूरी तरह से आशंकित भी है.
सौराष्ट्र के साथ-साथ दक्षिण गुजरात में भी पहले चरण में ही मतदान होना है. इसका केंद्र सूरत है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल यहीं से आते हैं. गुजरात कैबिनेट के भारी भरकम नेता हर्ष सांघवी भी सूरत से ही हैं. सबसे रुचिकर बात ये है कि सूरत की राजनीति पिछले कुछ समय से सौराष्ट्र की राजनीति से अच्छा खासा प्रभावित रही है. सामान्य भाषा में कहें तो सूरत का ट्रेंड सौराष्ट्र का ट्रेंड बनता जा रहा है, जबकि भौगोलिक रूप से दोनों ही क्षेत्र दूर-दूर हैं. इसका कारण सूरत के हीरा पॉलिशिंग मजदूर हैं. ये मुख्य रूप से सौराष्ट्र के प्रवासी हैं. जब भी वे अपने घर जाते हैं, तो वे दोनों इलाके के बारे में न सिर्फ जानकारी रखते हैं, बल्कि उनकी प्रवृत्तियों से दूसरे को भी अवगत कराते हैं.
2015 में पाटीदार अनामत आंदोलन की वजह से हार्दिक पटेल का सूरत में अच्छा खासा प्रभाव था. सूरत के डायमंड इंडस्ट्री में कार्यरत मजदूरों के बीच उनकी पैठ थी. पर, अब हार्दिक पटेल भाजपा ज्वाइन कर चुके हैं. 2021 फरवरी में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में आप को 28 फीसदी वोट हासिल हुआ. उसे 27 सीटें भी मिलीं. यह परिणाम बताता है कि आप ने सूरत में अपना बेस स्थापित कर लिया है और वह धीरे-धीरे कर दक्षिण गुजरात में भी अपना असर दिखा रहा है.
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