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तहरीक-ए-हुर्रियत पर प्रतिबंध को लेकर सरकार ने न्यायाधिकरण का किया गठन - दिल्ली उच्च न्यायालय

Tehreek-e-Hurriyat, Delhi High Court, केंद्र ने एक न्यायाधिकरण का गठन किया, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शामिल होंगे और जो यह फैसला करेगा कि क्या पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी तहरीक-ए-हुर्रियत, जम्मू-कश्मीर को गैरकानूनी संघ घोषित करने के लिए पर्याप्त आधार है.

Delhi High Court
दिल्ली उच्च न्यायालय
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By PTI

Published : Jan 16, 2024, 10:51 PM IST

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने मंगलवार को एक न्यायाधिकरण का गठन किया, जो यह फैसला करेगा कि पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी संगठन तहरीक-ए-हुर्रियत-जम्मू-कश्मीर को गैरकानूनी संगठन घोषित करने के लिए पर्याप्त आधार हैं या नहीं. इस न्यायाधिकरण में दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश भी होंगे.

दिवंगत अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी द्वारा स्थापित संगठन को सरकार ने 31 दिसंबर को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत पांच साल के लिए गैरकानूनी घोषित कर दिया था.

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना में कहा कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 4 की उपधारा (1) के साथ पठित धारा 5 की उपधारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार ने यह तय करने के लिए गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) न्यायाधिकरण का गठन किया है कि तहरीक-ए-हुर्रियत-जम्मू कश्मीर को गैर कानूनी संगठन घोषित करने के लिए पर्याप्त कारण हैं या नहीं.

अधिसूचना में कहा गया कि न्यायाधिकरण में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति सचिन दत्ता भी शामिल होंगे. मंत्रालय ने कहा कि तहरीक ए हुर्रियत के नेता और सदस्य जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने और सुरक्षाबलों पर निरंतर पथराव सहित गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान और उसके समर्थन वाले संगठनों सहित विभिन्न स्रोतों के माध्यम से धन जुटाने में शामिल रहे हैं.

अधिसूचना में कहा गया कि संगठन के सदस्य उन आतंकवादियों को भी श्रद्धांजलि दे रहे हैं, जो सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे जाते हैं और ये लोग देश में आतंक का शासन स्थापित करने के इरादे से आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने में शामिल रहे हैं.

गृह मंत्रालय ने कहा कि तहरीक-ए-हुर्रियत और इसके लोग गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त रहे हैं, जो देश की अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए हानिकारक हैं. इसने कहा कि संगठन ने कभी भी शासन की लोकतांत्रिक प्रणाली में विश्वास नहीं किया और इसके नेताओं ने कई मौकों पर विधानसभा चुनावों का बहिष्कार करने का आह्वान किया.

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने मंगलवार को एक न्यायाधिकरण का गठन किया, जो यह फैसला करेगा कि पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी संगठन तहरीक-ए-हुर्रियत-जम्मू-कश्मीर को गैरकानूनी संगठन घोषित करने के लिए पर्याप्त आधार हैं या नहीं. इस न्यायाधिकरण में दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश भी होंगे.

दिवंगत अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी द्वारा स्थापित संगठन को सरकार ने 31 दिसंबर को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत पांच साल के लिए गैरकानूनी घोषित कर दिया था.

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना में कहा कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 4 की उपधारा (1) के साथ पठित धारा 5 की उपधारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार ने यह तय करने के लिए गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) न्यायाधिकरण का गठन किया है कि तहरीक-ए-हुर्रियत-जम्मू कश्मीर को गैर कानूनी संगठन घोषित करने के लिए पर्याप्त कारण हैं या नहीं.

अधिसूचना में कहा गया कि न्यायाधिकरण में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति सचिन दत्ता भी शामिल होंगे. मंत्रालय ने कहा कि तहरीक ए हुर्रियत के नेता और सदस्य जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने और सुरक्षाबलों पर निरंतर पथराव सहित गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान और उसके समर्थन वाले संगठनों सहित विभिन्न स्रोतों के माध्यम से धन जुटाने में शामिल रहे हैं.

अधिसूचना में कहा गया कि संगठन के सदस्य उन आतंकवादियों को भी श्रद्धांजलि दे रहे हैं, जो सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे जाते हैं और ये लोग देश में आतंक का शासन स्थापित करने के इरादे से आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने में शामिल रहे हैं.

गृह मंत्रालय ने कहा कि तहरीक-ए-हुर्रियत और इसके लोग गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त रहे हैं, जो देश की अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए हानिकारक हैं. इसने कहा कि संगठन ने कभी भी शासन की लोकतांत्रिक प्रणाली में विश्वास नहीं किया और इसके नेताओं ने कई मौकों पर विधानसभा चुनावों का बहिष्कार करने का आह्वान किया.

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