नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री (First Chief Minister of Uttar Pradesh) के रूप में पंडित गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) को गद्दी संभालने का मौका मिला था. वह आजादी के पहले भी यह जिम्मेदारी संभाल चुके थे. इस दौरान उन्होंने अपने राजनीतिक अनुभव से एक से बढ़कर एक काम किए. एक अधिवक्ता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राजनेता के रूप में उन्होंने कई ऐतिहासिक कार्य किए, जिसके लिए आज भी लोग उनको याद करते हैं. पंडित गोविंद बल्लभ पंत का जन्मदिन 10 सितंबर को मनाया जाता है. इस मौके पर ईटीवी भारत उनके जीवन से जुड़ी घटनाओं व कहानियों से आपको परिचित कराने की कोशिश कर रहा है. उनके जन्मदिन के अवसर पर जानने की कोशिश करते हैं कि गोविंद बल्लभ पंत का व्यक्तित्व किस तरह का था और वह अपने निजी जीवन के साथ-साथ राजनीतिक जीवन में किस तरह के व्यवहार के लिए जाने जाते थे.
गोविंद बल्लभ पंत जन्मदिन 10 सितंबर को मनाया जाता है. पर ऐसा कहा जाता है कि उनका असली जन्मदिन 30 अगस्त को पड़ा था. उनको नजदीक से जानने वाले लोगों का कहना है कि जिस दिन पंत पैदा हुए वो अनंत चतुर्दशी का दिन था. तो वह हर साल अनंत चतुर्दशी को ही जन्मदिन मनाते थे, चाहे तारीख जो भी पड़े. पर संयोग की बात 1946 में वह अपने जन्मदिन अनंत चतुर्दशी के दिन ही मुख्यमंत्री बने थे. उस दिन 10 सितंबर की तारीख थी. इसके बाद उन्होंने हर साल 10 सितंबर को ही अपना जन्मदिन मनाना शुरू कर दिया.
उत्तर प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री (First Chief Minister of Uttar Pradesh)
पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त (GB Pant) प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी, वरिष्ठ भारतीय राजनेता और उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री के साथ साथ देश के दूसरे गृहमंत्री के रुप में जाने जाते हैं, जिनको 17 जुलाई 1937 से लेकर 2 नवम्बर 1939 तक वे ब्रिटिश भारत में संयुक्त प्रान्त का पहला मुख्यमन्त्री बनने का गौरव हासिल हुआ था. इसके बाद दोबारा उन्हें यही दायित्व फिर सौंपा गया और वह 1 अप्रैल 1946 से 15 अगस्त 1947 तक संयुक्त प्रान्त के मुख्यमन्त्री बने रहे.
इसके बाद जब भारतवर्ष का अपना संविधान बन गया और संयुक्त प्रान्त का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश रखा गया तो फिर से तीसरी बार उन्हें ही इस पद के लिये सर्व सम्मति से चुना गया. इस प्रकार से स्वतन्त्र भारत के नवनामित राज्य के भी वे मुख्यमंत्री बने. वह 26 जनवरी 1950 से लेकर 27 दिसम्बर 1954 तक मुख्यमन्त्री रहे.
जमींदारी प्रथा को खत्म कराने में भूमिका (Role in Abolishing Zamindari System)
जमींदारी प्रथा को खत्म कराने में उनका महत्वपूर्ण योगदान बताया जाता है. बताया जाता है कि जब पन्त जी 1946 से दिसम्बर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे तो भूमि सुधारों में पर्याप्त रुचि होने के कारण इस पर काम करना शुरु किया. 21 मई 1952 को जमींदारी उन्मूलन क़ानून को प्रभावी बनाया.
नैनीताल तराई को आबाद करने का प्लान
मुख्यमंत्री के रूप में उनकी विशाल योजना नैनीताल तराई को आबाद करने की थी. इतिहासकार प्रो. अजय रावत बताते हैं कि पंत तराई भाबर की भूमि को आबाद करने के साथ-साथ इस क्षेत्र को कृषि के क्षेत्र में विशेष पहचान दिलाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने वर्ष 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद बेरोजगार हो गए सैनिकों और अधिकारियों को तराई में कृषि कार्यों के लिए भूमि आवंटित कराने का काम किया. साथ ही साथ पंत ने उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी तराई में बसाया जिनके पास तब कुछ भी नहीं था. पंत ने कृषि की पढ़ाई कर कॉलेज और विश्वविद्यालयों से निकले बेरोजगार युवकों को भी तराई में कृषि कार्य के लिए भूमि आवंटित कराकर तराई की भूमि को एडवांस एग्रीकल्चर एरिया के रूप में विकसित करने की पहल शुरू की. अब तो देश भर के विभिन्न प्रांतों को तराई इलाकों से अनाज भेजा जाता है. आज तराई भाबर का इलाका खेतीबारी के रुप में खूब फल फूल रहा है. इसका श्रेय गोविंद वल्लभ पंत की सोच को जाता है.
यूपी में कम्यूनिटी मैनेजमेंट के भी जनक ( Community Management in UP)
राजनीति के जानकार व पुराने प्रशासनिक अधिकारियों की माने तो गोविंद बल्लभ पंत ने वर्ष 1950-51 में इटावा में कम्यूनिटी मैनेजमेंट पर एक प्रोजेक्ट पर सफलतापूर्वक काम किया था. उसके बाद से ही उन्होंने अपने इस प्रोजेक्ट को तराई भाबर में भी उतारा और कई बड़ी कंपनियों को साथ लेकर तराई भाबर में पंतनगर विश्वविद्यालय, काशीपुर कुंडेश्वरी में एस्कार्ट्स और प्राग फार्म जैसे कई उद्यमों की स्थापना कराई. इससे बेरोजगारी के साथ साथ खाद्यान्न की कमी भी दूर हुई.
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देश का गृहमंत्री (Second Home Minister of India)
देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल की मृत्यु के बाद जवाहर लाल नेहरु को एक ऐसे राजनीतिज्ञ की तलाश थी जो उनके जैसा प्रभावशाली व दृढ़इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति हो. तब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने उन्हें याद किया और देश का गृह मंत्रालय संभालने की अपील की. भारत सरकार के गृहमंत्री के रुप में पन्तजी का कार्यकाल जीवन पर्यंत रहा. वह 1955 से लेकर 1961 तक देश के गृहमंत्री के रुप में कई ऐतिहासिक व सराहनीय कार्य किए. उनके निधन के पश्चात् लाल बहादुर शास्त्री उनके उत्तराधिकारी बनाए गए थे.
हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने में योगदान
भारतीय संविधान में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था. 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी, लेकिन देश में जब 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ तो इसमें देवनागरी में लिखी जाने वाली हिंदी सहित 14 भाषाओं को आठवीं सूची में आधिकारिक भाषाओं के रूप में रखा गया. संविधान के मुताबिक 26 जनवरी 1965 में हिंदी को अंग्रजी के स्थान पर देश की आधिकारिक भाषा बनना था और उसके बाद हिंदी में ही विभिन्न राज्यों को आपस में और केंद्र के साथ संवाद करना था. ऐसा आसानी से हो सके इसके लिए संविधान में 1955 और 1960 में राजभाषा आयोगों को बनाने की भी बात कही गई थी. इन आयोगों को हिंदी के विकास के संदर्भ में रिपोर्ट देनी थी और इन रिपोर्टों के आधार पर संसद की संयुक्त समिति के द्वारा राष्ट्रपति को इस संबंध में कुछ सिफारिशें देकर इसको लागू करवाना था. छोटे मोटे विरोध के बाद 26 जनवरी 1965 को हिंदी देश की राजभाषा बन गई.
सरकारी पैसे का दुरुपयोग न करना
बताया जाता है कि एक बार पंत ने सरकारी बैठक बुलाई तो उसमें चाय-नाश्ते का इंतजाम ऊी कर दिया गया. जब उसका बिल पास होने के लिए आया तो उसमें हिसाब में छह रुपये और बारह आने लिखे हुए थे. पंत जी ने बिल पास करने से मना कर दिया और कहा कि यह तो नियम विरुद्ध है. जब उनसे इस बिल को पास न करने का कारण पूछा गया तो वह बोले थे, ‘सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे से केवल चाय मंगवाने का नियम है। ऐसे में नाश्ते का बिल नाश्ता मंगवाने वाले व्यक्ति को खुद देना होगा. हां, चाय का बिल जरूर पास हो सकता है.’
इसके बाद अधिकारियों ने उनसे कहा कि कभी-कभी चाय के साथ नाश्ता मंगवाने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए. ऐसे में इसे पास करने से कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए. उस दिन चाय के साथ नाश्ता करने वाले लोगों में पंतजी खुद भी शामिल थे. इसलिए कुछ देर सोचकर पंत ने अपनी जेब से रुपये निकाले और बोले, ‘चाय का बिल पास हो सकता है, लेकिन नाश्ते का नहीं. नाश्ते का बिल मैं अदा करूंगा. नाश्ते पर हुए खर्च को मैं सरकारी खजाने से चुकाने की इजाजत कत्तई नहीं दे सकता. उस खजाने पर जनता और देश का हक है, मंत्रियों का नहीं.’ उनकी दलील व कार्यशैली को सुनकर सभी अधिकारी चुप हो गए.
स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान देने के साथ साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा भारत के गृहमंत्री के रूप में उत्कृष्ट कार्य करने के चलते 1957 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत को देश की आजादी और भारत के आधुनिक विकास में उनके योगदान के लिए भारत रत्न की उपाधि से नवाजा गया.
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