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आदिवासियों के हक की आवाज उठाने वाले फादर स्टेन की पूरी कहानी

आदिवासियों के हक के लिए काम करने वाले फादर स्टेन स्वामी (Father Stan Swamy) पर एनआईए ने आरोप लगाए थे कि स्टेन स्वामी प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के सदस्य हैं. भीमा कोरेगांव के एल्गार परिषद वाले मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने उन्हें आरोपी बनाकर गिरफ्तार किया था.

(Father Stan Swamy
फादर स्टेन स्वामी
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Published : Jul 5, 2021, 10:57 PM IST

नई दिल्ली। झारखंड के मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी (Father Stan Swamy) का सोमवार को मुंबई में निधन हो गया. उन्होंने कई वर्षों तक राज्य के आदिवासी और अन्य वंचित समूहों के लिए काम किया. उन्होंने विशेष रूप से विस्थापन, संसाधनों की कंपनियों के ओर से लूट, विचाराधीन कैदियों के साथ-साथ कानून पर काम किया. मूल रुप से तमिलनाडु के रहने वाले फादक स्टेन स्वामी झारखंड आर्गेनाइजेशन अगेंस्ट यूरेनियम रेजियेशन से जुड़े रहे.

कौन हैं स्टेन स्वामी

स्टेन स्वामी का जन्म 26 अप्रैल 1937 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ था. उनके मित्रों के अनुसार, उन्होंने थियोलॉजी और मनीला विश्वविद्यालय से 1970 के दशक में समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की थी. बाद में उन्होंने ब्रसेल्स में भी पढ़ाई की. उन्होंने 1975 से 1986 तक बेंगलुरू स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट के निदेशक के तौर पर काम किया. झारखंड में आदिवासियों के लिए एक कार्यकर्ता के रूप में करीब 30 साल पहले उन्होंने काम करना शुरू किया. उन्होंने जेलों में बंद आदिवासी युवाओं की रिहाई के लिए काम किया, जिन्हें अक्सर झूठे मामलों में फंसाया जाता था. उन्होंने हाशिये पर रहने वाले उन आदिवासियों के लिए भी काम किया, जिनकी जमीन का बांध, खदान और विकास के नाम पर बिना उनकी सहमति के अधिग्रहण कर लिया गया था.

आदिवासियों के अधिकारों के लिए स्टेन द्वारा बनाए गए संगठन

स्टेन स्वामी के साथ आदिवासियों के अधिकारों के लिए बनाए गए गैर सरकारी संगठन ‘बिरसा’ में काम कर चुके चाईबासा में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता दामू वानरा ने बताया कि समाजशास्त्र से एमए करने के बाद कैथोलिक्स द्वारा चलाए जा रहे बेंगलुरू स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में निदेशक के तौर पर काम करने के दौरान ही स्टेन स्वामी झारखंड के चाईबासा आने लगे और उन्होंने गरीबों तथा वंचितों के साथ रह कर उनके जीवन को नजदीक से देखने और समझने की कोशिश की.

इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट से 1986 में सेवानिवृत्त

उन्होंने बताया कि इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट से 1986 में सेवानिवृत्त होने के बाद स्टेन स्वामी चाईबासा में ही जाकर रहने लगे और वहां उन्होंने आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने के वास्ते ‘बिरसा’ नामक एनजीओ की स्थापना की. वहीं, मुख्य रूप से मिशनरी के सामाजिक कार्य के लिए ‘जोहार’ नामक एनजीओ की शुरुआत की.

फादर स्टेन द्वारा किए गए काम

  • फादर स्टेन स्वामी झारखंड आर्गेनाइजेशन अगेंस्ट यूरेनियम रेडियेशन से भी जुड़े रहे, जिसने 1996 में यूरेनियम कॉरपोरेशन के खिलाफ आंदोलन चलाया था, जिसके बाद चाईबासा में बांध बनाने का काम रोक दिया गया.
  • उन्होंने बोकारो, संथाल परगना और कोडरमा जिले के आदिवासियों के बीच काम किया.
  • 2010 में फादर स्टेन स्वामी की ‘जेल में बंद कैदियों का सच’ नामक किताब प्रकाशित हुई, जिसमें यह उल्लेख किया गया था कि कैसे आदिवासी नौजवानों को नक्सली होने के झूठे आरोपों में जेल में डाला गया.
  • 2014 में उनकी एक और रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें कहा गया कया कि तीन हजार गिरफ्तारियों में 98% मामलों में आरोपी का नक्सल आंदोलन से कोई संबंध नहीं निकला, इसके बावजूद ये नौजवान जेल में बंद रहे.
  • फादर स्टेन 1996 में बने पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शिड्यूल्ड एरियाज एक्ट) को दरकिनार करने का मुद्दा भी उठाते रहे, यह वह कानून है जिसके तहत पहली बार आदिवासी समुदायों को ग्राम सभा के माध्यम से स्वशासन का अधिकार दिया गया.

फादर स्टेन पर लगे आरोप

फादर स्टेन की साथी दामू वानरा ने बताया कि स्वामी लगातार कहते थे कि गरीबों, आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ो, लेकिन कानून अपने हाथ में न लो. वह स्वयं पहले खूंटी के पत्थलगड़ी आंदोलन में कानून अपने हाथ में लेने और आदिवासियों को भड़काने के मामलों में पुलिस प्राथमिकी में आरोपी बनाए गए थे. फिर भीमा कोरेगांव के एल्गार परिषद वाले मामले में भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने उन्हें आरोपी बनाकर गिरफ्तार कर लिया. स्टेन स्वामी पर पत्थलगढ़ी आंदोलन के मुद्दे पर तनाव भड़काने के लिए झारखंड सरकार के खिलाफ बयान जारी करने के आरोप थे. झारखंड की खूंटी पुलिस ने स्टेन स्वामी समेत 20 लोगों पर राजद्रोह का मामला भी दर्ज किया था.

झारखंड में विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन की स्थापना

दामू ने कहा कि पादरी होने के बावजूद स्टेन स्वामी कभी भी लोगों से दूर नहीं होते थे. उनसे कभी भी कोई भी जाकर मिल सकता था. स्वामी स्वयं चाईबासा के गांव-गांव से जुड़े हुए थे. बड़ी संख्या में वहां ऐसे गांव हैं, जहां लोग स्वामी को व्यक्तिगत तौर पर जानते थे. उन्होंने बताया कि शुरुआती दिनों में स्वामी ने पादरी का काम किया, लेकिन फिर आदिवासी अधिकारों की लड़ाई लड़ने लगे. बतौर मानवाधिकार कार्यकर्ता झारखंड में विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन की भी स्थापना की. यह संगठन आदिवासियों और दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ता है.

प्रतिबंधित संगठन सीपीआई का सदस्य होने का आरोप

उनपर एनआईए ने आरोप लगाए थे कि स्टेन स्वामी प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के सदस्य हैं. स्वामी पर आरोप लगाया गया था कि वह इसके मुखौटा संगठनों के संयोजक हैं और सक्रिय रूप से इसकी गतिविधियों में शामिल रहते हैं. जांच एजेंसी ने उनपर संगठन का काम बढ़ाने के लिए एक सहयोगी के माध्यम से पैसे हासिल करने का आरोप लगाया था. वानरा ने अफसोस जताते हुए कहा कि आखिर स्वयं कानून-व्यवस्था को हाथ में लेने के आरोप में जेल में बंद स्वामी का आज मुंबई में निधन हो गया, जिसका उन्हें सदा दुख रहेगा.

नई दिल्ली। झारखंड के मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी (Father Stan Swamy) का सोमवार को मुंबई में निधन हो गया. उन्होंने कई वर्षों तक राज्य के आदिवासी और अन्य वंचित समूहों के लिए काम किया. उन्होंने विशेष रूप से विस्थापन, संसाधनों की कंपनियों के ओर से लूट, विचाराधीन कैदियों के साथ-साथ कानून पर काम किया. मूल रुप से तमिलनाडु के रहने वाले फादक स्टेन स्वामी झारखंड आर्गेनाइजेशन अगेंस्ट यूरेनियम रेजियेशन से जुड़े रहे.

कौन हैं स्टेन स्वामी

स्टेन स्वामी का जन्म 26 अप्रैल 1937 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ था. उनके मित्रों के अनुसार, उन्होंने थियोलॉजी और मनीला विश्वविद्यालय से 1970 के दशक में समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की थी. बाद में उन्होंने ब्रसेल्स में भी पढ़ाई की. उन्होंने 1975 से 1986 तक बेंगलुरू स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट के निदेशक के तौर पर काम किया. झारखंड में आदिवासियों के लिए एक कार्यकर्ता के रूप में करीब 30 साल पहले उन्होंने काम करना शुरू किया. उन्होंने जेलों में बंद आदिवासी युवाओं की रिहाई के लिए काम किया, जिन्हें अक्सर झूठे मामलों में फंसाया जाता था. उन्होंने हाशिये पर रहने वाले उन आदिवासियों के लिए भी काम किया, जिनकी जमीन का बांध, खदान और विकास के नाम पर बिना उनकी सहमति के अधिग्रहण कर लिया गया था.

आदिवासियों के अधिकारों के लिए स्टेन द्वारा बनाए गए संगठन

स्टेन स्वामी के साथ आदिवासियों के अधिकारों के लिए बनाए गए गैर सरकारी संगठन ‘बिरसा’ में काम कर चुके चाईबासा में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता दामू वानरा ने बताया कि समाजशास्त्र से एमए करने के बाद कैथोलिक्स द्वारा चलाए जा रहे बेंगलुरू स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में निदेशक के तौर पर काम करने के दौरान ही स्टेन स्वामी झारखंड के चाईबासा आने लगे और उन्होंने गरीबों तथा वंचितों के साथ रह कर उनके जीवन को नजदीक से देखने और समझने की कोशिश की.

इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट से 1986 में सेवानिवृत्त

उन्होंने बताया कि इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट से 1986 में सेवानिवृत्त होने के बाद स्टेन स्वामी चाईबासा में ही जाकर रहने लगे और वहां उन्होंने आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने के वास्ते ‘बिरसा’ नामक एनजीओ की स्थापना की. वहीं, मुख्य रूप से मिशनरी के सामाजिक कार्य के लिए ‘जोहार’ नामक एनजीओ की शुरुआत की.

फादर स्टेन द्वारा किए गए काम

  • फादर स्टेन स्वामी झारखंड आर्गेनाइजेशन अगेंस्ट यूरेनियम रेडियेशन से भी जुड़े रहे, जिसने 1996 में यूरेनियम कॉरपोरेशन के खिलाफ आंदोलन चलाया था, जिसके बाद चाईबासा में बांध बनाने का काम रोक दिया गया.
  • उन्होंने बोकारो, संथाल परगना और कोडरमा जिले के आदिवासियों के बीच काम किया.
  • 2010 में फादर स्टेन स्वामी की ‘जेल में बंद कैदियों का सच’ नामक किताब प्रकाशित हुई, जिसमें यह उल्लेख किया गया था कि कैसे आदिवासी नौजवानों को नक्सली होने के झूठे आरोपों में जेल में डाला गया.
  • 2014 में उनकी एक और रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें कहा गया कया कि तीन हजार गिरफ्तारियों में 98% मामलों में आरोपी का नक्सल आंदोलन से कोई संबंध नहीं निकला, इसके बावजूद ये नौजवान जेल में बंद रहे.
  • फादर स्टेन 1996 में बने पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शिड्यूल्ड एरियाज एक्ट) को दरकिनार करने का मुद्दा भी उठाते रहे, यह वह कानून है जिसके तहत पहली बार आदिवासी समुदायों को ग्राम सभा के माध्यम से स्वशासन का अधिकार दिया गया.

फादर स्टेन पर लगे आरोप

फादर स्टेन की साथी दामू वानरा ने बताया कि स्वामी लगातार कहते थे कि गरीबों, आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ो, लेकिन कानून अपने हाथ में न लो. वह स्वयं पहले खूंटी के पत्थलगड़ी आंदोलन में कानून अपने हाथ में लेने और आदिवासियों को भड़काने के मामलों में पुलिस प्राथमिकी में आरोपी बनाए गए थे. फिर भीमा कोरेगांव के एल्गार परिषद वाले मामले में भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने उन्हें आरोपी बनाकर गिरफ्तार कर लिया. स्टेन स्वामी पर पत्थलगढ़ी आंदोलन के मुद्दे पर तनाव भड़काने के लिए झारखंड सरकार के खिलाफ बयान जारी करने के आरोप थे. झारखंड की खूंटी पुलिस ने स्टेन स्वामी समेत 20 लोगों पर राजद्रोह का मामला भी दर्ज किया था.

झारखंड में विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन की स्थापना

दामू ने कहा कि पादरी होने के बावजूद स्टेन स्वामी कभी भी लोगों से दूर नहीं होते थे. उनसे कभी भी कोई भी जाकर मिल सकता था. स्वामी स्वयं चाईबासा के गांव-गांव से जुड़े हुए थे. बड़ी संख्या में वहां ऐसे गांव हैं, जहां लोग स्वामी को व्यक्तिगत तौर पर जानते थे. उन्होंने बताया कि शुरुआती दिनों में स्वामी ने पादरी का काम किया, लेकिन फिर आदिवासी अधिकारों की लड़ाई लड़ने लगे. बतौर मानवाधिकार कार्यकर्ता झारखंड में विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन की भी स्थापना की. यह संगठन आदिवासियों और दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ता है.

प्रतिबंधित संगठन सीपीआई का सदस्य होने का आरोप

उनपर एनआईए ने आरोप लगाए थे कि स्टेन स्वामी प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के सदस्य हैं. स्वामी पर आरोप लगाया गया था कि वह इसके मुखौटा संगठनों के संयोजक हैं और सक्रिय रूप से इसकी गतिविधियों में शामिल रहते हैं. जांच एजेंसी ने उनपर संगठन का काम बढ़ाने के लिए एक सहयोगी के माध्यम से पैसे हासिल करने का आरोप लगाया था. वानरा ने अफसोस जताते हुए कहा कि आखिर स्वयं कानून-व्यवस्था को हाथ में लेने के आरोप में जेल में बंद स्वामी का आज मुंबई में निधन हो गया, जिसका उन्हें सदा दुख रहेगा.

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