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भगोड़ा आरोपी अदालत से किसी रियायत या माफी का हकदार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी जांच एजेंसी की पहुंच से दूर भगोड़ा घोषित व्यक्ति को अदालत से कोई रियायत या माफी नहीं मिलनी चाहिए.

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Published : May 25, 2022, 3:33 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भगोड़ा आरोपी किसी भी तरह की रियायत का हकदार नहीं है. न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि जब कोई आरोपी फरार है और उसे भगोड़ा घोषित कर दिया गया है, तो उसे दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 (गिरफ्तारी की आशंका के आधार पर जमानत देने का निर्देश) का लाभ देने का कोई सवाल ही नहीं उठता है.

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि मौलिक अधिकारों के हनन वाले कड़े प्रावधान लगाये जाने से संबंधित आरोपी के मामले पर विचार करने से व्यक्ति के दोषपूर्ण आचरण का प्रभाव दूर नहीं हो जाता है. शीर्ष अदालत ने कहा कि संबंधित व्यक्ति कानून की प्रक्रिया का उचित तरीके से पालन किये बिना और कानून के मुताबिक व्यवहार किये बिना अपने मौलिक अधिकारों के लिए कोई भी दावा नहीं कर सकता है.

पीठ ने कहा कि हमें यह स्पष्ट करने में कोई हिचक नहीं है कि कोई भी व्यक्ति, जिसे भगोड़ा घोषित किया जाता है और जांच एजेंसी की पहुंच से वह दूर रहता है तथा इस तरह सीधे तौर पर कानून को चुनौती देता है, तो वह आमतौर पर किसी रियायत या माफी का हकदार नहीं होता है. बंबई उच्च न्यायालय द्वारा पारित फैसले को चुनौती देने वाले एक आरोपी की अपील खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय की यह टिप्पणी सामने आई है.

याचिका के जरिये आरोपी ने महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1992 की धारा 23 (2) के तहत अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक और नागपुर के पुलिस आयुक्त के एक आदेश को चुनौती दी थी. इसके तहत अलग-अलग अपराधों के लिए पांच अन्य आरोपी व्यक्तियों के साथ याचिकाकर्ता के खिलाफ भी मुकदमा चलाने की मंजूरी दी गई थी. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की सभी दलीलें निराधार हैं. इस प्रकार हमें वर्तमान मामले में भगोड़ा घोषित करने के प्रभाव के संबंध में और कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है.

यह भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, यौनकर्मियों को भी जारी किया जाए आधार कार्ड

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भगोड़ा आरोपी किसी भी तरह की रियायत का हकदार नहीं है. न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि जब कोई आरोपी फरार है और उसे भगोड़ा घोषित कर दिया गया है, तो उसे दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 (गिरफ्तारी की आशंका के आधार पर जमानत देने का निर्देश) का लाभ देने का कोई सवाल ही नहीं उठता है.

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि मौलिक अधिकारों के हनन वाले कड़े प्रावधान लगाये जाने से संबंधित आरोपी के मामले पर विचार करने से व्यक्ति के दोषपूर्ण आचरण का प्रभाव दूर नहीं हो जाता है. शीर्ष अदालत ने कहा कि संबंधित व्यक्ति कानून की प्रक्रिया का उचित तरीके से पालन किये बिना और कानून के मुताबिक व्यवहार किये बिना अपने मौलिक अधिकारों के लिए कोई भी दावा नहीं कर सकता है.

पीठ ने कहा कि हमें यह स्पष्ट करने में कोई हिचक नहीं है कि कोई भी व्यक्ति, जिसे भगोड़ा घोषित किया जाता है और जांच एजेंसी की पहुंच से वह दूर रहता है तथा इस तरह सीधे तौर पर कानून को चुनौती देता है, तो वह आमतौर पर किसी रियायत या माफी का हकदार नहीं होता है. बंबई उच्च न्यायालय द्वारा पारित फैसले को चुनौती देने वाले एक आरोपी की अपील खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय की यह टिप्पणी सामने आई है.

याचिका के जरिये आरोपी ने महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1992 की धारा 23 (2) के तहत अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक और नागपुर के पुलिस आयुक्त के एक आदेश को चुनौती दी थी. इसके तहत अलग-अलग अपराधों के लिए पांच अन्य आरोपी व्यक्तियों के साथ याचिकाकर्ता के खिलाफ भी मुकदमा चलाने की मंजूरी दी गई थी. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की सभी दलीलें निराधार हैं. इस प्रकार हमें वर्तमान मामले में भगोड़ा घोषित करने के प्रभाव के संबंध में और कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है.

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