नई दिल्ली : केंद्र सरकार की तरफ से देश के सुरक्षा हालात पर पूर्व रक्षा मंत्रियों के साथ रक्षा मंत्री की बैठक की गई और इस बहाने विपक्ष को विश्वास में लेने की हरसंभव, सरकार कोशिश कोशिश करती दिखी. इससे पहले भी यदि डेढ़ महीने पहले देखा जाए तो प्रधानमंत्री का विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों के साथ भी लगातार बैठक का दौर चलता रहा और ना सिर्फ दिशा निर्देश दिए गए बल्कि इन बैठकों में इन मुख्यमंत्रियों और विपक्षी दलों के नेताओं से इस मामले में सलाह भी मांगी गई.
इन बैठकों के बाद अब मंगलवार को प्रधानमंत्री ने कोरोना के मुद्दे पर विपक्षियों के साथ बैठक की और सभी पार्टी के संसदीय दल के नेताओं के सामने कोरोना से संबंधित तस्वीर एक प्रेजेंटेशन के माध्यम से रखने की कोशिश की.
इस बैठक में स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी भी प्रधानमंत्री के साथ मौजूद थे और उन्होंने तमाम बातों को बैठक में समझाया हालांकि अकाली दल बादल और कांग्रेस जैसी प्रमुख विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ आम आदमी पार्टी ,आरजेडी ,सीपी आई एम, सीपीआई और अन्य वामपंथी पार्टियों ने इस बैठक में शरीक ना होकर अपना विरोध भी जताया. लेकिन अन्य विपक्षी पार्टियां इस बैठक में मौजूद रहीं.
सरकार कोरोना के मौजूदा हालात और दूसरी लहर समेत आगे की क्या तैयारियां हैं इन तमाम बातों को लेकर विपक्षी पार्टियों को भरोसे में लेना चाहती थी. इस बैठक में प्रधानमंत्री के अलावा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडविया और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल भी मौजूद रहे.
यदि देखा जाए तो लगातार सरकार इस बार विपक्षी पार्टियों को भरोसे में लेकर हर मुद्दे पर सरकार की तरफ से स्पष्टीकरण देने की कोशिश कर रही है और मॉनसून सत्र शुरू होने से पहले भी रक्षा मंत्री ने पूर्व रक्षा मंत्री शरद पवार और एके एंटनी को बुलाकर सीमा के हालात से संबंधित उन्हें सरकार की तरफ से क्या क्या कदम उठाए गए हैं तमाम जानकारियां उपलब्ध कराई थी.
हालांकि अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर से संबंधित मामलों में सरकार की विपक्षी पार्टियों को भरोसे में लेने की परंपरा भी रही है लेकिन यदि देखा जाए तो पिछली सरकार में यूपीए ने इस परंपरा को कई बार तोड़ दिया था और इस परंपरा को दोबारा शुरू करते हुए नरेंद्र मोदी की सरकार एक नए अवतार में नजर आ रही है.
मॉनसून सत्र के पहले दिन ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यह बयान कि विपक्ष चाहे तो धड़ाधड़ सवाल कर सकता है लेकिन सत्ता पक्ष को जवाब देने के समय भी संयम रखें. इससे कहीं ना कहीं यह बात स्पष्ट हो जाती है कि विपक्षी पार्टियों की महत्ता को भी सरकार अब धीरे-धीरे समझते हुए उन्हें भरोसे में लेने की तस्वीर साफ करना चाहती है ताकि जनता के सामने यह संदेश ना जाए कि सरकार तानाशाही या आक्रामक होती जा रही है.
हमेशा से सरकार बात करना चाहती है
इस मुद्दे पर राजनीतिक विश्लेषक व वरिष्ठ अधिवक्ता देश रतन निगम से जब ईटीवी भारत ने बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि यह हमेशा से रहा है कि सरकार बात करना चाहती है. विरोधी पार्टियों से और तमाम दलों से मगर कई बार सारे दल सामने नहीं आते और यही बात हमने सर्वदलीय बैठक में भी देखा, जिसमें कुछ लोगों ने बहिष्कार किया. सरकार हमेशा से चाहती है कि वह तमाम बातों को विपक्षी पार्टियों के साथ शेयर करें लेकिन यदि इन बैठकों का बहिष्कार किया जाएगा तो उन्हें सरकार की योजनाओं और कार्रवाई का कैसे पता चल पाएगा.
उन्होंने कहा कि महामारी के बाद दुनिया भर की सरकारें अपनी नीतियां बदल रही है क्योंकि वैश्विक स्तर पर जो नुकसान हुआ आर्थिक व्यवस्था को ,उसकी भरपाई सरकार ही नहीं ,सभी को मिलकर करना होगा. क्योंकि हमें तेजी से अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाना होगा निगम का कहना है कि हम दुनिया भर में देखें चाहे वह आई एम एफ हो वर्ल्ड बैंक हो सभी को भारत से उम्मीद बहुत है.
उन्होंने यह विश्वास जताया है कि भारत की अर्थव्यवस्था 8. 5% से उठकर 11.5% तक हो सकती है और यह उनका विश्वास है और यह विश्वास वर्ल्ड इकोनामी के हिसाब से भारत के लिए काफी अच्छा है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था भारत की तरफ देख रही है और यह जो प्रोजेक्ट किया गया है वह उच्चतम ग्रोथ रेट है
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राजनीतिक विश्लेषक निगम का कहना है कि पेट्रोल के सेल का जो लेबल है वह जुलाई 2019 को भी क्रॉस कर चुका है. एक्सपोर्ट बढ़ गए हैं ,फॉरेन एक्सचेंज रिजल्ट जो 2014 में 304 मिलियन डॉलर था वह आज ही 600 मिलियन को क्रॉस कर चुका है जो लगभग डबल हो चुका है और यह यूनाइटेड स्टेट और यूनाइटेड किंगडम के फॉरेन एक्सचेंज रेट से भी ज्यादा है.
उन्होंने कहा कि यह बातें कहीं ना कहीं सही नीतियों की ही परिचायक है क्योंकि यहां पर महामारी में भी लोग भूखे नहीं मर रहे हैं सरकार ने मुफ्त राशन की व्यवस्था की शुरुआत शुरू में हि कर चुकी और अगले दिवाली तक सरकार ने यह घोषणा कर दी है कि वह मुफ्त राशन देगी यह अपने आप में बड़ी बात है क्योंकि कई देशों में अमेरिका जैसे देशों में भी भुखमरी आ गई थी साउथ अफ्रीका में भी यह देखने को मिला जहां भुखमरी और बेरोजगारी दोनों ही हावी हो गई
तथ्य- साक्ष्यों के किसी बात को भी नहीं स्वीकारा जा सकता
पेगासस स्नूपगेट के सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ अधिवक्ता देश रतन निगम का कहना है कि वह पेशे से वकील भी हैं, इस वजह से बगैर तथ्य और साक्ष्यों के किसी बात को भी नहीं स्वीकार कर सकते और जहां तक इस मामले में तथ्य की बात है अभी तक कोई मजबूत आधार नहीं पेश किया जा सका है कि स्नूपिंग सरकार की तरफ से की गई है बगैर तथ्यों के आधार पर लगाए गए यह आरोप है उन्होंने कहा कि उनका सबसे पहला सवाल है कि ऐसी कहानी 2019 में भी गड़ी गई थी और जब संसद का सत्र शुरू होने वाला होता है तो ऐसा कोई ना कोई शगुफा छोड़ा जाता है और व्हबेक महीने तक चलता है,वही इसमें भी होने वाला है.
निगम का कहना है की यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो यह तमाम जानकारी है जिसे सीक्रेट इंफॉर्मेशन बताए जा रहा है क्या यह डिजिटली आसानी से उपलब्ध है? इसका जवाब है, जी हां ,यह बहुत ही आसानी से उपलब्ध है और कोई भी यह जानकारी प्राप्त कर सकता है उन्हीने कहा कि पिकौसस ने खुद यह उदाहरण दिया है कि कि ऐसी कई वेबसाइट है जहां पर यह जानकारियां भरी पड़ी है.
वहीं दूसरी तरफ यदि आप देखें तो ,यदि आप किसी को फोन करते हैं तो उन्हें तमाम डेटा ऑटोमेटिकली उनको उपलब्ध हो जाता है यदि हम किसी वेबसाइट को अपलोड करते हैं वह तमाम डाटा हमारे जानकारियों के माध्यम से उपलब्ध कर लेते हैं हम रेस्टोरेंट में भी बैठते हैं तो अगले दिन वहां से मैसेज आने लगते हैं यानी कि यह बातें सरकार नहीं उनसे शेयर करती हैं और यही बात मैं यहां पर कहना चाहता हूं कि यहां कोई आधार नहीं दिया जा रहा है कि सरकार ने कोई जासूसी की है.
तथ्यों के आधार पर यहां पर आरोप नहीं लगाए जा रहे हैं क्योंकि जो इंफॉर्मेशन इसमें दिए जा रहे हैं वह आमतौर पर डिजिटल मीडिया में उपलब्ध है और वहीं दूसरी तरफ सरकार ने यह भी कभी नहीं कहा कि वह सर्विलांस नहीं करती, क्योंकि देश को चलाने के लिए एक बार मनमोहन सिंह ने भी यह कहा था कि सर्विलांस की जरूरत होती है लेकिन वह सर्विलांस आतंकवादी गतिविधियों पर या फिर यदि किसी की फोन टैपिंग की जाती है तो होम मिनिस्ट्री से इजाजत लेने के बाद की जाती है, ताकि राष्ट्र विरोधी आतंकवादी गतिविधियों को कोई अंजाम न दे पाए और यहां तक कि इसमें पेगासस ने खुद कह दिया है कि जो डाटाबेस सर्वर है वह पिगौसस का है ही नहीं ऐसे में सरकार पर बगैर तत्वों के आरोप लगाया जाना कहीं ना कहीं यह एक राजनीतिक साजिश लगती है.